25 दिसंबर 2011

क्या हुक्म है मेरे आका

आज 25 dec 2011 के दैनिक जागरण के आगरा संस्करण में एक खबर लोगों ने मुझे दिखाई । जिसमें मुरादाबाद के सभी आई पी एस अफ़सर उनके निवास के लिये बने नये बंगले को अपना आवास बनाने के बजाय अंग्रेजों के जमाने के बने पुराने बंगले में ही रहते हैं । कारण है । उस जगह का भुतहा होना । और ये कारण भी अकारण नहीं है । नये बंगले के इतिहास के अनुसार कुछ अफ़सर इसमें रहे थे । उनमें हरेक के साथ कुछ न कुछ दुखद घटा । तब भय मानते हुये नव नियुक्त लोग उसमें रहने से बहाने करने लगे ।
प्रायः लोग अज्ञानतावश कहते हैं । आत्मज्ञान में भूत प्रेतों की मान्यता नहीं हैं । दरअसल ये बात ही गलत है । मान्यता तो पूरी पूरी है । पर महत्व नहीं है । देखिये कबीर स्पष्ट कहते हैं - दिवाने मन भजन बिना दुख पैहो । पहलो जन्म भूत को पैहो । तङप तङप कर रहयो ।
अभी कुछ ही दिनों पहले की बात है । श्री महाराज जी आगरा के समीप ही एक तीर्थनगरी से वापिस आये थे । और वहाँ एक आश्रम में रुके थे । वहाँ एक ऐसा ही किस्सा जानकारी में आया । एक आश्रम में नया नया महन्त नियुक्त हुआ था । नियुक्त होने के कुछ दिन बाद ही उसे अक्सर रात को भय लगने लगा । और फ़िर स्पष्ट छाया दिखने 


लगी । वह छाया इससे पूर्व महन्त की थी । उसने लगभग 1 लाख 30 हजार रुपये का गबन किया था । और वे रुपये आश्रम में ही एक स्थान पर जमीन में गाङ दिये थे । अकाल मृत्यु उपरान्त वह विभिन्न कारणों के चलते प्रेतयोनि को प्राप्त हुआ । और वह बहुत दुखी थी । उसने बताया - मेरा सिर बहुत भारी है । मुँह सुई के छेद जैसा छोटा । और गर्दन सींक के समान पतली । और इसके बाद मेरा पेट भी बहुत बङा और बाहर निकला हुआ है । पहले तो मुझे खाने को कुछ मिलता ही नहीं । और भूख बहुत लगती है । यदि कभी कुछ प्राप्त हो भी । तो मेरी गर्दन और मुँह की बनाबट से खाना मुश्किल हो जाता है ।
फ़िर उसी ने उपाय भी बताया - ये जो मेरा गबन किया हुआ धन है । इसको बाहर निकालो । इससे भण्डारा कथा आदि कराओ । तब मुझे राहत मिलेगी । ये बात बहुत कुछ कहती है । जहाँ हर तरफ़ मन्दिर । पूजा । आरती । भक्तिमय माहौल है । वहाँ भी भूत की उपस्थिति है ।

लगता है । आज का दिन भूत वार्ता का ही था । अभी ये बात ही थी कि मेरे पास एक आदमी आया । मैंने उससे कहा - तुमने अपनी जिन्दगी में भूत देखा है । या अनुभव किया हो । या कोई घटना तुम्हारी जानकारी में आयी हो ।
उसने कहा - खुद मेरे साथ ही घटी है । और बहुत बङी बात घटी  है ।
मुझे इस बात पर बहुत उत्सुकता हुयी । और खास उत्सुकता इसके लिये कि उस प्रेत बाधा का उपचार कैसे क्या और किसने किया ।
उसने बताया - 20-22 साल पहले की बात है । उसने ताजगंज के पास करौने नामक स्थान में खेत खरीदा था । और उसकी लङकी वहाँ अपने पशु चरा रही थी कि उसे अक्समात बिना किसी वजह के भय लगा । पर लङकी ने ये बात तब घर पर किसी को नहीं बतायी । इसके बाद यही बात मेरे साथ भी होने लगी । पर मेरी कुछ समझ में नहीं आया । तब उस बयार ने मुझे सपना दिया कि - जमीन में एक स्थान पर माल गङा है । उसे खोदो ।
मैंने बताये स्थान पर खोदा । तो पीतल के दो छोटे छोटे बर्तन से निकले । इसके बाद उसके अगले निर्देश पर और 


गहरा खोदा । तो फ़िर एक के बाद एक पीतल के पात्र निकले । लेकिन उनमें सोना चाँदी आदि कुछ भी नहीं था ।
बस इसी के साथ मुझ पर प्रेत आवेश हो गया । जो तीन साल से कुछ कम समय तक रहा । इस दौरान अनेक ओझा सोखा भगत आदि से उपचार कराया । पर कोई कामयाबी हासिल नहीं हुयी ।..मेरे अन्दर विचित्र आदतों का समावेश हो गया था । कई आदमियों की खुराक अकेले ही खा जाता । दो तीन आदमियों के बल से होने वाले काम अकेले ही कर लेता । एक कामचलाऊ ओझा जब मेरा इलाज करने आया । तो उसे गर्दन  से पकङ कर दीवाल से मार दिया । किसी का तंत्र मन्त्र कामयाब न हुआ । फ़िर खुद ही अचानक ख्याल आया । ये मामला जमीन से जुङा है । अतः जमीन बेचते ही कुछ समय बाद छाया उसे छोङ गयी । जैसे ही जमीन से उसका सम्पर्क खत्म हुआ । मैंने उसे बताया तो नहीं । पर ये जमीन से जुङे जिन्न का मामला था ।
प्रेत वायु में जिन्न एक अदभुत वायु होती है । शान्त । सहायक । और बेहद बलशाली । आमतौर पर ये प्रेत

समुदाय के होते हुये भी उनसे कुछ अलग से ही होते है । ऐसे बहुत से किस्से सुनने में आये हैं । जब जिन्न मनुष्य का कई स्तरों पर सहायक हुआ है । सरकारी कार्य कराने से लेकर भवन निर्माण । खेती आदि के कार्य चमत्कारिक तरीके से कराना इनकी खूबी है । ज्यादातर देखा गया है । जिन्न प्रभावित व्यक्ति अन्य प्रेत बाधा गृस्त की तरह उपदृव न करके शान्त रहता है । वह अपने में अमानवीय बल पाता है । और पत्नी या सम्बन्धी स्त्री से जबरदस्त संभोग करता है ।
शुरूआत में ये व्यक्ति एकाकी हो जाता है । मानों जबरदस्त खजाना मिल गया हो । और ये एक दृष्टि से सच भी होता है । इसलिये बहुधा लोग जिन्न साधना करते भी हैं । और अच्छा लाभ भी उठाते हैं ।
इसके बाद । इसका दूसरा पक्ष शुरू होता है । इंसान का शरीर सूखने लगता है । क्योंकि वह निरन्तर प्रेत आवेश में रहता है । फ़िर वह जिन्न की माँग को पूरा करने में असमर्थ हो जाता है । अन्य वायु की तरह जिन्न की तो

निश्चित खासियत है । ये पूरे घर के लोगों को आवेश में ले लेता है । और धीरे धीरे जीवन रस चूसता रहता है । किसी प्रकार का इलाज कराने पर यही दोस्त बहुत बङा दुश्मन भी हो जाता है । और घर के सदस्यों को एक एक कर मारना शुरू कर देता है । तब यह लाइलाज स्थिति में पहुँच जाता है । और तांत्रिकों की पहुँच से बाहर सा हो जाता है ।
ये जिन्न फ़िन्न मेरे बचपन के दोस्त हैं । वैसे न दोस्त हैं । न दुश्मन । मुझे इनसे कोई लेना देना कभी न रहा । लेकिन कोई आदमी हिदायत करता - यहाँ न जाना । वहाँ न बैठना । तो मैं जरूर बैठता । देखूँ क्या कर लेगा । अभी नौ साल पहले ( अद्वैत में आने के बाद भी ) ही मेरे कमरे में सात आठ प्रेत वायु घूमती रहती थी । और मैं आराम से अपनी दिनचर्या करता रहता । हद तो तब हो गयी । जब उनमें से कुछ मेरे पास मेरे बिस्तर पर रात को लेटने लगे । कुछ बेड ( तखत ) के नीचे घुसे रहते । फ़िर उचक उचक कर सिर निकाल कर देखते । हँसते ।

कोई बगल में लेट जाता । कोई हवा में अदृश्य छङी लटका कर घुमाता । मैं मन में कहता - करते रहो । मरो साले । बस इससे ज्यादा उनकी हिम्मत नहीं थी । एक दो बार बौखला जाते । तो रात में सोते सोते ही मुझे अर्थी के समान ( ज्यों के त्यों लेटी हुयी स्थिति में ही । मानों कोई लकङी हो ) दो तीन फ़ुट ऊँचा उठाते । फ़िर नीचे । फ़िर उठाते । फ़िर नीचे । फ़िर..। तब अचानक मेरी नींद खुल जाती । दरअसल उन्हें मेरे सोने से झुँझलाहट होती थी । वे चाहते थे । मैं जागूँ । तब मैं झुँझलाकर कहता - तुम्हारी  ऐसी तैसी मारूँ सालो । इस पर वे खिलखिलाकर हँसते । पर मैंने उन्हें रोका नहीं । बहुत प्रकार के मायावी उपदृव करते ।
वैसे तो भूतों से जुङी अनुभवजन्य बहुत सी बातें हैं । लेकिन एक बात अभी याद आ रही है । ये कोई दस साल से कुछ और पहले की बात है । मैं रात को

आठ बजे से दस ग्यारह बजे तक एकान्त साधना करता था । मेरे आफ़िस के कमरे में प्लाई का दरवाजा लगी आलमारी का एक खाना था । जिसे खिसका कर बन्द कर देते थे । इसमें ताला लगा रहता था । इसमें एक काली कपङे की गुङिया । भोज पत्र । कुछ यन्त्र । और सामग्री जलाने का कटोरा आदि सामान था । मेरे घर में दो किरायेदार रहते थे ।
समस्या ये थी कि सामग्री जलाने से तेज खुशबू घर में फ़ैलती थी । इसी आलमारी के अन्दर बहुत धुँधला सा  जीरो वाट बल्ब मैं जलाता था । उसको भी गन्दा कर रखा था । लेकिन जैसा कि मैं कह चुका हूँ । मैं भूत प्रेत आदि की किसी साधना में कभी दिलचस्पी नहीं रखता था । मेरी एकाग्र साधना अलग ही थी ।
हमारे घर में एक लङकी थी । उसकी आयु 35 के लगभग थी । उसे मेरे इस एकान्त समय के क्रियाकलाप में बङी दिलचस्पी थी । जबकि मैंने चेताया भी था कि मैं त्राटक योग करता हूँ । इसलिये उस समय दूर रहा करो । डर लग

सकता है । कोई नुकसान भी हो सकता है । पर वही बात । बिना ठोकर लगे आदमी को अक्ल आती ही नहीं ।
एक रात की बात है

 । मैं एकाग्र हो गया था । मेरा सम्बन्ध अशरीरियों से जुङ गया । ये लङकी चुपचाप दरवाजे से सटी अन्दर देख रही थी । हालांकि अन्दर से दरबाजा लाक्ड था । और कमरे में अँधेरा था । फ़िर भी बहुत धूँधल प्रकाश में ये स्वाभाविक मानवीय उत्सुकता से मुझे देख रही थी । पर मुझे उस समय खास अन्दाजा नहीं हुआ । योग स्थिति में मेरे मुँह से फ़ूँ फ़ूँ जैसी तेज आवाज स्वतः निकल रही थी । स्वांस बहुत तीवृ गति से चल रही थी ।
अचानक ये लङकी डर गयी । और तेजी से अपने कमरे में पहुँची । और फ़िर बहुत जोर से गिगिया ( डर से अजीब सी चीख निकलना ) पङी । सब लोग इकठ्ठे हो गये । कुछ ही देर में मेरे दरबाजे पर दस्तक होने लगी । लेकिन उससे पहले ही मैंने लाइट जला दी । और आलमारी बन्द कर दी ।
मेरे पास जाते ही लङकी का भय काफ़ी कम हो गया । और वह सामान्य होने लगी । उसने बताया कि - जब वह

मेरे कमरे के गेट के पास से जा रही थी । उसे तेज सूँ सूँ की आवाज सुनाई दी । उसने उत्सुकता से झांक कर देखा । और कुछ देर देखती रही । तभी उसे अजीब सा भय लगा । उसके पास कोई सांस ले रहा था । फ़िर वह अपने कमरे में आकर लेट गयी ।
और तव उसने काले कपङे पहने एक बङी आकृति देखी । जो उसके पीछे पीछे ही चलती आ गयी । जिसकी आँखे चमकीली थी । और दांत निकले हुये थे । वह उसकी चारपायी के पास आकर खङी हो गयी । और खङी ही रही । तव वह गिगिया पङी ।
- क्या हुक्म मेरे आका । मैंने मन में कहा - आज इसने जिन्न देख ही लिया ।
- अरे पागल हो । फ़िर मैंने प्रत्यक्ष कहा - भूत प्रेत कुछ नहीं होते । सब मन का भृम है । आराम से सोओ ।
दरअसल अलौकिकता का कोई प्रयोग करते समय ऐसे अशरीरियों का आसपास आ जाना एक सामान्य बात है । शायद जिन्न ने घोस्ट माय दोस्त जैसा फ़र्ज निभाया हो । क्योंकि लङकी फ़ालतू में डिस्टर्ब कर रही थी । जो भी हो । फ़िर उस लङकी को कभी कोई न दिखा । न परेशानी हुयी । परेशानी और वो भी मेरे घर में - ऐसी की तैसी ।

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