01 अगस्त 2019

आदिशक्ति कौन थीं, सती या सीता?



=धर्म-चिंतन=

रामचरित मानस में (शिव भार्या) सती एवं सीता दोनों के लिये, आदिशक्ति, भगवती, जगतजननी शब्द आया है। जनकसुता जगजननि जानकी। आदिसक्ति जेहिं जग उपजाया? साथ ही अनगिनत अलग-अलग प्रभाव वाले संभु, बिरंचि, बिष्नु एवं उसी के अनुसार शक्ति वाली अनगिनत उनकी भार्याओं सती, बिधात्री (ब्रह्माणी) इंदिरा (लक्ष्मी) का उल्लेख है।

प्रथ्वी सहित देवों के प्रार्थना करने पर निरंजन ने आकाशवाणी से कहा - मैं, परमशक्ति (पत्नी रूप) सहित अवतार लूँगा। मानस एवं अन्य धर्मग्रन्थों के अनुसार शंकर जी राम-कृष्ण की पूजा एवं ये दोनों अवतार शंकर की पूजा करते हैं।
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तब ये रामादि अवतार लेने वाला कौन है? सती को राम (सीताहरण) पर भ्रम क्यों हुआ? अनगिनत ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं उनकी पत्नियां होने पर उनमें से किसकी पूजा का विधान है? राम के अवतार में आदिशक्ति कौन थीं, सती या सीता?




ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। हरि, हर, विरंच। सत, रज, तम। जन्म, स्थिति, मरण। इन तीनों (संयुक्त) पर्याय शब्द का अर्थ ही जीव है। जिसके जनक आद्या-निरंजन हैं। लेकिन सत्व (सार) सिर्फ़ हरि (विष्णु) है। आद्या इच्छा, निरंजन मन है।
इन पंच-प्रमुख का स्वामी जीव है।
अतः हरि से हिर (हिराना), हिर से “हहर” ही पूर्ण, अनंत है।

जाकी रही भावना जैसी।
हरि-मूरत देखी तिन तैसी॥

सुखी मीन जहाँ नीर अगाधा।
जिमि हरिशरण न एकहू बाधा॥



=धर्म-चिंतन=

शास्त्र अनुसार आद्याशक्ति जगतजननी, का प्रथम जन्म सती, फ़िर दक्ष के यज्ञ में यज्ञकुण्ड में भस्म होने के बाद, पार्वती रूप में हुआ। एक समय नारद द्वारा पार्वती को भङकाने पर कि शंकर जी तुम्हें अपने सभी भेद नहीं बताते। उनसे पूछना कि उनके गले में ये किसकी नरमुंड माला है।

पार्वती के प्रश्न करने पर शंकर जी ने कहा - देवी, ये आपकी ही मुंडमाल है। आपके सती से अब तक इतने जन्म हो चुके हैं।

पार्वती के प्रतिप्रश्न - मेरे ही अनेक जन्म क्यों, आपके क्यों नहीं? के उत्तर में शंकर ने कहा इसलिये कि मैं अमरकथा जानता हूँ।
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आद्याशक्ति के सती और पार्वती के जन्म के बीच उन जन्मों का विवरण शास्त्रों में नहीं, जैसा कि शंकर जी ने मुंडमाल के लिये कहा। शास्त्र, सती के बाद सीधा पार्वती का जन्म बताते हैं।

जगतजननी ही बार-बार जन्म-मरण को प्राप्त होती हैं, और उन्हें पूर्वजन्म भी याद नहीं। शास्त्र अनुसार ही जगतजननी एवं शिव (शंकर) को अजर, अमर बताया है। लेकिन दूसरे स्थानों पर उनकी मृत्यु होना, और संख्या में अनेकों का होना जैसा विरोधाभास भी है।

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