राजीव जी ! मैं नवरुप कौर बोल रही हूँ । मैं अभी उठी हूँ । सबकी चाय बना दी है । इस समय दीदी के घर पर मैं ही सारा काम सम्भाल रही हूँ । कल पटियाला पहुँचने के बाद मेरे पति की भी जगमोहन जी से फोन पर बात हो गयी थी ।
जगमोहन जी आज दोपहर 12 बजे तक दिल्ली पहुँच जायेंगे । मेरे पति । मेरे ससुर जी । मेरे पापा और हरनीत के पापा ये सब जा रहे हैं । अभी सुबह 6 बजे ये लोग निकल जायेंगे । दिल्ली की तरफ़ । तकरीबन पटियाला से दिल्ली 6 घण्टों का रास्ता है । अब सुबह भीड कम होने के कारण शायद 5 घण्टे में भी पहुँच जायेंगे ।
फ़िर वहाँ पहुँच कर हमें मेरे पति या कोई अन्य यहाँ घर पर फ़ोन कर देंगे । मुझे लगता है कि आज शाम 7 बजे तक बाडी ले ही आयेंगे । यानि अन्तिम संस्कार कल ही होगा । कल रात 8 बजे तक मेरे अमृतसर वाले मौसा और मौसी जी भी पहुँच गये थे । नवदीप भी अपने पति और बच्चों के साथ पहुँच गयी थी । मनमीत तो लोकल ही रहती है । वो अपने परिवार के साथ आयी थी कल । फ़िर वापिस लौट गयी । आज दिन में फ़िर आयेगी ।
जोबन बीर भी अपने पति के साथ आ गयी थी कल । हरनीत भी कल पहुँच गयी थी । साथ में बनदीप भी थी । हरनीत के मायके तो पटियाला में ही है । उसका भाई हैप्पी और मम्मी पापा भी आ गये थे । जितने लोग जो थोडा दूर से आये थे । जो जो यहाँ दीदी के घर रुक सका रुका । बाकी लोगों के रहने की व्यवस्था हमने अपने कुछ पडोसियों या अन्य रिश्तेदारों ( जो लोकल हैं ) उनके यहाँ कर दी है ।
मैंने अपनी समझ मुताबिक । दीदी से लोगों के फोन डायरी से लेकर फोन कर दिये हैं । कुछ तो कल आ गये । कुछ शायद आज आ जायेंगे । जो लोकल पटियाला में ही जान पहचान वाले हैं । वो तो आते जाते रहेंगे । आज मेरा हाथ बँटाने के लिये जोबन बीर । हरनीत । बनदीप । मनमीत । नवदीप । मौसी जी आदि मौजूद हैं ।
लेकिन मैं अभी कुछ दिन लगातार यहाँ दीदी के पास ही रहूँगी । क्यूँ ये सब लोग लगातार इतने दिन भोग तक नहीं रुक सकते । क्यूँ कि भोग तो अन्तिम संस्कार होने के कुछ दिन बाद डाला जाता है । ये लोग अन्तिम संस्कार के अगले दिन । या और 1 दिन बाद अपने अपने घर चले जायेंगे ।
क्यूँ कि सबकी अपनी अपनी मजबूरी है । कोई नौकरी करता है । कोई पढता है । कोई कुछ । तो कोई कुछ । लेकिन फ़िर ये लोग भोग से 1 या 2 दिन पहले फ़िर आ जायेंगे । वैसे बीच में और लोग जो अभी तक नहीं पहुँच पाये । जो दूर हैं । जैसे मुम्बई से तेज कौर । ये सब थोडा लेट ही पहुँच पायेंगे ।
मेरे पति भी नौकरी के कारण अन्तिम संस्कार करवा कर चले जायेंगे । बीच में आयेंगे । फ़िर उसके बाद भोग से पहले आयेंगे । लेकिन मैं भोग तक दीदी के पास ही रहूँगी । और बाकी के काम संभालूँगी ।
कल मीनू दीदी का भी फ़ोन आया था । वो किसी कारण वश वहाँ से आ तो नहीं सकते । लेकिन फ़ोन पर बात हो गयी थी । हमने सबने मिलजुल कर सब काम बाँट लिया है । मैं दीदी को भाग दौड नहीं करने देना चाहती ।
आपको तो पता ही होगा कि सिख धर्म में अन्तिम संस्कार के बाद भोग और पाठ कोई तो 7 दिन बाद करवाता है । या कोई आठवें दिन । या कोई 10 दिन बाद । अब देखते हैं । यहाँ क्या फ़ैसला होता है ।आपको यहाँ का हाल बताना मेरा फ़र्ज था । मैंने आपको बता दिया । आगे जो भी फ़ैसला होगा । मैं जरुरी बात आपको फ़िर से बता दूँगी ।
मैंने कल रात को सोने से पहले ब्लाग चेक किया था । देखकर मेरी आँखे नम हो गयी । ब्लाग के अन्य पाठकों ने सहानुभूति दिखाई । आप ये मेरा मैसेज आज जरुर ब्लाग में पोस्ट कर दीजिये । इससे अन्य पाठकों को भी अब यहाँ के हालात का पता चल जायेगा । शायद सभी प्रिय आत्मीय जन दुखी होंगे ।
************
धन्यवाद नवरूप जी ! मैं कुछ कहना चाहता हूँ । तो मेरा दिल भर आता है । आप समझदार हो । रूप जी की देखभाल में उनके साथ हो । यह सोचकर शान्ति सी मिलती है । दुख की इस घङी में उन्हें धैर्य बँधाना हम सबका फ़र्ज है ।
sach keh raha hun rajeev ji ye khabar padh kar bahut dhakka laga mujhe, roop ji ki age abhi bahut kam hai aur is stage par zindagi ne aisa rasta badal liya ke...ab kya kahu time ka koi bharosa nahi kab kya ho jaye.
roop ji hum sab is dukh ki ghadi me apke sath hai
apka chota bacha hai use sambhiliye aur apne aap ko bhi,dekhiye apke husband ke chehre par koi dukh hai..? Wo abhi bhi muskura rahe hai ab apko bhi chahiye ke unko khushi-khushi vida kare aakhir jana to hum sab ko bhi hai isiliye himmat se kaam lijiye aur isme bhi us saheb/ malik ki marji samjhiye parmatma apko himmat de.
कुलदीप सिंह । जीरकपुर । चण्डीगढ
क्षिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित अति अधम शरीरा ।
प्रगट सो तनु तब आगे सोवा । जीव नित्य तब कहि लगि रोवा ।
बालि की मृत्यु के पश्चात दहाङे मारकर रोती हुयी बालि पत्नी तारा से भगवान श्रीराम बोले - हे तारा ! प्रथ्वी । जल । अग्नि । आकाश और वायु इन पाँच तत्वों से बना यह अधम शरीर तो नाशवान है । और यह तुम्हारे सामने सोया हुआ है । लेकिन इसमें रहने वाला जीव अविनाशी और नित्य है । फ़िर तुम किसलिये विलाप करती हो ।
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम । 2-12
न तुम्हारा । न मेरा । और न ही । यह राजा । जो दिख रहे हैं । इनका कभी । नाश होता है । और यह भी नहीं । कि हम भविष्य में । नहीं रहेंगे ।
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति । 2-13
आत्मा । जैसे देह के बाल । युवा । या बूढे होने पर भी । वैसी ही रहती है । उसी प्रकार । देह का अन्त होने पर भी । वैसी ही रहती है । बुद्धिमान लोग । इस पर व्यथित नहीं होते ।
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः । अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत । 2-18
यह देह तो । मरणशील है । लेकिन । शरीर में बैठने वाला । अन्तहीन । कहा जाता है । इस आत्मा का । न तो अन्त है । और न ही इसका । कोई मेल है ।
न जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे । 2-20
आत्मा न कभी । पैदा होती है । और न कभी । मरती है । यह तो अजन्मी । अन्तहीन । शाश्वत । और अमर है । सदा से है । कब से है । शरीर के मरने पर भी । इसका अन्त नहीं होता ।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही । 2-22
जैसे कोई व्यक्ति । पुराने कपड़े उतार कर । नये कपड़े । पहनता है । वैसे ही । शरीर धारण की हुई । आत्मा । पुराना शरीर त्याग कर । नया शरीर । प्राप्त करती है ।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि । 2-27
क्योंकि । जिसने । जन्म लिया है । उसका । मरना निश्चित है । मरने वाले का । जन्म भी । तय है । जिसके बारे में । कुछ किया नहीं । जा सकता । उसके बारे में । तुम्हें । शोक नहीं । करना चाहिये ।
जगमोहन जी आज दोपहर 12 बजे तक दिल्ली पहुँच जायेंगे । मेरे पति । मेरे ससुर जी । मेरे पापा और हरनीत के पापा ये सब जा रहे हैं । अभी सुबह 6 बजे ये लोग निकल जायेंगे । दिल्ली की तरफ़ । तकरीबन पटियाला से दिल्ली 6 घण्टों का रास्ता है । अब सुबह भीड कम होने के कारण शायद 5 घण्टे में भी पहुँच जायेंगे ।
फ़िर वहाँ पहुँच कर हमें मेरे पति या कोई अन्य यहाँ घर पर फ़ोन कर देंगे । मुझे लगता है कि आज शाम 7 बजे तक बाडी ले ही आयेंगे । यानि अन्तिम संस्कार कल ही होगा । कल रात 8 बजे तक मेरे अमृतसर वाले मौसा और मौसी जी भी पहुँच गये थे । नवदीप भी अपने पति और बच्चों के साथ पहुँच गयी थी । मनमीत तो लोकल ही रहती है । वो अपने परिवार के साथ आयी थी कल । फ़िर वापिस लौट गयी । आज दिन में फ़िर आयेगी ।
जोबन बीर भी अपने पति के साथ आ गयी थी कल । हरनीत भी कल पहुँच गयी थी । साथ में बनदीप भी थी । हरनीत के मायके तो पटियाला में ही है । उसका भाई हैप्पी और मम्मी पापा भी आ गये थे । जितने लोग जो थोडा दूर से आये थे । जो जो यहाँ दीदी के घर रुक सका रुका । बाकी लोगों के रहने की व्यवस्था हमने अपने कुछ पडोसियों या अन्य रिश्तेदारों ( जो लोकल हैं ) उनके यहाँ कर दी है ।
मैंने अपनी समझ मुताबिक । दीदी से लोगों के फोन डायरी से लेकर फोन कर दिये हैं । कुछ तो कल आ गये । कुछ शायद आज आ जायेंगे । जो लोकल पटियाला में ही जान पहचान वाले हैं । वो तो आते जाते रहेंगे । आज मेरा हाथ बँटाने के लिये जोबन बीर । हरनीत । बनदीप । मनमीत । नवदीप । मौसी जी आदि मौजूद हैं ।
लेकिन मैं अभी कुछ दिन लगातार यहाँ दीदी के पास ही रहूँगी । क्यूँ ये सब लोग लगातार इतने दिन भोग तक नहीं रुक सकते । क्यूँ कि भोग तो अन्तिम संस्कार होने के कुछ दिन बाद डाला जाता है । ये लोग अन्तिम संस्कार के अगले दिन । या और 1 दिन बाद अपने अपने घर चले जायेंगे ।
क्यूँ कि सबकी अपनी अपनी मजबूरी है । कोई नौकरी करता है । कोई पढता है । कोई कुछ । तो कोई कुछ । लेकिन फ़िर ये लोग भोग से 1 या 2 दिन पहले फ़िर आ जायेंगे । वैसे बीच में और लोग जो अभी तक नहीं पहुँच पाये । जो दूर हैं । जैसे मुम्बई से तेज कौर । ये सब थोडा लेट ही पहुँच पायेंगे ।
मेरे पति भी नौकरी के कारण अन्तिम संस्कार करवा कर चले जायेंगे । बीच में आयेंगे । फ़िर उसके बाद भोग से पहले आयेंगे । लेकिन मैं भोग तक दीदी के पास ही रहूँगी । और बाकी के काम संभालूँगी ।
कल मीनू दीदी का भी फ़ोन आया था । वो किसी कारण वश वहाँ से आ तो नहीं सकते । लेकिन फ़ोन पर बात हो गयी थी । हमने सबने मिलजुल कर सब काम बाँट लिया है । मैं दीदी को भाग दौड नहीं करने देना चाहती ।
आपको तो पता ही होगा कि सिख धर्म में अन्तिम संस्कार के बाद भोग और पाठ कोई तो 7 दिन बाद करवाता है । या कोई आठवें दिन । या कोई 10 दिन बाद । अब देखते हैं । यहाँ क्या फ़ैसला होता है ।आपको यहाँ का हाल बताना मेरा फ़र्ज था । मैंने आपको बता दिया । आगे जो भी फ़ैसला होगा । मैं जरुरी बात आपको फ़िर से बता दूँगी ।
मैंने कल रात को सोने से पहले ब्लाग चेक किया था । देखकर मेरी आँखे नम हो गयी । ब्लाग के अन्य पाठकों ने सहानुभूति दिखाई । आप ये मेरा मैसेज आज जरुर ब्लाग में पोस्ट कर दीजिये । इससे अन्य पाठकों को भी अब यहाँ के हालात का पता चल जायेगा । शायद सभी प्रिय आत्मीय जन दुखी होंगे ।
************
धन्यवाद नवरूप जी ! मैं कुछ कहना चाहता हूँ । तो मेरा दिल भर आता है । आप समझदार हो । रूप जी की देखभाल में उनके साथ हो । यह सोचकर शान्ति सी मिलती है । दुख की इस घङी में उन्हें धैर्य बँधाना हम सबका फ़र्ज है ।
sach keh raha hun rajeev ji ye khabar padh kar bahut dhakka laga mujhe, roop ji ki age abhi bahut kam hai aur is stage par zindagi ne aisa rasta badal liya ke...ab kya kahu time ka koi bharosa nahi kab kya ho jaye.
roop ji hum sab is dukh ki ghadi me apke sath hai
apka chota bacha hai use sambhiliye aur apne aap ko bhi,dekhiye apke husband ke chehre par koi dukh hai..? Wo abhi bhi muskura rahe hai ab apko bhi chahiye ke unko khushi-khushi vida kare aakhir jana to hum sab ko bhi hai isiliye himmat se kaam lijiye aur isme bhi us saheb/ malik ki marji samjhiye parmatma apko himmat de.
कुलदीप सिंह । जीरकपुर । चण्डीगढ
क्षिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित अति अधम शरीरा ।
प्रगट सो तनु तब आगे सोवा । जीव नित्य तब कहि लगि रोवा ।
बालि की मृत्यु के पश्चात दहाङे मारकर रोती हुयी बालि पत्नी तारा से भगवान श्रीराम बोले - हे तारा ! प्रथ्वी । जल । अग्नि । आकाश और वायु इन पाँच तत्वों से बना यह अधम शरीर तो नाशवान है । और यह तुम्हारे सामने सोया हुआ है । लेकिन इसमें रहने वाला जीव अविनाशी और नित्य है । फ़िर तुम किसलिये विलाप करती हो ।
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम । 2-12
न तुम्हारा । न मेरा । और न ही । यह राजा । जो दिख रहे हैं । इनका कभी । नाश होता है । और यह भी नहीं । कि हम भविष्य में । नहीं रहेंगे ।
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति । 2-13
आत्मा । जैसे देह के बाल । युवा । या बूढे होने पर भी । वैसी ही रहती है । उसी प्रकार । देह का अन्त होने पर भी । वैसी ही रहती है । बुद्धिमान लोग । इस पर व्यथित नहीं होते ।
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः । अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत । 2-18
यह देह तो । मरणशील है । लेकिन । शरीर में बैठने वाला । अन्तहीन । कहा जाता है । इस आत्मा का । न तो अन्त है । और न ही इसका । कोई मेल है ।
न जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे । 2-20
आत्मा न कभी । पैदा होती है । और न कभी । मरती है । यह तो अजन्मी । अन्तहीन । शाश्वत । और अमर है । सदा से है । कब से है । शरीर के मरने पर भी । इसका अन्त नहीं होता ।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही । 2-22
जैसे कोई व्यक्ति । पुराने कपड़े उतार कर । नये कपड़े । पहनता है । वैसे ही । शरीर धारण की हुई । आत्मा । पुराना शरीर त्याग कर । नया शरीर । प्राप्त करती है ।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि । 2-27
क्योंकि । जिसने । जन्म लिया है । उसका । मरना निश्चित है । मरने वाले का । जन्म भी । तय है । जिसके बारे में । कुछ किया नहीं । जा सकता । उसके बारे में । तुम्हें । शोक नहीं । करना चाहिये ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें