09 जनवरी 2014

प्रथम पुरुष को सत पुरुष कहा जाता है

साधक, साधु, मंहत, बाबा, मुनि, महामुनि, योगी, धर्मगुरु, आदिगुरु, ऋषि, महर्षि, ब्रह्मऋषि, सिद्ध, देवता, भगवान, हंस, ईश्वर, संत, तत्वदर्शी संत, योगेश्वर, परमहंस, संत शिरोमणि, फक्कड़ संत, सतगुरु, सतपुरुष, अलख पुरुष, अगम पुरुष, अनामी पुरुष । कृपया इन सभी की सही सही ( क्रमवार ) स्थिति बता दीजिये । एक पाठक ।
*********
इन सभी को सामान्यतः कोई निश्चित कृम देना सम्भव नहीं । क्योंकि इनमें से कोई भी बीच की कुछ भूमिका को या कई भूमिका को छोङकर एकदम बङी भूमिका में अपने पूर्व पुण्य लगन मेहनत आदि से जा सकता है । और भावना विचारों का रुझान बदलने से पतन या तामसिक पदों लक्ष्यों की ओर उन्मुख हो सकता है ।

सामान्यतः - पूर्व जन्म के पुण्य़ से धार्मिक या आत्मिक जिज्ञासु । फ़िर साधारण भक्ति भाव इंसान । फ़िर किसी प्रारम्भिक गुरु से मन्त्र आदि लेकर छोटा साधक । फ़िर कुछ अच्छे ज्ञान से बङा साधक । फ़िर अपने ज्ञान का साधु, ये कृम होता है ।
मंहत ( मन्दिर मठ आदि के प्रमुख को कहते हैं ) बाबा ( बाबा का अर्थ वाह वाह यानी उत्तम ग्रहण करने वाले से पङा । तब ये इनमें से किसी भी स्थिति वाला हो सकता है । ) मुनि ( मुनि शब्द प्राप्त सिद्धांतों या प्रकृति रहस्य पर आधारित कल्पनाओं पर मनन करने वाले को कहते हैं ) महामुनि ( मुनि की वरिष्ठता ( सीनियरटी ) के आधार पर महामुनि कहा जाता है )  योगी ( योग अनगिनत ही होते हैं । उनमें से किसी भी सफ़ल योग करने वाले को योगी कहा जा सकता है । वैसे प्रमुखतया योगी द्वैत या कुण्डलिनी के सफ़ल साधक को कहते हैं ) धर्मगुरु ( धर्मगुरु की भी कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं दी जा सकती ) आदिगुरु ( आदि शब्द का अर्थ शुरु होता है । अतः किसी भी गुरुता को सबसे पहले शुरू करने वाले को

आदि गुरु कहा जा सकता है ) ऋषि ( ऋषि शब्द से ही रिसर्च यानी शोध शब्द बना है । आध्यात्मिक और प्राकृतिक दैवीय रहस्यों पर शोध करने वाले को ऋषि कहते हैं । महर्षि ( ऋषि की वरिष्ठता को ही महर्षि कहते हैं ) ब्रह्मऋषि ( ब्रह्म को जानने वाले शोधरत को ब्रह्मऋषि कहते हैं ) सिद्ध ( किसी भी तन्त्र मन्त्र यौगिक स्थिति को सिद्ध कर चुके व्यक्तित्व को उसका सिद्ध कहते हैं ) देवता ( अपने पुण्य फ़ल स्वरूप देवत्व को प्राप्त हुये जीवात्मा को देवता कहा जाता है । जिसका अर्थ देने वाला । इनकी उच्च निम्न मध्य असंख्य कोटियां हैं ) भगवान ( भगवान एक उपाधि है । या ऐसा पद अर्थ है । जिसका अर्थ भग यानी योनि ( प्रकृति ) के किसी विशेष भाग का नियंता होना । अपने पद अर्थ को लेकर इनकी भी बहुत सी श्रेणियां बन जाती हैं । इसीलिये धर्मशास्त्रों में कई लोगों को भगवान कहा गया है । और वहाँ उनके बहुत से अर्थ निकलते हैं )
हंस ( हंस उस जीवात्मा को कहते हैं । जो अपनी पहचान के प्रति लक्षित हो चुका है । और जो - ज्ञान भक्ति समर्पण, नामक प्रतीक रूपी तीन पंखों से युक्त है । पूर्ण हंस मूलतयाः बृह्माण्ड के सभी सार को जानने वाले को भी कहा जाता है ) ईश्वर ( ये सृष्टि कृमशः सबसे ऊपर - विराट, मध्य में - हिरण्य़गर्भ और उससे भी निम्न ईश्वर नाम के आवरण से युक्त है । इसी ईश्वरीय आवरण में स्थूल सृष्टि है । किसी भी ऐश्वर्य के मालिक को भी उसका ईश्वर कहा जाता है ) संत ( प्रमुख तौर पर समदृष्टा और चेतना को निरन्तर जानने वाले को सन्त कहा जाता है )

तत्वदर्शी ( किसी भी तत्व या किसी भी रहस्य को तत्व से जानने वाले को तत्वदर्शी कहा जाता है ) योगेश्वर ( द्वैत योग की सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त हुये को योगेश्वर कहा जाता है ) परमहंस ( जो हंस ज्ञानी जीवात्मा हंस को पार कर परम की ओर उन्मुख हो जाता है उसे भी । और परम अवस्था में प्राप्त हुये को भी परमहंस कहा गया है ) संत शिरोमणि ( संतो में सर्वोच्च को संत शिरोमणि कहा गया है ) फक्कड़ संत ( सही अर्थों में तो पूर्ण परमात्मा को जानने वाले मगर सभी तरह से निरुद्देश्य को कहा जाता है ) सतगुरु ( शाश्वत सत्य का ज्ञाता, अधिकारी ही सिर्फ़ सदगुरु कहा जाता है ) सतपुरुष ( आत्मा का मूल चेतन और प्रथम पुरुष को सत पुरुष कहा जाता है ) अलख पुरुष ( अलख का अर्थ जिसको देखा न जा सके ) अगम पुरुष ( अगम का अर्थ जहाँ गम्य यानी जाया न जा सके ) अनामी पुरुष ( इसको अन्तिम यानी आत्मा ही कहा गया है )
*********
मैं कौन हूँ ? क्या आप जानते हैं ? शायद नहीं - मैं बांग्ला देश । मैं ही नेपाल हूँ । मैं भूटान । मैं ही बर्मा हूँ । मैं तिब्बत । मैं ही लंका हूँ । मैं अफगानिस्तान । मैं ही पाकिस्तान हूँ । हाँ हाँ ! मैं भारत हूँ । मैं ढाका । काठमांडू हूँ । मैं थिम्फू । रंगून हूँ । मैं ल्हासा । कोलम्बो हूँ । मैं काबुल, कंधार, लाहौर, कराची हूँ । हाँ हाँ ! मैं ही वो बिखरा हुआ आर्यवर्त हूँ । Uttam Bhushan
*********
http://theextinctionprotocol.wordpress.com/2014/01/09/as-u-s-shivers-northern-europe-waits-for-winter-to-arrive/

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326