23 दिसंबर 2011

भूखे भगवान

साधना के सोपान में तीन चरण होते हैं - विद्वता, सिद्धता, सरलता, 
थोड़े परिश्रम से विद्वान होना और सिद्धियाँ मिलना सरल है ।
परन्तु सरलता अभ्यास से न आएगी !
एक लड़का घर में पड़ा रहता था । बस खाना खाना और सोना उसका काम था, अतः काम न करने की वजह से घर वालों ने घर से निकाल दिया ।
निकल कर मंदिर से पहुँचा तो देखा पुजारी और उनके शिष्य मोटे तगड़े सेहत वाले थे ।
उसने सोचा - काफी खाने को मिलता होगा ।
पुजारी की शरण में जाकर कहा - मुझे भी शिष्य बना लीजिये ।
पुजारी ने बना लिया और तुलसी की माला पहना दी ।
और उससे कहा - दो टाइम दिन में पंगत रहती है खूब खाओ पियो । बाकी समय भजन करो ।
लड़के ने कहा - पंगत में चार बार खाना खा सकते हैं ?
उसकी भी मंजूरी हो गयी ! अब मज़े थे, खाना पीना और मस्त रहना । 
आखिर दुःख की घड़ी आ गयी ।
एकादशी वैष्णवों के व्रत का दिन था, भोजनालय में चूल्हे ठंडे, कोई हलचल नहीं थी ।
वह लड़का परेशान होकर गुरु के पास पहुंचा और भोजन के बारे में पूछा ।
गुरु बोला - आज तो कुछ न मिलेगा न बनेगा ।
वह बोला -  गुरुजी हम तो भूखे रह नही पाएंगे कुछ कीजिए ।
गुरु ने दया दिखाई और कहा - अनाज ले लो भण्डार से ।
दो सेर आटा, दाल इत्यादि दे दिया । 
और कहा - नदी किनारे जाओ वहीं बना लेना और प्रभु को भोग लगाकर बाकी प्रसाद रूप में ही खाना  ।
वह चला गया, भोजन बनाया । 
और भगवान को बुलाने लगा - राजा राम आइये भोजन को भोग लगाइये । 
लेकिन कोई नहीं आया तो परेशान हो गया । गुरु की आज्ञा थी भोग लगाकर ही खाना । 
फिर याद आया कि भगवान शायद मंदिर के छप्पन भोग का इंतज़ार कर रहे होंगे ।

अतः कुछ सोचकर हँसा और भगवान को पुकार कर बोला - छप्पन भोग तो क्या, आज मंदिर में जैसा मैंने बनाया है वैसा भी नही मिलेगा, मैं भी वहीं से भाग कर आया हूँ । चुपचाप जैसा मिल रहा है खा लो । मंदिर के चक्कर में भूखे रहोगे ।
इस सरल भाव से भगवान (राम) रीझ गये और सीता सहित प्रकट हो गये ।
उसने जब दो जनों को देखा तो कुछ परेशान हो गया कि - भोजन तो दो लोगों के लिये बनाया था और ये दो आ गए । बुलाया तो एक को था, चलो कोई बात नहीं मिलकर खा लेंगे, कम ही तो मिलेगा ।
वह भगवान से कहने लगा - अगली एकादशी को जल्दी आ जाना ।
अगली एकादशी को वह गुरु से बोला - वहां दो भगवान आते हैं अनाज कम हो गया था ।
गुरु हंसने लगे कि - इसे अनाज कम पड़ गया होगा तो बहाने लगा रहा है, कोई बात नहीं एक सेर और ले जाओ । 
उसने खाना बनाया और प्रभु को भोग लगाने की आवाज लगाई - सीता राम जी आइये, भोजन को भोग लगाइये । 
प्रभु प्रकट हुए । परन्तु अबकी बार राम, लक्ष्मण, सीता, तीनों आये थे । 
वह फ़िर परेशान हो गया कि - एक बुलाया दो आये, दो बुलाये तीन आ गये, हद हो गयी । 
अतः बोला - प्रभु ये अच्छी बात नहीं, चलो कोई बात नहीं गुजारा कर लेंगे, परन्तु बार बार ऐसा नहीं चलेगा, पिछली एकादशी कम में गुजारा किया अब भी वैसा ही, चलो गुजारा कर ही लिया ।
अगली एकादशी को गुरु से कहने लगा - वहाँ तीन तीन भगवान हो जाते हैं अनाज थोड़ा अधिक दीजिए ।
गुरु सोचने लगे कि - अन्न कहीं बेच तो नही रहा, देखते हैं ?
उसकी जरूरत के अनुसार अनाज भंडार से दे दिया ।
आज उसने अनाज बनाया, पकाया नहीं । वैसे ही रख दिया कि जितने आयेंगे, उसी हिसाब से पका लूँगा ।
और बोला - भगवान राम आईये, सीता, लक्ष्मण जी को भी साथ बुलाईये, मेरे भोजन को भोग लगाइये ।
भगवान पूरे राम दरबार सहित प्रकट हुए, राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुघ्न और साथ में हनुमान जी आदि आदि ।
वह घबरा गया - हे भगवान, तीन बुलाये, खुद तो आये ही और सारे रिश्तेदार साथ ले आये ।
हनुमान जी की तरफ देखते हुए बोला - वानर भी साथ ले आए, आज तो भोजन में कुछ न मिलेगा ।
भगवान को देखकर कहने लगा कि - आज अनाज ही है, खुद इन लोगों से पकवाओ और खाओ ।
भगवान मुस्कुराने लगे कि - आज भक्त की चलेगी ।
भरत, जानकी, लक्ष्मण, हनुमान जी रसोई बनाने लगे ।
ऐसा दृश्य देखकर समस्त सिद्ध, देवता आदि वहां भगवान की लीला देखने प्रकट हो गए ।
वो भक्त पेड़ के नीचे जाकर आँखे बंद करके सोचने लगा कि - आज इतने लोग आ गए हैं कुछ न बचेगा । 
तभी गुरु आ गये । पेड़ के नीचे आँखे बन्द किये चेले को देखा, फ़िर पास पड़े अनाज को !
उन्होंने पूछा - क्या हो रहा है ऐसे क्यों बैठे हो ?
शिष्य बोला - भगवान आये हैं अपने साथी भगवानों के साथ, और खाना बनाने में लगे हैं ।
गुरु को कहीं कोई न दिखा ।
उन्होंने कहा - कहाँ हैं भगवान ?
शिष्य सोचने लगा - एक तो आज कुछ खाने को न मिलेगा, ऊपर से गुरुजी को भगवान दिख भी नही रहे, सो अगली एकादशी को अनाज भी नही मिलेगा ।
उसने भगवान से कहा - आप गुरुजी को क्यों नहीं दिख रहे हो, वो सिद्ध हैं विद्वान हैं ।
भगवान ने मुस्कुरा कर कहा - कोई संशय नहीं कि आपके गुरु सिद्ध और विद्वान हैं परन्तु उनमें सरलता नहीं ।
उसने गुरु से कहा - भगवान कहते हैं आपमें सरलता नहीं, इसलिये आपको नही दिख रहे । 
गुरुजी भाव विह्ल होकर रोने लगे, वैरागी हो गए । 
तत्क्षण भगवान गुरु के सामने प्रकट हुए और शिष्य के साथ गुरु भी धन्य हुए ।
जीतना सरल है, हारना भी सरल है, प्रेम करना भी सरल है ।
कठिन है सरल होना !!

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326