04 नवंबर 2019

मैं जिस पर कृपा करता हूँ



मैं जिस पर कृपा करता हूँ, उसका धन छीन लेता हूँ। क्योंकि जब मनुष्य धन के मद से मतवाला हो जाता है, तब मेरा और लोगों का तिरस्कार करने लगता है। यह जीव अपने कर्मों के कारण विवश होकर अनेक योनियों में भटकता रहता है, जब कभी मेरी बड़ी कृपा से मनुष्य का शरीर प्राप्त करता है।

मनुष्य योनि में जन्म लेकर यदि कुलीनता, कर्म, अवस्था, रूप, विद्या, ऐश्वर्य और धन आदि के कारण घमंड न हो जाये तो समझना चाहिये कि मेरी बड़ी ही कृपा है।

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भारत! कुआँ दूसरे का, घङा दूसरे का, और रस्सी दूसरे की है। एक पानी पिलाता है, और एक पीता है। वे सब फल के भागी होते हैं।

कृपोस्य्स्य घटोस्य्स्य रज्जुरंयस्य भारत।
पायवत्येक पिबत्वेकः सर्वे ते संभागिनः॥

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महाभारत, विष्णु-पुराण के अनुसार जय-विजय में से एक हिरण्यकशिपु, फ़िर रावण, फ़िर (श्रीकृष्ण के फ़ूफ़ा, चेदि देश के दमघोषका पुत्र होकर) शिशुपाल हुआ। विदर्भराज भीष्मक की पुत्री रुक्मणी थी।
और श्रीकृष्ण कमली (कमरिया) वाले के नाम से प्रसिद्ध थे। रुक्मणी का भाई रुक्मी, उसका विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। परन्तु विवाह श्रीकृष्ण के साथ हुआ। इसलिये घोष हारे, और कमली वाला जीता।  

हम लख हमहिं हमार लख, हम-हमार के बीच।
तुलसी अलखहिं का लखै, राम-नाम लखु नीच॥

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जो मनुष्य अपने धन को पाँच भागों में बाँट देता है - कुछ धर्म के लिये, कुछ यश के लिये, कुछ धन की अभिवृद्धि के लिये, कुछ भोगों के लिये, और कुछ अपने स्वजनों के लिये, वही इस लोक और परलोक दोनों में ही सुख पाता है। (श्रीमद भागवत महापुराण)

चलै बटावा थाकी बाट, सोवै डूकरिया ठोरे खाट।
ढूकिले कूकर भूकिले चोर, काढै धणी पुकारे ढोर॥


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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326