हम प्रसाद सेतिया है । आपसे 1 बार पहले भी बात हुई थी । जब मैंने आपको बताया था कि मैंने 1 बाबा से 2 प्रश्न किये । और बाबा ने पहले प्रश्न का उत्तर दिया । और दूसरे प्रश्न का उत्तर टाल दिया था । शायद अब आपको याद आ गया हो । राजीव जी तो पिछ्ले रविवार वो मैडम हमारे घर आयी । और लगी करने । उस बाबाजी की तारीफ़ । मैं चुपचाप सुनता रहा । उसने मुझसे कहा कि आप उन बाबा से मिलते रहा कीजिये ( क्योंकि वो बाबा लोकल ही रहते हैं ) गंगा नदी तो अपने शहर में ही है । आप तो रोज स्नान किया कीजिये । मैं उनकी बात बिना विरोध सुनता रहा ( क्योंकि वो मैडम मेरी पत्नी की सहेली हैं । मैं नही चाहता था कि मेरी कही कोई भी बात उनको बुरी लगे ) लेकिन उसके जाने के बाद मैं चुपचाप सोचता रहा कि जिस बाबा ने 1 प्रश्न का उत्तर टालने की कोशिश की हो । उसके पास जाना गंगास्नान कैसे हुआ ? Q 1 और पता नहीं ये मैडम उस बाबा से इतनी प्रभावित क्यों है ? तो राजीव जी हम आपसे ही पूछ लेते हैं कि Q 2 जो बाबा किसी जिग्यासु के प्रश्न को टालने की कोशिश करे । क्या उसके पास जाना गंगा स्नान है ? Q 3 और अगर नहीं तो वास्तविक गंगास्नान क्या है ? 1 बात और बताने का कष्ट करें कि जैसा हम लोग पढते हैं इतिहास में कि सुल्तान बाबर । चंगेज खान । तैमूर लंग । हलाकू आदि जैसे लोग भारत पर हमला करते रहे हैं । जिस कारण हजारों जाने जाती रही हैं । Q 4 तो इन जैसे लोगों की कैसी गति हुई होगी ? जब तक ये लोग जिन्दा रहे । तब तक तो लोग इनसे डरते थे । कोई भी बडे से बडा सूरमा भी इनके सामने बोलने की हिम्मत भी नही करता था । लेकिन उस जनम के बाद इनका क्या हुआ होगा । कोई आइडिया ? Q 5 और आखिर में आपके अनुसार वास्तविक पाप और पुण्य के मायने क्या है ? इस पर जरूर कुछ खुलकर बताने का कष्ट करें । प्रसाद कुमार सेतिया । कानपुर । उत्तर प्रदेश । ( ई मेल से )
Q 1 और पता नहीं ये मैडम उस बाबा से इतनी प्रभावित क्यों है ?
ANS - हालांकि सारी ! मैं आपकी इन मैडम की बात नहीं कर रहा । बल्कि एक सामान्य बात कर रहा हूँ । दो शायरी बङी प्रसिद्ध हैं । ( छोङो बताना । उचित नहीं जान पङता । ) वो प्रभावित क्यों है ?? भाई ये बात तो वही ठीक से जानती होंगी ।
एक बार सागर का मंडूक ( मेंढक ) घूमते घूमते कूप मंडूक के पास आ गया । उसने कुँए में झाँककर जब दूसरे मंडूक को देखा । तो कम स्थान की तंगहाली देखकर उसे तरस आया । वह उसे सागर के बारे में बताने लगा । तब कूप मंडूक ने कुँए में एक छलांग लगाई । और कहा । क्या तुम्हारा सागर इतना बङा है ?
सागर मंडूक - नहीं इससे बहुत बङा ।
इस तरह कूप मंडूक ने कई बार पहले से बङी और अन्त में पूरे कुँए के बराबर छलांग लगाकर बारबार पूछा । क्या इतना बङा ?
सागर मंडूक ने सोचा । इसने कूप से बाहर जब देखा ही नहीं । तो यह कैसे समझ सकता है कि सागर कितना बङा है ? और बिना प्रत्यक्ष दिखाये इसको समझाना भी मुश्किल है ।
Q 2 जो बाबा किसी जिग्यासु के प्रश्न को टालने की कोशिश करे । क्या उसके पास जाना गंगा स्नान है ?
ANS - अब वह बेचारा ! जितना जानता होगा । उतना ही तो बतायेगा । अभी उसे स्वयँ ( गंगा ) स्नान की आवश्यकता है । पर वह भी क्या करे - राम तेरी गंगा मैली हो गयी । पापियों के पाप धोते धोते । और असली गंगा उसे ग्यात नहीं । हाउ सैड !
Q 3 और अगर नहीं तो वास्तविक गंगास्नान क्या है ?
ANS - वास्तविक गंगास्नान तो हरिद्वार । प्रयाग । कुम्भ । गंगासागर । गोमुख आदि कहीं भी बहती हुयी गंगा में करना भी नहीं हैं । और न ही शास्त्र इसके लिये असल रूप में कहते हैं । इनको तीर्थस्थल कहा गया है । जिसको करने से पुण्य अवश्य प्राप्त होता है । पर इसका वास्तविक फ़ल प्राप्त नहीं होता । विस्तार से बताने पर बात बहुत लम्बी हो जायेगी । अतः संक्षेप में समझने की कोशिश करें । गंगा के लिये विभिन्न नाम..हरिद्वार..मानसी गंगा..गोमुख आदि जैसे कई नाम लिये जाते हैं । इन सब नामों का अर्थ समझें ।
हरिद्वार - यानी हरि का द्वार - गूढ भाषा में - संकेत में - हरि स्वांस को कहा गया है । क्योंकि यही शरीर को हरा भरा रखती है । इसके निकल जाने पर शरीर सङने लगता है । उससे बदबू आने लगती है । और फ़िर उसको शरीर न कहकर " मिट्टी " कहा जाता है ।
शरीर में ये हरि का द्वार नाक का ऊपरी भाग जहाँ मस्तक से जुङता है । वहाँ है । जो सामान्य अवस्था में बन्द होता है । सच्चे गुरु अपनी शक्ति से इसको खोल देते हैं । तब ये मानसी गंगा - यानी मन में स्थित गंगा । गोमुख यानी गो माने इन्द्रियाँ और मुख माने मुँह..यानी अपनी समस्त इन्द्रियों का मुख उधर मोङकर । हरिद्वार की उस मानसी गंगा में स्नान करता है । ये तीन नाम मैंने संक्षेप में उदाहरण के लिये समझने हेतु दिये हैं । असली बात तो बहुत अधिक है ।
पर असली गंगा स्नान घर बैठे करना बहुत सरल है । नाक के दोनों छिद्रों से चलते स्वर इङा पिगंला ही गंगा जमुना हैं । माथे पर तिलक या बिन्दी लगाने वाले स्थान सरस्वती का है । यहीं पर तीनों मिलते हैं । अतः यही संगम है । संस्कृत में कुम्भ घङा और शरीर को कहते हैं । अतः अपने शरीर द्वारा इसका स्नान करना ही कुम्भ स्नान है । शरीर को घट यानी घङा की उपाधि दी गयी है । यानी ये किसी ( भव ) सागर में तैरते जल से भरे हुये उस घट के समान है । जो घङे का आवरण टूटते ( यहाँ इंसान की मृत्यु ) ही उसमें भरा जल सागर के जल में समा जायेगा । इसी के लिये कबीर साहब ने कहा है । फ़ूटा कुम्भ जल जलहि समाना । ये गति विरला जानी ।
अतः वास्तविक गंगा स्नान वही है । बाबा रामदेव जिसे अनुलोम विलोम कहते हैं । बस यदि आपको किसी सच्चे सतगुरु ( बनाबटी तो बहुत हैं ) से महामन्त्र की दीक्षा प्राप्त हो । तो इस स्नान का फ़ल लाख गुना हो जाता है ।
आप एक प्रयोग करके देखिये - एक दिन किसी संगम आदि जैसी प्रसिद्ध जगह पर स्नान करें । और देखें उस दिन आपको कैसा लगता है ? दूसरे दिन आप सुबह के समय बृह्ममुहूर्त में अनुलोम विलोम करें । आपको लाख गुना शान्ति महसूस होगी । बशर्ते आप सही से अनुलोम विलोम करना जानते हों । बाबा ( रामदेव ) बताते तो बहुत है । पर अभी भी अच्छे अच्छे तक नहीं जानते कि सही अनुलोम विलोम होता कैसे है ?
Q 4 तो इन जैसे लोगों की कैसी गति हुई होगी ?
ANS - पहले तो ये लोग हजारों साल का घोर कष्टदायी नरक भोगते हैं । और बाद में बारबार 84 लाख योनियाँ भोगते हुये जो इन्होंने पाप कर्म किये हैं । उसकी सजा रूप में उन्ही व्यक्तियों ( जिनको इन्होंने मारा या कष्ट दिये ) की गुलामी करते हैं । उदाहरण के लिये । धोबी का गधा - काम भी करता है । और मालिक की पनहैया ( हंटर जैसा ) भी नितम्बों पर खाता है । आदि ।
मान लीजिये । किसी व्यक्ति के पास बन्दूक है । अब वो उसका क्या उपयोग करता है । किसी की जान भी ले सकता है । किसी की जान बचा भी सकता है । और ये दोनों न करके सिर्फ़ अपनी ही रक्षा भी कर सकता है । यही बात शारीरिक बल । धन बल आदि सभी प्रकार की ताकत पर भी लागू होती है । अर्थात जैसा वह करेगा । वैसा आगे वह भरेगा भी । काया से जो पातक होई । बिन भुगते छूटे नहीं कोई ।
Q 5 और आखिर में आपके अनुसार वास्तविक पाप और पुण्य के मायने क्या है ?
ANS - कर्मयोग और ग्यान योग ये दो ही हैं । कर्मयोग का सीधा सा सिद्धांत यही है कि जैसा व्यवहार आप अपने लिये दूसरों से चाहते हैं । वैसा ही पहले स्वयँ औरों के साथ करें । इसमें जो आप करते हैं । वापस उसी के फ़ल की प्राप्ति होती है । लेकिन इसमें मुक्ति कभी नहीं हो सकती । स्वयँ श्रीकृष्ण ने कहा है । अर्जुन मुक्ति ग्यान से है । कर्म से नहीं । ग्यान योग में पाप पुण्य दोनों जलकर भस्म हो जाते हैं । और जीव मुक्त हो जाता है । यह मुक्ति यानी मुक्त सिर्फ़ महामन्त्र से संभव है । बाकी मुक्ति झूठी ही हैं । भृम है ।
Q 1 और पता नहीं ये मैडम उस बाबा से इतनी प्रभावित क्यों है ?
ANS - हालांकि सारी ! मैं आपकी इन मैडम की बात नहीं कर रहा । बल्कि एक सामान्य बात कर रहा हूँ । दो शायरी बङी प्रसिद्ध हैं । ( छोङो बताना । उचित नहीं जान पङता । ) वो प्रभावित क्यों है ?? भाई ये बात तो वही ठीक से जानती होंगी ।
एक बार सागर का मंडूक ( मेंढक ) घूमते घूमते कूप मंडूक के पास आ गया । उसने कुँए में झाँककर जब दूसरे मंडूक को देखा । तो कम स्थान की तंगहाली देखकर उसे तरस आया । वह उसे सागर के बारे में बताने लगा । तब कूप मंडूक ने कुँए में एक छलांग लगाई । और कहा । क्या तुम्हारा सागर इतना बङा है ?
सागर मंडूक - नहीं इससे बहुत बङा ।
इस तरह कूप मंडूक ने कई बार पहले से बङी और अन्त में पूरे कुँए के बराबर छलांग लगाकर बारबार पूछा । क्या इतना बङा ?
सागर मंडूक ने सोचा । इसने कूप से बाहर जब देखा ही नहीं । तो यह कैसे समझ सकता है कि सागर कितना बङा है ? और बिना प्रत्यक्ष दिखाये इसको समझाना भी मुश्किल है ।
Q 2 जो बाबा किसी जिग्यासु के प्रश्न को टालने की कोशिश करे । क्या उसके पास जाना गंगा स्नान है ?
ANS - अब वह बेचारा ! जितना जानता होगा । उतना ही तो बतायेगा । अभी उसे स्वयँ ( गंगा ) स्नान की आवश्यकता है । पर वह भी क्या करे - राम तेरी गंगा मैली हो गयी । पापियों के पाप धोते धोते । और असली गंगा उसे ग्यात नहीं । हाउ सैड !
Q 3 और अगर नहीं तो वास्तविक गंगास्नान क्या है ?
ANS - वास्तविक गंगास्नान तो हरिद्वार । प्रयाग । कुम्भ । गंगासागर । गोमुख आदि कहीं भी बहती हुयी गंगा में करना भी नहीं हैं । और न ही शास्त्र इसके लिये असल रूप में कहते हैं । इनको तीर्थस्थल कहा गया है । जिसको करने से पुण्य अवश्य प्राप्त होता है । पर इसका वास्तविक फ़ल प्राप्त नहीं होता । विस्तार से बताने पर बात बहुत लम्बी हो जायेगी । अतः संक्षेप में समझने की कोशिश करें । गंगा के लिये विभिन्न नाम..हरिद्वार..मानसी गंगा..गोमुख आदि जैसे कई नाम लिये जाते हैं । इन सब नामों का अर्थ समझें ।
हरिद्वार - यानी हरि का द्वार - गूढ भाषा में - संकेत में - हरि स्वांस को कहा गया है । क्योंकि यही शरीर को हरा भरा रखती है । इसके निकल जाने पर शरीर सङने लगता है । उससे बदबू आने लगती है । और फ़िर उसको शरीर न कहकर " मिट्टी " कहा जाता है ।
शरीर में ये हरि का द्वार नाक का ऊपरी भाग जहाँ मस्तक से जुङता है । वहाँ है । जो सामान्य अवस्था में बन्द होता है । सच्चे गुरु अपनी शक्ति से इसको खोल देते हैं । तब ये मानसी गंगा - यानी मन में स्थित गंगा । गोमुख यानी गो माने इन्द्रियाँ और मुख माने मुँह..यानी अपनी समस्त इन्द्रियों का मुख उधर मोङकर । हरिद्वार की उस मानसी गंगा में स्नान करता है । ये तीन नाम मैंने संक्षेप में उदाहरण के लिये समझने हेतु दिये हैं । असली बात तो बहुत अधिक है ।
पर असली गंगा स्नान घर बैठे करना बहुत सरल है । नाक के दोनों छिद्रों से चलते स्वर इङा पिगंला ही गंगा जमुना हैं । माथे पर तिलक या बिन्दी लगाने वाले स्थान सरस्वती का है । यहीं पर तीनों मिलते हैं । अतः यही संगम है । संस्कृत में कुम्भ घङा और शरीर को कहते हैं । अतः अपने शरीर द्वारा इसका स्नान करना ही कुम्भ स्नान है । शरीर को घट यानी घङा की उपाधि दी गयी है । यानी ये किसी ( भव ) सागर में तैरते जल से भरे हुये उस घट के समान है । जो घङे का आवरण टूटते ( यहाँ इंसान की मृत्यु ) ही उसमें भरा जल सागर के जल में समा जायेगा । इसी के लिये कबीर साहब ने कहा है । फ़ूटा कुम्भ जल जलहि समाना । ये गति विरला जानी ।
अतः वास्तविक गंगा स्नान वही है । बाबा रामदेव जिसे अनुलोम विलोम कहते हैं । बस यदि आपको किसी सच्चे सतगुरु ( बनाबटी तो बहुत हैं ) से महामन्त्र की दीक्षा प्राप्त हो । तो इस स्नान का फ़ल लाख गुना हो जाता है ।
आप एक प्रयोग करके देखिये - एक दिन किसी संगम आदि जैसी प्रसिद्ध जगह पर स्नान करें । और देखें उस दिन आपको कैसा लगता है ? दूसरे दिन आप सुबह के समय बृह्ममुहूर्त में अनुलोम विलोम करें । आपको लाख गुना शान्ति महसूस होगी । बशर्ते आप सही से अनुलोम विलोम करना जानते हों । बाबा ( रामदेव ) बताते तो बहुत है । पर अभी भी अच्छे अच्छे तक नहीं जानते कि सही अनुलोम विलोम होता कैसे है ?
Q 4 तो इन जैसे लोगों की कैसी गति हुई होगी ?
ANS - पहले तो ये लोग हजारों साल का घोर कष्टदायी नरक भोगते हैं । और बाद में बारबार 84 लाख योनियाँ भोगते हुये जो इन्होंने पाप कर्म किये हैं । उसकी सजा रूप में उन्ही व्यक्तियों ( जिनको इन्होंने मारा या कष्ट दिये ) की गुलामी करते हैं । उदाहरण के लिये । धोबी का गधा - काम भी करता है । और मालिक की पनहैया ( हंटर जैसा ) भी नितम्बों पर खाता है । आदि ।
मान लीजिये । किसी व्यक्ति के पास बन्दूक है । अब वो उसका क्या उपयोग करता है । किसी की जान भी ले सकता है । किसी की जान बचा भी सकता है । और ये दोनों न करके सिर्फ़ अपनी ही रक्षा भी कर सकता है । यही बात शारीरिक बल । धन बल आदि सभी प्रकार की ताकत पर भी लागू होती है । अर्थात जैसा वह करेगा । वैसा आगे वह भरेगा भी । काया से जो पातक होई । बिन भुगते छूटे नहीं कोई ।
Q 5 और आखिर में आपके अनुसार वास्तविक पाप और पुण्य के मायने क्या है ?
ANS - कर्मयोग और ग्यान योग ये दो ही हैं । कर्मयोग का सीधा सा सिद्धांत यही है कि जैसा व्यवहार आप अपने लिये दूसरों से चाहते हैं । वैसा ही पहले स्वयँ औरों के साथ करें । इसमें जो आप करते हैं । वापस उसी के फ़ल की प्राप्ति होती है । लेकिन इसमें मुक्ति कभी नहीं हो सकती । स्वयँ श्रीकृष्ण ने कहा है । अर्जुन मुक्ति ग्यान से है । कर्म से नहीं । ग्यान योग में पाप पुण्य दोनों जलकर भस्म हो जाते हैं । और जीव मुक्त हो जाता है । यह मुक्ति यानी मुक्त सिर्फ़ महामन्त्र से संभव है । बाकी मुक्ति झूठी ही हैं । भृम है ।
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