=धर्मचिंतन=
ज्ञान, वैराग्य,
भक्ति, मोक्ष के अनेक धर्मग्रन्थों के उपदेशक व्यास
जी, शुकदेव के गर्भ से बाहर आकर तप हेतु वन जाने पर ‘पुत्रमोह’
से उनके पीछे गये। मार्ग में सरोवर पर स्नान करती युवतियों के शुकदेव के समक्ष निर्वस्त्र,
और व्यास जी के समक्ष वस्त्र धारण करने के, उनके
प्रश्न पर युवतियों ने उत्तर दिया कि - आपकी निगाह में स्त्री-पुरूष भेद है पर शुकदेव
की नहीं।
ऐसे गर्भज्ञानी शुकदेव
जी को बिना गुरू भक्ति करने पर विष्णु ने स्वर्ग से लौटा दिया कि - आप स्वर्ग के अधिकारी
नहीं हैं।
अकह को कह कर, अक्रिय
को क्रिय से, अचल को ध्या ने से नहीं जाना जा सकता। कह में
अकह, क्रिय में अक्रिय, ध्या ने में
अध्या को जानने वाली परम सयानी बुद्धि ही परम तत्व को जानती है।
पुष्प के सौन्दर्य/गंध/रंग विवरण से प्राप्त नहीं होते।
ज्यों मेंहदी में रंग
है, और गंधी में वास।
ऐसे साहिब तुझ में है, जैसे
शब्द आकास।
ज्यों वायु में अग्नि
है, और अग्नि में नीर।
ज्यों नीर में धरनि
है, तैसेहि मनहि शरीर॥
सभी योग/भक्तियों में, अप्रयास, भ्रंगमता
सहज-योग, सुरति-शब्द
योग, जो लय-योग होकर पूर्ण होता है,
सर्वोच्च है। उसी प्रकार असंख्य नाम-रूप
ब्रह्म/इष्ट उपाधियों में निरूपाधि आत्मा ही सर्वोच्च है। और
एकमात्र सत्य, शाश्वत है। इसके अतिरिक्त शेष माया/मूलमाया जनित भ्रम है।
झूठा खेल, खिलाङी सच्चा।
ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या।
दुनियां में फ़ंस कर वीरान हुआ है।
बस खुद को भूल कर हैरान हुआ है।
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