07 अगस्त 2019

सुदामा से शंखचूङ दैत्य तक



साइकिल टयूब में वायु भरने की भांति “हूँ” को कंठ से नाभि तक छोङना, ब्रह्म-मंत्र। एवं तदैव निर्वाणी (“हूँ” रहित) क्रिया में एक चमत्कारी गूढ़-रहस्य है, जो साधक को (भव)सागर का कुशल तैराक बना देता है।
यह “होना” एवं “है” दोनों में प्रविष्टि है।
हंसा अब लख आप अपारा।

जो “सतनाम” साधु नहिं जाना।
सो साधु भये जिवत मसाना॥

कलियुग साधु कहैं, हम जाना।
झूठ-शब्द मुख करहिं बखाना॥




वहाँ-यहाँ, ऊर्ध्व-मध्य, भगवान-शैतान, पुरूष-प्रकृति, ब्रह्म-माया के मध्य “जीव” प्रतिनिधि के रूप में रजोगुण से क्रियाशील, सत्व-तम इन दो गुणों में अहं-भाव होकर बरतता है। उपरोक्त दोनों को यथावत “जानने वाला” ही ज्ञानी है।
हे साधो, मच्छ वृति से कच्छ वृति धारो। 

जब जन्में नहीं रामचन्द्र राजा, तब क्या रटती बाजी।
वेद-कुरान कतेब नहीं थे, तब क्या पढ़ते पंडित-काजी॥

चीन्हि-चीन्हि का गावहु बौरे, वाणी परी न चीन्ह।
आदि-अन्त उत्पति-प्रलय, आपु आपु कहि दीन्ह॥



=धर्म-चिंतन=

दो मुठ्ठी चने से निर्धन एवं तीन मुठ्ठी चावल से अपार सम्पदा, प्रतिष्ठा को प्राप्त हुआ, श्रीकृष्ण का परमभक्त सुदामा मर कर गोलोक वासी हुआ। एक दिन कृष्ण ने राधा को छल से भेज कर विरजा गोपी के साथ भोग किया। राधा पता चलते ही तुरन्त विरजा के घर आयीं परन्तु सुदामा जो एक लाख गोपों के साथ द्वार पर पहरेदार था, उसने राधा को अंदर जाने नहीं दिया। अधिक हल्ला होने पर भयभीत कृष्ण अंतर्ध्यान और विरजा नदी हो गयी।

बाद में राधा ने कृष्ण को शाप दिया कि विरजा और तुम नदी-नद होकर भोग-विलास करो तथा कृष्ण का मनुष्य रूप में जन्म हो। फ़िर राधा ने सुदामा को (शंखचूङ) दैत्य होने का शाप दिया। बदले
में सुदामा ने भी उन्हें मनुष्य होने एवं अविवाहित रहने का शाप दिया।

सुदामा, शंखचूङ दानव होकर शिव एवं देवों का शत्रु हुआ। तब शिव ने (अवतार में कृष्ण) विष्णु द्वारा छल से उसका कवच मांगकर, तथा उसकी पत्नी तुलसी (वृंदा) का सतीत्व भंग कर उसे मारा।
(शिव पुराण)

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326