क्रमशः रिक्त, गम्भीर,
ठोस, द्रव, वायु,
गहन, पूर्ण, तत्व,
मूल, असीम, स्व, ये शब्द के स्थिति प्रकार हैं। प्रकारांतर से ही ‘एक शब्द’ की अनंत
स्थितियां हैं। निःशब्द से हुयी शब्द-रचना का सार मूल/सार शब्द है। लेकिन रचना
मूल।
मूल का मूल ‘आप’ है
अतः सपने से अपने में आओ।
मूरख शब्द न मानई।
धर्म न सुनै विचार।
सत्यशब्द नहिं खोजई।
जावै जम के द्वार।
रज-बीरज
की कली। तापरि साज्या रूप।
राम-नाम
बिन बूड़िहै। कनक-कामणी कूप।
माया तरवर
त्रिविध का। साखा दुख-संताप।
सीतलता
सुपिनै नहीं। फल फीको तन ताप।
मृत्युबीज
से जन्म, जन्मबीज से मृत्यु, रहट (यन्त्र) में बंधे घड़ों के समान जीव जन्म-मृत्यु चक्र में दिन-रात घूमता है। वीर्यसेचन से
मृत्युपर्यन्त इस जन्म-मरण चक्र रूपी महारोग की औषधि
आत्मज्ञान के अतिरिक्त और नहीं। अतः इससे छूटने के लिए एकमात्र परमात्मा की शरण
ग्रहण करो।
मृतिबीजं
भवेज्जन्म जन्मबीजं भवेन्मृति:।
घटयन्त्र
वदश्रान्तोऽयंभ्रमीत्यनिशंनर:॥
गर्भे
पुंसः शुक्रपातात या युक्तं मरणावधि:।
तदेतस्य
महाव्याधेर्मत्तो नान्योऽस्तिभेषजम॥
कबीर वो दिन याद कर, पग
ऊपर तल सीस।
मृत्युमंडल में आय कर, भूल
गयो जगदीश॥
मनुष्य के जीवन का
अंत एक सौ एक प्रकार की मृत्युओं द्वारा निहित है। जिसमें मात्र एक ही कालमृत्यु है, शेष
सौ (आगंतुक) अकाल मृत्यु हैं। इसलिये
मृत्यु को जीत कर अमरता को प्राप्त करो।
एकोत्तरं
मृत्युशतमथर्वाण:
प्रचक्षते।
तत्रैकः कालसंज्ञस्तु
शेषास्त्वागन्तवः स्मृताः॥
जितने भी मानव मरे, कहैं
स्वर्ग को जाय।
पता नहीं किस मूरख ने, दीना
नर्क बनाय॥
कहैंकबीर समझाय, बात
सुन-सुन आवे हांसी।
पाप करो या पुण्य, बने
सभी स्वर्ग के वासी॥
(प्रष्ठभूमि में जो
चित्र है। उसमें एक रहस्य है, खोजो)
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