05 जुलाई 2016

एक अश्लील पोस्ट

आपने कभी गौर किया है, क्या देश क्या विदेश क्या शहर क्या गांव क्या मुहल्ले, सभी जगह मुख्य गाली के रूप में माँ, बहन और पुत्री को ही हमेशा लक्ष्य किया जाता है । अलग अलग स्थानीय भाषाओं के अनुसार माँ, बहन और पुत्री इन तीन शब्दों को स्थानीय लहजे में बदल कर इनके साथ सहवास क्रिया का प्रचलित सस्ता शब्द रोमन के अनुसार Cho और den जोङ दिया जाता है । इस तरह एक सर्वदेशीय सर्वाधिक प्रचलित अपशब्द या अपमानजनक शब्द बन जाता है ।
अब गौर करने वाला दूसरा बिन्दु यह है कि सिर्फ़ घृणा या बदला या अपमान के उद्देश्य से ही नहीं बल्कि दोस्तों या मजाक के रिश्तों या फ़िर सामान्य सम्बन्धों में भी सामान्य बातचीत या हास्य या फ़िर दोस्ताना बातचीत में भी माँ, बहन और पुत्री सम्बन्ध के साथ यौन क्रिया शब्द जोङ दिया जाता है ।
ग्रामीण क्षेत्रों और ग्रामीण जनता में तो यह आम है और मैंने बच्चे से लेकर वृद्धों तक को किसी के भी सामने ऐसा बोलते सुना है । यहाँ तक कि महिलाओं या लङकियों की उपस्थिति में भी । क्योंकि यह ग्रामीण संस्कृति में रचा बसा है ।
अब एक और बात पर गौर करें । पत्नी जो कि एक अर्थ में काम का पर्याय है । उसके लिये ऐसा कभी नहीं कहा जाता । अन्य दूसरे रिश्ते मामी भाभी बुआ ताई चाची मौसी आदि भी अपवाद स्थिति या 1% छोङकर कभी इस गाली या मजाक के लक्ष्य नहीं होते । यदि किसी व्यक्ति का सामने वाले से कोई ऐसा मजाक सम्बन्ध ही है । तब अलग बात है ।
मान लो, एक व्यक्ति की मौसी सामने वाले व्यक्ति की साली, सलहज आदि जैसा कुछ लगती है तो कभी कभी बेहद न्यून प्रतिशत में उस रिश्ते के साथ यौन क्रिया शब्द जोङते हैं ।
अब बात यह है कि इसकी जङ कहाँ हैं ? पत्नी या प्रेमिका जो काम सम्बन्धों का स्वीकार्य अस्तित्व है । गाली में उससे ऐसी बाहय रूप काम भावना क्यों नहीं प्रेषित होती । सिर्फ़ ये माँ, बहन और पुत्री..ये तीन सम्बन्ध ही क्यों ।

इसके पीछे की वास्तविकता आपको हिला सकती है । जिसका मूल आदि में है ?
दरअसल पत्नी जैसा कोई अस्तित्व सृष्टि में है ही नहीं । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं । पति या पत्नी सिर्फ़ एक ऐसे (बहुत गहराई से गौर करें) शरीर का अस्तित्व है । जिनका अन्य अर्थों के साथ साथ काम क्रिया जैसा सम्बन्ध भी है ।
और समझें, पत्नी सिर्फ़ रूपान्तरण है । उससे पूर्व वह माँ, बहन, पुत्री ही है और गहराई में जायें तो ये तीन सम्बन्ध आने वाले जन्मों में कभी भी पत्नी में रूपान्तरित होते है और अभी की पत्नी भी अगले जन्मों में इन तीन सम्बन्धों में रूपान्तरित होती है । यह निश्चय और अचेतन कार्मिक वासनाओं से बना सिद्धांत है । जो होता ही होता है । राजा भोज और उनकी साली का इस सम्बन्ध में विवरण है । अन्य दृष्टांत भी मिलते हैं ।
इस पोस्ट को आपके गहन विचारार्थ अधूरा और अस्पष्ट छोङते हुये मैं आदि कारण बताता हूँ । जिसमें सृष्टा ने पत्नी बनायी ही नहीं थी और कभी नहीं बनाई ।
मूल सृष्टा पुरुष का निर्माण कर चुका था । उसने अभी स्त्री नहीं बनाई थी । फ़िर उसने पहली स्त्री बनाई और पहले मन पुरुष के पास कार्यवश भेजी । मन पुरुष उस पर मोहित हो गया लेकिन स्त्री ने एक ही सृष्टा होने से बहन होने का हवाला दिया । परन्तु कुछ विरोध तकरार के बाद वह भी कामासक्त हो उठी और सृष्टि का प्रथम स्त्री पुरुष सम्बन्ध हुआ । सोचिये ये किसके मध्य था ?
फ़िर इस सम्बन्ध से तीन पुत्र हुये और वो कर्म उदासीन से विरक्त रहने लगे ।
तब प्रथम स्त्री ने अपने अंश से तीन कन्यायें उत्पन्न कर उनको एक जगह छुपा दिया और पुत्रों को उस स्थान पर भेजा । तीनों ने (क्योंकि वह तो जानते नहीं थे) उन्हें खुशी खुशी पत्नी स्वीकार किया । उनके परस्पर सम्बन्ध हुये । सोचिये माँ का अंशी (याने समान) कौन हुआ ?
अब मूल सृष्टा ने जिन पुरुषों को पूर्व में उत्पन्न किया । वे भी समान ही माने जायेंगे और उसने इच्छा रूपी स्त्री उत्पन्न हुयी तो यह एक भाव में पुत्री हुयी । अर्थात एक भाव में प्रथम सहवास पिता पुत्री का भी कहा जा सकता है ।
तो पूर्व के दो स्त्री सम्बन्ध खास थे - माँ और बहन । आगे पुत्री हुयी । और थोङे आवरणों के साथ इन्हीं को पत्नी स्वीकार कर लिया गया ।
ऊपर गाली के तीन सम्बन्ध बेहद आध्यात्मिक अर्थ वाले हैं । जो मूल की याद दिलाते हैं या जिनमें मूल का बीज छिपा है । क्योंकि वैसे तो परमात्मा न स्त्री है न पुरुष है और दोनों में वह 1 ही है ।
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अब संक्षेप में समझें, पत्नी सिर्फ़ एक भाव है या इसका पुरुष भाव पति भी । जो काम क्रियाओं के समूह रूप को बनाता है । एक स्त्री पुरुष शरीर में परस्पर आधे आधे स्त्री पुरुष होते हैं । यदि ऐसा न हो तो स्त्री पुरुष के बीच काम सम्बन्ध असंभव है । काम सम्बन्ध के समय स्त्री की आधी स्त्री पुरुष की आधी स्त्री से और पुरुष का आधा पुरुष स्त्री के आधे पुरुष से मेल करता है  और तब स्त्री पुरुष का मिलन होता है । ये मोटी बात नही है । बारबार चिन्तन करते हुये गहराई से समझ में आयेगी ।
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अश्लील पोस्ट लिखी ही है तो पुरुषों के पुरुषांग के लिये सबसे चीप शब्द ला ना और डा जैसे संयोग से बना बोलते समय क्या पदार्थ और धातु का अहसास होता है ? यहाँ सामान्य स्थिति की बात है न कि कामभावना के समय या किन्हीं उत्तेजक वार्ता के समय ।
स्वयं इसका अनुभव करें और समझदार विवेकी मित्रादि अन्य अन्य से तुलनात्मक सामान्य स्थिति में इसकी प्रकृति को जानें । ध्यान रहे ये कोई मजाक मनोरंजन नहीं है । प्रकृति रहस्य से इसका गहरा नाता है ।
खुद अनुभव करें । स्त्री यौनांग के लिये प्रचलित सबसे चीप शब्द चा ऊ और ता को बोलते समय एक पुरुष को सामान्य स्थिति में कुछ महसूस नहीं होगा ।
अब यहाँ ध्यान रखें । इसको पढकर ही आप यकायक यह शब्द बोलें । कुछ अहसास नहीं होगा लेकिन जब आप सहज स्वाभाविक सामान्य स्थिति में हों तो एक सृष्टिक पदार्थ और धातुगत अनुभूति होगी । जो ठोस और मजबूती की होगी और जिसका सम्बन्ध कामभावना से न होकर स्वयं के वीर्य बल का मापन बतायेगा । बशर्ते आप बात को ठीक से समझ कर प्रयोग अनूभूति कर सके तो ?

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