बाह्य सुधार/खोज भी
अंतर द्वारा ही है। भिन्न ये कि बाह्य भिन्न और अंतर अभिन्न है। बाह्य भ्रांति एवं
अंतर निर्भ्रांति है। निर्भ्रांति ही सत्य है। अंतर का भी अन्तर, अन्त हो जाना, शाश्वत, परम,
अविनाशी, घन-चैतन्य है।
अंतर से निरंतरता ही सर्वव्यापी
“हहर” है।
घट में है सूझै नहीं, लानत
ऐसी जिन्द।
तुलसी या संसार को, भओ मोतियाबिंद॥
सदगुरू पूरे वैदय हैं, अंजन
है सतसंग।
ज्ञान सराई जब लगे, तो कटे
मोतियाबिंद॥
समाधि में कुल अस्तित्व “एक” रहता है। वहाँ इष्ट/अहं नहीं है।
संकल्प-समाधि के भाव/स्थिति अनुसार परिणाम हैं। निर्विकल्प समाधि में सिर्फ़ “होना”
शेष रहता है किन्तु परिपक्व समाधि अस्तित्व की सिर्फ़ विद्युत/उर्जा स्थिति है।
जिसमें इच्छानुसार त्रिकाल कर्म, लिखा/मिटाया जा सकता है।
यही असली मोक्ष/प्राप्ति होना है।
रामनगर गुरूवा बसा?
मायानगर संसार।
कहैंकबीर यहि दो नगर ते?
बिरले बचे विचार॥
विषय-भोग जड़बुद्धि है,
माया-मोह अन्धेर।
गुरू ज्ञानप्रकाश बिनु,
कबहुँ न होय उजेर॥
=धर्म-चिंतन=
आश्चर्य! कि
ब्रह्मा के पुत्र स्वयंभू मनु ने, चौथेपन तक, भोगविलास
में ही रत रहने एवं भक्ति न कर पाने का दुख मानते हुये, एक
पैर पर खङे रहकर, तेईस हजार वर्ष तक आहार सिर्फ़
पानी/वायु/फ़िर ये दोनों भी नहीं, करते हुये भगवान? के दर्शन हेतु घनघोर तप किया।
किस भगवान
हेतु? शास्त्र अनुसार विष्णु (अवतार में राम) तो ब्रह्मा के सम्बन्ध से उनके
चाचा/रिश्तेदार/सम्पर्की ही थे, और सभी देव, ऋषि, नारद आदि उनसे सामान्य/अक्सर मिलते थे।
फ़िर भगवान ने
मनु के अगले जन्म (दशरथ) में स्वयं को उनका पुत्र होने का वर दिया, और
दशरथ की वृद्धावस्था में अनेक उपाय द्वारा पैदा हुये।
सन्तान
उत्पत्ति के सही समय,
यौवनावस्था में इस उपाय/इलाज का दशरथ/तीनों रानियों/कुलगुरू वशिष्ठ
आदि किसी को पता न था?
मनु/दशरथ की
देह छोङने के बाद दोनों बार वह ब्रह्मलोक/विष्णुलोक से निम्नलोक स्वर्ग में रहे।
फ़िर वह गुप्त भगवान एवं मोक्ष क्या है? क्योंकि ब्रह्मा के पुत्रों
या अन्य देवों का मोक्ष विष्णु करेंगे, यह बात बेहद अजीब
लगती है।
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