31 जुलाई 2019

ज्ञान से सिद्ध फ़ल





हरिनाम का सुमिरन, सोऽहं-स्वांस को कहा है। ह का अर्थ - है, होना, एवं र का अर्थ चेतना, इ का स्थिति है। स्वांस से ही देह, चेतन, हरा-भरा है। इसीलिये प्रतीक रूप इसे पालक विष्णु कहा है। स्वांस देहकेन्द्र नाभि से उठता है। यही भव(होना)सागर है। नाभिचक्र पर ही विष्णु-लक्ष्मी की स्थिति कही है।

स्वांस का अंतिम-छोर जीव एवं आदि परमात्मा है।
अतः “अंतिम से आदि तक” भेदना अमरगति है।

ना मैं रीझूं गान-गप्पों से, ना मैं रीझूं तान-टप्पों से।

स्वांस-स्वांस पर हरि जपो, वृथा स्वांस ना खोय।
ना जाने जा स्वांस को, आवन होय न होय।



=धर्म-चिंतन=

शुकदेव, परीक्षित को कथा सुनाने के लिये विराजमान हुये तब देवता अमृतकलश लेकर आये, और शुकदेव को प्रणाम कर कहा - यह अमृत लेकर बदले में हमें कथामृत का दान दीजिये। इस प्रकार परस्पर अदला-बदली होने पर परीक्षित अमृतपान करें, और हम सब श्रीमदभगवत रूप अमृत का पान करें।
कहाँ कांच, कहाँ अनमोल मणि (कहाँ सुधा, कहाँ कथा) शुकदेव ने यह सोचकर देवों की हंसी उड़ा दी। उन्हें कथा सुनने का अधिकारी न समझा। इस प्रकार श्रीमद भागवत कथा देवों को भी दुर्लभ है।
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अमृत होने पर भी शास्त्र अनुसार देवता अमर नहीं हैं। पुण्य क्षीण होने पर तिर्यक योनि को प्राप्त होते हैं। वर्तमान भगवत कथा में अधिकांश स्थानों पर देवी-देव कथा के पात्र ही होते हैं। फ़िर वह कौन सी कथा थी?



ज्ञान से सिद्ध फ़ल, कर्म से असिद्ध फ़ल, ज्ञान-कर्म युति से मिश्रित फ़ल, इन तीन विनाशी प्रकृति-धर्म से परे/संयुक्त ही चौथा अविनाशी आत्मा है। पंचम स्वयंसिद्ध विराट पुरूष है। तुच्छ को त्याग कर विराट को भेदना
ही अमरगति है।
शरीर-मन संयम से जीव एवं आत्म से विराट को भेदो।

और ज्ञान सो ज्ञानङी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोप का, चलता करे मैदान॥

कबीर सोचि बिचारिया, दूजा कोई नाँहि।
आपा पर जब चीन्हिया, उलटि समाना माँहि॥  

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326