27 जुलाई 2019

वाटस एप्प सतसंग पर आये प्रश्न 2



प्रश्न - अनेकानेक परमहंसों में क्या भेद, विभिन्नता होती है? इस उपाधि के पीछे कोई गूढ़ रहस्य है? ये परमहंस लोग किस-किस लोकों तक आ-जा/विचर सकते हैं? अलग-अलग पंथ एवं मत के व्यक्ति परमहंस बनते हैं/बन जाते हैं। इनके विषय पर भी गूढ़ ज्ञान प्रकाश डालने के विषय विचार किया जाये।

उत्तर - परमहंस के पांच प्रकार होते हैं - बालक, पिशाच, मूक, जङ और उन्मत। लेकिन किसी परमहंस में एक या कुछ या सभी प्रकार भी हो सकते हैं। स्रष्टि के किसी भी कोने में इनकी स्वेच्छाचारिणी गति होती है। परमहंस सिर्फ़ निर्वाणी मत में हो सकता है। शेष जो अपने आगे लगा लेते हैं उन्हें परमहंस का सही अर्थ भी पता नहीं होता है।
-------------------------
प्रश्न - सतगुरू किसे बोलते हैं इसे समझने एवं समझाने की ज़रूरत है? क्योंकि कुछ मंत्रों में पारंगत लोग या पण्डित या ज्योतिषी या कोई विशिष्ट देवी, देवता का साधक आदि भी पहले गुरू बन जाते हैं। बाद में उनके चेले उन्हें सद्गुरू की उपाधि दे देते हैं। और वे लोग समय के साथ-साथ सद्गुरू बन जाते हैं। दुनियां के नज़र में लाखों शिष्य होते हैं। करोड़ों, अरबों की सालाना आमदनी भी।

उत्तर - जो सत्य/परम सत्य को लखा दे वही सदगुरू कहलाता है। लखाने का अर्थ साक्षात्कार के अरस/परस से है। हरेक असली चीज की नकली चीज पैदा होने बहुत समय से है। पर वास्तव में उससे कुछ लाभ नहीं होता। कागज के फ़ूलों में गंध नहीं होती।
---------------------------
प्रश्न - क्या ये बात सही है कि एक सद्गुरू तथा सतगुरू में ज़मीन आसमान का अंतर है, होता है? कहें तो सद मतलब अच्छा! ये किसी की अपनी व्यक्तिगत व्याख्या या निष्कर्ष हो सकता है कि फलाना-ढेकाना गुरू एक सद्गुरू (अर्थात अच्छा गुरू) है। ऐसे सैकड़ों गुरू टाइप लोग हैं जो कि सद्गुरू बने हुए हैं। आपको देश-विदेशों में मिल जायेंगे। सवाल है क्या ये सद्गुरू जो हैं क्या वे लोग सतगुरू हैं? क्योंकि मेरे सीमित ज्ञान/विचार में सतगुरू पूरे पृथ्वी में एक समयावधि विशेष में मात्र एक ही होता है, और वो सतलोक वासी होता है।

उत्तर - सतगुरू या सदगुरू में कोई अंतर नहीं है। सिर्फ़ अपने-अपने भाव, उच्चारण, हिन्दी, संस्कृत आदि जैसे कारणों से ऐसा चलन बन गया है। वैसे शुद्धता की द्रष्टि से सदगुरू शब्द सही है।
--------------------------------
प्रश्न - क्या सतलोक ही परमात्मा/परम सत्ता/परमेश्वर का लोक क्या होता है? इसे समझने/समझाने की आवश्यकता है।

आज तो वैसे लोग भी गुरू, सद्गुरू बने मिलेंगे, वे लोग जो कि -

1. सबसे निचले चक्र, मूलाधार के गणेशदेव को सिद्ध किये हैं, या

2. दूसरे नंबर के चक्र, स्वाधिष्ठान के देवी-देवता, ब्रह्मा-सावित्री (सावित्री से ही गायत्री देवी एवं गायत्री मंत्र का उदय हुआ है। उससे संबंधित है) को सिद्धस्त साधक भी गुरू, सद्गुरू बन गायत्री मंत्र का चारों तरफ प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। सद्गुरू बने बैठे हैं। उनके लाखों भक्त, शिष्य हैं।

3. तीसरे चक्र, मणिपुर नाभिकमल (जो विष्णु-लक्ष्मी का लोक है) उसे सिद्ध करके गुरू तत्पश्चात सद्गुरू बन बैठे हैं।

4. चौथे चक्र, अनाहत चक्र हृदयकमल (जिसके अधिष्ठात्री देवी-देव, शिव-पार्वती हैं) उस तक सिद्धि प्राप्त करके भी सम्भवतः कुछ लोग गुरू/महागुरू/सद्गुरू/अवतारी महापुरूष बन बैठे हैं।
बहुत हुआ तो इन चक्रों में अवस्थित देवी-देवताओं की पूजा-पाठ, आराधना-साधना खुद भी करेंगे, और अपने शिष्यों से भी वहीं करवायेंगे। क्या ये ज़्यादा संभावित नहीं कि ऐसे गुरूओं के अधिकांशतः चेलों/शिष्यों को न तो गति मिलेगी, न ही मुक्ति?

उत्तर - सतलोक कोई सिर्फ़ एक लोक नहीं है। उसका भेद खोलना उचित नहीं। इससे फ़िर नकली ज्ञानियों द्वारा फ़ैलाई बातों से जिज्ञासुओं में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
इस प्रश्न में आयी अन्य शंकाओं का उत्तर उपरोक्त अन्य उत्तरों में आ चुका है।
-----------------------------
प्रश्न - क्या मुक्तिमार्ग एक सतपुरूष एक सतगुरू ही बता सकता है? वो सतगुरू जो कि नौवें/दसवें अथवा सबसे उच्चस्थ चक्र (सतलोक) का अधिपति हो, या उस लोक/चक्र को प्राप्त कोई सिद्धस्त पुरूष/वासी?
क्या वो ज्ञान एवं राह एक सत्यलोक (सतलोक) गमन किया हुआ या वहाँ को प्राप्त या वहाँ से आया कोई तत्वदर्शी संत, महात्मा या गुरू जो कि साकार परमात्मा सदृश है, या हो, ही बता सकता है?

उत्तर - बिलकुल, सिर्फ़ पहुँचा हुआ या कबीर साहब की तरह प्राकटय सन्त ही मोक्ष या उससे सम्बन्धित अन्य विषय बता/दिखा सकता है। शेष ज्यादातर पूर्व उपलब्ध वाणियों/व्याख्याओं के आधार पर वर्णन करते हैंऔर अक्सर तीव्र जिज्ञासु को सन्तुष्ट नहीं कर पाते।
-----------------------------
वो सत-ज्ञान जो कि सूर्य के समान प्रकाशित हो। जिसके सामने अन्य समस्त ज्ञान एवं तथाकथित सद्गुरू लोगों का वज़ूद एवं ज्ञान दीपक तुल्य ही हो। बहुत हुआ तो चाँद के रोशनी के सदृश हो।
क्या वो ज्ञान कबीरदेव साहेब के माध्यम या उनके शिष्यों के माध्यम से इस धरा पर अवतरित होगा?
कृपया उपरोक्त विचारों पर (सही, गलत क्या है) प्रकाश डालें। अधिकांश लोगों की स्थिति ऊपर वाली है। लोगों से मेरा तात्पर्य आमजनों, चेलों, शिष्यों आदि से है, न कि गुरूओं से।

उत्तर - ज्ञान, हर युग हर काल में प्रकट होता रहा है। पर कुछ ही लोग इसे जान/समझ पाते हैं। खुद कबीर साहब के साथ भी ऐसा ही हुआ था ‘हाजिर की हुज्जत, गये की तलाशी"
वास्तव में यदि कोई पूर्ण शिष्य हो जाये तो सदगुरू हमेशा प्रकट होगा। भले ही वह उस समय देह में अवतरित न हुआ हो। पर एक पूर्ण शिष्य का होना ही बेहद दुर्लभ है। यह करोङों वर्ष बाद कोई एक-दो हो पाता है। लेकिन क्षुद्र अंशों में ज्ञान का जागरण अनवरत रहता ही है।

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326