21 दिसंबर 2011

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल को बहलाने को गालिब ख्याल अच्छा है

प्रश्न - क्या हम इसी जीवन में उन रहस्य को जान सकते हैं । जिसे मनुष्य मरने के बाद जान पाता है ? इसमें भी मेरे कई भाव थे । जैसे 1  साधारणतया मनुष्य का अज्ञानवश गलत निर्णय लेना । और मत्यु के बाद सभी स्थिति का स्पष्ट होना  2 अलौकिक जगत के उन रहस्यों से जिन्हे जीवित मनुष्य खुली आंखों से नहीं देख पाता । पर होता हमारे सामने ही है । 3 ये प्रश्न मुख्यता उन लोगों के लिये था । जो इस मामले में बिलकुल भी नहीं जानते । आपसे कुछ और रहस्यों को जानने की इच्छा थी । जिन्हें सिर्फ़ आप ही जानते है । और आपने कुछ संभव ऐसा ही किया । 4 ये प्रश्न अपने अंदर बहुत से रहस्यों को घेरे हुए है । जितना इन्हें जाना जाए । उतना ही जिज्ञासा बढती जाती है । तो आशय ये बनता है कि आंखो के आगे से वो चश्मा ही हट जाये । जिन्हें साधारण आंख नहीं देख सकती । सब कुछ वैसा ही दिखाई दे । जो अभी दिखाई पडता है ।
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1  साधारणतया मनुष्य का अज्ञानवश गलत निर्णय लेना । और मत्यु के बाद सभी स्थिति का स्पष्ट होना । - बचपन से ही मैंने बहुत सी मौतों का अध्ययन किया है । जो भी मेरे सामने हुयी । लगभग उन सभी का । अब इसमें दो तरह की बात हो जाती है । जैसे एक साधारण इंसान संयोगवश बहुत से बीमार लोगों के पास रहने का अवसर पाता है । और एक डाक्टर भी अपनी जिन्दगी में तमाम बीमारों के करीब रहता है । पर दोनों के अनुभव में जमीन आसमान का अन्तर होता है ।  डाक्टर बीमार की असली और आंतरिक स्थिति को अधिकाधिक जानता है । और एक साधारण इंसान उसकी स्थिति बाह्य और सांसारिक ज्ञान के आधार पर जान पाता है । स्थिति एक ही है । पर देखना बहुत अलग है । बस दोनों के ज्ञान का फ़र्क है ।
इसलिये इस बात पर भी एक लम्बी चर्चा की जा सकती है । पर हम सामान्य पहलू को ही लेंगे । जीवन का अन्त 


समय आते ही कुछ हद तक पके कर्म रूप धारण कर लेते हैं । और इंसान को वे चित्रमय नजर आने लगते हैं । जब कभी विकट संकट की घङी । जैसे अपार दुख या दर्दनाक असाध्य बीमारी की पीङा में भी ऐसा कर्म बोध होता है । उदाहरण के लिये - कैकयी के कोपभवन में पङे दशरथ को राम बनवास के समय ही खास तौर पर अँधे माँ बाप के पुत्र श्रवण कुमार की हत्या का स्व बोध हुआ । जबकि उनकी मृत्यु नहीं हुयी थी । शर शय्या पर पङे भीष्म पितामह को उसी समय लगा कि - अवश्य ही ये कर्म फ़ल है । जबकि इससे पहले खास चिन्ता नहीं की । काया से जो पातक होई । बिन भुगते छूटे नहीं कोई ।
अब - मत्यु के बाद सभी स्थिति का स्पष्ट होना ।
नरक के परिणाम को प्राप्त जीवात्मा को छोङकर । मुझे नहीं लगता । औरों के सामने कोई खास स्थिति स्पष्ट होती है । भक्ति रहित । परोपकार रहित । पशुवत जीवन बिताने वालों के सामने तेजी से जीवन रील घूमती है । उनका प्राणान्त हो जाता है । वे ज्योति मैदान में जाते हैं । परिणाम अनुसार ही 84 के तीन चार पशु शरीर विकल्प रूप बनते हैं । और वे किसी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं । ज्ञानी और स्वर्ग आदि स्थिति को प्राप्त जीवात्माओं को अपनी स्थिति का बोध पूर्व ही होने लगता है । उनके अन्दर शुभता पैदा हो जाती है । और मृत्यु भय उन्हें होता ही नहीं है । केवल नरक वाले अवश्य नरक में गिरने तक बहुत कुछ अनुभव करते हैं ।
बाकी जितनी भी सच्ची झूठी कहानियाँ झूठी मौत के बाद लौटे लोग सुनाते हैं । उनमें कोई सच्चाई नहीं है । जैसे स्वर्ग गये । वहाँ ये देखा । वो देखा आदि । इसमें विलक्षण रहस्य के तहत कुछ बातें अनूठी अवश्य होती हैं । जैसे कुछ खास अलौकिक आत्मायें अनेक कारणों से शरीर धरती हैं । और किसी घटना आदि में उनकी गवाही टायप होती है । कुछ विशेष कारणों से उनके साथ ऐसी  स्थिति बनती हैं । यही आत्मायें लौटकर वर्णन करती हैं - मैंने चमकीला प्रकाश देखा । उसमें कोई दिव्य पुरुष देखा । मैंने धर्मराज का दरबार देखा । वहाँ ऐसा हो रहा था । वैसा हो  रहा था । मैंने स्वर्ग देखा । मैं आसमान में उङती चली गयी ।
अब मैं आपको इनके मनोबैज्ञानिक रहस्य बताता हूँ - मेरी अभी कार्यरत झाङू पोंछा बर्तन आदि वाली बाई इतनी

पढी है कि अपनी उमृ - 80 और 3 के है गये । इस तरह बताती है । जाति से नाई है । ग्रामीण प्रष्ठभूमि से है । काफ़ी पहले से विधवा हो जाने पर काम कर रही है । इस वर्णन से आप समझ सकते हैं कि एकदम निरक्षर और अज्ञान जैसी स्थिति में है ।
वह दावा करती है कि - वह स्वर्ग वापिस होकर लौटी है । यानी एक बार उसकी गलती से मृत्यु हो गयी । और वह सीधी स्वर्ग गयी । और अभी भी वह इसका लाइव टेलीकास्ट करती है । एक एक बात स्पष्ट बताती है ।
मैंने झूठी मगर घोर उत्सुकता दिखाते हुये पूछा - कैसा था स्वर्ग । और वहाँ क्या क्या हुआ ?
काम वाली बाई - अरे बहुत अच्छा लला ( ये उसने ग्रामीण बोली में बताया । जिसको मैं खङी बोली में रूपान्तरित करके लिख रहा हूँ । ) गरम गरम पूङी । कचौङी । बालूशाही बन रही थी । सबको बँट रही थी ।..एक बहुत लम्बा चौङा आदमी निरे ( बहुत से ) कापी कागज लिये सबका मुकद्दर देख रहा था ।..मैंने कहा - अब मैं वापिस नहीं जाऊँगी । पर उसने कहा । नहीं..अभी तुम्हारा समय नहीं आया । फ़िर भी मैंने हठ पकङी । तो उसने मेरी कमर में लात मारी । जिससे मैं स्वर्ग से जमीन पर गिर गयी । ..और आज तक मेरी कमर में उस स्थान पर दर्द रहता है ।
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अब इसको मनोबैज्ञानिक नजरिये से देखिये । लगभग पशुवत जीवन गुजारने वाली घोर अज्ञानमय और बूङी औरत का झूठ बोलने में ये हाल है । त्रिया चरित्र न जाने कोय । खसम मार के सती होय । तो उनका क्या हाल होगा । जो इससे अच्छी स्थिति की सयानी हैं ।
कोई दस साल पहले मेरे मकान में एक गिरी पँथ का साधु परिवार रहता था । नट थे । आचरण भी सही था । तो

उस साधु की पत्नी का पक्का ख्याल था कि - उसे स्वर्ग की ही प्राप्ति होगी । और बाकी हमारे जैसे भक्ति रहित पापियों को घोर नरक ।
मैंने उससे भी पूछा था - स्वर्ग कैसा होता है ?
वह - उसमें सुन्दर सुन्दर कमरे होते हैं । मतलब सबको एक एक कमरा मिलता है । फ़ूलदार गमले होते हैं । हर कमरे में भगवान जी के सुन्दर चित्र लगे होते हैं । रोज पूजा आरती कथा भागवत आदि होती हैं ।
ये सबका अपना अपना स्वर्ग है । अपनी कल्पना का चित्र । अपनी इच्छा आकांक्षा का चित्र ।
अगर आप भारत के पिछङे गाँवों में भी जायें । और निरे अँगूठा टेक लोगों से बात करें । तो स्वर्ग यात्रा या अनुभव कर चुके बहुत लोग आपको मिल जायेंगे । और उनकी बातों को सुन रहे नये लोग आगे के लिये ये सफ़ेद झूठ सीख जायेंगे । हम विशिष्ट हैं । कुछ खास हैं । उपेक्षित लोगों में ये मनोग्रन्थि बहुत लोगों के अन्दर बन जाती हैं ।
सोचने वाली बात है । काम वाली बाई - गरम गरम पूङी । कचौङी । बालूशाही में स्वर्ग देखती है । वो इससे ज्यादा जानती नहीं । सोच नहीं पाती । इससे अधिक उसका बुद्धि विस्तार नहीं है । साधु की औरत निजी मकान की अतृप्त आकांक्षा से घिरी है । और पूजा का परिणाम स्वर्ग उसे पता हो गया । तो उसकी वैसी धारणा पक्की हो गयी ।
बहुत उदाहरण देना संभव नहीं । पर मैंने स्वर्ग आदि अलौकिक वर्णन के जो भी केस सुने । सब झूठे थे । सामान्य प्रेतक अनुभव बताने में भी 70% लोग झूठ बोलते हैं । पर प्रेतों के अनुभव बङी संख्या में सच भी होते हैं । ये भी सही है । क्योंकि प्रेत प्रथ्वी पर ही हैं । और हमारे आसपास ही होते हैं ।
हाँ जैसा कि कभी कभी विलक्षण घटनाओं में होता है । किसी भी कारणवश । कोई गम्भीर बीमारी । कोई घात । किसी स्थान विशेष पर । कोई भाव एकाग्र होकर गहन हो जाना । तब कुछ क्षणों के लिये ऐसे अनुभव हो जाते हैं । जब चेतना प्राण समूह के साथ एकत्र होकर अनजाने में किसी दुरूह दुर्गम अलौकिक दिव्य स्थान पर पहुँच जाती है । तो यह योग ही हो जाता है । योग में इसी को अभ्यास से योग बिज्ञान द्वारा करते हैं । साधिकार आते जाते हैं ।
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आंखो के आगे से वो चश्मा ही हट जाये । जिन्हें साधारण आंख नहीं देख सकती । सब कुछ वैसा ही दिखाई दे । जो अभी दिखाई पडता है ।

- देखिये यह कुछ अधिक कठिन बात नहीं हैं । पर कोई देखना ही नहीं चाहता । आँख पर काम क्रोध लोभ मोह आदि का चश्मा चढा हुआ है । इसलिये सत्य दिखाई नहीं पङता । इसको सामान्य जीवन में एक साधारण प्रयोग द्वारा भली भांति समझ सकते हैं ।
घर आदि कहीं भी किसी भी ऐसे स्थान को देखिये । जिसमें छोटी बङी कई चीजें पास पास पङी हों । उसको कुछ सेकेण्ड देखिये । और फ़िर उस स्थिति को बिना देखे बताईये । अब उसी स्थान का एक फ़ोटो खींच लें । उसने ज्यों का त्यों सब बयान कर दिया । यही योग दृष्टि है । कहावत है ना । दर्पण झूठ नहीं बोलता । आप किसी घटना का वीडियो शूट कर लें । और उसी घटना को अलग अलग प्रत्यक्षदर्शियों से पूछें । सबका वर्णन भिन्नता लिये होगा । लोग उसमें आदतानुसार अपना भाव मिला देंगे ।
1980 मेरी उमर 11 साल । हम एक छोटे से कस्बे में रहते थे । हवाई जहाज का वहाँ से कभी निकलना दुर्लभ घटना होती थी । महीनों में कभी एकाध बार भूला भटका आता । एक बार अक्समात ऐसा हुआ । एक हवाई जहाज बहुत नीचाई से गुजरा । बच्चे से लेकर बङे बूढे तक काफ़ी दूर उसके पीछे ( नीचे ) ऐसे भागे । जैसे लपक ही लेंगे । अब बौरों के गाँव में ऊँट आ गया था । सो तीन दिन चर्चा होती रही ।
किसी ने कहा - मेरे ऊपर किसी ने पानी फ़ेंका । किसी ने कहा - उसके ऊपर मूत्र गिरा । एक छोटे बच्चे ने तो कह दिया - मेरे ऊपर टट्टी गिरी । सबके साथ कुछ न कुछ हुआ था । 

राजीव बाबा उस समय भी जीनियस थे । कमबख्तों ने मेरे कहने के लिये कुछ बाकी ही न छोङा था । सब कह डाला । पर नहीं कहता । तो बेइज्जती थी । सो मैंने भी कहा - मेरे चाचा उसमें बैठे हुये थे । मैंने आवाज लगायी । तो उन्होंने देखा । बस रौब ( बच्चों में ) हो गया ।
ये बातें बच्चे ही नहीं कर रहे थे । बङे भी अपनी बुद्धि अनुसार शामिल थे । जाहिर है । उस समय की सोच इतनी ही थी कि हवाई जहाज में बैठे लोग मल मूत्र करते होंगे । तो वो नीचे ही गिरता होगा । इसलिये गिरा ।
जीवन को देखने समझने का हर आदमी का अलग अन्दाज है । और वह उसे अपनी भाव बुद्धि से देखता है । पर सत्य अलग ही है । और वह सिर्फ़ ज्ञान दृष्टि से नजर आता है ।

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