ओंकार त्रिकुटी के भूपा। ताके परे
निरंजन रूपा।
उत्तर दिस में सोहं सारा। ररंकार
पश्चिम के माँही।
ताके ऊपर शक्ति विराजे। शक्ति ऊपर
निःअक्षर गाजे।
सार-शब्द निर्णय का नाम। जासे होत
मुक्त का काम।
सबके ऊपर शक्ति बिराजे। नि:अक्षर ता
ऊपर गाजे।
भौंर गुफा सोहं सारा। ररंकार है दसवां
द्वारा।
ओंकार त्रिकुटी के भूपा। नैनन मांहि
निरंजन रूपा।
इनके आगे भेद हमारा। ताको कोई लहै न
पारा।
घाटे पानी सब भरे, अवघट
भरे न कोय।
अवघट घाट कबीर का, भरे सो
निर्मल होय॥
हद-हद करते
सब गये, बेहद गया न कोय।
अनहद के मैदान में, रहा कबीरा
सोय॥
हद में तो हर कोइ चले, लाहद
चले सो पीर।
हद लाहद से न्यारा चले, उसका
नाम फकीर॥
हद तपे सो औलिया, अनहद
तपे सो पीर।
हद-अनहद दोऊ
तपे, उसका नाम फकीर॥
यह सब गुरू हद्द के, बेहद
के गुरू नाही।
बेहद आपे ऊपजै, अनुभव
के घर मांही?
पढ़ी-गुनी पाठक
भये, समुझाया संसार।
आपन तो समझे नहीं, वृथा
गया अवतार॥
पढ़त-गुनत रोगी
भया, बढ़ा बहुत अभिमान।
भीतर ताप जगत का, घङी न
पड़ती सान॥
पढ़ी-गुणी ज्ञानी
भये, कीर्ति भयी संसार।
वस्तू को समझे नही, ज्यों
खर चंदन भार॥
पढ़ि-पढ़ि के
पाथर भये, लिखि-लिखि के भये ईंट।
कबीर अन्तर प्रेम का, लागी
नेक न छींट॥
पढ़ि-पढ़ि के
पत्थर भया, लिखि-लिखि भया चोर।
जिस पढ़ने साहिब मिले, वो पढ़ना
कछु और॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें