मुहावरों की उत्पत्ति कैसे हुई?
अर्थ और शब्दों का मेल कैसे हुआ?
‘धोबी का कुत्ता घर का न घाट का’
ऐसा व्यक्ति जिसके लिए कोई विकल्प न बचा हो। लेकिन धोबी का कुत्ता
क्यों कहा जाता है? धोबी का कुत्ते से क्या
सम्बन्ध?
पुरातन काल में जब धोबी किसी के भी घर जाते थे तो उसी घर के आसपास
किसी भी पेड़ की बड़ी सी लकड़ी तोड़कर एक सोटा बनाया जाता था। जिससे उस घर के कपड़े
घाट पर ले जाकर धोए जाते थे। इस सोटे को कुतका कहा जाता था। जब कपड़े धो लिए जाते थे
तो धोबी वह कुतका घर के बाहर ही किसी झाड़ी में छोड़कर वापस अपने घर लौट आता था।
दूसरे दिन सुबह जब कपड़े धोने होते थे तो वहीं कुतका वहां से फिर
उठाकर कपड़े घाट पर ले जाकर धोए जाते थे। यह कुतका धोबी अपने घर नहीं ले जाता था। इसके
पीछे क्या कारण था? वह अलग विषय है। परंतु
उस सोटे की आवारगी और तिरस्कार को ही लोगों ने मुहावरे के रूप में प्रदर्शित करना शुरू
कर दिया। और किसी की भी ऐसी ही विषम परिस्थिति को उस सोटे से जोड़कर परिभाषित करना शुरू
कर दिया गया।
कहावत है ‘धोबी का कुतका (सोटा) घर का न घाट का’
कुतका शब्द उच्चारण की कठिनाई के चलते कुतका से अपभ्रंश कुत्ता
हो गया, और आज भी बिना सोचे समझे
इसे धोबी का कुत्ता बोलते हैं।
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‘अक्ल बड़ी या भैंस?’
अक्ल दिमाग में बसे छोटे से मांस के लोथड़े में है। और भैंस का
आकार सब जानते हैं। भैंस की तुलना अक्ल से करना वाकई समझ से परे है।
यह शब्द भैंस नहीं बेंस (आयु की मौजूद अवस्था) है क्योंकि उम्र
उस काल को कहेंगे जो जन्म से लेकर मृत्यु के समय तक की अवधि है। इस पूरे काल को उम्र
कहा जायेगा। जो मृत्यु उपरांत ही निर्धारित की जा सकेगी।
मतलब यदि किसी जीवित व्यक्ति से पूछें कि आपकी उम्र क्या है? तो वह शाब्दिक तौर से गलत होगा। इसी वजह से किसी
जीवित व्यक्ति की आयु पूछने के वक़्त बेंस शब्द का इस्तेमाल किया जाता था। बड़े-बूढ़े
पूछते थे कि आपकी बेंस क्या है।
यानी इस वक़्त आयु अवस्था क्या है? सीधे अर्थों में मतलब है कि मौजूदा आयु क्या है?
कहावत है ‘अक्ल बड़ी या बेंस?’ अर्थात अक्ल बड़ी या मौजूदा आयु?
निश्चित तौर पर अक्ल बड़ी है क्योंकि बुद्धिमता की कोई आयु नहीं
होती। कोई भी कम आयु में ज्यादा बुद्धिमान हो सकता है, और कोई भी दीर्घायु होते हुए भी बुद्धिविहीन।
(नरेश राघानी) (कापी पेस्ट)
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और स्थानों का पता नहीं पर उ. प्र. में कुतका शब्द
वर्तमान ठेंगे के लिये प्रचलित था। उसका भी भावार्थ ‘कुछ न मिलना’ था। जो उंगली बांधकर
अंगूठे से दर्शाते थे। इसके लिये कहते थे - ले ले सोई कुतका।
एवं कुत्ता शब्द किसी यन्त्र के हैंडल को उठाने/गिराने/दबाने
में उपयोग होता था। ये भी अपभ्रंश लगता है। रिवाल्वर/तमंचे आदि में घोङा दबाने (की
उत्पत्ति) भी समझ में नहीं आयी।
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