विषम में सम
जोङने से विषम ही उत्पन्न होता है। अतः विषम को सम बनाने हेतु विषम में विषम ही
जोङना होगा। यह बात आध्यात्म, युद्ध, वासना,
सामाजिकता, प्रकृति नियम-सिद्धांत, व्यवहार,
सभी पर लागू
है। गहराई से अध्ययन करें।
विषम 7, 9, 11 सम 4, 6, 8, 10
‘यह
आत्मा है’ ‘नहीं है’ ‘है भी और नहीं भी
है’ तथा ‘नहीं है नहीं है’ इस प्रकार (क्रमश: चल, स्थिर, उभयरूप और अभावरूप कोटियों से) मूढ़जन आत्मा को आच्छादित करते हैं। इसमें ‘यह आत्मा
है’ इस पहली अवस्था का ही अभ्यास करना चाहिये।
अस्ति नास्त्यस्ति नास्तीत नास्ति नास्तीत वा पुन:।
चलस्थिरोभयाभावैरावृणोत्यव बालिश:॥
चलस्थिरोभयाभावैरावृणोत्यव बालिश:॥
जब साधक
ब्रह्म-स्वरूप का ध्यान करते हुये स्वयं मन्त्र-स्वरूप या
तादाम्य रूप हो जाता है। उस समय जो गुंजार उसके ह्रदयस्थल/अंतर
में होता है। वही मंत्रार्थ है।
स्थूल से
सूक्ष्म एवं शब्द से धुन ही सार है।
ध्यानेन
परमेशानि यद्रूपं समुपस्थितम।
तदैव
परमेशानि मंत्रार्थ विद्धि पार्वती॥
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