अखा बाझु वेखना विनु कना सुणना, पैरा बाझु चलना विनु हाथ करना
जीवे बाझु बोलना जीवत मरना, नानक हुकमु पछान के ताऊ खसमे मिलना
- हम नाम को पकड़ के आपने मालिक को मिल सकते हैं । जिसको न किसी ने आँखों से देखिया है । न किसी की जुबान बियान कर सकती है । न किसी के कान सुन सकते हैं । और यहाँ न कोई हाथ पैर ले के जा सकता है । इसको सिर्फ जीवत मर के हासिल किया जा सकता है । जीवत मरने का मतलब है । अपने ख्यक को 9 दरवाजिया में से निकल के दसवें पर लेके आना । जब किसी की मौत आती है । उसके पांव ठन्डे हो जाते हैं । फिर टांगे ठंडी हो जाती हैं । उसके अंदर आत्मा होती है । जब वो निकलती है । तो वो जगह ठंडी होने लगती है । जब आत्मा आँखों के उपर से निकल के बाहर आ जाती है । तब बोलते हैं कि यह जीव मर गया है । गुरु से लिए सिमरन से ऐसे ही मरना है । आत्मा को 9 दरवाजों से लाकर 10 दरवाजे से बाहर निकलना है । और जब आत्मा शरीर से बाहर आ जायेगी । तो इसको जीवत मरना बोलते हैं ।
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हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम ।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ।
- कलियुग में हरि का नाम ही, हरि का नाम ही, हरि का नाम ही एकमात्र गति है । इसके अतिरिक्त और कोई गति नहीं है । और निश्चित रूप में गति नहीं है ।
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1 लोहे को कोई नष्ट नहीं कर सकता । बस उसका जंग उसे नष्ट करता है । इसी तरह आदमी को भी कोई और नहीं बल्कि उसकी सोच ही नष्ट कर सकती है । सोच अच्छी रखें । निश्चित अच्छा ही होगा ।
2 दवा जेब में नहीं..शरीर में जाए तो असर होता है ।
वैसे ही..अच्छे विचार मोबाइल में नहीं, ह्रदय में उतरे तो जीवन सफल होता है ।
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बुराई करना रोमिंग की तरह है - करो तो भी चार्ज लगता है और सुनो तो भी चार्ज लगता है ।
और - सत्संग, सेवा और सिमरन LIC की तरह है > जिंदगी के साथ भी । जिंदगी के बाद भी ।
जीवे बाझु बोलना जीवत मरना, नानक हुकमु पछान के ताऊ खसमे मिलना
- हम नाम को पकड़ के आपने मालिक को मिल सकते हैं । जिसको न किसी ने आँखों से देखिया है । न किसी की जुबान बियान कर सकती है । न किसी के कान सुन सकते हैं । और यहाँ न कोई हाथ पैर ले के जा सकता है । इसको सिर्फ जीवत मर के हासिल किया जा सकता है । जीवत मरने का मतलब है । अपने ख्यक को 9 दरवाजिया में से निकल के दसवें पर लेके आना । जब किसी की मौत आती है । उसके पांव ठन्डे हो जाते हैं । फिर टांगे ठंडी हो जाती हैं । उसके अंदर आत्मा होती है । जब वो निकलती है । तो वो जगह ठंडी होने लगती है । जब आत्मा आँखों के उपर से निकल के बाहर आ जाती है । तब बोलते हैं कि यह जीव मर गया है । गुरु से लिए सिमरन से ऐसे ही मरना है । आत्मा को 9 दरवाजों से लाकर 10 दरवाजे से बाहर निकलना है । और जब आत्मा शरीर से बाहर आ जायेगी । तो इसको जीवत मरना बोलते हैं ।
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हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम ।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ।
- कलियुग में हरि का नाम ही, हरि का नाम ही, हरि का नाम ही एकमात्र गति है । इसके अतिरिक्त और कोई गति नहीं है । और निश्चित रूप में गति नहीं है ।
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1 लोहे को कोई नष्ट नहीं कर सकता । बस उसका जंग उसे नष्ट करता है । इसी तरह आदमी को भी कोई और नहीं बल्कि उसकी सोच ही नष्ट कर सकती है । सोच अच्छी रखें । निश्चित अच्छा ही होगा ।
2 दवा जेब में नहीं..शरीर में जाए तो असर होता है ।
वैसे ही..अच्छे विचार मोबाइल में नहीं, ह्रदय में उतरे तो जीवन सफल होता है ।
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बुराई करना रोमिंग की तरह है - करो तो भी चार्ज लगता है और सुनो तो भी चार्ज लगता है ।
और - सत्संग, सेवा और सिमरन LIC की तरह है > जिंदगी के साथ भी । जिंदगी के बाद भी ।
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