बहुत बहुत धन्यवाद आपका । आपके कहे अनुसार मैं हिन्दी वाला बाराह पैड डाउनलोड कर लूँगा । लेकिन आज मुझे क्षमा करें । मैं जल्दबाजी में डाउनलोड कल कर नहीं पाया । आज शाम तक कर लूँगा । कल मैं जरा बिजी था । आपके जबाब पढकर बहुत अच्छा लगा । एक छोटा सा कष्ट और है । चार सवाल और आ गये मन में । निवेदन है । उनको भी क्लियर करें । ( श्री प्रसाद कुमार सेतिया । कानपुर । ई मेल से । )
Q 1st आत्मा जब जीव भाव को छोङ देती है । तब वो जीवात्मा से आत्मा हो जाती है ।
Q तो क्या वो दोबारा फ़िर से जन्म ले सकती है ? ( अपनी इच्छा से ) क्या ये सम्भव है ??
ANS - जी हाँ । जिस तरह मुक्त आदमी कुछ भी करने को स्वतन्त्र होता है । उसी तरह मुक्त आत्मा भी इच्छानुसार सब कर सकती है । पर उस आनन्द में पहुँचकर फ़िर कोई ऐसी बातें नहीं सोचता । वो बात ही कुछ अलग है । वो मजा ही कुछ अलग है । दुबारा जन्म तो बहुत दूर की बात है । इसी जन्म में बहुत कुछ इच्छानुसार होता है । जैसे दिव्य लोकों में जाना । और कई तरह के उच्च यौगिक फ़ल दीक्षा के दो तीन साल में ही अनुभव होने लगते हैं ।
Q 2nd Q ये मोक्ष अवस्था कैसी होती है ? जिसमें आपने लिखा था कि आत्मा परमात्मा हो जाती है ?
ANS - आत्मा जब पूरी तरह निर्मल हो जाती है । वैसे ही उसको अपना भूला हुआ घर सतलोक और अपनी पहचान हँस का ग्यान हो जाता है । फ़िर ये परमात्मा से मिलने चल देती है । बीच में कुछ स्थितियाँ पार करने के बाद ये परमात्मा के पास पहुँच जाती है । इसके बारे में खुलकर बताना नियम विरुद्ध है । जब तक आप हमारे मन्डल के न हों । मोक्ष बङी आनन्ददायक अवस्था है । जिसको परमानन्द भी कहते हैं । इसका शब्दों में वर्णन नहीं हो सकता । जैसा कि कई जगह मैंने लिखा है । मोक्ष यानी मुक्त यानी स्वतन्त्र यानी अपनी मर्जी का मालिक । इससे बङकर और क्या बात हो सकती है । जबकि जीव परतन्त्र है । और माया तथा कालपुरुष का कैदी है । सतगुरु परमात्मा के नाम से उसको मुक्त कर देते हैं ।
Q क्या मोक्ष हो जाने के बाद भी आत्मा वापिस इस मृत्युलोक में आ सकती है ??
ANS - केवल इसी में नहीं । इस जैसी करोङों सृष्टि में कहीं भी आ जा सकती है । और ये मृत्यु के बाद नहीं इसी जीवन में और इसी शरीर से संभव है । केवल समर्पण भाव से ग्यान को सही गृहण करना आवश्यक है ।
Q या किसी और लोक में भी जा सकती है ? ( अपनी इच्छा से )
ANS - अखिल सृष्टि में कहीं भी आ जा सकती है । यही मुक्त होना है । यही मोक्ष है । एक महत्वपूर्ण बात और । जा भी अपनी इच्छा से सकती है । और जब इच्छा हो आ भी सकती है । वो भी जन्म मरण के चक्कर में फ़ँसे बिना ।
Q क्योंकि सबसे पहले जन्म मरण के चक्कर में फ़ँसने से पहले भी तो आत्मा अपनी अनादि अवस्था में ही थी । बेशक उसको मोक्ष जैसी अवस्था बोला जाय । तो गलत नहीं होगा ।
ANS - आपकी बात एकदम ठीक है । पहले यह अनादि अवस्था में बहुत शक्तिशाली और मुक्त ही थी । विषय वासना की चाह और मायामोह रूपी दलदल ने इसे कालमाया का कैदी बना दिया । और इसकी दुर्दशा हो गयी ।
Q 3rd Q आपके ब्लाग में जिस साधना की आप सबसे ज्यादा तारीफ़ करते हैं । जिसको आप सुरति शब्द साधना या महामन्त्र साधना या ढाई अक्षर के नाम की साधना या हँसदीक्षा जैसे अलग अलग नामों से पुकारते हैं । क्या ये एक ही साधना है ??
ANS - जी हाँ ये सब एक ही है । इसको सन्तमत का ग्यान कहते हैं । और अखिल सृष्टि में परमात्म ग्यान की इसके अलावा कोई साधना नहीं है । " साधना " शब्द से किन्ही भारी भरकम तामझाम वाली बात मत सोच लेना । इसमें सिर्फ़ गुरु द्वारा दिये नाम का सुमरन करना होता है । उसके लिये स्नान करो । या मत करो । अगरबत्ती जलाओ । या मत जलाओ । कोई अन्तर नहीं । सिर्फ़ किसी भी हालत में नाम का अधिक से अधिक अजपा जाप करो । नाम जपत कोढी भला । कंचन भली न देह ।.. नाम लिया तिन सब लिया । चार वेद का भेद । बिना नाम नरके पङा । पढ पढ चारो वेद । यही साधना मीराबाई । रैदास । कबीर । गुरुनानक । दादू । पलटू । ईसामसीह । मुहम्मद साहब । वाल्मीकि । नारद । गौतम बुद्ध । ध्रुव । प्रह्लाद । राम । कृष्ण । शंकर आदि ने की थी ।
Q क्या इससे बङी साधना और कोई नहीं ?
ANS - जिस तरह परमात्मा से बङी कोई सत्ता नहीं है । उसी तरह इस ग्यान । मन्त्र । साधना या दीक्षा से बङी कोई अन्य साधना नहीं है । इसी के लिये तुलसीदास ने कहा है । ..मन्त्र परम लघु जासु बस । विधि हरि हर सुर सर्व । मदमत्त गजराज को अंकुश कर ले खर्व ।..अर्थात - जिस प्रकार मतवाले हाथी को छोटा सा अंकुश वश में रखता है । उसी प्रकार बृह्मा विष्णु शंकर और सभी देवता । महाशक्तियाँ इस नाम के वश में रहती हैं । ये नाम हरेक शरीर में स्वतः हो रहा है । इसको वाणी से जपा नहीं जाता । बाकी सभी साधनायें परमात्मा से नीचे के स्तर के महा देवताओं । देवताओं । ऋषि । मुनि । महर्षि आदि के द्वारा निर्मित की गयीं है । ये सबसे सरल और सहज नाम साधना स्वयँ परमात्मा की दी हुयी है । और ये कोई आज की नयी खोज नहीं है । बल्कि अनादि सत्ता के द्वारा आदिकाल से चली आ रही है । हाँ बीच बीच में कुछ समय के लिये ये लुप्त हो जाती है । ये सिर्फ़ सन्तमत मार्ग वाले सन्तों द्वारा ही मिलती है । इसकी पहचान यह है कि सच्चे सन्तों से मिलते ही ये तुरन्त सहज तरीके से अपना कार्य शुरू कर देती है । इसी के लिये कहा गया है । कोटि जन्म का पन्थ था । पल में दिया मिलाय ।
Q क्या इससे आत्मा मुक्त हो जायेगी ??
ANS - मुक्त होना । इस ग्यान में बहुत छोटी चीज माना जाता है । करम धर्म दोऊ बटें जेबरी । मुक्ति भरे जहाँ पानी । ये गति विरला जानी । मुक्त तो इसमें बहुत पहले ही हो जाते हैं । वास्तव में सतगुरु से दीक्षा मिलते ही जङ चेतन की गाँठ खुल जाती है । और जीव उसी समय मुक्त हो जाता है । पर मुक्तता की उस स्थिति को स्थायी रूप से प्राप्त करने के लिये उसे नियमामुसार नाम सुमरिन करना होता है । किसी कारणवश यदि जीव एक जन्म में इस पढाई को पूरा नहीं कर पाता । तो इस नाम के प्रताप से उसे दूसरा जन्म भी मनुष्य ( आदमी है तो आदमी । औरत है तो औरत । ) का ही मिलता है । ग्यान बीज बिनसे नही । होंवे जन्म अनन्त । ऊँच नीच घर ऊपजे । होय सन्त का सन्त । अर्थात..एक बार ये ग्यान सतगुरु से प्राप्त हो जाने के बाद नष्ट नहीं होता ।
Q 4rth जिन बाबाजी को आप अपना गुरू बताते हैं ।
Q क्या वो सतगुरू और परमहँस कैटेगरी के हैं ?
ANS - क्या अजीब बात पूछी है । सेतिया जी आपने । मैं आपको लास्ट तक का ग्यान बता रहा हूँ । ये सब मुझे इन्हीं महाराज जी " प्रातः स्मरणीय परमपूज्य सतगुरु श्री शिवानन्द जी महाराज " से ही प्राप्त हुआ है । आज से लगभग 8 साल पहले मैं द्वैत यानी तन्त्र मन्त्र की साधनायें किया करता था । जिसमें एक साधना में मुझसे गलत क्रिया हो गयी । और मैं भारी परेशानी में आ गया । बहुत महात्माओं को दिखाया । पर कोई सही हल न बता सका । तब एक परिचित के माध्यम से इन्ही महाराज जी का पता चला । जो उस समय तक सन्त के रूप में गुप्त थे । और अधिकांश समय बीहङ जंगली क्षेत्र में रहते थे । महाराज जी के द्वारा मेरे सिर पर हाथ रखते ही सब विघ्न शान्त हो गये । बाद में उन्होंने बताया कि सच्ची । सरल । और सहज । जिसे बच्चे भी आराम से कर सकें । जिसमें कोई डर की बात नहीं । आनन्द ही आनन्द है । उस परमपिता परमात्मा की भक्ति यानी नाम साधना करो । जिससे तुम्हें हर चीज प्राप्त होगी । और साथ ही मुक्त भी होओगे । वे सतगुरु हैं ? या क्या हैं ? ये उनके दर्शनमात्र से ही आपको ग्यात हो जायेगा । उनका फ़ोन न. ब्लाग पर है । आप मेरा वास्ता देकर बात करके देख लो । बस भावना अच्छी और श्रद्धायुक्त होनी चाहिये । बात करने से ही आनन्द और शान्ति महसूस करोगे । इससे ज्याद क्या कहूँ ।
Q अगर हैं । तो क्या मैं भी उनको अपना गुरु बना सकता हूँ ??
ANS - अगर परमात्मा की कृपा होगी कि आपको ये दुर्लभ ग्यान मिले । तो आप अवश्य उनसे दीक्षा ले सकते हैं । वैसे आप श्री महाराज जी से बात करके एक बार उनके पास घूम आयें । कानपुर से इटावा की दूरी भी अधिक नहीं है । उनके पास जाने से पहले फ़ोन से ये अवश्य पता कर लेना कि वो कब और कहाँ मिलेंगे ? वैसे ये ग्यान लेने की । या श्री महाराज जी से दीक्षा लेने की आपकी पवित्र भावना होगी । तो आपको निश्चित दीक्षा मिलेगी सेतिया जी । इसमें कोई सन्देह की बात नहीं है ।
( आशा है कि आप इन 4 सवालों का जबाब आज शाम तक दे देंगे । मैं हिन्दी बाराह पैड साफ़्टवेयर भी शाम तक डाउनलोड कर लूँगा । )
** धन्यवाद सेतिया जी । मैं यहाँ यथासंभव आपकी शंकाओं के समाधान के लिये ही हूँ । इसलिये जो भी प्रश्न आपके मन में उठें । उन्हें निसंकोच पूछें । मेरा सभी पाठकों से निवेदन है कि परमात्मा के इस दुर्लभ ग्यान की जानकारी अधिक से अधिक लोगों को देकर जीव को चेतायें । इससे बङा पुण्य और परमार्थ कोई दूसरा नहीं है । आप सबका धन्यवाद । जय गुरुदेव की ।
Q 1st आत्मा जब जीव भाव को छोङ देती है । तब वो जीवात्मा से आत्मा हो जाती है ।
Q तो क्या वो दोबारा फ़िर से जन्म ले सकती है ? ( अपनी इच्छा से ) क्या ये सम्भव है ??
ANS - जी हाँ । जिस तरह मुक्त आदमी कुछ भी करने को स्वतन्त्र होता है । उसी तरह मुक्त आत्मा भी इच्छानुसार सब कर सकती है । पर उस आनन्द में पहुँचकर फ़िर कोई ऐसी बातें नहीं सोचता । वो बात ही कुछ अलग है । वो मजा ही कुछ अलग है । दुबारा जन्म तो बहुत दूर की बात है । इसी जन्म में बहुत कुछ इच्छानुसार होता है । जैसे दिव्य लोकों में जाना । और कई तरह के उच्च यौगिक फ़ल दीक्षा के दो तीन साल में ही अनुभव होने लगते हैं ।
Q 2nd Q ये मोक्ष अवस्था कैसी होती है ? जिसमें आपने लिखा था कि आत्मा परमात्मा हो जाती है ?
ANS - आत्मा जब पूरी तरह निर्मल हो जाती है । वैसे ही उसको अपना भूला हुआ घर सतलोक और अपनी पहचान हँस का ग्यान हो जाता है । फ़िर ये परमात्मा से मिलने चल देती है । बीच में कुछ स्थितियाँ पार करने के बाद ये परमात्मा के पास पहुँच जाती है । इसके बारे में खुलकर बताना नियम विरुद्ध है । जब तक आप हमारे मन्डल के न हों । मोक्ष बङी आनन्ददायक अवस्था है । जिसको परमानन्द भी कहते हैं । इसका शब्दों में वर्णन नहीं हो सकता । जैसा कि कई जगह मैंने लिखा है । मोक्ष यानी मुक्त यानी स्वतन्त्र यानी अपनी मर्जी का मालिक । इससे बङकर और क्या बात हो सकती है । जबकि जीव परतन्त्र है । और माया तथा कालपुरुष का कैदी है । सतगुरु परमात्मा के नाम से उसको मुक्त कर देते हैं ।
Q क्या मोक्ष हो जाने के बाद भी आत्मा वापिस इस मृत्युलोक में आ सकती है ??
ANS - केवल इसी में नहीं । इस जैसी करोङों सृष्टि में कहीं भी आ जा सकती है । और ये मृत्यु के बाद नहीं इसी जीवन में और इसी शरीर से संभव है । केवल समर्पण भाव से ग्यान को सही गृहण करना आवश्यक है ।
Q या किसी और लोक में भी जा सकती है ? ( अपनी इच्छा से )
ANS - अखिल सृष्टि में कहीं भी आ जा सकती है । यही मुक्त होना है । यही मोक्ष है । एक महत्वपूर्ण बात और । जा भी अपनी इच्छा से सकती है । और जब इच्छा हो आ भी सकती है । वो भी जन्म मरण के चक्कर में फ़ँसे बिना ।
Q क्योंकि सबसे पहले जन्म मरण के चक्कर में फ़ँसने से पहले भी तो आत्मा अपनी अनादि अवस्था में ही थी । बेशक उसको मोक्ष जैसी अवस्था बोला जाय । तो गलत नहीं होगा ।
ANS - आपकी बात एकदम ठीक है । पहले यह अनादि अवस्था में बहुत शक्तिशाली और मुक्त ही थी । विषय वासना की चाह और मायामोह रूपी दलदल ने इसे कालमाया का कैदी बना दिया । और इसकी दुर्दशा हो गयी ।
Q 3rd Q आपके ब्लाग में जिस साधना की आप सबसे ज्यादा तारीफ़ करते हैं । जिसको आप सुरति शब्द साधना या महामन्त्र साधना या ढाई अक्षर के नाम की साधना या हँसदीक्षा जैसे अलग अलग नामों से पुकारते हैं । क्या ये एक ही साधना है ??
ANS - जी हाँ ये सब एक ही है । इसको सन्तमत का ग्यान कहते हैं । और अखिल सृष्टि में परमात्म ग्यान की इसके अलावा कोई साधना नहीं है । " साधना " शब्द से किन्ही भारी भरकम तामझाम वाली बात मत सोच लेना । इसमें सिर्फ़ गुरु द्वारा दिये नाम का सुमरन करना होता है । उसके लिये स्नान करो । या मत करो । अगरबत्ती जलाओ । या मत जलाओ । कोई अन्तर नहीं । सिर्फ़ किसी भी हालत में नाम का अधिक से अधिक अजपा जाप करो । नाम जपत कोढी भला । कंचन भली न देह ।.. नाम लिया तिन सब लिया । चार वेद का भेद । बिना नाम नरके पङा । पढ पढ चारो वेद । यही साधना मीराबाई । रैदास । कबीर । गुरुनानक । दादू । पलटू । ईसामसीह । मुहम्मद साहब । वाल्मीकि । नारद । गौतम बुद्ध । ध्रुव । प्रह्लाद । राम । कृष्ण । शंकर आदि ने की थी ।
Q क्या इससे बङी साधना और कोई नहीं ?
ANS - जिस तरह परमात्मा से बङी कोई सत्ता नहीं है । उसी तरह इस ग्यान । मन्त्र । साधना या दीक्षा से बङी कोई अन्य साधना नहीं है । इसी के लिये तुलसीदास ने कहा है । ..मन्त्र परम लघु जासु बस । विधि हरि हर सुर सर्व । मदमत्त गजराज को अंकुश कर ले खर्व ।..अर्थात - जिस प्रकार मतवाले हाथी को छोटा सा अंकुश वश में रखता है । उसी प्रकार बृह्मा विष्णु शंकर और सभी देवता । महाशक्तियाँ इस नाम के वश में रहती हैं । ये नाम हरेक शरीर में स्वतः हो रहा है । इसको वाणी से जपा नहीं जाता । बाकी सभी साधनायें परमात्मा से नीचे के स्तर के महा देवताओं । देवताओं । ऋषि । मुनि । महर्षि आदि के द्वारा निर्मित की गयीं है । ये सबसे सरल और सहज नाम साधना स्वयँ परमात्मा की दी हुयी है । और ये कोई आज की नयी खोज नहीं है । बल्कि अनादि सत्ता के द्वारा आदिकाल से चली आ रही है । हाँ बीच बीच में कुछ समय के लिये ये लुप्त हो जाती है । ये सिर्फ़ सन्तमत मार्ग वाले सन्तों द्वारा ही मिलती है । इसकी पहचान यह है कि सच्चे सन्तों से मिलते ही ये तुरन्त सहज तरीके से अपना कार्य शुरू कर देती है । इसी के लिये कहा गया है । कोटि जन्म का पन्थ था । पल में दिया मिलाय ।
Q क्या इससे आत्मा मुक्त हो जायेगी ??
ANS - मुक्त होना । इस ग्यान में बहुत छोटी चीज माना जाता है । करम धर्म दोऊ बटें जेबरी । मुक्ति भरे जहाँ पानी । ये गति विरला जानी । मुक्त तो इसमें बहुत पहले ही हो जाते हैं । वास्तव में सतगुरु से दीक्षा मिलते ही जङ चेतन की गाँठ खुल जाती है । और जीव उसी समय मुक्त हो जाता है । पर मुक्तता की उस स्थिति को स्थायी रूप से प्राप्त करने के लिये उसे नियमामुसार नाम सुमरिन करना होता है । किसी कारणवश यदि जीव एक जन्म में इस पढाई को पूरा नहीं कर पाता । तो इस नाम के प्रताप से उसे दूसरा जन्म भी मनुष्य ( आदमी है तो आदमी । औरत है तो औरत । ) का ही मिलता है । ग्यान बीज बिनसे नही । होंवे जन्म अनन्त । ऊँच नीच घर ऊपजे । होय सन्त का सन्त । अर्थात..एक बार ये ग्यान सतगुरु से प्राप्त हो जाने के बाद नष्ट नहीं होता ।
Q 4rth जिन बाबाजी को आप अपना गुरू बताते हैं ।
Q क्या वो सतगुरू और परमहँस कैटेगरी के हैं ?
ANS - क्या अजीब बात पूछी है । सेतिया जी आपने । मैं आपको लास्ट तक का ग्यान बता रहा हूँ । ये सब मुझे इन्हीं महाराज जी " प्रातः स्मरणीय परमपूज्य सतगुरु श्री शिवानन्द जी महाराज " से ही प्राप्त हुआ है । आज से लगभग 8 साल पहले मैं द्वैत यानी तन्त्र मन्त्र की साधनायें किया करता था । जिसमें एक साधना में मुझसे गलत क्रिया हो गयी । और मैं भारी परेशानी में आ गया । बहुत महात्माओं को दिखाया । पर कोई सही हल न बता सका । तब एक परिचित के माध्यम से इन्ही महाराज जी का पता चला । जो उस समय तक सन्त के रूप में गुप्त थे । और अधिकांश समय बीहङ जंगली क्षेत्र में रहते थे । महाराज जी के द्वारा मेरे सिर पर हाथ रखते ही सब विघ्न शान्त हो गये । बाद में उन्होंने बताया कि सच्ची । सरल । और सहज । जिसे बच्चे भी आराम से कर सकें । जिसमें कोई डर की बात नहीं । आनन्द ही आनन्द है । उस परमपिता परमात्मा की भक्ति यानी नाम साधना करो । जिससे तुम्हें हर चीज प्राप्त होगी । और साथ ही मुक्त भी होओगे । वे सतगुरु हैं ? या क्या हैं ? ये उनके दर्शनमात्र से ही आपको ग्यात हो जायेगा । उनका फ़ोन न. ब्लाग पर है । आप मेरा वास्ता देकर बात करके देख लो । बस भावना अच्छी और श्रद्धायुक्त होनी चाहिये । बात करने से ही आनन्द और शान्ति महसूस करोगे । इससे ज्याद क्या कहूँ ।
Q अगर हैं । तो क्या मैं भी उनको अपना गुरु बना सकता हूँ ??
ANS - अगर परमात्मा की कृपा होगी कि आपको ये दुर्लभ ग्यान मिले । तो आप अवश्य उनसे दीक्षा ले सकते हैं । वैसे आप श्री महाराज जी से बात करके एक बार उनके पास घूम आयें । कानपुर से इटावा की दूरी भी अधिक नहीं है । उनके पास जाने से पहले फ़ोन से ये अवश्य पता कर लेना कि वो कब और कहाँ मिलेंगे ? वैसे ये ग्यान लेने की । या श्री महाराज जी से दीक्षा लेने की आपकी पवित्र भावना होगी । तो आपको निश्चित दीक्षा मिलेगी सेतिया जी । इसमें कोई सन्देह की बात नहीं है ।
( आशा है कि आप इन 4 सवालों का जबाब आज शाम तक दे देंगे । मैं हिन्दी बाराह पैड साफ़्टवेयर भी शाम तक डाउनलोड कर लूँगा । )
** धन्यवाद सेतिया जी । मैं यहाँ यथासंभव आपकी शंकाओं के समाधान के लिये ही हूँ । इसलिये जो भी प्रश्न आपके मन में उठें । उन्हें निसंकोच पूछें । मेरा सभी पाठकों से निवेदन है कि परमात्मा के इस दुर्लभ ग्यान की जानकारी अधिक से अधिक लोगों को देकर जीव को चेतायें । इससे बङा पुण्य और परमार्थ कोई दूसरा नहीं है । आप सबका धन्यवाद । जय गुरुदेव की ।
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