19 सितंबर 2012

झूठी है रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर


कुछ समय पहले फ़ेसबुक पर बहुत से व्यक्तियों ने एक खूबसूरत महिला की तस्वीर पोस्ट की । जो किसी अख़बार में छपी हुई थी । अखबार में छपी सूचना के अनुसार - वह तस्वीर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की थी । हमारी प्रिय और आदरणीय रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर ? ज़ाहिर है कि - इस तस्वीर को देखने के लिए लोग उतावले थे । लेकिन एक नज़र देखते ही मुझे पता लग गया कि - यह तस्वीर झूठी है । दरअसल मुझे बहुत अजीब भी लगा कि - भारतीय जनता ज़रा सा भी कॉमन सेंस प्रयोग नहीं करती । बस किसी ने जो भी कह दिया । उसे सच मान लिया । लोग उस तस्वीर को जो कि हर कोण से झूठी लग रही थी । बिना सोचे समझे इंटरनेट पर फैलाए जा रहे थे । देश प्रेम की भावना ने लोगों के दिल और दिमाग पर शायद कब्ज़ा कर लिया था । लेकिन देश भक्ति के लिए अपनी बुद्धि की आंखे बंद कर लेना तो ज़रूरी नहीं है । नीचे मैं वही तस्वीर दे रहा हूँ । आप देखिये । और फ़ैसला कीजिये ।
अख़बार में छपी तस्वीर जिसे झांसी की रानी की तस्वीर बताया गया । यह झूठ है ।
हालांकि हिन्दुस्तान में फ़ोटो स्टूडियो 1840 में भी थे (और शायद उससे पहले भी ) लेकिन यह तस्वीर बहुत अधिक “ आधुनिक ” लग रही है । यह मानना बेहद मुश्किल है कि - उस समय महिलायें इस तरह के फ़ोटो खिंचवाती होंगी । और रानी लक्ष्मीबाई ने ऐसा किया होगा । ये मानना तो बहुत दूर की कौड़ी लाने जैसा होगा । इस तरह की तस्वीर रानी के निजी कक्ष में ही खींची जा सकती थी । और मुझे नहीं लगता कि उस समय की

कोई भी रानी किसी भी फ़ोटोग्राफ़र को अपने निजी कक्ष में आने की अनुमति देती होगी ।
इस तस्वीर में दिखने वाली महिला के हाव भाव से ही पता चलता है कि - वह कैमरे और फ़ोटोग्राफ़ी के साथ काफ़ी अभ्यस्त और सहज हो चुकी हैं । साथ ही फ़ोटोग्राफ़ी की गुणवत्ता भी रानी लक्ष्मीबाई के समय से मेल नहीं खाती । उस समय के बक्से वाले कैमरे से इतनी अच्छी तस्वीरें खींचना संभव नहीं हुआ करता था ।
मेरे मूल अंग्रेज़ी लेख की एक पाठक श्रीमती चमन निगम जी ने एक रोचक टिप्पणी की थी । उन्होनें कहा कि - ऊपर दिए चित्र के साथ “ खूब लड़ी मर्दानी । वो तो झांसी वाली थी ” पंक्ति मेल नहीं खाती । इसलिए भी यह चित्र झूठा है ।
इस सारे झमेले में जो चीज़ मुझे सबसे अधिक परेशान कर रही है । वो है - हमारी पत्रकारिता ( विशेषकर हिन्दी पत्रकरिता ) का गिरता स्तर । मेरी जानकारी के मुताबिक ऊपर दी गई तस्वीर भारत के सबसे बड़े हिन्दी

अख़बार दैनिक भास्कर में छपी थी । चित्र के साथ में छपी जानकारी हालांकि ठीक है । लेकिन इस खबर के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति ने ग़लत तस्वीर छाप दी । शर्म आती है । इस तरह की पत्रकारिता देख कर ।
सो अगर ऊपर दिया गया चित्र ग़लत है । तो फिर सही चित्र कहाँ हैं ? ऐसा कहा जाता है कि - 1850 में एक ब्रिटिश फ़ोटोग्राफ़र ने झांसी की रानी की एक तस्वीर ली थी । उस समय रानी की आयु मात्र 15 वर्ष की थी । फ़ोटोग्राफ़र ने अपना नाम “ हॉफ़मैन ” बताया था । और कहा था कि - वह जर्मन है । ऐसा उसने शायद इसलिए किया । क्योंकि किसी ब्रिटिश व्यक्ति का रानी के आस पास फटकना भी संभव नहीं था । “ हॉफ़मैन ” द्वारा लिया गया चित्र नीचे दिया गया है ।
हॉफ़मैन द्वारा ली गई झांसी की रानी की तस्वीर - यह तस्वीर अहमदाबाद के एक चित्रकार अमित अम्बालाल के पास है । उन्होनें इसे 40 वर्ष पहले जयपुर से करीब डेढ़ लाख रुपए में खरीदा था । अम्बालाल ने इसे अपने फ़ोटोग्राफ़र मित्र वामन ठाकरे को दे दिया । और वामन ठाकरे ने इसे भोपाल में एक 

प्रदर्शनी के दौरान जनता के सामने रखा । इस तरह दैनिक भास्कर की खबर बनी । जिसमें ग़लत फ़ोटो को छाप दिया गया । मुझे नहीं पता कि - अखबार में छपी ग़लत तस्वीर में जो महिला दिख रही हैं । वे कौन हैं ? यदि किसी पाठक को पता हो । तो मुझे ज़रूर बतायें ।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 NOV 1835 को मणिकर्णिका के रूप में वाराणसी में हुआ था । बाद में उन्हें प्यार से “ मनु ” कह कर पुकारा जाने लगा । उनकी मृत्यु केवल 22 वर्ष की उमृ में ही हो गई । इस छोटी सी ज़िन्दगी में ही उन्होनें - आत्म रक्षा । घुड़सवारी । धनुर्विद्या का अध्ययन किया । तलवार । भाला और कटार चलाने में दक्षता हांसिल की । विवाह से पहले ही केवल महिला सिपाहियों की एक सेना बनाई । एक राजा से शादी की । 16 वर्ष की उमृ में माँ बनी । चार महीने बाद ही अपने बेटे को खो दिया । और उसके दो वर्ष बाद अपने पति को । उन्होनें झांसी राज्य की कमान संभाली । अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए अंग्रेज़ों के खिलाफ़ जंग की । और ऐसा युद्ध किया कि - अंग्रेज़ जनरल भी उनकी बहादुरी और कौशल की प्रशंसा करने लगे थे । अंत में रानी ने बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति पाई ।
क्या यह सब आपको रोमांचित नहीं करता ? मुझे तो करता है । इसीलिए आज भी हर भारतवासी रानी लक्ष्मीबाई का सम्मान करता है । और इसीलिए मुझे उन्हें “ हमारी रानी ” कहने में कोई संकोच नहीं है । झांसी की रानी भारतीय स्त्रियों के साहस और बहादुरी की मिसाल बन गईं । वे हमारे राष्ट्र का गौरव हैं ।
झांसी की रानी द्वारा अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ी गई लड़ाई के फ़ोटोग्राफ़्स उपलब्ध नहीं हैं । लेकिन लड़ाई के खत्म

होने के बाद कुछ तस्वीरे ली गईं थी । जो अभी भी उपलब्ध हैं ।
अगर हम “ हॉफ़मैन ” द्वारा लिए गए चित्र को छोड़ दें । तो लक्ष्मीबाई की छवि के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है । आस्ट्रेलियन पत्रकार - जॉन लैंग को 1854 में झांसी की रानी से मिलने और बात करने का दुर्लभ मौका मिला था । बाद में लैंग ने रानी के बारे में अपने अखबार “ द मोफ़ुसिल ” में लिखा था ( मैं अंग्रेज़ी से अनुवाद कर रहा हूँ )
- जब वे छोटी रही होंगी । तो उनका चेहरा बहुत ही सुंदर रहा होगा ( लैंग से मुलाकात के समय रानी की उम्र 19 वर्ष थी ) और अभी भी उस चेहरे में बहुत से जादू हैं । उनकी अभिव्यक्ति बहुत अच्छी और बुद्धिमत्ता पूर्ण थी । 

उनकी आंखे विशेष रूप से अच्छी थीं । और नाक नाज़ुक और करीने से बनी हुई थी । वे बहुत गोरी नहीं थीं | हालांकि काली होने से भी वे कोसों दूर थीं । उन्होनें कानों में सोने के कुंडलों के अलावा और कोई आभूषण नहीं पहना था । और उनका वस्त्र बिल्कुल मुलायम सफ़ेद मुस्लिन का था । वस्त्र उनके शरीर पर कस कर लपेटा गया था । जिससे कि उनके शरीर की बनावट साफ़ झलक रही थी । यह बनावट काफ़ी अच्छी थी ।
मेरा यह लेख अभी तक ज्ञात तथ्यों पर आधारित है । मैंने झांसी की रानी के असली फ़ोटोग्राफ़ के वाकई में असली होने का कोई दावा नहीं किया है । यह काम पुरातत्व वेत्ताओं का है । मेरा उद्देश्य केवल इतना है कि अपने पाठकों तक संदेश पहुँचा सकूं । ताकि वे अखबार में छपी ग़लत तस्वीर को इंटरनेट पर फैलाना बंद कर दें । 
साभार - फ़ेसबुक पेज से ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326