विशेष - यह लेख प्रकाशित होने के बाद सट्टे का नम्बर जानने हेतु हमारे पास रोज ही फ़ोन आने लगे ।
कृपया विशेष ध्यान दें - यह लेख सट्टा, मटका, जुआ आदि जैसी बुराईयों के प्रति जागरूकता के लिये है । न कि उन्हें प्रोत्साहन देने हेतु । सट्टे मटके से कोई धनी नहीं होता । न किसी की समस्या समाधान होती हैं । अतः इसका उल्टा अर्थ निकालकर सट्टे मटके का नम्बर आदि जानने के लिये फ़ोन न करें ।
यह साइट सिर्फ़ सन्त मत, आत्मज्ञान और योग ध्यान की क्रियायें सिखाता है ।
आप किसी भी प्रकार के सट्टे लाटरी जुये आदि के लिये फ़ोन न करें ।
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जैसा कि इस कमेंट में निजामाबाद के किसी रामप्रिय दास बाबा का जिक्र है । जो मटका (सट्टा) या अगले दिन के शेयर मार्केट का भाव बता देते थे और नगर सेठों की उनके स्थान के सामने लाइन लगी होती थी ।
विभिन्न प्रकार के साधुओं से अधिक मेलजोल और गहरा सम्पर्क अक्सर होते रहने के कारण कम से कम इस मामले में साधुओं की पोलपट्टी मैं बखूबी जानता हूँ ।
ऐसी बात नहीं कि इस तरह के मन्त्र या सिद्धियां नहीं होती या फ़िर साधु इन्हें किसी ‘जरूरतमन्द’ को बताते नहीं हैं । पर जैसा कि इस कमेंट में लिखा है और अक्सर अधिकांश ढोंगी साधुओं ने इसे सस्ती लोकप्रियता और आय का जरिया बनाया हुआ है । वह एकदम गलत है । कहने का भाव है कि कोई भी सिद्ध पुरुष क्यों न हो । यदि वह नियमित इसका उपयोग निजी लालचवश करता है तो परिणाम कभी सही नहीं आयेंगे । और प्रथम तो कोई सिद्ध पुरुष या मन्त्र ज्ञाता ऐसा करेगा ही क्यों ?
इस सम्बन्ध में झूठे बाबा एक चालाकी भरा तर्क देते हैं कि - कोई भी मन्त्र या सिद्धि निजी लाभ हेतु उपयोग नहीं की जा सकती । इसलिये वो परोपकार करते हुये अप्रत्यक्ष तरीके से अपना अंश मात्र ले लेते हैं ।
नरेश आर्य के इस कमेंट से मुझे अपना वह अतीत अंश स्मरण हो आया । जिनमें ऐसे बाबाओं से बने सोहबत के कुछ घण्टे थे और मुझे लगा कि इस विषय पर कम से कम बाबाओं की ढोंग लीला से परिचित कराकर मैं लोगों को धन की बरबादी और पतन से बचाने का अपना कर्तव्य पूरा कर सकता हूँ ।
क्या होता है सट्टा या मटका - जिस तरह लाटरी में नम्बर के आधार पर लाटरी के नम्बर का अन्तिम अंक 1 से लेकर 0 तक 10 अंकों का होता है और उस अन्तिम अंक का मिलान हो जाने पर लगभग 10 गुना हो जाता है । और न आने पर गांठ का लगाया हुआ 10% भी जाता है । फ़िर दहाई फ़िर सैकङा तक के अंक समान मिलने पर इनाम राशि में बढोत्तरी होती है और भी आगे तीन नम्बर 1st 2nd 3rd इनाम वाले होते हैं ।
इसी प्रकार मटके में 1 से लेकर 100 तक गिनती होती है । जिसमें 99 अंक (जिसे खिलाङी अक्सर ‘घर’ कहते हैं) मटका खेलने वाले के होते हैं और 1 अंक खिलाने वाला का होता है । अलग अलग मटका गद्दियों के हिसाब से नम्बर आ जाने पर 1 रुपये पर यह भुगतान 80 से लेकर 95 रुपये तक होता है । यानी सीधे सीधे 1 रुपये का 80 से लेकर 95 गुना तक हो जाना या फ़िर अपना 1 रुपया बिलकुल जाना ।
अब मटका व्यापार को समझें - जानकार सूत्रों के अनुसार छोटे छोटे गांवों से लेकर शहरों के मुहल्लों तक में इनका एक कलेक्शन एजेंट टायप बतौर कमीशन पर होता है । इसके लिये आवेदन करने की कोई जरूरत नहीं । बस पैसे और ग्राहक का इच्छित नम्बर लो और उसकी पर्ची बनाकर दे दो । एकत्रित धन और नम्बर किसी बङी प्रमुख गद्दी पर जमा कर आओ और नम्बर आने पर सुबह भुगतान ले आओ ।
और समझें - मान लीजिये, अलग अलग व्यक्तियों ने 20 नम्बर पर 500 रुपये की कुल जमा राशि लगायी । किसी ने 1 तो किसी ने 5 रुपये या किसी ने 100 भी लगाये हो सकते हैं । कलेक्शन एजेंट एक रजिस्टर में साथ के साथ 1 से 100 तक गिनती वाले फ़ार्म में बस उस नम्बर के सामने आने वाले रुपये लिखता जाता है और बुकिंग बन्द हो जाने पर अलग अलग नम्बरों पर आये पैसे जोङकर मुख्य गद्दी को पहुँचा देता है । मतलब यदि 100 व्यक्तियों ने 6 नम्बर पर कुल 1000 रुपये का दाव खेला तो प्रमुख गद्दी वाले के लिये यह सिर्फ़ 6 नम्बर पर 1000 रुपये की प्रविष्टि वाला एक ही खाना होगा ।
आगे फ़िर जो काम छोटा एजेंट अलग अलग व्यक्तियों के नम्बर को एक नम्बर बनाकर करता है । यही काम प्रमुख गद्दी वाला छोटी गद्दियों से आये कलेक्शन के लिये करता है । उदाहरण के लिये 50 छोटी गद्दियों से 8 नम्बर पर मान लो 10 000 का कलेक्शन आया । तो उसकी शीट में 8 नम्बर के आगे 50 खानों में राशि और उनका टोटल 10 000 होगा ।
इसी तरह उस चेन से जुङे फ़िर सभी शहरों का उससे ऊपर वाली गद्दी को सिर्फ़ नम्बर और लागत धन का संक्षिप्त ब्यौरा जाता है और इन बङी बङी गद्दियों को भी पता नहीं होता कि किस नम्बर पर कुल कितना धन लगा है या किस नम्बर पर सबसे कम धन लगा है ।
आश्चर्यजनक रूप से यह सब एकत्र हुआ कुल धन और उससे सम्बन्धित नम्बर रात्रि बारह बजे के आसपास मुख्य कलेक्टर के पास पहुँच जाते हैं । मतलब 1 से 100 तक के अंक और उन पर लगा अलग अलग धन । समझें आप, सिर्फ़ दो खानों का कार्य, जिसमें एक में सिर्फ़ गिनती और दूसरे में उस पर लगा धन दर्ज होता है ।
मुख्य कलेक्टर सिर्फ़ इतना करता है कि - सबसे कम धन किस नम्बर पर लगा है । वही नम्बर अगले दिन के लिये (लिस्ट प्राप्त होने के पाँच मिनट बाद ही लगभग 1 बजे तक) खोल दिया जाता है । क्योंकि उस पर सबसे कम भुगतान देना है ।
विशेष - ऐसा अक्सर हो जाता है कि एकाध महीने किसी किसी क्षेत्र में लगवाङी पर कोई नम्बर प्रायः नहीं खुलता और उस क्षेत्र के सटोरिये सट्टे के प्रति उदासीन होने लगते हैं । तब ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित कर वहाँ का अधिक लगाया नम्बर जानबूझ कर खोल दिया जाता है और सटोरिये पुनः उत्साहित हो जाते हैं ।
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अब नम्बरी बाबाओं की चालाकी - वास्तव में अपवाद को छोङकर इन बाबाओं ने कोई मन्त्र या कोई सिद्धि नहीं की होती । बल्कि वे भी सट्टेबाजों का गणित और उनकी मानसिकता से परिचित खुद भी सटोरिये ही होते हैं । इसमें तुक्का भिङ जाना का भी इस्तेमाल में नहीं कर सकता । क्योंकि वे तुक्का भी नहीं लगाते । बल्कि एक दिमागी चाल चलते हैं ।
जैसा कि मैंने कहा, ये बाबा लोग भी आये नम्बरों का हिसाब किताब और पूरा आंकलन रखते हैं और उसी आधार पर (आने वालों की औसत गिनती के अनुसार) प्रतिदिन लगभग 40 अनुमानित नम्बर (कभी कभी 60-70 तक ) तैयार कर लेते हैं और अलग अलग लोगों को इस हिदायत के अनुसार कि - किसी को बताना नहीं है, अलग अलग ही नम्बर दे देते हैं ।
अब आप सोचेंगे कि 40 नम्बर में से भी नहीं आया तो ?
जी नहीं, दरअसल सट्टे में दिये गये 40 नम्बर बदलकर पूरे 100 हो जाते हैं । और 100 में से एक तो आना निश्चित ही है ।
कैसे - इसके पीछे सटोरियों की सट्टा गणित मानसिकता है । मान लीजिये किसी बाबा ने 31 लकी नम्बर बताया । तो सटोरिया इसे लगाने के साथ साथ 69 को भी लगायेगा । जो 100 में से 31 घटाने पर आया और इनकी भाषा में ‘बाकी’ कहलाता है । इसके अलावा 13 को भी लगायेगा । जो 31 का उलटा है । जिसे खिलाङी ‘पलट’ बोलते हैं ।
इस तरह प्रमुखतया 1 नम्बर के 3 मुख्य नम्बर बन गये और इसमें छोटी सम्भावनायें अलग से जोङी जाती हैं । पर यदि हम 1 नम्बर के 3 नम्बर ही लेकर चलें और ‘ये बाबा’ 40 नम्बर तय करते हैं । तो आटोमेटिक 120 नम्बर बन जाते हैं । जिनमें से 1 निश्चय आना है ।
और ऐसे नम्बर खुल जाने पर ये बाबा ‘सिद्ध’ कहलाते हैं ।
- गणित और भी है । पिछले 2 दिन आ चुके नम्बर अक्सर हटा दिये जाते हैं । इस तरह 100 में सिर्फ़ 98 नम्बर ही बचे ( हालांकि ‘बायचांस’ सिद्धांत अनुसार कुल लगवाङी आधार पर इन्हें भी बहुत कम धन से लगा दिया जाता है कि संयोग से आ ही जाये । तो एक तरह से निवेश की मूल राशि वापस हो जाती है) 100 नम्बर बहुत कम आता है । अपवाद सा है तो यह 1 और कम हो जाता है ।
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क्योंकि मेरा उद्देश्य आपको ‘सट्टा शास्त्र’ ज्ञान देना नहीं बल्कि सट्टा बाबाओं की चालबाजियों से परिचित कराना है । तो बाबा एक और ‘तरीका’ अपनाते हैं । जिसे इनकी भाषा में ‘रमूज’ कहा जाता है ।
क्या है रमूज - रमूज दरअसल प्राकृतिक संकेतों को कहते हैं । ये वो संकेत होते हैं । जो खिलाङी को कुछ अजीब सा और संकेत सा करते हुये अलग सा दिखे और खास तब जब वह अगले दिन के संभावित नम्बर के बारे में सोच रहा था । तभी यकायक दिखे । जैसे - तार पर छाता टंगा था । औरत बच्चे को दूध पिला रही थी । आदमी भैंस ले जा रहा था/दुह रहा था आदि आदि कोई भी दृश्य या घटना ।
- अब इसमें उन्होंने ‘अंक ज्योतिष’ की भांति सबके लिये कोई न कोई 1 से 0 तक अंक निर्धारित किया हुआ है । जैसे औरत का 8 आदमी का 1 बच्चे का 4 आदि । इसी तरह पशु और अन्य निर्जीव वस्तुओं के भी हैं । और फ़िर वस्तु या आदमी के प्रथम या अन्तिम अक्षर में किस अंक का अक्षर बनता है । इस सबका विचार किया जाता है ।
अब उदाहरण के लिये जैसे - तार पर छाता टंगा था । तो यहाँ तार (का 3) और छाता (का 6) ही मुख्य हैं और ये कुछ अलग सी बात है । क्योंकि आमतौर पर तार पर छाता नहीं होता । अतः सटोरिया लकी नम्बर के तौर पर बङे धन के साथ 36 नम्बर लगायेगा । और साथ में छोटा गुणा भाग अलग ।
आपको अजीब सा लगेगा और यह मत कहना कि मैं प्रोत्साहित कर रहा हूँ । बाबाओं की अपेक्षा बहुत बार खुद के द्वारा देखे गये ऐसे अजीब संकेत ‘सच’ निकलते हैं । एक उदाहरण जो मेरी जानकारी में हुआ । बताता हूँ ।
बाजार में एक टेलर की दुकान पर बहस हो गयी और उस तू तू मैं मैं के अंजाम के बाद उनमें से एक लकङी की भारी कुर्सी को लेकर सर पर रखकर 5 किमी दूर घर तक गया । गौर करें । तो बात कुछ अजीब सी है । जो सामान्यतया देखने में नहीं आती ।
वहाँ कुछ सट्टा खिलाङी भी थे और उन्होंने आदमी (का 8) और कुर्सी (का 7) लगाकर बङा दाव खेला । परिणाम को लेकर बेहद उत्सुकता थी और यकीन करें । अगले दिन सटीक 87 नम्बर ही खुला ।
किसी और घटनाकृम में आदमी का अंक 1 होता है पर खिलाङियों ने जाने किस गणित के आधार पर 1 का 8 कर दिया और गणित सही बैठा । आप किसी परिपक्व सट्टेबाज से बात करेंगे । तो आपको आश्चर्य होगा कि इनका भी अच्छा खासा सट्टा गणित है ।
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जब बाबा दयालु हो जायें - इस तरह की छोटी बङी कई घटनायें होती हैं । पर 1 विशेष उल्लेखनीय है । करीब 32 वर्ष पहले एक लगभग गरीब आदमी फ़ुटपाथ पर तख्त तिरपाल के द्वारा गन्ने का रस बेचकर आजीविका निर्वाह करता था । जून की सुनसान और कङक दोपहरी में एक साधारण सा (मतलब ठीक से बाबा भी नहीं लगता था) लगभग गन्दे वस्त्रों वाला आदमी उसके पास आया और बोला - बङी प्यास महसूस हो रही है । जाहिर था । वह खरीद नहीं सकता था । वरना सीधा आर्डर ही देता ।
रस विक्रेता ने उसे पूरे धर्म भावना से बिना लाभ की आशा किये दो गिलास रस पिलाया । उसके बाद उस आदमी ने आगे मांगा तो नहीं । पर रस विक्रेता को लगा । अभी यह तृप्त नहीं हुआ । अतः अबकी उसने 1 लोटा ही भर दिया । अबकी आदमी वाकई तृप्त हो गया ।
और आंतरिक प्रसन्नता से बोला - मैं तुझे कुछ देना चाहता हूँ । इस नम्बर (25) पर जितना पैसा लगा सके लगा दे । लेकिन उसके पास ‘जितना’ जैसा पैसा नहीं था । अतः उस समय में उसने 5000 में अपना कोल्हू आदि सब सामान बेच दिया ।
और दूसरी सुबह उसकी जिन्दगी 5 लाख के साथ शुरू हुयी । बङी रकम पर पूरा 100% भुगतान होता है ।
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विशेष - ध्यान दें । ऐसी घटनायें आकस्मिक (बिना सोचे) और कभी कभी और विपन्न हालत में होती हैं । अतः रोज रोज और लालचवश और हराम में कमाने का जरिया सोच कर कभी सट्टा, जुआ आदि को न अपनायें । यह हमेशा हर तरह का पतनकारक ही है ।
कृपया विशेष ध्यान दें - यह लेख सट्टा, मटका, जुआ आदि जैसी बुराईयों के प्रति जागरूकता के लिये है । न कि उन्हें प्रोत्साहन देने हेतु । सट्टे मटके से कोई धनी नहीं होता । न किसी की समस्या समाधान होती हैं । अतः इसका उल्टा अर्थ निकालकर सट्टे मटके का नम्बर आदि जानने के लिये फ़ोन न करें ।
यह साइट सिर्फ़ सन्त मत, आत्मज्ञान और योग ध्यान की क्रियायें सिखाता है ।
आप किसी भी प्रकार के सट्टे लाटरी जुये आदि के लिये फ़ोन न करें ।
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जैसा कि इस कमेंट में निजामाबाद के किसी रामप्रिय दास बाबा का जिक्र है । जो मटका (सट्टा) या अगले दिन के शेयर मार्केट का भाव बता देते थे और नगर सेठों की उनके स्थान के सामने लाइन लगी होती थी ।
विभिन्न प्रकार के साधुओं से अधिक मेलजोल और गहरा सम्पर्क अक्सर होते रहने के कारण कम से कम इस मामले में साधुओं की पोलपट्टी मैं बखूबी जानता हूँ ।
ऐसी बात नहीं कि इस तरह के मन्त्र या सिद्धियां नहीं होती या फ़िर साधु इन्हें किसी ‘जरूरतमन्द’ को बताते नहीं हैं । पर जैसा कि इस कमेंट में लिखा है और अक्सर अधिकांश ढोंगी साधुओं ने इसे सस्ती लोकप्रियता और आय का जरिया बनाया हुआ है । वह एकदम गलत है । कहने का भाव है कि कोई भी सिद्ध पुरुष क्यों न हो । यदि वह नियमित इसका उपयोग निजी लालचवश करता है तो परिणाम कभी सही नहीं आयेंगे । और प्रथम तो कोई सिद्ध पुरुष या मन्त्र ज्ञाता ऐसा करेगा ही क्यों ?
इस सम्बन्ध में झूठे बाबा एक चालाकी भरा तर्क देते हैं कि - कोई भी मन्त्र या सिद्धि निजी लाभ हेतु उपयोग नहीं की जा सकती । इसलिये वो परोपकार करते हुये अप्रत्यक्ष तरीके से अपना अंश मात्र ले लेते हैं ।
नरेश आर्य के इस कमेंट से मुझे अपना वह अतीत अंश स्मरण हो आया । जिनमें ऐसे बाबाओं से बने सोहबत के कुछ घण्टे थे और मुझे लगा कि इस विषय पर कम से कम बाबाओं की ढोंग लीला से परिचित कराकर मैं लोगों को धन की बरबादी और पतन से बचाने का अपना कर्तव्य पूरा कर सकता हूँ ।
क्या होता है सट्टा या मटका - जिस तरह लाटरी में नम्बर के आधार पर लाटरी के नम्बर का अन्तिम अंक 1 से लेकर 0 तक 10 अंकों का होता है और उस अन्तिम अंक का मिलान हो जाने पर लगभग 10 गुना हो जाता है । और न आने पर गांठ का लगाया हुआ 10% भी जाता है । फ़िर दहाई फ़िर सैकङा तक के अंक समान मिलने पर इनाम राशि में बढोत्तरी होती है और भी आगे तीन नम्बर 1st 2nd 3rd इनाम वाले होते हैं ।
इसी प्रकार मटके में 1 से लेकर 100 तक गिनती होती है । जिसमें 99 अंक (जिसे खिलाङी अक्सर ‘घर’ कहते हैं) मटका खेलने वाले के होते हैं और 1 अंक खिलाने वाला का होता है । अलग अलग मटका गद्दियों के हिसाब से नम्बर आ जाने पर 1 रुपये पर यह भुगतान 80 से लेकर 95 रुपये तक होता है । यानी सीधे सीधे 1 रुपये का 80 से लेकर 95 गुना तक हो जाना या फ़िर अपना 1 रुपया बिलकुल जाना ।
अब मटका व्यापार को समझें - जानकार सूत्रों के अनुसार छोटे छोटे गांवों से लेकर शहरों के मुहल्लों तक में इनका एक कलेक्शन एजेंट टायप बतौर कमीशन पर होता है । इसके लिये आवेदन करने की कोई जरूरत नहीं । बस पैसे और ग्राहक का इच्छित नम्बर लो और उसकी पर्ची बनाकर दे दो । एकत्रित धन और नम्बर किसी बङी प्रमुख गद्दी पर जमा कर आओ और नम्बर आने पर सुबह भुगतान ले आओ ।
और समझें - मान लीजिये, अलग अलग व्यक्तियों ने 20 नम्बर पर 500 रुपये की कुल जमा राशि लगायी । किसी ने 1 तो किसी ने 5 रुपये या किसी ने 100 भी लगाये हो सकते हैं । कलेक्शन एजेंट एक रजिस्टर में साथ के साथ 1 से 100 तक गिनती वाले फ़ार्म में बस उस नम्बर के सामने आने वाले रुपये लिखता जाता है और बुकिंग बन्द हो जाने पर अलग अलग नम्बरों पर आये पैसे जोङकर मुख्य गद्दी को पहुँचा देता है । मतलब यदि 100 व्यक्तियों ने 6 नम्बर पर कुल 1000 रुपये का दाव खेला तो प्रमुख गद्दी वाले के लिये यह सिर्फ़ 6 नम्बर पर 1000 रुपये की प्रविष्टि वाला एक ही खाना होगा ।
आगे फ़िर जो काम छोटा एजेंट अलग अलग व्यक्तियों के नम्बर को एक नम्बर बनाकर करता है । यही काम प्रमुख गद्दी वाला छोटी गद्दियों से आये कलेक्शन के लिये करता है । उदाहरण के लिये 50 छोटी गद्दियों से 8 नम्बर पर मान लो 10 000 का कलेक्शन आया । तो उसकी शीट में 8 नम्बर के आगे 50 खानों में राशि और उनका टोटल 10 000 होगा ।
इसी तरह उस चेन से जुङे फ़िर सभी शहरों का उससे ऊपर वाली गद्दी को सिर्फ़ नम्बर और लागत धन का संक्षिप्त ब्यौरा जाता है और इन बङी बङी गद्दियों को भी पता नहीं होता कि किस नम्बर पर कुल कितना धन लगा है या किस नम्बर पर सबसे कम धन लगा है ।
आश्चर्यजनक रूप से यह सब एकत्र हुआ कुल धन और उससे सम्बन्धित नम्बर रात्रि बारह बजे के आसपास मुख्य कलेक्टर के पास पहुँच जाते हैं । मतलब 1 से 100 तक के अंक और उन पर लगा अलग अलग धन । समझें आप, सिर्फ़ दो खानों का कार्य, जिसमें एक में सिर्फ़ गिनती और दूसरे में उस पर लगा धन दर्ज होता है ।
मुख्य कलेक्टर सिर्फ़ इतना करता है कि - सबसे कम धन किस नम्बर पर लगा है । वही नम्बर अगले दिन के लिये (लिस्ट प्राप्त होने के पाँच मिनट बाद ही लगभग 1 बजे तक) खोल दिया जाता है । क्योंकि उस पर सबसे कम भुगतान देना है ।
विशेष - ऐसा अक्सर हो जाता है कि एकाध महीने किसी किसी क्षेत्र में लगवाङी पर कोई नम्बर प्रायः नहीं खुलता और उस क्षेत्र के सटोरिये सट्टे के प्रति उदासीन होने लगते हैं । तब ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित कर वहाँ का अधिक लगाया नम्बर जानबूझ कर खोल दिया जाता है और सटोरिये पुनः उत्साहित हो जाते हैं ।
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अब नम्बरी बाबाओं की चालाकी - वास्तव में अपवाद को छोङकर इन बाबाओं ने कोई मन्त्र या कोई सिद्धि नहीं की होती । बल्कि वे भी सट्टेबाजों का गणित और उनकी मानसिकता से परिचित खुद भी सटोरिये ही होते हैं । इसमें तुक्का भिङ जाना का भी इस्तेमाल में नहीं कर सकता । क्योंकि वे तुक्का भी नहीं लगाते । बल्कि एक दिमागी चाल चलते हैं ।
जैसा कि मैंने कहा, ये बाबा लोग भी आये नम्बरों का हिसाब किताब और पूरा आंकलन रखते हैं और उसी आधार पर (आने वालों की औसत गिनती के अनुसार) प्रतिदिन लगभग 40 अनुमानित नम्बर (कभी कभी 60-70 तक ) तैयार कर लेते हैं और अलग अलग लोगों को इस हिदायत के अनुसार कि - किसी को बताना नहीं है, अलग अलग ही नम्बर दे देते हैं ।
अब आप सोचेंगे कि 40 नम्बर में से भी नहीं आया तो ?
जी नहीं, दरअसल सट्टे में दिये गये 40 नम्बर बदलकर पूरे 100 हो जाते हैं । और 100 में से एक तो आना निश्चित ही है ।
कैसे - इसके पीछे सटोरियों की सट्टा गणित मानसिकता है । मान लीजिये किसी बाबा ने 31 लकी नम्बर बताया । तो सटोरिया इसे लगाने के साथ साथ 69 को भी लगायेगा । जो 100 में से 31 घटाने पर आया और इनकी भाषा में ‘बाकी’ कहलाता है । इसके अलावा 13 को भी लगायेगा । जो 31 का उलटा है । जिसे खिलाङी ‘पलट’ बोलते हैं ।
इस तरह प्रमुखतया 1 नम्बर के 3 मुख्य नम्बर बन गये और इसमें छोटी सम्भावनायें अलग से जोङी जाती हैं । पर यदि हम 1 नम्बर के 3 नम्बर ही लेकर चलें और ‘ये बाबा’ 40 नम्बर तय करते हैं । तो आटोमेटिक 120 नम्बर बन जाते हैं । जिनमें से 1 निश्चय आना है ।
और ऐसे नम्बर खुल जाने पर ये बाबा ‘सिद्ध’ कहलाते हैं ।
- गणित और भी है । पिछले 2 दिन आ चुके नम्बर अक्सर हटा दिये जाते हैं । इस तरह 100 में सिर्फ़ 98 नम्बर ही बचे ( हालांकि ‘बायचांस’ सिद्धांत अनुसार कुल लगवाङी आधार पर इन्हें भी बहुत कम धन से लगा दिया जाता है कि संयोग से आ ही जाये । तो एक तरह से निवेश की मूल राशि वापस हो जाती है) 100 नम्बर बहुत कम आता है । अपवाद सा है तो यह 1 और कम हो जाता है ।
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क्योंकि मेरा उद्देश्य आपको ‘सट्टा शास्त्र’ ज्ञान देना नहीं बल्कि सट्टा बाबाओं की चालबाजियों से परिचित कराना है । तो बाबा एक और ‘तरीका’ अपनाते हैं । जिसे इनकी भाषा में ‘रमूज’ कहा जाता है ।
क्या है रमूज - रमूज दरअसल प्राकृतिक संकेतों को कहते हैं । ये वो संकेत होते हैं । जो खिलाङी को कुछ अजीब सा और संकेत सा करते हुये अलग सा दिखे और खास तब जब वह अगले दिन के संभावित नम्बर के बारे में सोच रहा था । तभी यकायक दिखे । जैसे - तार पर छाता टंगा था । औरत बच्चे को दूध पिला रही थी । आदमी भैंस ले जा रहा था/दुह रहा था आदि आदि कोई भी दृश्य या घटना ।
- अब इसमें उन्होंने ‘अंक ज्योतिष’ की भांति सबके लिये कोई न कोई 1 से 0 तक अंक निर्धारित किया हुआ है । जैसे औरत का 8 आदमी का 1 बच्चे का 4 आदि । इसी तरह पशु और अन्य निर्जीव वस्तुओं के भी हैं । और फ़िर वस्तु या आदमी के प्रथम या अन्तिम अक्षर में किस अंक का अक्षर बनता है । इस सबका विचार किया जाता है ।
अब उदाहरण के लिये जैसे - तार पर छाता टंगा था । तो यहाँ तार (का 3) और छाता (का 6) ही मुख्य हैं और ये कुछ अलग सी बात है । क्योंकि आमतौर पर तार पर छाता नहीं होता । अतः सटोरिया लकी नम्बर के तौर पर बङे धन के साथ 36 नम्बर लगायेगा । और साथ में छोटा गुणा भाग अलग ।
आपको अजीब सा लगेगा और यह मत कहना कि मैं प्रोत्साहित कर रहा हूँ । बाबाओं की अपेक्षा बहुत बार खुद के द्वारा देखे गये ऐसे अजीब संकेत ‘सच’ निकलते हैं । एक उदाहरण जो मेरी जानकारी में हुआ । बताता हूँ ।
बाजार में एक टेलर की दुकान पर बहस हो गयी और उस तू तू मैं मैं के अंजाम के बाद उनमें से एक लकङी की भारी कुर्सी को लेकर सर पर रखकर 5 किमी दूर घर तक गया । गौर करें । तो बात कुछ अजीब सी है । जो सामान्यतया देखने में नहीं आती ।
वहाँ कुछ सट्टा खिलाङी भी थे और उन्होंने आदमी (का 8) और कुर्सी (का 7) लगाकर बङा दाव खेला । परिणाम को लेकर बेहद उत्सुकता थी और यकीन करें । अगले दिन सटीक 87 नम्बर ही खुला ।
किसी और घटनाकृम में आदमी का अंक 1 होता है पर खिलाङियों ने जाने किस गणित के आधार पर 1 का 8 कर दिया और गणित सही बैठा । आप किसी परिपक्व सट्टेबाज से बात करेंगे । तो आपको आश्चर्य होगा कि इनका भी अच्छा खासा सट्टा गणित है ।
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जब बाबा दयालु हो जायें - इस तरह की छोटी बङी कई घटनायें होती हैं । पर 1 विशेष उल्लेखनीय है । करीब 32 वर्ष पहले एक लगभग गरीब आदमी फ़ुटपाथ पर तख्त तिरपाल के द्वारा गन्ने का रस बेचकर आजीविका निर्वाह करता था । जून की सुनसान और कङक दोपहरी में एक साधारण सा (मतलब ठीक से बाबा भी नहीं लगता था) लगभग गन्दे वस्त्रों वाला आदमी उसके पास आया और बोला - बङी प्यास महसूस हो रही है । जाहिर था । वह खरीद नहीं सकता था । वरना सीधा आर्डर ही देता ।
रस विक्रेता ने उसे पूरे धर्म भावना से बिना लाभ की आशा किये दो गिलास रस पिलाया । उसके बाद उस आदमी ने आगे मांगा तो नहीं । पर रस विक्रेता को लगा । अभी यह तृप्त नहीं हुआ । अतः अबकी उसने 1 लोटा ही भर दिया । अबकी आदमी वाकई तृप्त हो गया ।
और आंतरिक प्रसन्नता से बोला - मैं तुझे कुछ देना चाहता हूँ । इस नम्बर (25) पर जितना पैसा लगा सके लगा दे । लेकिन उसके पास ‘जितना’ जैसा पैसा नहीं था । अतः उस समय में उसने 5000 में अपना कोल्हू आदि सब सामान बेच दिया ।
और दूसरी सुबह उसकी जिन्दगी 5 लाख के साथ शुरू हुयी । बङी रकम पर पूरा 100% भुगतान होता है ।
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