कभी तुम अपने बड़े हो गये बच्चों के झगड़े देखना । पति पत्नी के झगड़े देखना । तुम चकित होओगे । वे ठीक तुम्हारे रिकार्ड हैं - हिज मास्टर्स वायस । वे वही दोहरा रहे हैं । जो तुमने किया था । और बड़े ढंग से दोहरा रहे हैं - अक्षर अक्षर । रंग ढंग चेहरे का भी वही हो जाता है उनका । जब झगड़ते हैं । और वही तुम्हारा बेटा करेगा अपनी पत्नी के साथ । जो तुम्हारा पति तुम्हारे साथ कर रहा है ।
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वैराग्य का अर्थ है - खराब आदतों का त्याग । जैसे शक्तिशाली अपने बाहुबल से पार हो जाता है । एक फकीर कहीं जा रहे थे । रास्ते में उन्हें 1 सौदागर मिला । जो 5 गधों पर बड़ी बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था । गठरियां बहुत भारी थीं । जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे । फकीर ने सौदागर से प्रश्न किया - इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन सी चीजें रखी हैं । जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं ?
सौदागर ने जवाब दिया - इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं । उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूं । फकीर ने पूछा - अच्छा ! कौन कौन सी चीजें हैं ? जरा मैं भी तो जानूं । सौदागर ने कहा - यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं । इस पर अत्याचार की गठरी लदी है । फकीर ने पूछा - भला अत्याचार कौन खरीदेगा ? सौदागर ने कहा - इसके खरीदार हैं - राजा महाराजा और सत्ताधारी लोग । काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी । फकीर ने पूछा - इस दूसरी गठरी में क्या है ? सौदागर बोला - यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है । और इसके खरीदार हैं - पंडित और विद्वान । तीसरे गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है । और इसके ग्राहक हैं वे धनवान लोग । जो एक दूसरे की प्रगति को बर्दाश्त नहीं कर पाते । इसे खरीदने के लिए तो लोगों का तांता लगा रहता है । फकीर ने पूछा -अच्छा ! चौथी गठरी में क्या है भाई ? सौदागर ने कहा - इसमें बेईमानी भरी है । और इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी । जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री से काफी फायदा उठाते हैं । इसलिए बाजार में इसके भी खरीदार तैयार खड़े हैं । फकीर ने पूछा - अंतिम गधे पर क्या लदा है ? सौदागर ने जवाब दिया - इस गधे पर छल कपट से भरी गठरी रखी है । और इसकी मांग उन औरतों में बहुत ज्यादा है । जिनके पास घर में कोई काम धंधा नहीं हैं । और जो छल कपट का सहारा लेकर दूसरों की लकीर छोटी कर अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करती रहती हैं । वे ही इसकी खरीदार हैं । तभी महात्मा की नींद खुल गई । इस सपने में उनके कई प्रश्नों का उत्तर मिल गया था ।
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हर 40 मिनट के करीब जब तुम्हारी श्वास बदलती है । एक नासापुट से दूसरे नासापुट में । तब जरा खयाल करना । तुम्हारी भाव दशा भी बदल जाती है । यह 24 घंटे होता रहता है । रात भी तुम करवट बदलते हो । बस भाव दशा बदल जाती है ।
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मेरी अपनी देशना तो यही है कि - जब बच्चे स्वस्थ हों । चाहो तो उन पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दे देना । मगर बीमार हों । तो ज्यादा ध्यान मत देना । ध्यान को स्वास्थ्य से जुड़ने दो । जब बच्चे मस्त हों । आनंदित हों । उनको गले लगा लेना । लेकिन जब बीमार हों । तो कंबल उढाकर उनको सुला देना । यह कठोर मालूम पड़ेगा । ऊपर से तो कठोर साफ ही लग रहा है । लगेगा कि यह भी क्या मैं उलटी बातें सिखा रहा हूं ? ऐसे भी मैं उलटी ही बातें सिखाता हूं । लेकिन बच्चा बीमार हो । तब उसे कंबल उढाकर सुला देना । दवा पिला देना । बस ऐसे ही जैसे नर्स करती है । उस वक्त मातृत्व मत दिखलाना । सुविधा हो । तो नर्स ही रख देना । वह ज्यादा अच्छा है । लेकिन जब बच्चा प्रसन्न हो । आनंदित हो । तो कभी उसे गले भी लगाना । उसका हाथ में हाथ लेकर नाचना भी । उसका स्वास्थ्य में रस जोड़ो । ताकि जिंदगी भर उसका रस स्वास्थ्य में रहे । बीमारी में न हो जाये । दुनिया की 70% बीमारियां समाप्त हो सकती हैं । अगर हम बच्चों का संबंध स्वास्थ्य से जोड़ दें ।
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स्त्रियों ने तो बीमार होने की कला सीख ली है । उनको पक्का पता है कि उन पर ध्यान ही तब दिया जाता है । पत्नी बीमार हो जाये । तो पति पूछने लगता है - साङी लेनी है । क्या करना है ? जो करना हो । भाई करो । मगर बीमार न हो । पत्नी भी जानती है कि जब बीमार हो । तभी पति ध्यान देता है । नहीं तो पति अपना अखबार पढ़ता है । ध्यान देने की फुर्सत कहां है ? वह आते ही से अपने पैर फैलाकर अखबार की ओट में हो जाता है । अखबार ओट है । वह बचने का उपाय है । पति आते ही से अखबार खोल लेता है । पत्नी इत्यादि सब उस तरफ छूट गये । झंझट मिटी । अब वह 1 ही अखबार को कई दफे पढ़ता है ।
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सबके बच्चे इतने सौभाग्यशाली होने चाहिए कि उनके माता पिता के जीवन में धन, पद, परिवार से ज्यादा कुछ हो । उनके माता पिता के जीवन में परमात्मा की थोड़ी सी झलक हो । बूंद ही सही । वही झलक उनको पकड ले । तो वे तृप्त न हो सकेंगे - साधारण जीवन से । फिर उन्हें कितना ही धन मिल जाये । और कितना ही पद मिल जाय । उनके पीछे कोई कचोटता ही रहेगा कि अभी वह बूंद नहीं मिली । जो मेरी मां की आंखों थी । अभी वह मस्ती मुझे नहीं मिली । पाना है उसे । पाना ही होगा । नहीं तो जीवन अकारथ गया । नहीं तो जीवन में कोई अर्थ नहीं है । वह काव्य मुझे मालूम नहीं हो रहा है । तो जरूर कहीं कोई कमी रह गयी है । कोई तलाश करनी है । कोई खोज करनी है ।
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परमात्मा बड़ी सरल घटना है । और चुपचाप घट जाती है । पगध्वनि भी सुनाई नहीं पड़ती । जरा शोरगुल नहीं होता । मौन सन्नाटे में घट जाती है । जरा आंख खोलो । कुछ करने को नहीं है । कुछ करने की कभी कोई जरूरत नहीं थी । तुम वही हो - तत्वमसि ।
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अगर बच्चा अपने मां और पिता की मस्ती की प्रतिमा अपने भीतर रख सके । तो आज नहीं । कल वह भी मस्त होगा । उसके पीछे वह प्रतिमा घूमती रहेगी । उसका पीछा करेगी । उसे लगता रहेगा कि जब तक ऐसी मस्ती मुझे न मिल जाए । तब तक कुछ कमी है । जिंदगी में कुछ चूका हुआ है । मेरी मां तो मस्त थी । अभी बच्चों को यह पता ही नहीं चलता कि उनकी जिंदगी में कुछ चूक रहा है । क्योंकि उनकी मां भी ऐसी ही परेशान थी । उनके पिता भी ऐसे ही परेशान थे । उनकी मां भी लड़ रही थी । उनके पिता भी लड़ रहे थे । घर में कलह ही कलह थी । वे भी लड़ेंगे । हर लड़की अपनी मां को दोहरायेगी । हर बेटा अपने बाप को दोहरायेगा ।
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तुम्हारे बच्चों को कभी पता नहीं चलेगा कि उनके जीवन में कुछ खोया है । क्योंकि उनके पास कोई और मापदंड नहीं है । जिससे वे तौलें । वे देखेंगे इसी तरह हमारी मां थी परेशान । उसी तरह हम परेशान हैं । इसी तरह हमारी मां लड़ रही थी । उसी तरह हम लड़ रहे हैं । इसी तरह हमारी मां कर रही थी । उसी तरह हम कर रहे हैं । उन्हें पता नहीं चल सकता कि जीवन में कुछ खोया है । उन्होंने जाना ही नहीं कोई मस्त आह्लादित जीवन । उन्होंने कोई झलक ही नहीं देखी । जब फूल खिले हों । उन्होंने काटे ही जाने हैं । कांटे ही उनको चुभ रहे हैं । यही भाग्य है । ऐसा मानकर वे जी लेंगे ।
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इस जगत के जो सर्वाधिक अमृतमय वचन हैं । उनमें सबसे ऊंची कोटि पर रखा जा सके । तो यह उदघोषणा करने वाला वचन है - तत्वमसि ।
तुम वही हो । तुम जरा भी अन्यथा नहीं हो । इसे ही दूसरे ढंग से कहा है - अहं ब्रह्मास्मि । मैं ब्रह्म हूं । मुझ में और ब्रह्म में जरा भी भेद नहीं है ।
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ध्यान से जो मस्ती आती है । वह मस्ती 1 अर्थ में बेहोशी लाती है । और 1 अर्थ में होश भी लाती है । वह मस्ती बड़ी विरोधाभासी है - होश और बेहोश 1 साथ बढ़ता है ।
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Truth is Within You Do not Search For it Elsewhere - OSHO
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वैराग्य का अर्थ है - खराब आदतों का त्याग । जैसे शक्तिशाली अपने बाहुबल से पार हो जाता है । एक फकीर कहीं जा रहे थे । रास्ते में उन्हें 1 सौदागर मिला । जो 5 गधों पर बड़ी बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था । गठरियां बहुत भारी थीं । जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे । फकीर ने सौदागर से प्रश्न किया - इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन सी चीजें रखी हैं । जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं ?
सौदागर ने जवाब दिया - इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं । उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूं । फकीर ने पूछा - अच्छा ! कौन कौन सी चीजें हैं ? जरा मैं भी तो जानूं । सौदागर ने कहा - यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं । इस पर अत्याचार की गठरी लदी है । फकीर ने पूछा - भला अत्याचार कौन खरीदेगा ? सौदागर ने कहा - इसके खरीदार हैं - राजा महाराजा और सत्ताधारी लोग । काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी । फकीर ने पूछा - इस दूसरी गठरी में क्या है ? सौदागर बोला - यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है । और इसके खरीदार हैं - पंडित और विद्वान । तीसरे गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है । और इसके ग्राहक हैं वे धनवान लोग । जो एक दूसरे की प्रगति को बर्दाश्त नहीं कर पाते । इसे खरीदने के लिए तो लोगों का तांता लगा रहता है । फकीर ने पूछा -अच्छा ! चौथी गठरी में क्या है भाई ? सौदागर ने कहा - इसमें बेईमानी भरी है । और इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी । जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री से काफी फायदा उठाते हैं । इसलिए बाजार में इसके भी खरीदार तैयार खड़े हैं । फकीर ने पूछा - अंतिम गधे पर क्या लदा है ? सौदागर ने जवाब दिया - इस गधे पर छल कपट से भरी गठरी रखी है । और इसकी मांग उन औरतों में बहुत ज्यादा है । जिनके पास घर में कोई काम धंधा नहीं हैं । और जो छल कपट का सहारा लेकर दूसरों की लकीर छोटी कर अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करती रहती हैं । वे ही इसकी खरीदार हैं । तभी महात्मा की नींद खुल गई । इस सपने में उनके कई प्रश्नों का उत्तर मिल गया था ।
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हर 40 मिनट के करीब जब तुम्हारी श्वास बदलती है । एक नासापुट से दूसरे नासापुट में । तब जरा खयाल करना । तुम्हारी भाव दशा भी बदल जाती है । यह 24 घंटे होता रहता है । रात भी तुम करवट बदलते हो । बस भाव दशा बदल जाती है ।
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मेरी अपनी देशना तो यही है कि - जब बच्चे स्वस्थ हों । चाहो तो उन पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दे देना । मगर बीमार हों । तो ज्यादा ध्यान मत देना । ध्यान को स्वास्थ्य से जुड़ने दो । जब बच्चे मस्त हों । आनंदित हों । उनको गले लगा लेना । लेकिन जब बीमार हों । तो कंबल उढाकर उनको सुला देना । यह कठोर मालूम पड़ेगा । ऊपर से तो कठोर साफ ही लग रहा है । लगेगा कि यह भी क्या मैं उलटी बातें सिखा रहा हूं ? ऐसे भी मैं उलटी ही बातें सिखाता हूं । लेकिन बच्चा बीमार हो । तब उसे कंबल उढाकर सुला देना । दवा पिला देना । बस ऐसे ही जैसे नर्स करती है । उस वक्त मातृत्व मत दिखलाना । सुविधा हो । तो नर्स ही रख देना । वह ज्यादा अच्छा है । लेकिन जब बच्चा प्रसन्न हो । आनंदित हो । तो कभी उसे गले भी लगाना । उसका हाथ में हाथ लेकर नाचना भी । उसका स्वास्थ्य में रस जोड़ो । ताकि जिंदगी भर उसका रस स्वास्थ्य में रहे । बीमारी में न हो जाये । दुनिया की 70% बीमारियां समाप्त हो सकती हैं । अगर हम बच्चों का संबंध स्वास्थ्य से जोड़ दें ।
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स्त्रियों ने तो बीमार होने की कला सीख ली है । उनको पक्का पता है कि उन पर ध्यान ही तब दिया जाता है । पत्नी बीमार हो जाये । तो पति पूछने लगता है - साङी लेनी है । क्या करना है ? जो करना हो । भाई करो । मगर बीमार न हो । पत्नी भी जानती है कि जब बीमार हो । तभी पति ध्यान देता है । नहीं तो पति अपना अखबार पढ़ता है । ध्यान देने की फुर्सत कहां है ? वह आते ही से अपने पैर फैलाकर अखबार की ओट में हो जाता है । अखबार ओट है । वह बचने का उपाय है । पति आते ही से अखबार खोल लेता है । पत्नी इत्यादि सब उस तरफ छूट गये । झंझट मिटी । अब वह 1 ही अखबार को कई दफे पढ़ता है ।
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सबके बच्चे इतने सौभाग्यशाली होने चाहिए कि उनके माता पिता के जीवन में धन, पद, परिवार से ज्यादा कुछ हो । उनके माता पिता के जीवन में परमात्मा की थोड़ी सी झलक हो । बूंद ही सही । वही झलक उनको पकड ले । तो वे तृप्त न हो सकेंगे - साधारण जीवन से । फिर उन्हें कितना ही धन मिल जाये । और कितना ही पद मिल जाय । उनके पीछे कोई कचोटता ही रहेगा कि अभी वह बूंद नहीं मिली । जो मेरी मां की आंखों थी । अभी वह मस्ती मुझे नहीं मिली । पाना है उसे । पाना ही होगा । नहीं तो जीवन अकारथ गया । नहीं तो जीवन में कोई अर्थ नहीं है । वह काव्य मुझे मालूम नहीं हो रहा है । तो जरूर कहीं कोई कमी रह गयी है । कोई तलाश करनी है । कोई खोज करनी है ।
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परमात्मा बड़ी सरल घटना है । और चुपचाप घट जाती है । पगध्वनि भी सुनाई नहीं पड़ती । जरा शोरगुल नहीं होता । मौन सन्नाटे में घट जाती है । जरा आंख खोलो । कुछ करने को नहीं है । कुछ करने की कभी कोई जरूरत नहीं थी । तुम वही हो - तत्वमसि ।
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अगर बच्चा अपने मां और पिता की मस्ती की प्रतिमा अपने भीतर रख सके । तो आज नहीं । कल वह भी मस्त होगा । उसके पीछे वह प्रतिमा घूमती रहेगी । उसका पीछा करेगी । उसे लगता रहेगा कि जब तक ऐसी मस्ती मुझे न मिल जाए । तब तक कुछ कमी है । जिंदगी में कुछ चूका हुआ है । मेरी मां तो मस्त थी । अभी बच्चों को यह पता ही नहीं चलता कि उनकी जिंदगी में कुछ चूक रहा है । क्योंकि उनकी मां भी ऐसी ही परेशान थी । उनके पिता भी ऐसे ही परेशान थे । उनकी मां भी लड़ रही थी । उनके पिता भी लड़ रहे थे । घर में कलह ही कलह थी । वे भी लड़ेंगे । हर लड़की अपनी मां को दोहरायेगी । हर बेटा अपने बाप को दोहरायेगा ।
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तुम्हारे बच्चों को कभी पता नहीं चलेगा कि उनके जीवन में कुछ खोया है । क्योंकि उनके पास कोई और मापदंड नहीं है । जिससे वे तौलें । वे देखेंगे इसी तरह हमारी मां थी परेशान । उसी तरह हम परेशान हैं । इसी तरह हमारी मां लड़ रही थी । उसी तरह हम लड़ रहे हैं । इसी तरह हमारी मां कर रही थी । उसी तरह हम कर रहे हैं । उन्हें पता नहीं चल सकता कि जीवन में कुछ खोया है । उन्होंने जाना ही नहीं कोई मस्त आह्लादित जीवन । उन्होंने कोई झलक ही नहीं देखी । जब फूल खिले हों । उन्होंने काटे ही जाने हैं । कांटे ही उनको चुभ रहे हैं । यही भाग्य है । ऐसा मानकर वे जी लेंगे ।
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इस जगत के जो सर्वाधिक अमृतमय वचन हैं । उनमें सबसे ऊंची कोटि पर रखा जा सके । तो यह उदघोषणा करने वाला वचन है - तत्वमसि ।
तुम वही हो । तुम जरा भी अन्यथा नहीं हो । इसे ही दूसरे ढंग से कहा है - अहं ब्रह्मास्मि । मैं ब्रह्म हूं । मुझ में और ब्रह्म में जरा भी भेद नहीं है ।
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ध्यान से जो मस्ती आती है । वह मस्ती 1 अर्थ में बेहोशी लाती है । और 1 अर्थ में होश भी लाती है । वह मस्ती बड़ी विरोधाभासी है - होश और बेहोश 1 साथ बढ़ता है ।
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