anoop joshi ने आपकी पोस्ट "
महाराज जी का संक्षिप्त परिचय और तस्वीर " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
sar kuch swal apni post me puche hai kripa kar ke jabab de de....| "
कशमकश " ब्लागर "
श्री अनूप जोशी " ने मुझसे किये कुछ प्रश्न ।
कुछ सवाल जो मुझे झिंझोड़ते है:-
प्रश्न--१) यदि आत्मा अमर है, ना वो जन्म लेती है, ना वो मरती है. तो जनसख्या क्यों बढ़ रही है ? नयी जनसख्या के लिए आत्मा कहाँ से आ रही है.??
उत्तर-- वास्तव में आत्मा न जन्मती है । न मरती है । इसके साथ जो जीव भाव जुङकर जीवात्मा वन गया है । वही जन्मता और मरता है । आप कभी चींटियों के झुन्ड , तमाम कीट पतंगे , अन्य तमाम चौरासी के जीवों को देखे । यह अनन्त हैं । आत्मा में ही अनंत होने की शक्ति है । इसलिये इस प्रकार एक योनि से दूसरी योनि में आना जाना होता रहता है ।
कभी चौरासी के जीवों की अधिकता होती है । तो मनुष्य कम हो जाते हैं । आप देखें कि तमाम तरह की चिङिया । कीट पतंगे अन्य जंगली प्रजातियाँ जिनकी आवादी करोंङों अरबों में होती है । आज लुप्त प्राय है । दूसरे जिस प्रकार एक शिशु जन्म से मृत्यु तक(1 to 100 कहते हैं ) की यात्रा क्रमशः बङते हुये करता है ।
उसी प्रकार मनुष्य की आवादी भी प्रत्येक युग में शिशु की तरह बङती हुयी अपने अंत पर आते आते काफ़ी हो जाती है । आप " प्रलय " वाली पोस्ट में पङ ही चुके हैं । जनसंख्या रूपी यह बालक अपनी आयु के अंत पर आ गया है । और अंतिम सांसे गिन रहा है ।
दूसरे इतनी जनसंख्या बङती नहीं हैं । जितनी मालूम होती है । आज तमाम गाँव ..छोटे कस्बे..शहर खाली हो जाते हैं । और बङे शहरों में लोग बस जाते हैं । इसलिये भी जनसंख्या अधिक मालूम होती है । मैं तमाम ऐसे स्थानों को जानता हूँ । जहाँ मुफ़्त में रहने के लिये लोग तैयार नहीं हैं । आपका ये प्रश्न महत्वपूर्ण हैं । इसलिये इसकी बारीक पङताल वाली पोस्ट मैं शीघ्र ही लिखने की कोशिश करूँगा ।
प्रश्न--२) भगवान् ने भारत में ही जन्म क्यों लिया?क्या पूरी पृथ्वी उनकी नहीं है ??
उत्तर-- कल को आप कह सकते हैं । कि प्रधानमंत्री दिल्ली में ही क्यों रहते हैं । झुमरीतलैया में क्यों नहीं ? क्या झुमरीतलैया भारत में नहीं है ? पहली बात तो ये कि भगवान जन्म नही लेते । उनका अवतार होता है । भगवान साधारण जीव की तरह गर्भवासा नहीं करते ।
फ़िर ये किस तरह प्रकट होते है..इसकी जानकारी के लिये आपको ग्यानप्रकाश के " महामन्त्र " की दीक्षा लेनी होगी । साधारण जीवों को ये बताना वर्जित है । यदि आप दीक्षा ले चुके हैं । तो अपने गुरु से पूछें ।
प्रत्येक युग में प्रथ्वी की भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन हो जाता है । और भगवान ने कई देशो में अवतार लिया है । पर आम लोगों को उसकी जानकारी नहीं होती । राम ..कृष्ण ने जब अवतार लिया था । तव गिने चुने लोगों को छोङकर ज्यादातर उन्हें सामान्य इंसान ही समझते थे..ऐसा इंसान जो गुणों में श्रेष्ठ है । और ग्यान की ऊँचाईयों पर है ।
कल्पना करें । किसी भी युग में उसी समय आदमी को पता चल जाय कि ये भगवान हैं । तो लोग भगवान का जीना हराम कर देंगे । और किया भी है । भगवान या देवता या भूत प्रेत या दूसरे ग्रह के वासी आज भी अक्सर प्रथ्वी पर मनुष्य रूप में भ्रमण करते हैं । पर उनको पहचानने के लिये दिव्य दृष्टि होना आवश्यक है । ये महामन्त्र से प्राप्त होती है ।
भारत में ही क्यों ..? दरअसल भारत प्रथ्वी पर ऐसे स्थान पर स्थिति है..जहाँ से देवलोक आदि ग्रहों से " तरंगो " का आवागमन उचित तरीके से होता है । इसलिये भगवान ने भारत को अपनी राजधानी बनाया ।..जैसे अमेरिका इसी लालच में तो पाकिस्तान की चमचागीरी और धन देता है..कि वह पाकिस्तानी भूमि का हवाई अड्डों और अन्य सामरिक उद्देश्यों के लिये भरपूर उपयोग कर सके ।
अब ये पाकिस्तान का भाग्य ही है । कि वो ऐसी जगह पर है..जहाँ से अमेरिका एशिया आदि पर केन्द्र के रूप में नियन्त्रण किया जा सकता है । बस भारत को भी आध्यात्म क्षेत्र में इसी भोगोलिक स्थिति की वजह से चुना जाता है ।
प्रश्न--३) यदि भगवान् ने प्रक्रति कि रचना कि है तो, अपने प्रिय स्थान(भारत) को प्राकृतिक सम्पदा से क्यों दूर रखा. सोना दक्षिण अफ्रीका, हीरा कनाडा, खनिज तेल खाड़ी देश और भारत को कोयला और अब्रक और पता नहीं क्या क्या?
उत्तर-- भारत प्राकृतिक सम्पदा से हमेशा भरपूर रहा है । सोने की चिङिया..दूध की नदियाँ वाला देश इसको कहा जाता है । पारा जैसी महत्वपूर्ण धातु के शंकर द्वारा प्रदत्त चार कूप सिर्फ़ भारत में ही हैं । पहले भारत अफ़गानिस्तान तक था । जम्बू नद ( नदी ) में सोना प्राप्त होता है ।यह सब लगभग तीन चार सौ साल में ऐसी स्थिति हुयी है । क्योंकि आंशिक प्रलय के समय बहुत कुछ गायब हो जाता है । कृपया विस्त्रत उत्तर हेतु गरुण पुराण पढें । आज भी बहुत कुछ मौजूद है । पर उसका ग्यान नहीं है ।
प्रश्न--४) यदि हमारी संस्कृति दुनिया में सबसे अच्छी है तो.लोग इससे दूर क्यों जा रहे है ? और कुछ एक संस्कृति के ठेकेदारों को डंडा लेकर इसकी रखवाली क्यों करनी पड़ती है ?
उत्तर-- समय समय पर तरह तरह के बदलाब हर चीज में होते है । आपके अन्दर जन्म से लेकर अब तक कितने बदलाव हो चुके हैं ।यह सब लीला है । दरअसल हर चीज को अपने नजरिये से देखना आपका स्वभाव मालूम होता है । ज्यादा कमी आपके अन्दर है । बाहर इतना गलत है नहीं । जितना आपको नजर आता है ।
प्रश्न--५) क्या सिर्फ 'मेरा भारत महान" कहने से भारत महान हो जायेगा
.उत्तर-- सभी अपने अपने देश को महान कहते है । सभी देशों में आदर्श महान बेईमान सब तरह के लोग होते हैं । किसी के पास कोई ग्यान या सम्पदा अधिक है । तो दूसरे के पास कुछ और है । और ये सिर्फ़ आज के समय में नहीं प्रत्येक युग में होता है
प्रश्न--६) मन कहाँ होता है, शरीर में ?
उत्तर-- मन की शेप लगभग इतनी बङी o बिंदी जैसी होती है । इसमें मन , बुद्धि , चित्त , अहम चार छिद्र होते हैं । जिनसे हम संसार को जानते और कार्य करते हैं । मन शब्द प्रचलन में अवश्य है । पर इसका वास्तविक नाम " अंतकरण " है ।
ये चारों छिद्र कुन्डलिनी क्रिया द्वारा जब एक हो जाते हैं तब उसको सुरती कहते है । इसी " एकीकरण " द्वारा प्रभु को जाना जा सकता है । अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं हैं । मन को बिना चीर फ़ाङ के ध्यान अवस्था में देखा जा सकता है । नियन्त्रित किया जा सकता है । इसका स्थान भोंहों के मध्य एक डेढ इंच पीछे है ।
जीवात्मा का वास इससे " एक इंच " दूर बांयी तरफ़ है । हमारे शरीर के अंदर पाँच तत्वों की पच्चीस प्रकृतियाँ ( एक तत्व की पाँच ) हैं । तो 25 प्रकृति + 5 ग्यानेन्द्रिया + 5 कर्मेंन्द्रियां + 5 तत्वों के शरीर का नियंत्रणकर्ता और राजा मन है । इसी आधार पर 40 kg weight को एक मन कहने का रिवाज हुआ था । 25 प्रकृतियों के बारे में मैं पहले ही ब्लाग पर लिख चुका हूँ । फ़िर भी उदाहरण के तौर पर " जल " की प्रकृति देखें । 1 रक्त 2 लार 3 पसीना 4 वीर्य 5 मूत्र..किसी भी शरीर में जल इन्हीं रूपों में उपस्थित है ।
प्रश्न--७) विज्ञान हर चीज को सिद्ध करता है. लेकिन भगवान् के लिए ये क्यों कहा जाता है कि ये सृधा है.
उत्तर-- ये बात सिर्फ़ अग्यानी कहते हैं । आत्मा , अलौकिक ग्यान या देवी देवता या भगवान से सम्बन्धित बातों या क्रियायों का ग्यान " कुन्डलिनी ग्यान " के अंतर्गत आता है । जिसमें सिर्फ़ बातें नहीं होती । बल्कि इन लोगों से मिला जा सकता है । फ़ायदा लिया जा सकता है ।
भूतकाल में लोगों ने लिया था और आज भी ले रहे हैं । दूसरी बात कुन्डलिनी ग्यान नहीं " विग्यान " के अंतर्गत आता है । क्योंकि कुन्डलिनी पूरा प्रक्टीकल पर ही आधारित है । आपको ध्यान होगा कि आपने " प्रेतकन्या " के तथ्यों को कहानी शब्द दिया था । वास्तव में इस प्रकार की यात्रा का अनुभव आप छह महीने में स्वयं कर सकते है । और ये कोई ज्यादा बङी बात नहीं । इससे ज्यादा नहीं कह सकता ।
आप मेरे गुरुदेव से डायरेक्ट फ़ोन 0 9639892934 पर बात कर सकते हैं ।
अनूप जोशी का सवाल--आपने सत्यनारायण भगवान की कथा में, लीलावती की कहानी सुनी होगी, की उसका पति,सत्यनारायण भगवान की कथा के लिए कहता रहता है, और उसके सभी काम सफल होते रहते है.अंत में जब वो कथा नहीं करता तो, उसको जेल में डाल दिया जाता है. तब उसकी पत्नी और बेटी कथा करती है, और सब कुछ सही हो जाता है. मेरा एक सवाल है अगर हमारे यहाँ इस कथा में, कलावती है. तो जब कलवती ने जो कथा कराई थी, तो उसकी कथा में कौन था?
उत्तर-- सत्य नारायण कथा में संभवत पाँच कहानियों का जिक्र आता है । जिन्हें सत्यनारायण कथा में " प्रेरक " के रूप में लिया गया है । लेकिन कथा अगर आपने ध्यान से सुनी हो । तो कथा ये कहती है कि कलावती आदि ने सत्यनारायण का पूजन किया था ।( वो पूजन या मन्त्र आदि जो कथा के प्रारम्भ और अंत में होते हैं ।)
पुराण का अर्थ पुराना या इतिहास भी है । समस्त वेद पुराण इसी टेकनीक पर आधारित हैं कि किस राजा ने । या किस देवता ने । या किस मनुष्य ने ।कब और किस मन्त्र का उपयोग किस परेशानी के लिये किया और उसे क्या लाभ हुआ । जैसे आज विग्यान या कम्प्यूटर सांइस या किसी भी प्रक्टीकल के लिये किताबों में थ्योरी उपलब्ध कर संग्रहित कर दी जाती है ।
कहने का आशय " कलावती " आदि का जिक्र एक प्रेरक परम्परा के रूप में होता है । वास्तविक मतलव " सत्यनारायण " के पूजन से है । अब वास्तविक सत्यनारायण क्या है । इसको जाने ? सत्य + नार +अयन = सत्यनारायण । यानी । सत्य ( जो सत्य है ) नार ( जल से कहते हैं ) अयन ( यानी निवास स्थान ) यानी जल में जिसका निवास स्थान है । ऐसा सत्य देव पुरुष । यानी भगवान विष्णु । आपको पता होगा कि विष्णु जी का निवास क्षीर सागर में है । तो कलावती आदि ने जो कथा करायी थी । वो वास्तव में " सत्यनारायण " का पूजन था ।
प्रश्न--क्या भगवान् की, डर या लालच देकर ही, पूजा करने के लिए प्रेरित किया जाता है. ??
उत्तर-- आप अपने छोटे बच्चे को पढाने..स्कूल भेजने..में डराते है..टाफ़ी आदि का लालच देते हैं । उद्देश्य यही होता है कि बच्चा " मजबूत " बने । ग्यान के क्षेत्र में अधिकांश बच्चे ( 90 year के भी ) ही होते है ।
" भाव कुभाव अनख आलस हू । नाम जपत मंगल सब दिस हू । " भगवान को किसी भी तरह याद करो । वो आपको अच्छा ही फ़ल देंगे । उदाहरण-- रावण , कंस आदि ने वैर भक्ति से भक्तों वाली स्थिति प्राप्त की थी ।
तीसरा सवाल-- भगवान की अगर पूजा ना की जाये या भगवान को ना मना जाये, तो उसका भगवान गलत क्यों करेंगे? क्योंकि वो तो भगवान है हिर्न्याकस्य्प देत्या नहीं जो उनकी पूजा नहीं करेगा उसका गलत करेंगे."??
कोऊ न काऊ सुख दुख कर दाता । निज करि कर्म भोग सब भ्राता । " भगवान न तुमसे पूजा की कहे । न अच्छा कहे । न बुरा कहे । जीव अपने कर्मों के लिये स्वयं उत्तरदायी है । अच्छा करोगे । पुरस्कार । बुरा करोगे । पङेगी मार । संविधान के अनुसार फ़ल है ।
प्रश्न--असल में भगवान को लालच ओर डर का एक बिंदु बना दिया है कुछ स्वार्थी लोगो ने, वे ये तो कहते हैं की, १२ साल बाद कुम्भ आया है,जरुर स्नान करिएँ, लेकिन ये नहीं कहते है की, सास्त्रो में लिखा है " मन चंगा तो कठोती में गंगा" अगर कोई नहीं जा सके तो कोई बात नहीं.??
उत्तर-- इसका उत्तर तो आपने स्वयं ही ( कुछ स्वार्थी लोगो ने..) दे दिया है । वास्तव में ये " स्वार्थी " दिग्भ्रमित और अग्यानी " कुछ नहीं बहुत " लोगों की वजह से हुआ । वास्तव में 12 साल बाद आने वाले " बाह्य कुम्भ " को नहाने का भी महत्व है । पर शास्त्रों में इशारे से " आंतरिक कुम्भ " को नहाने की बात कही है । जो तुम्हारे अंदर है । और " भृकुटि मध्य " में इङा पिंगला सुषमना , के मिलने पर होता है ।
रामदेव जो " अनुलोम विलोम " क्रिया कराता है । वही वास्तविक कुम्भ स्नान है । इससे मन स्वच्छ होता है । यानी विकार यानी पाप धुल जाते है । संस्कृत की डिक्शनरी में देखना कुम्भ यानी घट यानी घङा यानी शरीर एक ही बताये गये हैं ।
" मन चंगा तो कठोते में गंगा " शास्त्रों में नहीं लिखा । बल्कि रैदास जी ने इस कहावत रूपी चमत्कार को घटित किया था । ये पूरी घटना अभी कुछ ही दिनों पहले मैंने " गंगा का रहस्यमय दिव्य कंगन " नामक पोस्ट में लिखी है । उचित समझें तो अवलोकन करें ।(" अगर कोई नहीं जा सके तो कोई बात नहीं ? ") भक्त का भाव होना चाहिये..इतिहास का अवलोकन करें तो कई लोगो ने तालाव में नहाकर गंगा या कुम्भ या रामेश्वरम जैसा पुण्य प्राप्त किया था ।
प्रश्न--वे ये तो कह देते हैं की, चार धाम यात्रा करो, लेकिन ये नहीं कहते की हमारे हर्दिया में भगववान है, उसकी आराधना से भी, वही सुख मिलेगा.??
उत्तर--( आपके ये " वे " कौन है । आप ही भली प्रकार जानते होंगे ।) बाकी संतों ने तो यही कहा है कि आप प्रेम पूर्वक प्रभु का सुमरन जहाँ हो । वहीं करो । ना में मन्दिर । ना में मस्जिद । ना कावा कैलास में । मुझको कहाँ खोजे है । बन्दे मैं तो तेरे पास मैं ।
प्रश्न--वे ये तो कह देते है, मंगल वार को जीव हत्या करके ( मांस ) ना खावों.लेकिन ये नहीं कहते की रोज, जो इंसान इंसानियत की हत्या कर रहा है वो ना करे.??
उत्तर-- हमारे " वे " तो मंगलवार क्या किसी भी वार को । जीव हत्या छोङो । अनजाने में चींटी न मर जाये । इस तरह सचेत रहने की सलाह देते हैं । इंसानियत की हत्या की बात छोङो । साधु संतो ने सङे गधों ( घाव आदि से ) की सेवा कर उन्हें स्वस्थ किया है । समाज द्वारा घृणा के पात्र कुष्ठियों की सेवा की है । ऐसा आचरण करने वाले तमाम लोग आज भी हैं । दरअसल सृष्टि में सब तरह के लोग होते हैं ।
प्रश्न--वे ये तो कहते हैं की, काम सफल करना है तो इस वार(सोम,मंगल,सनि) के इतने उपवास करो, लेकिन ये नहीं कहते की उस दिन किसी भूखे का पेट भर दे.??
उत्तर-- हा..हा..हा..अब मैं क्या कहूँ । आप या तो किसी ठग के चक्कर में पङ गये हो ( या थे ) या फ़िर ये सब धारणायें आपकी खुद की हैं । आपकी अच्छे संतों क्या निम्न संतों से भी मुलाकात नहीं हुयी है । दयालु प्रभु आपको ग्यान का मार्ग दिखाये ।
प्रश्न-- वे ये तो कहते है की उस भगवान् के इतनी बार माला जपो, लेकिन ये नहीं कहते की एक बार अपने माँ- बाप को याद कर लो. ??
उत्तर-- " प्रातकाल उठकर रघुनाथा । मात पिता गुरु नावहि माथा । " त्वमेव माता पिता च त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव..इस तरह के मैं आपको दस लाख उदाहरण बता सकता हूँ । जिनमें माता पिता भाई बन्धु आदि सभी से भगवान की तरह प्रेम और सम्मान करने की सलाह दी गयी है । एक चींटी तक में भगवान को देखने की बात की है । और ये सत्य भी है । वास्तव में वही परमात्मा अनेक रूपों में लीला कर रहा है । राम जन्म के हेत अनेका । अति विचित्र एक ते एका ।
प्रश्न--पता नहीं ओर क्या क्या आडम्बर इन स्वार्थी लोगो ने हमें अपने स्वार्थ हित करने के लिए कहते है, ओर हम फंस जाते है उनके मकड़ जाल में.??
उत्तर-- अगर रास्ते में टट्टी पङी हो । और आप जानबूझ कर सन जाओ । तो दोष टट्टी का है या आपका ? आपकी बुद्धि विवेक किसलिये है ? आप ( शायद ) इंजीनियर है । और बहुत से इंसान " मजदूरी " कर मुश्किल से रोटी चला पा रहे हैं । तो ये किसके द्वारा संभव हुआ । निश्चित ही बुद्धि और ग्यान से । उसी ग्यान का उपयोग आप संत या भगवान या आत्मा को जानने में करें ।(हम फंस जाते है उनके मकड़ जाल में. )
प्रश्न--भगवान डर या लालच नहीं है ओर ना ही ये कोई ट्रोफी है? जो दूर पैदल चलकर, मंदिर जाकर या उपवास कर के मिलेंगे, ये एक भाव है जो हमें खुद पहचान के ही मिलते है. जैंसा गौतम बुध ने किया.??
मेरा उत्तर-- गौतम बुद्ध या महावीर या अन्य संतो को भगवान को जानने हेतु बहुत पापङ बेलने पङे । ऐसा प्रतीत होता है । कि गौतम बुद्ध या धर्म के बारे में आपका ग्यान अत्यंत सीमित है । कृपया स्थायी सुख शान्ति हेतु एक घन्टा " धार्मिक अध्ययन " हेतु निकालें । जल्दी प्राप्त करना चाहे तो मुझसे बात करें । क्योंकि मुझे 25 वरसों का समस्त शास्त्रों और अनेक साधनाओं का अनुभव है । " उपवास " शब्द का वास्तविक अर्थ उप+ वास यानी जीव स्थिति से ऊपर रहना है ।
अनूप जोशी--कृपा करके आपसे अनुरोध है की, भगवान को माने, पर स्वार्थी लोगों के बनाये हुए आडम्बर को नहीं, और हाँ में कोई उप्देसक नहीं हूँ. में भी आस्तिक हूँ , लेकिन आँख बंद कर के सब कुछ नहीं मानता और ना मनवाता हूँ.