17 सितंबर 2012

गाय लङकी और वैल लङका बना ।


जय श्री गुरुदेव महाराज की । यह कुछ पंक्तियाँ मैंने इनके ब्लॉग से पढ़ीं । इनका हमारी तरफ नाम ज्यादा है । इसलिए आपकी जानकारी के लिए । थैंक्स ! संजय । ई मेल से ।
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सवाल - आपने पूछा है कि - धर्म का राज्य कब होगा ? 03 Nov 2009
जवाब - समय से सब काम होता है । समय जब आ जाऐगा । तब देर नहीं लगेगी । परिवर्तन हो जायेगा । और कोई जान नहीं पायेगा । रात में कुछ । और सुबह कुछ और । दृश्य होगा । धार्मिक लोग सत्ता में आयेंगे । फिर अच्छा समय आयेगा । इसके पहले बहुत तबाही आयेगी । परमार्थ का आध्यात्मवाद का रास्ता बताने वाले महात्मा हैं । उनकी दया से ही अच्छे लोगों की रक्षा होगी । और बुरे लोगों का सफाया हो जायेगा । सब कुछ कर्म अनुसार होगा । जिसके जैसे कर्म होंगे । वैसा ही उसको फल मिलेगा । पुण्य कर्मों से आप महात्माओं के पास पहुंच जाते हैं । महात्माओं ने कहा है कि - कलुयग के इस प्रथम चरण में पाप बहुत बढ़ गया है । अतः महात्माओं की मौज से इसी कलयुग में कुछ समय के लिए सतयुग आ रहा है । फिर धर्म का राज्य हो जायेगा । ऐसा होने पर सभी लोग ईश्वरवादी हो जायेंगे । और सुखी हो जायेंगे ।
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सवाल - आपने पूछा है कि - जीवन में आनन्द कैसे मिलता है ? 10 Nov 2009
जवाब - आप आनन्द चाहते हो । अमन चैन चाहते हो । नर्कों और 84 लाख योनियों की परेशाबियों से बचना चाहते हो । तो ईमानदारी से बच्चों की सेवा करो । और भजन करो । भजन में लगे रहोगे । तो बूँद बूँद करके घड़ा भर जाता है । फिर दरिया बन जायेगा । यह जमीन भारत भूमि महात्माओं से कभी खाली नहीं होती । महान शक्तियाँ इस भूमण्डल पर हमेशा रहा करती हैं । जब वे देखती हैं कि - तुम अपने रास्ते को भूलकर कहीं और चले गये । तो सामने आकर आवाज लगाती हैं । जीवात्मा सब में हैं । उस पर कर्मों का कूड़ा कचरा इकट्ठा हो गया । महात्मा कूड़ा कचरा हटा देते हैं । और जैसे आग के ऊपर राख जमी रहती है । इसी तरह राख 

हटा दो । आग धधक उठती है । इसी तरह से आग धधकने लगती है, । बुद्धि जग जाती है । फिर शुद्ध - प्रेम । सेवा । सत्य । और ज्ञान जाग जाता है । मन में सेवा भाव होना चाहिये । जिसकी सेवा करोगे । तो उसके दिल में तुम्हारे लिए दुआयें निकलेंगी । पहले के लोग इसीलिए सुखी जीवन व्यतीत करते थे । क्योंकि वे लोग गुरूओं । महात्माओं के सतसंग में जाते रहते थे । और उनकी शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन बिताते थे । अब वे सब बातें छूट गईं । इसीलिए परेशानियां लोगों की बढ़ गईं ।
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सवाल - आपने शब्द धुन के बारे में पूछा है । जिसका जिक्र संतमत की पुस्तकों में आया है । 17 Nov 2009
जवाब - शब्द धुन का मतलब है । ध्वनि यानी आवाज । शब्द धुन को नाम भी कहा जाता है । मुसलमान इसे  " आसमानी आवाज " या " कलमा " कहते हैं । यह ईश्वरीय आवाज है । जिसे जीवात्मा सुनती है । जो इस मुनष्य शरीर में दोनों आंखों के पीछे बैठी हुई है । इस ईश्वरीय संगीत को सुनने का नाम है - भजन । इसका भेद संत सतगुरू से प्राप्त होता है । जिसे दीक्षा कहते हैं । संतमत में इसे नामदान कहा जाता है । इस आंतरिक शब्द धुन को केवल आत्मा ही सुन सकती है । इसको सुन करके जन्मों जन्मों की सोई सुरत ( 

जीवात्मा ) जाग उठती है । और उसे सच्चा आनन्द प्राप्त होता है । भजन के अभ्यास में किसी प्रकार की थकावट अथवा परिश्रम नहीं होता । सुरत शब्द योग आनन्द का मार्ग है । सुमिरन से परमात्मा की याद करनी पड़ती है । और ध्यान में परमात्मा की नर रूप । नूरी स्वरूप । तथा शब्द रूप को स्थिर करना पड़ता है । इन साधनों को करके सुरत द्वारा शब्द में जुड़ना पड़ता है । जीवात्मा शब्द की एक बूंद है । शब्द ही गुरू है । और गुरू ही शब्द है । इस बात को समझना चाहिये । सुरत जब शब्द में मिल जाती है । तो शब्द रूप हो जाती है । फिर उसे कोई बूँद नहीं कहता । शब्द रूपी समुद्र में मिलकर वो स्वयं परमात्मा हो जाती है । वह मालिक शब्द रूप है । और सदा सबके साथ रहता है ।
वाणी में कहा है किः- शब्द स्वरूपी संग है । रहे न तुमसे दूर । धीरज रखियो चित्त में । दीखेगा सत नूर ।
http://jaigurudevworld.org/jaigurudevworld/info/SawalJawab.aspx?id=२८
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जय  श्री गुरुदेव महाराज  की । इनके ब्लाग में - क्या आप जानते हैं ? में लिखा है ।   
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क्या आप जानते हैं ? 15-Oct-2009
जब जीवात्मा नर्कों से निकलने के बाद जड़ योनि अर्थात पेड़ पौधों की योनि में आती है । उसके बाद कीड़े मकोड़ों की योनि में आती है । फिर पशुओं की योनि में गाय बैल का शरीर उसे मिलता है । तब वह 84 लाख योनियों का अन्तिम शरीर होता है । शरीर छूटने के बाद गाय लड़की बनती है । और बैल को लड़के का शरीर मिलता है । यह ईश्वरीय विधान है । 84 का कोई जीव यदि संतों के संपर्क में आ जाता है । उनके शरीर से स्पर्श कर जाता है । तो वो सीधे मनुष्य शरीर में आता है । संत यदि किसी पेड़ का फल खा लें । या किसी पेड़ का दातून कर लें । तो वह जीव मनुष्य शरीर का अधिकारी हो जाता है । यह विशेषता केवल संतों की है ।

संत उन्हें कहते हैं । जो सतलोक से आते हैं । और ईश्वर । बृह्म । पारबृह्म रूपी उनके अधीन हैं । संत ही सबके सच्चे पिता हैं । और उनकी मर्जी के खिलाफ 1 पत्ता भी नहीं हिल सकता । आरम्भ में सिवाय मालिक सत पुरूष के यहां कुछ नहीं था । और न शब्द ही था । अरबों खरबों वर्षों तक धुंधकार रहा । न जमीन थी । न आसमान था । और न शब्द ही था । संतों ने बताया कि - रचना की शुरूआत शब्द से हुई । सतलोक से सुरतों यानी रूहों को नीचे उतारा गया । निरंजन भगवान ने विधान बनाकर जीवों को यहां फंसा लिया । संतों का

अवतार हुआ । वे सतलोक से यहाँ आये । और नाम भेद बताया कि - ऐ जीवात्माओं ! तुम अपने घर चलो । तुम्हारा घर सतलोक है । काल ने तुम्हें यहाँ कर्म बन्धन में फंसा लिया है । कबीर साहब जीवों को समझाते हुऐ कहते हैं कि - कह कबीर वा घर चलो । जहाँ काल न जाई ।
जो जीव संतों की शरण में आ जाते हैं । भजन करते हैं । वो अपने घर वापस सतलोक चले जाते हैं । और जन्मने मरने का चक्कर सदा के लिए छेट जाता है ।
http://jaigurudevworld.org/jaigurudevworld/info/KyaAapJanteHain.aspx?id=24

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326