29 जुलाई 2019

पंचविकार के उल्टे कमल



=धर्म-चिंतन=

शुकदेव द्वारा परीक्षित को मोक्षकथा सुनाते समय शास्त्र अनुसार अत्रि, वशिष्ठ, च्यवन, अरिष्टनेमि, शारद्वान, पाराशर, अंगिरा, भृगु, परशुराम, विश्वामित्र, इन्द्रमद, उतथ्य, मेधातिथि, देवल, मैत्रेय, पिप्पलाद, गौतम, भारद्वाज, और्व, कण्डव, अगस्त्य, नारद, वेदव्यास आदि जैसे वरिष्ठ ऋषि, महर्षि और देवर्षि अपने शिष्यों के साथ मौजूद थे।

इन्होंने कहा था - हम कथा सुनाने के अधिकारी नहीं हैं।

उस मोक्षकथा में ऐसा क्या खास था? क्या वर्तमान में सुनाई जाने वाली भागवत कथा वही है जो शुकदेव जी ने सुनाई?

शुकदेव के गुरू जनक त्रेता युग के थे। उसके लाखों वर्ष बाद द्वापर आया। शुकदेव तब भी थे, और आयु में छोटे ही थे।



काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद ये पंचविकार उल्टे कमल (चकरी) या कागवृति सोऽहं के हैं। अजपा हंऽसो जाप द्वारा ये विपरीत होकर सीधा कमल (चकरी पलटना) होने से विरति, क्षमा, दान, प्रेम,
दया में बदल जाते हैं।
सोऽहं विषय/विष्ठा ग्राही, हंऽसो सार/अमृत ग्राही है।
हंऽसो-परमहंस ही पारब्रह्म मोक्ष का हेतु है। 

मान-बढ़ाई जगत में, कुत्ते की पहचान।
प्यार किया मुख चाटे, बैर किया तन हानि॥

सात दीप नौ खंड में, तीन लोक ब्रह्मण्ड।
कहे कबीर सबको लगे, देह धरे का दंड॥



=धर्म-चिंतन=

नैमिषारण्य में अठासी हजार ऋषि एवं प्रमुख ज्ञानी महर्षियों की उपस्थिति के बाद भी, तक्षक दंश के शाप से मृत्यु उन्मुख परीक्षित की मोक्ष क्रियाविधि, आयु में सबसे छोटे, किन्तु अधिकारी, व्यास सुत शुकदेव जी द्वारा सम्पन्न हुयी।

सर्पदंश से हुयी मृत्यु पर नर्क मिलने का विधान एवं मोक्षहीन मृत्यु से भयभीत परीक्षित के चित्त को पूर्ण एकाग्र कर पूर्व के कई राजाओं एवं उनके महान पूर्वजों की वंशावली द्वारा उनके वैभव आदि से अवगत कराया। भाव (वैराग्य हेतु) कि एक दिन सभी की मृत्यु तय है।

इतने महान लोगों के होते हुये शुकदेव ही क्यों?
शुकदेव जनक के शिष्य थे। जबकि यह घटना छह-सात हजार वर्ष पूर्व की है?

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326