प्रश्न 21 - सूक्ष्म बाडी और प्रेत बाडी में क्या अंतर होता है ?
- अकाल मृत्यु को प्राप्त हुये प्रेत बने जीव के शरीर और सूक्ष्म शरीर में कोई अन्तर नहीं होता । पर डाकिनी शाकिनी वेताल आदि इनके शरीर पर उसी अनुसार शरीर होता है । यह अलग होता है ।
प्रश्न 22 - भूत और प्रेत में क्या अंतर है ?
- मेरी जानकारी के अनुसार भूत सिर्फ़ गुजरे हुये समय को कहते हैं । सही शब्द प्रेत ही है । फ़िर भी इसी भावार्थ पर जीवन से अजीवन हुये किसी जीवात्मा को किसी भाव में भूत कह दिया होगा । पर ऐसा कहने के पीछे मूल क्या है ? मुझे ज्ञात नहीं । वैसे भी शब्दों की जगह क्रिया मेरा क्षेत्र सदैव रहा है ।
प्रश्न 23 - जीवन रस क्या होता है ?
- मूलतः जो सात्विक प्राण चेतना जीवों के शरीर में बहती है । उसे ही जीवन रस कहते हैं । इसी रस से किसी कारणवश क्षीण हुये पंचतत्व भी पुष्ट होते रहते हैं । शरीर मन अंतःकरण भावशुद्धि यहाँ तक कि भाग्य आदि भी इसी शुद्ध सात्विक चेतना पर ही निर्भर हैं । किसी भी योग की शुरूआत यहीं से होती है । साधारण प्राणायाम क्रियायें अनुलोम विलोम और फ़िर ध्यान सम्बन्धित योग क्रियायें इसी जीवन रस को पुष्ट करती हैं । इस पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है ।
प्रश्न 24 - कृत्या क्या होता है ?
- कृत्य किसी कार्य करने को कहते हैं । तो जाहिर है कि कृत्या कोई ऐसा निर्माण जिसे किसी कार्य विशेष हेतु बनाया गया हो । अतः ये अच्छे बुरे दोनों प्रकार की हो सकती है । और दोनों उद्देश्यों हेतु भी हो सकती है । जिस प्रकार मारण मोहन वशीकरण आदि करने वाले कपङे काठ या मिट्टी की आकृति में कृत्या आरोपित करते हैं । और सिद्ध शक्तियां किसी भी चीज को कृत्या में बदल सकती हैं । इसमें मुख्य बात उनकी ताकत और सिद्ध क्षमता क्या है ? इस पर निर्भर है ।
प्रश्न 25 - हँस ज्ञान के बाद आत्मा सार सार को ही गृहण करती है । और असार त्यागती चली जाती है । सार और असार का मतलब क्या है ?
- यदि संक्षेप में कहा जाये । तो चेतनता सार है । और जङता असार है । यानी शरीर, और मन कल्पित सृष्टि के जङ पदार्थों से जीवात्मा के पांच प्रबल शत्रु - काम क्रोध लोभ मोह मद भावनाओं के साथ पूर्ण अज्ञान से जुङे रहना मोहित होना असार है । और कृमश ज्ञान द्वारा इनका क्षरण होते जाना ही सार है । संसार अज्ञान अंधकार भृम या माया का नाम है । और आत्मा ज्ञान प्रकाश सत्य और शाश्वत का नाम है । हंस की यात्रा इसी असार से सार की ओर होती है । कितनी हो सके । ये शिष्य पर निर्भर होता है ।
प्रश्न 26 - शंकर, दुर्गा, विष्णु आदि ये आरतियाँ किसने लिखी है ?
- कुछ आरतियां तो मूल ग्रन्थों से ही ली गयीं हैं । जो सत्य के अधिक करीब हैं । कुछ का हिन्दी रूपांतरण धर्म ग्रन्थों के स्तुति श्लोकों के आधार पर किया गया है । कुछ प्रसिद्ध भक्तों की वाणियों के तौर पर भी हैं । और कुछ भक्त कवियों ( अंतर ज्ञानी नहीं ) ने रचना की है । कुछ एकदम साधारण प्रकार के कवियों ने भी लिख दी हैं । जैसा आजकल देहाती धार्मिक लोक कथाओं के क्षेत्र में प्रायः देखने में आ रहा है । फ़िर भी कोई एकदम सटीक और वैज्ञानिक आध्यात्मिकता युक्त आरती मेरी नजर में आज तक नहीं आयी । आरती शब्द आर्त ( दुख ) भाव यानी दुख में की गयी प्रार्थना को कहा गया है । बेहद प्रसिद्ध आरती " ॐ जय जगदीश हरे " बनारस के किन्हीं व्यक्ति द्वारा लिखी गयी है । जिनका नाम अभी मुझे याद नहीं आ रहा ।
प्रश्न 27 - क्या इन नरकों में जानवर जैसे कुत्ते, जीव जन्तु भी सजा भोग रहे हैं ?
- जैसे ही मत्यु होती है । मनुष्य का स्थूल शरीर या आवरण छूट जाता है । और अंतःकरण यानी सूक्ष्म शरीर अलग हो जाता है । अब मान लो । उस जीवात्मा को देव योनि या स्वर्गादि प्राप्त हुआ । तो उसे उसी अंतःकरण रूपी सूक्ष्म शरीर पर दिव्य शरीर वस्त्र की तरह पहना दिया जाता है । सिद्ध लोक या गंधर्व या तांत्रिक या चित्र विचित्र लोक आदि गया । तो नियमानुसार वैसा ही शरीर सूक्ष्म शरीर के ऊपर पहना दिया जायेगा । ठीक इसी प्रकार नर्क में किस प्रकार का नर्क मिला है । उसी आधार पर " यातना शरीर " होता है । जो सूक्ष्म शरीर पर आवरित हो जाता है । अब कुत्ते बिल्ली आदि जानवर तो पहले ही नर्क समान भोग भोगते हुये भोग योनियों में हैं । तो फ़िर उन्हें अलग से नर्क की क्या आवश्यकता ? मनुष्य को छोङकर सभी भोग योनियां हैं । अतः वे ज्यों के त्यों ही रहते हैं । अर्थात सिर्फ़ पापी मनुष्य जीव ही नर्क भोगते हैं ।
प्रश्न 28 - क्या जानवरों में कुंडलिनी चक्र होते हैं ?
- देवताओं के शरीर में सिर्फ़ बह्मांड होता है । पिंड नहीं होता । जानवरों के शरीर में सिर्फ़ पिंड होता है । बह्मांड नहीं होता । और मनुष्य शरीर में पिंड बह्मांड दोनों होते हैं । इसलिये जानवरों के शरीर में कुन्डलिनी चक्र नहीं होते हैं । सच तो ये है । अलग अलग प्रकार के जीव जन्तुओं में मनुष्य के समान सभी पंच तत्व भी नहीं होते । किसी में चार । किसी में तीन । दो । एक । इस प्रकार तत्व होते हैं । जिसमें जो भी तत्व मूल होता है । उसे छोङकर बाकी तत्व क्षीण या ना समान होते हैं । जबकि मनुष्य में पंच तत्व समान होते हैं । देवताओं के तत्व अलग और इन पंच तत्व से हटकर होते हैं ।
प्रश्न 29 - शिव शक्ति कल्याणकारी महाशक्ति है । क्या इसे ही कुंडलिनी शक्ति कहते है ?
- कल्याणकारी और महामाया दोनों शब्दों का अन्तर देखो । कुंडलिनी को महामाया कहा जाता है । और शिव को कल्याणकारी । वास्तव में शिव शक्ति को सरल तरीके से कहा जाये । तो यही वो उपाधि है । जो समस्त जीवों को सात्विक चेतना प्रदान करती है । इसीलिये सिवोहम मन्त्र सार्थक भी है । क्योंकि मूल सात्विक चेतना के बिना कोई जीवन स्पंदन संभव ही नही है । शिव का अर्थ एक भाव में समग्र से भी है । और शिव से जुङा या शिव को जानने वाला समग्र को जान सकता है । फ़िर से ध्यान रखना । शिव और शंकर एक ही नहीं है । इन दोनों में जमीन आसमान जैसा ही अन्तर है । आमतौर पर टीकाकारों ने या कालमाया के जाल ने या अन्य किसी कारणवश शिव की मुक्त रूप और वास्तविक उपासना विधि आदि आज तक मेरी नजर में नहीं आयी । और जो भी आयीं । उनमें शंकर और शिव को एक कर दिया गया । हालांकि थोङे से ही सरल शोधन द्वारा इस भ्रांति को दूर किया जा सकता है । पर कम से कम मेरे पास इसके लिये समय नहीं । और जैसा समय आने वाला है । उसमें इसका कोई उपयोग भी नहीं है । क्योंकि सनातन या आत्मज्ञान भक्ति में शिव से परिचय आप ही हो जाता है । और अब उसी का समय आ रहा है ।
प्रश्न 30 - 1 पालिंग कितना होता है ?
- 1 पालिंग 3 लोक के बराबर होता है । और सचखंड के दीप और ऊपरी लोक लाखों करोङों पालिंग से भी अधिक माप के हैं । जिनकी गणना पदम महापदम असंख्य महापदम कहकर वर्णित की गयी है ।
- अकाल मृत्यु को प्राप्त हुये प्रेत बने जीव के शरीर और सूक्ष्म शरीर में कोई अन्तर नहीं होता । पर डाकिनी शाकिनी वेताल आदि इनके शरीर पर उसी अनुसार शरीर होता है । यह अलग होता है ।
प्रश्न 22 - भूत और प्रेत में क्या अंतर है ?
- मेरी जानकारी के अनुसार भूत सिर्फ़ गुजरे हुये समय को कहते हैं । सही शब्द प्रेत ही है । फ़िर भी इसी भावार्थ पर जीवन से अजीवन हुये किसी जीवात्मा को किसी भाव में भूत कह दिया होगा । पर ऐसा कहने के पीछे मूल क्या है ? मुझे ज्ञात नहीं । वैसे भी शब्दों की जगह क्रिया मेरा क्षेत्र सदैव रहा है ।
प्रश्न 23 - जीवन रस क्या होता है ?
- मूलतः जो सात्विक प्राण चेतना जीवों के शरीर में बहती है । उसे ही जीवन रस कहते हैं । इसी रस से किसी कारणवश क्षीण हुये पंचतत्व भी पुष्ट होते रहते हैं । शरीर मन अंतःकरण भावशुद्धि यहाँ तक कि भाग्य आदि भी इसी शुद्ध सात्विक चेतना पर ही निर्भर हैं । किसी भी योग की शुरूआत यहीं से होती है । साधारण प्राणायाम क्रियायें अनुलोम विलोम और फ़िर ध्यान सम्बन्धित योग क्रियायें इसी जीवन रस को पुष्ट करती हैं । इस पर तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है ।
प्रश्न 24 - कृत्या क्या होता है ?
- कृत्य किसी कार्य करने को कहते हैं । तो जाहिर है कि कृत्या कोई ऐसा निर्माण जिसे किसी कार्य विशेष हेतु बनाया गया हो । अतः ये अच्छे बुरे दोनों प्रकार की हो सकती है । और दोनों उद्देश्यों हेतु भी हो सकती है । जिस प्रकार मारण मोहन वशीकरण आदि करने वाले कपङे काठ या मिट्टी की आकृति में कृत्या आरोपित करते हैं । और सिद्ध शक्तियां किसी भी चीज को कृत्या में बदल सकती हैं । इसमें मुख्य बात उनकी ताकत और सिद्ध क्षमता क्या है ? इस पर निर्भर है ।
प्रश्न 25 - हँस ज्ञान के बाद आत्मा सार सार को ही गृहण करती है । और असार त्यागती चली जाती है । सार और असार का मतलब क्या है ?
- यदि संक्षेप में कहा जाये । तो चेतनता सार है । और जङता असार है । यानी शरीर, और मन कल्पित सृष्टि के जङ पदार्थों से जीवात्मा के पांच प्रबल शत्रु - काम क्रोध लोभ मोह मद भावनाओं के साथ पूर्ण अज्ञान से जुङे रहना मोहित होना असार है । और कृमश ज्ञान द्वारा इनका क्षरण होते जाना ही सार है । संसार अज्ञान अंधकार भृम या माया का नाम है । और आत्मा ज्ञान प्रकाश सत्य और शाश्वत का नाम है । हंस की यात्रा इसी असार से सार की ओर होती है । कितनी हो सके । ये शिष्य पर निर्भर होता है ।
प्रश्न 26 - शंकर, दुर्गा, विष्णु आदि ये आरतियाँ किसने लिखी है ?
- कुछ आरतियां तो मूल ग्रन्थों से ही ली गयीं हैं । जो सत्य के अधिक करीब हैं । कुछ का हिन्दी रूपांतरण धर्म ग्रन्थों के स्तुति श्लोकों के आधार पर किया गया है । कुछ प्रसिद्ध भक्तों की वाणियों के तौर पर भी हैं । और कुछ भक्त कवियों ( अंतर ज्ञानी नहीं ) ने रचना की है । कुछ एकदम साधारण प्रकार के कवियों ने भी लिख दी हैं । जैसा आजकल देहाती धार्मिक लोक कथाओं के क्षेत्र में प्रायः देखने में आ रहा है । फ़िर भी कोई एकदम सटीक और वैज्ञानिक आध्यात्मिकता युक्त आरती मेरी नजर में आज तक नहीं आयी । आरती शब्द आर्त ( दुख ) भाव यानी दुख में की गयी प्रार्थना को कहा गया है । बेहद प्रसिद्ध आरती " ॐ जय जगदीश हरे " बनारस के किन्हीं व्यक्ति द्वारा लिखी गयी है । जिनका नाम अभी मुझे याद नहीं आ रहा ।
प्रश्न 27 - क्या इन नरकों में जानवर जैसे कुत्ते, जीव जन्तु भी सजा भोग रहे हैं ?
- जैसे ही मत्यु होती है । मनुष्य का स्थूल शरीर या आवरण छूट जाता है । और अंतःकरण यानी सूक्ष्म शरीर अलग हो जाता है । अब मान लो । उस जीवात्मा को देव योनि या स्वर्गादि प्राप्त हुआ । तो उसे उसी अंतःकरण रूपी सूक्ष्म शरीर पर दिव्य शरीर वस्त्र की तरह पहना दिया जाता है । सिद्ध लोक या गंधर्व या तांत्रिक या चित्र विचित्र लोक आदि गया । तो नियमानुसार वैसा ही शरीर सूक्ष्म शरीर के ऊपर पहना दिया जायेगा । ठीक इसी प्रकार नर्क में किस प्रकार का नर्क मिला है । उसी आधार पर " यातना शरीर " होता है । जो सूक्ष्म शरीर पर आवरित हो जाता है । अब कुत्ते बिल्ली आदि जानवर तो पहले ही नर्क समान भोग भोगते हुये भोग योनियों में हैं । तो फ़िर उन्हें अलग से नर्क की क्या आवश्यकता ? मनुष्य को छोङकर सभी भोग योनियां हैं । अतः वे ज्यों के त्यों ही रहते हैं । अर्थात सिर्फ़ पापी मनुष्य जीव ही नर्क भोगते हैं ।
प्रश्न 28 - क्या जानवरों में कुंडलिनी चक्र होते हैं ?
- देवताओं के शरीर में सिर्फ़ बह्मांड होता है । पिंड नहीं होता । जानवरों के शरीर में सिर्फ़ पिंड होता है । बह्मांड नहीं होता । और मनुष्य शरीर में पिंड बह्मांड दोनों होते हैं । इसलिये जानवरों के शरीर में कुन्डलिनी चक्र नहीं होते हैं । सच तो ये है । अलग अलग प्रकार के जीव जन्तुओं में मनुष्य के समान सभी पंच तत्व भी नहीं होते । किसी में चार । किसी में तीन । दो । एक । इस प्रकार तत्व होते हैं । जिसमें जो भी तत्व मूल होता है । उसे छोङकर बाकी तत्व क्षीण या ना समान होते हैं । जबकि मनुष्य में पंच तत्व समान होते हैं । देवताओं के तत्व अलग और इन पंच तत्व से हटकर होते हैं ।
प्रश्न 29 - शिव शक्ति कल्याणकारी महाशक्ति है । क्या इसे ही कुंडलिनी शक्ति कहते है ?
- कल्याणकारी और महामाया दोनों शब्दों का अन्तर देखो । कुंडलिनी को महामाया कहा जाता है । और शिव को कल्याणकारी । वास्तव में शिव शक्ति को सरल तरीके से कहा जाये । तो यही वो उपाधि है । जो समस्त जीवों को सात्विक चेतना प्रदान करती है । इसीलिये सिवोहम मन्त्र सार्थक भी है । क्योंकि मूल सात्विक चेतना के बिना कोई जीवन स्पंदन संभव ही नही है । शिव का अर्थ एक भाव में समग्र से भी है । और शिव से जुङा या शिव को जानने वाला समग्र को जान सकता है । फ़िर से ध्यान रखना । शिव और शंकर एक ही नहीं है । इन दोनों में जमीन आसमान जैसा ही अन्तर है । आमतौर पर टीकाकारों ने या कालमाया के जाल ने या अन्य किसी कारणवश शिव की मुक्त रूप और वास्तविक उपासना विधि आदि आज तक मेरी नजर में नहीं आयी । और जो भी आयीं । उनमें शंकर और शिव को एक कर दिया गया । हालांकि थोङे से ही सरल शोधन द्वारा इस भ्रांति को दूर किया जा सकता है । पर कम से कम मेरे पास इसके लिये समय नहीं । और जैसा समय आने वाला है । उसमें इसका कोई उपयोग भी नहीं है । क्योंकि सनातन या आत्मज्ञान भक्ति में शिव से परिचय आप ही हो जाता है । और अब उसी का समय आ रहा है ।
प्रश्न 30 - 1 पालिंग कितना होता है ?
- 1 पालिंग 3 लोक के बराबर होता है । और सचखंड के दीप और ऊपरी लोक लाखों करोङों पालिंग से भी अधिक माप के हैं । जिनकी गणना पदम महापदम असंख्य महापदम कहकर वर्णित की गयी है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें