01 अक्टूबर 2012

है ना मजेदार चुटकला


इस दुनियां में भी । और second world के नाम से जानी जाने वाली इस इंटरनेट दुनियां में भी । अक्सर लोगों के धार्मिक पागलपन को देखता हूँ । काश ! यह धार्मिक चिंतन होता ? पर वास्तव में यह धार्मिक पागलपन है । लेकिन इस पर बात करने से पहले कुछ चुटकले सुनिये । 1 झकाझक सफ़ेद कार के पीछे बहुत से कुत्ते भौंकते हुये भागे जा रहे थे । कुत्तों की आदत होती है । 1 कुत्ता भौंकता हुआ भागा । उसके पीछे ( बिना सोचे समझे )  4 कुत्ते भागने लगते हैं । 4 के पीछे 40 । और 40 के पीछे फ़िर 400 । तब यकायक 1 समझदार कुत्ते ने पूछा - तुम क्यों भाग रहे हो ? सभी ने 1 ही जबाब दिया - हम इनको देख कर भागे । जब उनमें से " इनको " से पूछा गया - तो उन्होंने कहा - हम उनको देख कर भागे । जब " उनको " से भी पूछा गया । तो वो बोले - हमें भी खास पता नहीं । हमने उन 4 का अनुसरण किया । फ़िर उन 4 से पूछा । तो वो बोले - हमने इस 1 का अनुसरण किया । उस 1 से पूछा । तो वो बोला - कोई खास वजह भी नहीं । इस झकाझक गाङी को देख कर मेरा दिल इस पर टांग उठाने का किया । लेकिन इससे पहले मैं ऐसा कर पाता । गाङी  स्टार्ट होकर दौङने लगी । और मैंने भी ठान लिया । आज मैं इसे गीला करके ही मानूँगा ।
यह तो खैर चुटकला है । और चुटकले सिर्फ़ मनोरंजन के लिये होते हैं । उनकी भी भला क्या अहमियत ? तो आपके मनोरंजन के लिये 1 और चुटकला सुनाता हूँ । क्योंकि मैं जान गया हूँ । आपकी ज्ञान में कोई दिलचस्पी नहीं । आपको मनोरंजन वाले चुटकले ही पसन्द हैं । तो फ़िर मैं

ही क्यों किसी को बोर करूँ । मनहूसियत और ऊब फ़ैलाऊँ । इसलिये चुटकला न. 2 सुनिये ।
यादव उर्फ़ अहीर जाति के बारे में सुना है आपने ? नहीं सुना । तो फ़िर उत्तर प्रदेश में आज इसी जाति के इंसान की सरकार है । शास्त्र ऐसा कहते हैं । सिर्फ़ हिन्दुओं के भगवान ? श्रीकृष्ण भी इसी जाति में हुये थे । इससे पहले दलित जाति की स्त्री की सरकार थी । नीच जाति से बुरा और अपमान जनक भाव पैदा होता है । इसलिये बदल कर दलित शब्द लागू कर दिया गया । और ये शब्दों की हेर फ़ेर का ही कमाल है । दलित को छूने से भी कभी परहेज करने वाले ब्राह्मण उस स्त्री की सेवकाई करने लगे ।
खैर..कोऊ नृप होय हमें का हानि ? ये तो राजनीति है । ऊँच नीच इसका शाश्वत नियम है । मैं तो आपको चुटकले सुनाऊँगा । तो ये यादव उर्फ़ अहीर जाति भी ऊँच नीच के 2 खेमों में बँटी है । 1 घोसी 2 कमरिया । जैसे मुसलमान शिया और सुन्नी में बँटे हुये हैं । मैंने सुना था कि - घोसी नीचे होते हैं । कमरिया ऊँचे होते हैं । सुना गलत लिख गया । ऐसा ही है । पर ऐसा क्यों ? मैंने 1 अहीर से ही पूछा ।
उसने कहा - हमेशा से ऐसा नहीं था । 1 लङकी की शादी के सिलसिले में ऐसा हो गया । पुराना जमाना था राजीव जी । शादियाँ अक्सर ऐसे ही तय कर दी जाती थीं । लङकी को मालूम नहीं । लङके को मालूम नहीं । यहाँ तक कि उसके सगे माँ बाप को भी मालूम नहीं । और लङकी लङके की शादी तय हो जाती थी । लङका लङकी के मामा चाचा फ़ूफ़ा ताऊ मौसा कहीं गये । कोई लङका लङकी पसन्द आ गया । और शादी तय कर दी । ये कमरिया घोसी अहीरों के मामले में ऐसा ही है । संयोगवश 1 लङकी के 2 रिश्तेदार अलग अलग उसकी दोनों जगह ( 1 ही समय । मुहूर्त में ) शादी तय कर आये । अभी लङकी के घरवालों को कुछ मालूम तक नहीं । और 2 बारात 2 वर दरवाजे पर आ पहुँचे । क्या सरप्राइज देते थे - रिश्तेदार भी ? आज के माहौल में ये बात बिलकुल अविश्वसनीय लगेगी । पर 100% सच है । लङका लङकी अभी ठीक से नाक पोंछना भी नहीं सीख पाये होते । और शादी हो जाती । आप  सोच रहे होंगे । बारात स्वागत का प्रबन्ध आदि ? कोई लफ़ङा नहीं । मट्ठा के आलू की सब्जी । कद्दू की सब्जी और पूङियाँ । 4-

6 बर्तन । बहुत हद 1 साइकिल । 1 घङी । 1 भैंस । और 1 रेडियो मिल जाने पर वह शादी बहुत अच्छी दान दहेज वाली शादी मानी जाती थी । खैर..कन्फ़्यूजन जो भी रहा हो । गलतफ़हमी कुछ भी हुयी हो । इस जाति विभाजन कराने वाली 1 लङकी ? की 2 बारातें 1 ही समय मुहूर्त में दरबाजे पर आ गयीं । और शुभ विवाह उत्सव की जगह अशुभ लफ़ङा झगङा सम्मेलन का माहौल तैयार होने लगा । दोनों बारातों का कोई पक्ष बिना ब्याह किये वापस लौट जाने के समझौते को मानने को राजी नहीं । क्योंकि ये प्रतिष्ठा आन बान शान मान का प्रश्न था । इसलिये तेल चुपङी लाठियाँ भाले बल्लम निकल आये । क्योंकि उस समय बन्दूक रिवाल्वर कट्टे तमंचे थे ही नहीं ।
फ़िर कुछ समझदार लोगों ने तय किया कि इसका हल बुद्धिमता की परीक्षा से निकाला जाये । अतः दोनों पक्षों को शांत कर । ठहराकर । एक तालाब में काला कम्बल ( हल्के अंधेरे में ) फ़ेंक दिया गया । जो फ़ूल कर इस तरह ऊपर आ गया । जैसे किसी मरी भैंस का शब हो । तब कन्या पक्ष ने कहा - आप दोनों पक्षों में से जो भी इस शब को बाहर निकाल देगा ।

उसी से कन्या की शादी होगी । तब 1 पक्ष घुसर पुसर ( घोसी ) करता रहा । और दूसरे पक्ष ( कमरिया ) ने वो कम्बल खींच कर निकाल दिया । उसी समय से घुसर पुसर करने से 1 का नाम घोसी हो गया । और दूसरे का कम्बल निकालने से कमरिया हो गया । शायद आप न जानते हों । उत्तर प्रदेश की आंचलिक स्थानीय और ग्रामीण बोली में आज भी कम्बल को " कमरिया " कहते हैं । विवाह करने की उस जीत । और बुद्धिमान साबित होने से । कमरिया अहीर ऊँचे हो गये । और असमंजस में पङे रह गये घुसर पुसर करते घोसी नीचे हो गये । 1 लङकी की शादी से जुङी घटना ने 1 ही जाति में वर्ग वैमनस्यता का ऐसा बीज बोया । जो आज अंकुरित होकर नफ़रत का विशाल वृक्ष बन गया । जिससे राजनीति शादी विवाह अन्य सभी सम्बन्ध अभी तक प्रभावित होते हैं । है ना मजेदार चुटकला ?
कुत्ते भाग रहे हैं । कुत्ते भौंक रहे हैं । आज इच्छा पूरी करके ही मानूँगा । क्या ये चुटकला है ? आप एक प्रयोग करके देखें । शाम से हल्का अंधेरा ( अज्ञान ) होते ही किसी कुत्ते के पास कुछ ऐसा कर दें कि - वह भौंकने लगे । उसके पास से भागते हुये गुजर जायें । उसके पास कोई ईंट वगैरह आवाज करते हुये फ़ेंके । या और कुछ भी । एकाएक एक के बाद एक

आप सभी कुत्तों को भौंकते हुये आराम से सुन पायेंगे । देर तक । बहुत देर तक । और वो भी बिना वजह ।
हाँ तो मैं धार्मिक पागलपन को देखता हूँ । काश ! यह धार्मिक चिंतन होता ? तो ज्ञान ज्ञान युक्त आदान प्रदान परस्पर प्रेम भाव सिखाता । नफ़रत की सीमा रेखायें नहीं खींचता ।
चलिये । धार्मिक चिंतन करें । मुसलमान कुरआन और मुहम्मद और आयु सिर्फ़ 1400 वर्ष । सिख नानक गुरु ग्रन्थ साहब और आयु लगभग 600 वर्ष । ईसाई जीसस और बाइबल और आयु सिर्फ़ 2000 वर्ष । इसी तरह - जैन महावीर । बुद्ध आदि अन्य को समझें । 
हिन्दू ( कोई प्रमुख प्रवर्तक । कोई प्रमुख साधु सन्त । कोई अवतार आदि..मुहम्मद ईसा या नानक जैसों ? को गिन सकते हैं आप । कितने हुये ? और कितने होते रहते हैं । सनातन । लगातार । ) ऐसे ही हिन्दुओं का 

धार्मिक ग्रन्थ भण्डार कितना समृद्ध है । आप गिन पाओगे ?  हिन्दुत्व की आयु कितनी है ? कोई सटीक ? बता पायेगा । नहीं ना ।
अब धर्म फ़ल प्राप्तियों की बात करें । मुसलमान । ईसाई = स्वर्ग या नरक । सिख - मृत्यु के बाद गुरु ले जाता है । जीवित पर किताब गुरु ? है । मरने के बाद गुरुओं की बस सेवा लगी हुयी है । कोई सचखण्ड और कोई स्वर्ग जाता है । मुझे नहीं लगता । कोई सिख सोचता भी होगा कि - वह नरक भी जा सकता है । क्योंकि वह सुखमनी साहब आदि का पाठ जो करता है । गुरुद्वारों में सेवा करता है ।
हिन्दू भी कोई कम नहीं ? कम से कम इस मामले में । धार्मिकता में अल्प शिक्षित हिन्दू निश्चित ही स्वर्ग जाते हैं । और थोङे कुछ अधिक जानकार गोलोक जाते हैं । गोलोक जानते हैं आप ? जो श्रीकृष्ण का लोक है । और बृह्माण्ड में सर्वोच्च और सबसे बङा है । मगर बृह्माण्ड में । और कुछ जो हनुमान को पोंछ पोंछ कर । उँगली घिसते हुये माथे पर तिलक लगाये रहते हैं । वे सीधा भगवान में लीन या लय हो जाते हैं । हालांकि अपने बीबी बच्चों माँ बाप पङोसियों से कभी लय न हो पाये । उनसे झगङा करते रहे । गालियाँ खाते रहे । पर भगवान से इतना अटूट प्रेम कि - मृत्यु के बाद सीधा लय हो गये । क्या पागल थे । जो इस मल मूत्र की देह में । इस नश्वर सारहीन संसार में । इस कांय कलेश में । 

इस माया मोह में व्यर्थ फ़ँसे रहे । समझ आते ही लय हो जाते । हिन्दुओं की मैंने मृत्यु बाद । ये 3 गतियाँ ही सुनी हैं । है ना मजेदार चुटकला ?
इसीलिये मैं धार्मिक पागलपन को देखता हूँ । काश ! यह धार्मिक चिंतन होता ? 
दरअसल इस धार्मिक पागलपन के पीछे अचेतन में 1 अज्ञात भय छुपा है । क्या ?
मुसलमान यदि कुरआन मुहम्मद और काबा को ( मानना ) छोङ देगा । तो फ़िर कहाँ जायेगा । क्या करेगा ? उसकी मजबूरी है । कोई दूसरा विकल्प ही नहीं । उसे अपने धार्मिक चिंतन में दोष स्पष्ट नजर आता है । पर क्या करे बेचारा ? उसका पूरा व्यापार ही ठप्प हो जायेगा ।

ईसाई यदि बाइबल येरुशलम और जीसस को छोङ दे । फ़िर क्या करे ? कोई सहारा ही न रहा । और कोई विकल्प भी नहीं । सारे चर्च ही बन्द हो गये । ऐसे तो ।
सिख यदि ग्रन्थ साहब और नानक को छोङ दे । फ़िर क्या करे ? कुछ नहीं बचता । एकदम कंगाल हो गये । और कौन ऐसा पागल है । जो कंगाल होना चाहेगा । शायद कोई नहीं । फ़िर लंगर कौन खायेगा । और कौन खिलायेगा ।
इस मामले में हिन्दू भाग्यशाली हैं । जीवन भर छोङते पकङते रहें । इतना भण्डार भरा हुआ है । खाली नहीं हो सकता । इसलिये वे कभी किसी को कभी किसी को छोङते पकङते रहते हैं । धर्म नहीं व्यापार है । उनके लिये । मैं इसको मानता हूँ । मैं उसको मानता हूँ । मुझे सीता । मुझे गीता । मुझे रामायण । मुझे महाभारत । मुझे योग दर्शन । मुझे वेदांत । मुझे पुराण । मुझे उपनिषद ठीक लगता है ।
शायद इसीलिये कोई इंसान नहीं बनना चाहता । इंसान बनने का मतलब है - कंगाल हो जाना । कुछ न बचना । न हिन्दू । न मुसलमान । न सिख । न  ईसाई । न जैन । न बौद्ध । और आप कोई पागल हैं । जो ये ठप्पे छोङ दें । आपको ये ठप्पे गोदवा कर अपनी छातियों पर लगवाने चाहिये । क्योंकि सिर्फ़ इंसान होना एकदम बेवकूफ़ी है । कंगालियत है । जाहिलपना है । आप बिलकुल हल्के हो जायेंगे । फ़ूल की तरह । और आप भारी भरकम रहना ही पसन्द करते हैं । इसलिये आप कभी

इंसान मत बनना । सिख ईसाई बनना । या फ़िर हिन्दू मुसलमान बनना । नहीं तो । नहीं तो । दुनियाँ के बहुत से धार्मिक व्यापार यकायक बन्द हो जायेंगे । ऐसे व्यापार । जिनका टर्न ओवर तुम्हारी कल्पना से बाहर है । और जो तुम्हें डरा धमका कर सिर्फ़ शब्दों के उत्पादन पर चलते हैं । इसलिये तुम कभी इंसान मत बनना । क्योंकि तुम्हारे इंसान बनते ही प्रलय सी आ जायेगी ।

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