राजीव भाई को नमस्कार । नये साल के आगमन हेतु Advance में राजीव भाई और सभी पाठक भाई-बंधुओं को मेरी तरफ़ से नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएं । शायद इस साल का मेरा ये आखिरी मेल है । इसलिये अपनी कलम से कुछ लिख कर भेज रहा हूँ । उम्मीद है । आपको जरूर पसंद आयेगा । राजीव जी आपको याद होगा । आपने अपने द्वैत जीवन के दिनों पर भी सीरीज लिखने की बात कही थी । जिसका मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ । इस पर कब तक लिखने का विचार बनेगा । बताइएगा जरूर । पिछले दिनो अष्टावक्र गीता ध्वनि सीरीज के डाउनलोड लिंक बहुत ही महत्वपूर्ण कङी थी । सभी आत्मज्ञान इच्छुक साधकों और लोगों को इनसे बहुत लाभ मिलेगा । मैंने सभी पार्ट डाउनलोड कर लिये हैं । पर एक समस्या आ गई है । 52 पार्ट का डाउनलोड लिंक काम नहीं कर रहा है । इसको जल्द से जल्द ठीक कर दीजियेगा । राजीव जी ! गुरुत्व पर मैं आपको कुछ मैटर भेजना चाहता हूँ । आपको सिर्फ़ ये करना है । मेल से उसको कापी और पोस्ट करना है । आपकी लिखने की चिंता से मुक्ति । जैसे ही मुझे समय मिलेगा । मैं आपको इसका मैटर तैयार करके भेज दूंगा ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है ।
कि वक्त बडा बलवान है, खुद को न रोक पाओगे ।
खामोशी लिये दिल के तरानों में, गम को कहां छुपाओगे ।
खो चुके हैं उस राह को हम, जिस पर चलना है खुद अकेले ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 1
पास बैठे हो जब तुम, दूर जाने की बात, किया न करो ।
अपनों का अपनों से ही, अब दिल कहां मिला करते हैं ।
दर्द से भरे लब हैं ये, इन्हें न यूं, मिलाया करो ।
कि मुहब्बत में ये कम्बख्त दिल, कभी कभी बेइमान हुआ करते हैं ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 2
क्या पाया क्या खोया, तुमने इस जीवन में ।
मोल तोल का भाव है, तू भी अब इसमें रमण ले ।
अकेले जाना है, पाना अभी बहुत कुछ है बाकी ।
जाग जाओ जीव, अब तो बस ढाई अक्षर को ही जप ले ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 3
माटी मिले न तोल के, सोना मिले न बिन मोल के ।
ज्ञान से ही सब जग जाना, गुरू बिना कुछ न पाना ।
राजीव भाई से हुई जब सत्संग वार्ता, मिल गया वो सब ।
जो पाया न था अब तक, फ़िर भी गुरू बिना कुछ न पाया ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 4
ठोकरों से है सब सीखा, हमने तो खुद ही इस जीवन को सींचा ।
पाई है मंजिल हमने तब, हर कोशिश पूरी हुई जब ।
साथ चलते जाना है, दूर रह कर अब कुछ न पाना है ।
आप ही बताओ राजीव ठाकुर, रेत के किस कण को ठहर जाना है ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 5
जब फ़रमायश थी प्रेत कहानी, तो राजीव भाई ने दी जुबानी ।
भूत प्रेत की है ये माया, जाने कौन कहां से आया ।
पढी कहानी चढी जवानी, डायन कहानी बडी मस्तानी ।
बाबा ने सबको बतलाया, सेक्सी प्रेतनी का पाठ पढाया ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 6
कभी समझ तो आता है, पर कुछ नजर नहीं आता है ।
अंतकाल की बात बताओ, पग-पग की अब ध्वनि सुनाओ ।
साक्षात्कार हो इसी जीवन में , ऐसा मार्ग तुरंत बतलाओ ।
साथ चलो तुम सदा हमारे, छूट जाए अब बंधन सारे ।
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है । 7
वाणी हो ऐसी निर्मल जिसमें, अष्टावक्र का ज्ञान घुला हो ।
सुन ले कोई अगर उसे तो, भेद सभी के समझ सके तो ।
हो जाए वो पार, खुल जाए सारे द्वार, मिट जाए सारे भार ।
होना हो अगर मुक्त मार्ग से, अष्टावक्र गीता ध्वनि ले जाए उसी द्वार पे ।
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है । 8
************
अष्टावक्र गीता आपको उपलव्ध कराना मेरी नजर में कितना महत्वपूर्ण है । राजू जी के इस मेल के बाद विधुत की मिनट मिनट पर आवाजाही के बीच ही मैंने लिंक ठीक से लगाया । और फ़िर चैक भी किया । अब लिंक सही काम कर रहा है ।
- बिजली कुछ ज्यादा ही तंग कर रही है । लेख बाद में जुङेगा ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है ।
कि वक्त बडा बलवान है, खुद को न रोक पाओगे ।
खामोशी लिये दिल के तरानों में, गम को कहां छुपाओगे ।
खो चुके हैं उस राह को हम, जिस पर चलना है खुद अकेले ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 1
पास बैठे हो जब तुम, दूर जाने की बात, किया न करो ।
अपनों का अपनों से ही, अब दिल कहां मिला करते हैं ।
दर्द से भरे लब हैं ये, इन्हें न यूं, मिलाया करो ।
कि मुहब्बत में ये कम्बख्त दिल, कभी कभी बेइमान हुआ करते हैं ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 2
क्या पाया क्या खोया, तुमने इस जीवन में ।
मोल तोल का भाव है, तू भी अब इसमें रमण ले ।
अकेले जाना है, पाना अभी बहुत कुछ है बाकी ।
जाग जाओ जीव, अब तो बस ढाई अक्षर को ही जप ले ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 3
माटी मिले न तोल के, सोना मिले न बिन मोल के ।
ज्ञान से ही सब जग जाना, गुरू बिना कुछ न पाना ।
राजीव भाई से हुई जब सत्संग वार्ता, मिल गया वो सब ।
जो पाया न था अब तक, फ़िर भी गुरू बिना कुछ न पाया ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 4
ठोकरों से है सब सीखा, हमने तो खुद ही इस जीवन को सींचा ।
पाई है मंजिल हमने तब, हर कोशिश पूरी हुई जब ।
साथ चलते जाना है, दूर रह कर अब कुछ न पाना है ।
आप ही बताओ राजीव ठाकुर, रेत के किस कण को ठहर जाना है ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 5
जब फ़रमायश थी प्रेत कहानी, तो राजीव भाई ने दी जुबानी ।
भूत प्रेत की है ये माया, जाने कौन कहां से आया ।
पढी कहानी चढी जवानी, डायन कहानी बडी मस्तानी ।
बाबा ने सबको बतलाया, सेक्सी प्रेतनी का पाठ पढाया ।
कभी कभी मेरे दिल में ये खयाल आता है । 6
कभी समझ तो आता है, पर कुछ नजर नहीं आता है ।
अंतकाल की बात बताओ, पग-पग की अब ध्वनि सुनाओ ।
साक्षात्कार हो इसी जीवन में , ऐसा मार्ग तुरंत बतलाओ ।
साथ चलो तुम सदा हमारे, छूट जाए अब बंधन सारे ।
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है । 7
वाणी हो ऐसी निर्मल जिसमें, अष्टावक्र का ज्ञान घुला हो ।
सुन ले कोई अगर उसे तो, भेद सभी के समझ सके तो ।
हो जाए वो पार, खुल जाए सारे द्वार, मिट जाए सारे भार ।
होना हो अगर मुक्त मार्ग से, अष्टावक्र गीता ध्वनि ले जाए उसी द्वार पे ।
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है । 8
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अष्टावक्र गीता आपको उपलव्ध कराना मेरी नजर में कितना महत्वपूर्ण है । राजू जी के इस मेल के बाद विधुत की मिनट मिनट पर आवाजाही के बीच ही मैंने लिंक ठीक से लगाया । और फ़िर चैक भी किया । अब लिंक सही काम कर रहा है ।
- बिजली कुछ ज्यादा ही तंग कर रही है । लेख बाद में जुङेगा ।
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