20 अक्तूबर 2012

आपके गुरुजी से दीक्षा कैसे मिलती है ?


राजीव जी ! नमस्कार । कृपया बतायें । आपके गुरुजी से दीक्षा ( नाम ) कैसे मिलता है ? मुझे क्या करना होगा ? क्या नियम है ?  पोस्ट " ये बात कुछ हजम नहीं हुई " पर 1 अनाम टिप्पणी ।
- क्योंकि भक्ति के प्रति खुद मेरा रुझान लगभग बाल्यकाल ( 9-10 आयु में घर में उपलब्ध धार्मिक पुस्तकें पढना ) ) से ही होने लगा था । और 15-16 आयु तक तो खास तंत्र मंत्र की पुस्तकों और जिज्ञासाओं के प्रति आकर्षण बहुत बढ चुका था । कुछेक ऊटपटांग प्रयोग भी करने की कोशिश करता । फ़िर 32 आयु तक द्वैत के कुंडलिनी योग । और तंत्र मंत्र में कुछ  सफ़लतायें । और आज 42 आयु तक अद्वैत और आत्मज्ञान के सर्वोच्च ज्ञान " सुरति शब्द योग " या सहज योग से निरंतर जुङा हूँ । और गुरु कृपा से अन्य अनेक को इस सर्वोच्च ज्ञान से सफ़लता से जोङने में सफ़ल रहा । पर जैसा कि मैं कई बार जिक्र कर चुका हूँ । 1 आम इंसान और मुझमें बस थोङा फ़र्क था । अपनी पूर्व ( जन्म ) यात्रा के चलते मेरी 3rd eye 

जन्म से ही सक्रिय थी । और ( उस वक्त ) मन निर्मल होने के कारण । बेहद बाल्यकाल से ही मुझे अशरीरी आत्मायें या सूक्ष्म शरीर बिना किसी प्रयास के खुली आँखों से दिखते थे । लेकिन मैं इस रहस्य को समझ नहीं पाता था । और स्वाभाविक ही लगता था कि - मेरी तरह सभी को दिखते होंगे । पर क्योंकि ये सृष्टि के गूढ रहस्यों में आता है । अतः ऐसे पात्र की स्वतः मनःस्थिति या बाह्य स्थिति ऐसी बन जाती है कि ये सब भेद गुप्त ही रहता है । कारण चाहे जो बने । फ़िर ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ ।
लेकिन आज से कोई 8 साल पहले जब मैं इस सबको लेकर गम्भीर हुआ । और मुझे पता चला कि - मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य ( जीवन रहते ) खुद का मोक्ष या दूसरे शब्दों में who am i ? को जानना सर्वोपरि है । तब मैंने फ़िर से अपने बारे में सोचा । और यहीं 

मुझे ( इस बिंदु पर ध्यान जाते ही ) भारी हैरानी हुयी । 1 सामान्य मध्य वर्गीय परिवार । और ( जीवन में ) उसी तरह के ( बहुत से ) उतार चढाव के बाबजूद । मैं सफ़लता से सर्वोच्च साधना के मार्ग पर निरंतर अग्रसर ( हुआ ) हूँ । वह साधना ? जिसके बारे में तमाम प्रतिष्ठित उच्च पदस्थ धार्मिक लोग सिर्फ़ गाल बजाते हैं । और आज मैं 100% कह सकता हूँ - सही अर्थों में अधिंकाश उसकी A B C D भी नहीं जानते । हजारों ऋषि मुनि साधु हिमालय जैसे क्षेत्रों में गल जाते हैं । और उसका ? कोई ओर छोर नहीं पाते ।
और जब मैंने अपने  बारे में सोचा । तभी मैंने सदियों से प्रचलित पूजा भक्ति ज्ञान ध्यान आदि परम्परा के बारे में सोचा । जिसकी जर्जर इमारत ( मगर सिर्फ़ आज )  बीमार सोच । रूढिवादिता । पाखण्ड । अंधविश्वास । और भारी अज्ञानता के बोझ से बेतरह कांप रही है ।

क्योंकि ये बहुत समय से आधारहीन जङरहित और लगभग अनास्था ( गलतफ़हमी है कि आस्था ) के बेहद कमजोर संबल पर टिके रहने की नाकाम सी कोशिश कर रही है । कोई भी समझ सकता है । आधारहीन या बेहद कमजोर नींव पर 1 सुदृढ भवन की कल्पना भी हास्यास्पद है । इसीलिये सनातन ( निरंतर ) ऊर्जा का अक्षय स्रोत ये सनातन भक्ति बिज्ञान - मात्र पोंगापंथी और धार्मिक ढकोसले जैसे शब्दों विशेषणों के साथ ही जुङ कर रह गया । जैसे खरब पति कंगाल हो गया हो ?
और मैंने फ़िर सोचा । क्या - अनपढ । बूढे । बीमार । अपंग । असहाय । निर्धन । दुखी । या कहना चाहिये । हर तरह से बेकार । निष्प्रयोज्य । कूङा करकट छाप लोग ही ( वो भी बेबसी में ) भक्ति करते हैं ? और फ़िर वे करुण स्वर में हाय हाय  चिल्लाने के अलावा कर भी क्या पाते हैं ? सिवाय - भगवान अब तेरा ही सहारा है । की अनर्गल फ़ालतू बकबास करने के । क्योंकि ( अब ऐसों  को ) 

भगवान भी कोई सहारा नहीं देता । कोई सहानुभूति नहीं - मर जा । रोता रह । सुख में सुमरन ना किया । दुख में करता याद । कह कबीर उस दास की । कौन सुने फ़रियाद ? कौन सुने ? अब पछताये होत का । जब चिङियां चुग गयी खेत । तब मैंने जब " सनातन भक्ति बिज्ञान " कुण्डलिनी द्वैत योग । और अद्वैत भक्ति के सर्वोच्च ज्ञान " सुरति शब्द योग " का विश्व स्तर पर प्रचार प्रसार करने का लक्ष्य लिया । उस  समय मेरा लक्ष्य ये जर्जर - अनपढ । बूढे । बीमार । निष्क्रिय । अपंग । असहाय । निर्धन । दुखी । हर तरह से बेकार । निष्प्रयोज्य । कूङा करकट छाप लोग नहीं थे । बल्कि सक्रिय ऊर्जावान युवा और शिक्षित लोग ही थे ।
और आज मुझे खुशी है कि हमारे अधिकांश साधक । शिष्य 20-40 आयु के उच्च शिक्षित । उच्च पदस्थ । और

IT आदि जैसे क्षेत्रों में विभिन्न स्तरों पर कार्यरत विवाहित अविवाहित स्त्री पुरुष और लङके लङकियाँ हैं । 3 वर्ष तक के बच्चे हमारे यहाँ से दीक्षा प्राप्त हैं । और गुरु महिमा के महत्व से ( अपनी बुद्धि अनुसार ही सही ) बखूवी परिचित हैं । और सौभाग्य से अखिल सृष्टि की supreme power गुरुदेव को नित्य प्रणाम चरण वंदन करते हैं । और ये कोई मामूली बात नहीं । तुलनात्मक उन वृद्धों के । जो भक्ति बिज्ञान की A B C D नहीं जानते । पर भक्ति विषय वार्ता पर गाल ऐसे बजाते हैं । जैसे इनका रजिस्ट्रेशन 100%  स्वर्ग के लिये हो चुका हो । और जन्नत में 72 हूरें छलकते जाम लिये सिर्फ़ इन्हीं का इंतजार कर रही हों ।
दीक्षा ( नाम ) कैसे मिलता है ? क्या करना होगा ? क्या नियम हैं - विश्व के किसी भी देश जाति धर्म के व्यक्ति के शरीर में स्वांस में स्वत गूँजते इस निर्वाणी ( जो मुँह वाणी से न जपा जाये ) आदि ( सृष्टि के शुरूआत से ही ) नाम को ही " सतनाम " कहते हैं । सतनाम का सामान्य अर्थ सत्य नाम है । क्योंकि इसको बदला नहीं जा सकता । और ये हिन्दू । मुस्लिम । सिख । ईसाई । भारतीय । अमेरिकन । रसियन । अफ़गानी । पाकिस्तानी । ताई । चाची । बुआ । नानी । बूढा । बच्चा । पक्का । कच्चा सभी के समान रूप से 1 ही हो रहा है । परीक्षण करके देखो । 4 सेकेंड में 1 नाम सुमरन । 2 सेकेंड में आना । 2 सेकेंड में जाना । 1 मिनट में 15 बार । 1 घण्टे में 900 बार । 24

घण्टे में 21600 बार । प्रभु के अखण्ड सनातन सतनाम का सरल सहज सुमरन ।
इस नाम को हमारे यहाँ से लेने के लिये फ़ोन पर अपनी अर्जी लगानी होगी । पूर्ण विधि विधान से सही नाम लेने का न्यूनतम खर्च 10 000 आता है । इसमें गुरु को तन मन धन अर्पित किया जाता है । न्यूनतम गुरु दक्षिणा में 5100 रुपये । गुरुदेव के लिये 5 वस्त्र - कुर्ता । धोती । गमछा । बनियान । अंतर्वस्त्र और चरण पादुका दिये जाते हैं । इसके अतिरिक्त बाँटने के लिये सफ़ेद बर्फ़ी का प्रसाद । 5 तत्वों के प्रतीक । 5 तरह ( रंग ) के पुष्प । धूप सामग्री ( अगरबत्ती धूपबत्ती आदि ) चाहिये होते हैं । इसके अलावा आश्रम में उपस्थित 5 से लेकर जितनी सामर्थ्य हो । साधुओं को भोजन  कराया जाता है । ये पूर्ण विधि विधान युक्त दीक्षा तुरन्त प्रभावी होती है । और दीक्षा के समय ही कई दिव्य अनुभव होते हैं । दीक्षा सिर्फ़ सुबह 7 से 9 के बीच होती है । इसके लिये कम से कम 1 रात पहले आना होता है । मेरा अनुभव है । यदि दीक्षा के बाद आप कुछ दिन आश्रम में रुक पाते हैं । तो ध्यान पक्का हो जाता है । इसके बाद भी 2-3 महीने में 1 बार आकर ध्यान अभ्यास को और भी पक्का करने उठाने हेतु आने से काफ़ी लाभ होता है ।
इस तरह जब ये सतनाम आपको मिल जाता है । जो वास्तव में साथ ही साथ उसी समय 3rd eye को खोल देता है । और जङ चेतन की गाँठ को काट देता है । और

आत्मा रूपी हँस जीव मुक्त भाव से परम की ओर उङता है । फ़िर आप कहीं भी चलते फ़िरते सोते जागते खाते पीते भी इसका सुमरन कर सकते हैं । वैसे खास मेरा सुझाव रहता है कि - सुबह कम से कम 15 मिनट बैठ कर । और शाम को भी कम से कम 15 मिनट । ये ध्यान करना बेहद लाभदायक होता है । फ़िर दोपहर या रात को लेटते समय लेट कर ही आप स्वांसों पर ध्यान दें । तो ये सोने पर सुहागा होता है । और आप बिलकुल मुफ़्त में लोक लोकांतरों की रोमांचक यात्रा कर सकते हैं । दुर्लभ गूढ ज्ञान बिज्ञान को जान सकते हैं आदि आदि । बाकी - बृह्मचर्य । त्याग ।  वैराग । ये छोङो । वो पकङो । जैसे फ़ालतू ढकोसले हमारे यहाँ बिलकुल भी नहीं है । बस सिर्फ़ आपके इसी हालिया जीवन में यह दुर्लभ अनमोल भक्ति ज्ञान आपसे जुङ जाता है । जिसके बारे में मीरा जी ने कहा है - पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो ।

- और किसी बिंदु पर संशय हो । तो आप ब्लाग के सबसे ऊपर फ़ोटो पर लिखे नम्बर पर  बात कर सकते हैं । साहेब ।
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
टूटे हुये तारों से फूटे वासंती स्वर । पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर ।
झरे सब पीले पात । कोयल की कुहुक रात । प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ ।
गीत नया गाता हूँ ।
टूटे हुये सपने की सुने कौन सिसकी ? अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी ।
हार नहीं मानूँगा । रार नयी ठानूँगा । काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ ।
गीत नया गाता हूँ । अटल बिहारी वाजपेयी ।
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
आज वो मनहूस दिन है । जिस दिन भारत चीन के साथ यद्ध में नेहरू की गलतियों की वजह से हारा था । और हमारे हजारों जवान शहीद हो गये थे । क्योंकि ? नेहरु ने कभी हिंदुस्तानियों या हिंदुस्तान की भलाई के बारे में न कभी सोचा था । न औलादें आज सोच रही हैं । इनकी नजर हमेशा से हिंदुस्तान की तिजोरी पर ही रही । इसलिये हिंदुस्तान की जनता को महंगाई की मार से । दाल रोटी में । और माइनारिटी मेजोरिटी की उलझन में उलझा कर यह लोग अपनी सियासी खिचड़ी ही पकाते गये । और सरकारी खर्चे पर अपनी अय्याशियां करते गये । 
वल्‍लभ भाई पटेल ने चेताया था - दरअसल चीन ने नेहरू जी से कह दिया था कि वो मैकमोहन रेखा का सम्‍मान 

करते हैं । और चीन के इस बयान पर वो भरोसा कर बैठे । लेकिन जब चीन ने तिब्‍बत पर हमला किया । तो देश में सवाल उठे । तो नेहरू को लगा कि अब चीन के साथ सीमा विवाद पर समझौता हो जाना चाहिये । दूसरी ओर चीन ने पणिक्‍कर के बार बार कहने पर भी इस मुद़दे पर बात नहीं की । वह सही समय के इंतजार में था । और तैयारी में जुटा था । पणिक्‍कर ने जब नेहरू को बताया कि चीन सीमा विवाद पर बात टाल गया है । तो नेहरू जी ने कहा - तुम ज्‍यादा जोर मत देना । क्‍योंकि समझौते के लिए हमारी तरुफ से दबाव डालना ठीक नहीं है । उन्‍हें लगेगा कि हम क्‍यों इस पर जोर दे रहे हैं । यह 1950 के बाद का दौर था । उधर चीन ने अरुणाचल लद्दाख समेत भारत से लगी सीमा हड़पना की शुरुआत कर दी थी । देश में इन खबरों पर गंभीर चिंतायें उठने लगी थीं । 

सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने भी नेहरू जी को चेताया था ।
उन्‍होंने कहा - भारत चीन को दोस्‍त समझता है । लेकिन चीन हमें दोस्‍त नहीं मानता । यहाँ तक कि तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति ने भी नेहरू जी को आगाह किया था । लेकिन नेहरू जी क्‍या किया ? देखिये । इतनी चेतावनियों के बाद भी नेहरू जी ने वित्त मंत्रालय को लिखा कि चीन की सीमा से सटे इलाकों में सड़कें बनाने का काम शुरू कर दो । लेकिन बहुत तेज गति से कार्य करने की जरूरत नहीं है ? धीरे धीरे इस काम को शुरू देना चाहिये । इसका मतलब आप खुद समझ सकते हैं । अब सोच लो हिन्दुस्तानियों । तिब्बत की तरह कश्मीर और असम भी गवाना है । या बनाना है । अखंड  और बुलंद - भारत ?
हटाओ इन पाखण्डियो को । और कहो 1 सुर में - 1 ही विकल्प मोदी ।  वन्दे मातरम । विक्रम बारोट ।
http://hindi.in.com/latest-news/international/50-Years-After-War-India-Chafes-Over-Defeat-To-China-1518792.html?utm_source=RHS

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