14 सितंबर 2012

पुराना खिलाङी


एक धर्म प्रचारक की ( भी अभी ) जिम्मेदारी होने के नाते मुझे लिखा पढी और सम्बंधित  दूसरे अन्य काम ( स्वतः स्फ़ूर्त प्रेरणा से ) करने होते हैं । अन्यथा कसौटी ज्ञान स्थिति में चल रहे साधु ( या शिष्य ) का मुख्य काम field work का होता है । इसमें मेरी भूमिका अभी लगभग " एन काउंटर स्पेशलिस्ट " जैसी है । इसलिये कल 14 sept 2012 की रात मेरे लिये यादगार रात थी । मैंने पहले भी कई बार बताया कि " अद्वैत ज्ञान " में आने से पूर्व मेरी स्थिति एक गुप्त शक्तिशाली तांत्रिक की थी । जिसकी प्रष्ठभूमि में पिछले कई जन्मों की सक्रियता शामिल थी । और जिससे इस जन्म में ( माया प्रेरित नियमानुसार ) मैं शुरूआती कई वर्षों तक अनभिज्ञ रहा । हालांकि एक आम इंसान से अलग बहुत कुछ मेरे जीवन में था । पर मैं उसको समझ नहीं पाता था । और मुझे ऐसा भी नहीं लगता था कि - वह दूसरों के साथ नहीं होता है । और फ़िर साधारण जीव संस्कार समाप्त होने की स्थिति में आने पर मुझे पूर्व स्थितियाँ धीरे धीरे अनुभव ( स्मरण ) होने लगे । जहाँ मैं इससे पूर्व ( जन्म में ) छोङ आया था । वहीं से मेरी यात्रा आगे शुरू होने लगी । ये मेरी अपनी बात थी । और फ़िर अद्वैत की सर्वोच्च " एकमात्र स्थिति " के लिये मेरा चुनाव हो गया । जिसमें सदगुरु ( के द्वारा उसी ) स्तर पर दूसरा ( उसी तरह का ) चुना ही नहीं जाता । और उसके ( मेरे ) अधीनस्थ भी अधिकतम 10 बनते हैं । यही 10 आगे निर्देशानुसार कार्यभार संभालते हैं । पर निश्चय ही अभी ऐसा योग्य कोई नहीं है । हमारे यहाँ 1 शिष्य ( मैं नहीं ) जो न. 1 स्थिति में है । और ऐसे कार्यों का पात्र हो सकता है । वह दरअसल स्वभाव और पात्रता अनुसार भक्त की

श्रेणी में आता है । और उसकी ऐसी बातों में कोई रुचि भी नहीं । तब भावना अनुसार ही पात्रता बनती है ।
एकदम शुरूआत ( 8 साल पहले ) की ही बात है । श्री महाराज जी ने 3 शिष्यों को इस तरह ( आगे वर्णन अनुसार )  के कार्यों हेतु तैयार किया । लेकिन वे दोनों मनमुखता और अन्य परिस्थितियों वश टिक नहीं सके । और उनका पतन हो गया । मैं तो हमेशा लालची किस्म का और मैदान छोङकर भागने वाला था । पर क्योंकि मेरे दूसरे अन्य बहुत से घटक मुझे इस पात्रता का श्रेष्ठ उम्मीदवार घोषित करते थे । अतः जबरदस्ती मार मार कर मुझे ( आगे के लिये ) प्रशिक्षित किया गया । और ( अब ) मैं अभ्यस्त हो गया ।
अगर आपने  तांत्रिक शब्द पर कभी गौर नहीं किया । तो अब करें । इस शब्द में बङा जबरदस्त सम्मोहन होता है । पर आम इंसान आमतौर पर तंत्र और तांत्रिक का मतलब छोटे मोटे टोने टोटके से ही लगाता है । जबकि तंत्र शक्तियों के टकराव बम या मिसायली हमलों या हवाई हमलों जैसा रोमांचकारी दृश्य उत्पन्न करते हैं । आपको टर्मिनेटर जैसी हालीवुड फ़िल्में इसके सामने एकदम ( तुलनात्मक ) वाहियात और नीरस लग सकती हैं । इसी आधार पर कल की घमासान रात मेरे लिये यादगार थी ।

ऐसे मामलों में स्थान और पात्रों के नाम में हमेशा की तरह गुप्त ही रखूँगा । कोई 1 sept 2012 को मेरे पास एक परेशान व्यक्ति का फ़ोन आया । जो किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से प्रताङित था । पीङित व्यक्ति के अनुसार - मैं निश्चय पूर्वक तो नहीं कह सकता । पर मुझे ऐसा लगता है कि वह कोई सिद्ध या तांत्रिक जैसा है । क्योंकि मुझे इस ( तंत्र मंत्र ) सबके बारे में कोई जानकारी नहीं है । बस मुझे ये अहसास ( उसके सामने होने पर ) अवश्य होता है कि वह जबरन मुझसे ( या अन्य से ) मनचाहा काम करा लेता है । कागजों पर दस्तखत । उसके अनुसार इच्छा न होते हुये कार्य करना आदि । वहाँ ( उस समय ) मुझे लग रहा होता है कि मैं किसी अदृश्य प्रभाव के वशीभूत कार्य कर रहा हूँ । पर फ़िर भी मजबूर होता हूँ । और बाद में ( वहाँ से दूर आ जाने पर ) मुझे अहसास होता है । अरे ! ये मैंने क्या किया ? गुरूजी बताइय़े । ये सब क्या है ? क्या जो मैं सोचता हूँ । वह सच है ? और यदि सच है । तो फ़िर इसका कोई इलाज है ।

वह बहुत गम्भीरता से अपनी बात कह रहा था । और मुझे किसी कार्टून फ़िल्म जैसा मजा आ रहा था । मैं सोच रहा था - काश ! वह  मेरे चेहरे के भाव देख पाता ।
आया है फ़िर याद मुझे गुजरा हुआ जमाना दोबारा । मैंने  सोचा । और अतीत जैसे मेरे सामने साकार हो उठा ।
- 100‍% । मैंने कहा - वह एक सफ़ल और उच्च स्तरीय तांत्रिक है । अक्सर लोग कल्पना भी नहीं कर सकते । आम जनजीवन में आम इंसान की तरह रहते हुये कोई इतना पहुँचा हुआ भी तुम्हारे बीच हो सकता है । लेकिन जैसा कि आप सोच रहे हो कि वह सिर्फ़ आप पर कोई तंत्र मंत्र चला सकता है । या चलायेगा । ऐसा कुछ नहीं है । दरअसल सफ़लता ने उसे अभिमानी बना दिया है । और वह हरेक को ( जो भी सामने आ जाये । या जिससे उसका सम्पर्क हो ) बन्दर जैसा नचाकर बहुत खुश होता है । उससे अपने स्वार्थ की पूर्ति करता है । वास्तव में जिन छोटी शक्तियों ( मगर आम इंसान के लिये बहुत बङी ) को उसने सिद्ध किया है । वे उसके लिये ये सब कार्य करती हैं । और तुम कल्पना भी नहीं कर सकते । वह 

( तुम्हारे स्तर से ) इतना शक्तिशाली है ।
जाहिर है । ये सुनकर कोई भी साधारण आदमी घबरा जायेगा ।
- फ़िर । उसने कहा -  फ़िर क्या ?
- कुछ नहीं । मैंने कहा - फ़िर कुछ नहीं । सिर्फ़ समर्पण और भक्ति उस मूर्ख 2 टके के तांत्रिक के घमण्ड को चकनाचूर कर देगी । ( मेरे ) 1 थप्पङ में वह पता नहीं चलेगा । कहाँ गया । क्योंकि वह ज्ञान का दुरपयोग कर रहा है । इसलिये उसमें सोचने जैसा कुछ है ही नहीं । इसलिये कोई फ़िर भी नहीं ।
प्रत्यक्ष रूप से परेशान व्यक्ति के सामने ( डाक्टर्स की  तरह ) इस तरह के विकल्प नहीं होते कि इस ( डाक्टर ) से नहीं उससे इलाज करायें ।  इस क्षेत्र में सच्चे लोगों की भीङ कभी नहीं होती । जो विकल्प चुनने की नौबत आये । वह तुरन्त समर्पण हो गया ।
- अब वह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाङ सकता । मैंने कहा - मगर यह सुरक्षा अस्थायी होगी । स्थायी सुरक्षा के लिये

आपको ( सत ) नामदान लेना होगा । क्योंकि अब मैं कोई तांत्रिक नहीं हूँ । और मैं स्वयं  गुरु के अधीन हूँ । अतः नियम से बाहर स्वेच्छा से कोई कार्य नहीं कर सकता ।
मरता । सब कुछ करता । वह तुरन्त सहमत हो गया । अब तुम निर्भय हो जाओ - मैंने कहा ।
अगले दिन -
उसी तांत्रिक व्यक्ति से फ़िर ( शरणागत का ) सामना हुआ । मगर आज वह उसकी आँखों में आँखे डालकर निर्भीकता से बात करता रहा । उसी के अनुसार - मैं 1 बार थोङा सा विचलित हुआ । लेकिन जैसे ही ध्यान आपकी तरफ़ गया । मेरा डर खत्म हो गया । वह आदमी आज कुछ धमकाने के अन्दाज में बात करता रहा । मगर मुझ 

पर कोई असर नहीं हुआ ।
अब जो बात इस पीङित व्यक्ति को भी नहीं मालूम - दरअसल वह  सिद्ध था । और इस तरह की अलौकिकता का कुछ हद तक जानकार था । अतः वह तुरन्त समझ गया कि - इसके पीछे कोई ताकत सहायक हो रही है । ऐसा यदि वह उसे प्रताङित न कर रहा होता । और यह व्यक्ति सामान्य रूप में भी उसके सामने जाता । तो भी उसे मालूम पङ जाता । पर वह इस स्तर का सिद्ध नहीं था कि तुरन्त अन्दाजा लगा सके कि - इसके ऊपर किसका हाथ है ?
क्योंकि ये केस फ़ाइल मेरे यहाँ लग चुकी थी । अतः उन दोनों के तनाव की रिपोर्ट तुरन्त मुझे मिली । ठीक उसी वक्त लाइव । जिस क्षण घट रही थी । न चाहते हुये भी एक हल्की सी मुस्कान मेरे चेहरे पर आ गयी । और मैंने सामने देखते हुये एक फ़ूँक मारी ।

सिद्ध के चेहरे पर तुरन्त चिंता के भाव आये । और वह असमंजस में उस वक्त वहाँ से हट कर एकान्त में चला गया । मैं आपको बता दूँ । ये कोई गुफ़ा जंगल मन्दिर आदि में बैठा सिद्ध नहीं । बल्कि बिजनेस में लगा हुआ आम सभ्रांत इंसान । मगर ढोंगी वेशधारियों की अपेक्षा बहुत अच्छा सिद्ध है ।
इसके बाद शरणागत व्यक्ति ने फ़िर फ़ोन किया । और मैंने कहा - जितनी जल्दी संभव हो । आप हमारे आश्रम से नामदान ले लें बस । इससे ज्यादा सोच विचार करने की जरूरत नहीं ।
8 sept 2012 को इन्होंने श्री महाराज जी से नामदान ले लिया । 
और फ़िर उस सिद्ध से अगली मुलाकात में । सिद्ध बोला - तो तूने कर लिया । अब तूने जो करना था । कर लिया । अब देखना ?? ..इसके बाद तरह तरह से धमकाता रहा । और हाथापाई पर 

उतारू हो गया ।
मैंने इस पूरी घटना में कोई हस्तक्षेप नहीं किया । क्योंकि ये दोनों का संस्कार गत मामला था । और अलौकिक उपाय सिद्ध ने स्वयं नहीं आजमाया । क्योंकि अभिमान वश वह स्वयं पूरा पंगा ( मुझसे ) लेने के मूड में था ।
जैसा कि स्वाभाविक था । शरणागत ने पूरे विस्तार से रिपोर्ट मुझे दी । जिसे सुनना भी मेरे लिये बोरियत से भरा था ।
- ये मेरे बचपन के खेल खिलौने हैं । मैंने फ़िल्मी अन्दाज में कहा - वह जिस स्कूल में ( अभी ) पढ रहा है । मैं उसका ( कभी ) प्रिंसीपल रह चुका हूँ । तुम कोई फ़्रिक मत करो ।
और फ़िर कल रात -
उस तांत्रिक ने वो किया । जो करना उसके लिये स्वाभाविक था । क्योंकि उसके अहं को कङी चोट पहुँची थी । वह अपने प्रतिद्वंदी को ( तो ) भूल गया । और उसने एक बङी भयंकर कृत्या मेरे लिये रवाना कर दी ।

ये कृत्या इतनी शक्तिशाली थी कि - अगर उसका लक्ष्य 10 ( साधारण ) आदमी भी होते । तो पलक झपकते ही उनको मार डालती । हार्ट अटैक । ब्रेन हैमरेज । कोई वाहन एक्सीडेंट । खून की उल्टी आदि आदि कोई भी बहाना बनता । और खेल खत्म ।
मुझे अपने गुल्ली डंडा खेलने के दिन याद आ गये । जब हवा में उछली गुल्ली पर डंडा सटाक से बैठता । और गुल्ली हवा में ( लगभग ) उङने लगती । मन में आया । इसके ऐसा जोरदार ( अदृश्य ) मुक्का मारूँ कि इसके मुँह से खून गिरे । 
पर कल मौसम ठंडा था । दिमाग तरावट से भरा हुआ था । मुझे मजा आ रहा था । इसलिये मैं इस खेल का पूरा पूरा मजा लेना चाहता था । और इसका एक ही मतलब था । निष्क्रिय रहना । और जो वह करे । उसे करने देना । और मैंने ऐसा ही किया भी ।
मैं दूरी का कोई अन्दाजा नहीं लगा सकता । पर शायद ( मुझसे ) 1 किमी पर आकर वह कृत्या रुक गयी । और लाख कोशिश के बाद भी आगे नहीं बढ पायी । फ़िर किसी खूबसूरत

डिजायन वाले शो पीस की तरह चार भागों में टूटकर वह ( तंत्र शक्ति ) नष्ट हो गयी ।
लेकिन सिद्ध को जैसे शायद इसका पूर्व अन्दाजा था । उसने दुहरा इंतजाम किया था । उस तंत्र शक्ति ( प्रहार ) को लेकर आयी मूल कृत्या ( उसी स्थान पर ) प्रकट हुयी । और यकायक वातावरण काली नग्न राख से पुती पतली पतली अशरीरी औरतों से भर उठा । उन सभी के बाल इतने गन्दे रूखङे और उलझे हुये थे कि मुझे नहीं लगता । वे शैंपू जैसी किसी चीज को जानती भी होंगी । मूल कृत्या मोटे शरीर की थी । उसके स्तन गोल और भरे हुये थे । लेकिन उसकी सहायक फ़ौज सभी दुबले शरीर की अशरीरी औरतों की थी । ये सभी एक माला टायप की पहने हुये थी । उनके बाल खङे हुये थे । उनके पूर्ण नंगे

काले शरीर पर राख पुती होने से वे कैसी दिखती होंगी । आसानी से सोचा जा सकता है ।
मैंने सोचा । काश ! ऐसे अदृश्य दृश्यों का फ़ोटो खींचा जा सकता । तो कितना मजा आता । अब तक शायद रात के 12 बज चुके थे । मुझे बङा अफ़सोस भी था कि - आज " ये लोग " मेरे पास भी नहीं आ सकते । कभी यही मेरे साथी संगी थे । तब.. आज कैसी मजेदार पार्टी होती । कोई नाच रही होती । कोई अजीव सी डरावनी आवाज में गा रही होती । कोई रो रही होती । कुछ कुर्सियों पर बैठी होती । कुछ बेड के नीचे घुसी होती । यह सब इतना मजेदार होता है कि - उसका ठीक वैसा ही वर्णन मुश्किल है । 
दूसरा प्रहार पहले की तुलना में अधिक शक्तिशाली और मायावी भी था । वह सब तो उतनी ही दूर रही । पर अचानक चारों तरफ़ हड्डियों और खोपङियों की अनेकानेक विशाल प्राकृतिक 

डिजायनें बनने लगीं । उनके हाथों में भी हड्डियाँ खोपङियाँ नजर आने लगीं । इस कार्यकृम को लगभग 2 घंटे से अधिक हो चुके थे । मुझे नींद सी आने लगी थी ।
- भाङ में जाओ । मैंने लगभग बोर होकर कहा । और आराम से सो गया ।
सुबह उठा । तो मौसम और भी सुहाना हो चुका था । झमाझम बारिश हो रही थी । रात की घटनाओं पर मेरा ध्यान एकबारगी गया भी । पर मैं अपनी सुबह कतई खराब नहीं करना चाहता था । अतः गर्म चाय की चुस्कियाँ भरते हुये खिङकी से बाहर होती बरसात को देखने लगा । अपनी काफ़ी शक्ति खर्च करने और दाव पेच आजमाने के बाद अब उस सिद्ध को काफ़ी हद तक सच्चाई का पता चल गया होगा । और निश्चय ही यदि वह अक्लमन्द होगा । तो ऐसी मूर्खता फ़िर कभी नहीं करेगा । क्योंकि अभी तो मैंने कोई पलटवार भी नहीं किया था ।

विशेष - ये अनुभव आपको वर्तमान स्थितियों और आसपास के घटनाकृमों से परिचित कराने के लिये हैं कि हमारे ही आसपास - ऐसा भी होता है । इसमें कुछ अनावश्यक विवरण ( जो आम इंसान के लिये नहीं होता ) हटा दिया गया है ।

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326