दूसरे इस तरह वर्णन भी उन्हें अविश्वसनीय लगता है ।
अलौकिक ज्ञान को लेकर प्रत्येक साधक का स्तर और तरीका एक ही विषय में एकदम भिन्न होता है । लेकिन जो लोग नग्नता या सम्भोग पर विशेष परिस्थितियों में भी आपत्ति समझते हैं । उनके लिये हमारे जीवन के ही कुछ खास पहलू हैं ।
कोई भी स्त्री पुरुष हो । अगर डाक्टर से कुछ खास किस्म के चेकअप कराने होते हैं तो वहाँ ‘नग्न’ होना ही पङता है । इसी प्रकार प्रेत आवाहन क्रिया एक प्रकार की डाक्टरी ही है ।
नग्नता की एक दूसरी जरूरत ये भी होती है कि जब भी कोई प्रेतपीङा से ग्रसित हो जाता है तो प्रेत पूरे शरीर पर प्रभावी होता है । इस स्थिति में अभिमन्त्रित धुंआ फ़ेंकने और अन्य क्रियाओं द्वारा वह पूर्णतया मुक्त हो जाता है ।
एक छोटा सा उदाहरण समझें कि जब स्टीम बाथ लेते हैं । उस स्थिति में कपङे पहनकर क्या पूरा लाभ उठा सकते हैं ?
दूसरा उदाहरण, आजकल बाडी मसाज का काफ़ी चलन है तो जब कोई स्त्री, पुरुष गैर मर्द या स्त्री से मसाज कराते हैं तो क्या वो पूरे कपङे पहनकर मसाज का लाभ उठा सकते हैं । इसी तरह सी बीच पर लेटकर सूर्य की धूप लेने के लिये मात्र चढ्ढी आदि ही पहनते हैं । नहाते हैं तो नग्न होकर नहाते हैं । बहुत से स्त्री पुरुष नग्न अवस्था में रात को सोते हैं । ऐसे उदाहरणों पर किसी के पास तर्क है कि आखिर नग्नता क्यों जरूरी है ?
महाभारत काल में (जब) हस्तिनापुर की गद्दी के लिये वारिस की समस्या आन पङी । क्योंकि उस समय जो शासक था वो संतान पैदा करने में अक्षम था । तब महारानी द्वारा महाभारत आदि कई धार्मिक ग्रन्थों के रचयिता श्री वेदव्यास जी से आग्रह किया गया कि वो ‘वंशबेल’ को बढ़ाने में योगदान करें ।
‘नियोग पद्धित’ के जानकार व्यास ने कहा - रानियाँ पूर्णतः नग्न अवस्था में मेरे सामने से गुजर जायें । महारानी ने दोनों रानियों और एक दासी को इसके लिये तैयार किया । दासी इसलिये शामिल कर ली कि रानियों से कोई गङबङ हो जाय तो दासी पुत्र को गुपचुप रूप से तैयार कर लिया जायेगा ।
रानियों को यह बात बेहद अटपटी और नागवार लगी । इसलिये एक रानी ने शर्म की वजह से अपने चेहरे को लम्बे बालों से ढक लिया । आँखे बन्द हो जाने से इस रानी के जन्मांध धृतराष्ट्र पैदा हुये ।
दूसरी रानी ने शर्म की वजह से अपने पूरे शरीर पर ‘पङुआ’ (पीली) मिट्टी का लेप कर लिया । इस रानी के गर्भ से ‘पांडु’ पैदा हुये । जो जन्म से ही पान्डु रोग यानी पीलिया से पीङित थे ।
दासी बेचारी आज्ञा मानने को बेबस थी । इसलिये वो और कुछ तो नहीं कर पायी पर मुँह ही मुँह में बुदबुदाते हुये ‘बुदुर बुदुर’ करते हुये निकली ।
दासी के इसी तरह बुदबुदाते रहने वाले ‘विदुर’ पैदा हुये । उनका नाम ही इसीलिये विदुर पङा ।
इससे सिद्ध होता है कि इलाज में जिस स्थान पर कमी हो गयी वहीं विकार हो गया ।
महाभारत से ही एक और उदाहरण - महाभारत का युद्ध समाप्त होने के कगार पर था और कौरवों में केवल दुर्योधन शेष था । तब उसकी माता गांधारी ने ये एक ही पुत्र शेष बचा रहे । इस हेतु एक विशेष उपाय किया ।
उसने दुर्योधन से कहा कि - मैंने विवाहोपरान्त आज तक किसी को नहीं देखा । इसलिये तुम पूर्णतः नग्न होकर मेरे सामने आ जाना । तब जब मैं पट्टी खोलकर तुम्हें देखूँगी । उससे तुम्हारा शरीर वज्र के समान हो जायेगा ।
दुर्योधन ऐसा कर भी रहा था ।
किन्तु तभी श्रीकृष्ण ने सोचा - ऐसा हुआ तो सब खेल ही खराब हो जायेगा ।
उन्होंने उसकी हँसी बनाते हुये कहा - अरे, तुमने माता की बात का गलत अर्थ लगा लिया । नग्न होने का मतलब अधोवस्त्र भी उतार देना नही है ?
दुर्योधन बातों में आ गया और उसने कमर का हिस्सा ढक लिया ।
गांधारी ने पट्टी खोली तो उसे बेहद अफ़सोस हुआ । पर अब तो जो होना था वो हो चुका ।
बाद में भीम ने गदा युद्ध में उसकी जंघा ही तोङी थी । यदि वो नग्न होता तो जंघा भी वज्र हो जाती ।
एक और बात - शुकदेव जी जब युवावस्था के प्रारम्भ में ही थे । वे तप करने को वन में चल दिये । पीछे पीछे उनके वृद्ध पिता मनाने हेतु चले । तब पिता ने देखा कि आगे एक सरोवर में नग्न स्त्रियाँ स्नान कर रही थीं । शुकदेव जी निकलते चले गये और वे स्त्रियाँ पूर्ववतः नहाती रहीं ।
पर जैसे ही उन्होंने शुकदेव के वृद्ध पिता को आते देखा । उन्होंने तेजी से कपङे पहने और बाहर आकर उन्हें प्रणाम किया । तब शुकदेव के पिता को बहुत जिज्ञासा हुयी ।
उन्होंने कहा - हे देवियों ! मेरे युवा पुत्र के सामने तुम नग्न अवस्था में ही स्नान करती रहीं और मुझ वृद्ध को देखते ही तुमने वस्त्र पहन लिये । इसका क्या कारण है ?
स्त्रियों ने कहा - महात्मन ! शुकदेव जी ज्ञान की उस अवस्था में पहुँच चुके हैं । जहाँ स्त्री पुरुष का भेद नहीं होता पर आपकी दृष्टि में वो भेद है ।
अक्सर देखा जाता है कि उच्च स्थिति के महात्मा जब किसी वीराने या वन आदि में होते हैं । वे दिगम्बरावस्था में रहना पसन्द करते हैं । परमात्मा से मिलने हेतु साधक को पूर्णतः आवरण रहित होना होना पङता है । लेकिन यहाँ इसका अर्थ मात्र नग्नता ही नहीं बल्कि सभी विकार आवरणों को त्यागना है ।
विश्व में कुछ स्थानों पर न्यूडिस्ट सिटी, न्यूडिस्ट सोसाइटी, न्यूडिस्ट पीपुल जैसी अनेक संस्थायें हैं । जिनसे जुङे लोग नियमानुसार अपने उस परिवेश में नग्न ही रहते हैं । प्रमाण हेतु ये शब्द ‘गूगल’ में टायप कर सर्च करें ।
जहाँ तक ‘सम्भोग’ की बात है । सम्भोग शब्द आते ही एकदम स्त्री पुरुष की कामक्रीङा का दृश्य सामने आता है । क्या वास्तव में सम्भोग का अर्थ इतना ही है ?
वास्तव में तो संभोग का अर्थ इससे कहीं बहुत व्यापक है । भूख लगने पर भूख और भोजन का सम्भोग, प्यास लगने पर प्यास और पानी का सम्भोग, कोई रोग हो जाने पर रोग और औषधि का सम्भोग । यह सब सम्भोग ही हैं ।
प्रकृति (नारी) पुरुष (चेतन) से निरंतर संभोगरत है । इसी से प्रकृति में हर क्षण बदलाव और नया निर्माण होता रहता है ।
सम्भोग क्या है ? निरंतर होती हुयी क्रिया में जब कोई ‘क्षुधा’ जैसी आवश्यकता उत्पन्न होती है । उसकी पूर्ति करना ही सम्भोग है ।
ओशो रजनीश ने ‘सम्भोग से समाधि’ बताया है । इसका भी अर्थ बहुत लोग ये लगा लेते हैं कि अधिक स्त्री या पुरुष सेवन (विपरीत लिंगी) से समाधि को प्राप्त किया जा सकता है । ओशो ने कोई अनोखी बात नहीं कही । शास्त्र भरा पङा है इस बात से ।
पर इसका अर्थ वह नहीं हैं जो अक्सर लोग समझते हैं । इसका वास्तविक अर्थ है ,भोगों का इस तरह से व्यवहार करना कि आपकी आवश्यकता भी पूर्ति हो जाय और भोग आप पर कोई प्रभाव भी न छोङें । आसक्ति रहित उपभोग ।
यानी भोगों में सम स्थिति को प्राप्त करना, भोगों को सम दृष्टि से देखना, भोगों को आवश्यकता अनुसार भोगना और तदुपरान्त भोगों से नीरस हो जाना ही वास्तविक सम्भोग है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें