इसका सीधा सा सरल और एकदम सटीक उत्तर है -- नहीं ।
पतंजलि योग और कुण्डलिनी जागरण करवाने वाले गुरु पहले तो वास्तव में दुर्लभ हैं ।
यदि कहीं कोई छुपा हुआ गुरु मिल भी जाए । तो भी इस ज्ञान के जानकारों को पता है कि पतंजलि और कुण्डलिनी जागरण केवल 6 शरीरों का ज्ञान देती है । जिनमें भी कोई बिरला साधक ही 3 शरीरों तक पहुँच पाता है । ये 3 शरीर 1 स्थूल 2 सूक्ष्म 3 कारण हैं ।
परमात्मा को जानने की साधना संतमत की विहंगम मार्ग । नाम साधना ( नाम यानी महामन्त्र ) कहलाती है ।
वास्तव में यह साधना ही हमें परमात्मा का सही ज्ञान कराती है ।
पतंजलि योग के यम । नियम । आसन । प्राणायाम । प्रत्याहार । ये पांच जीवन के लिये व्यवहारिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिये । मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिये बेहद लाभदायक हैं । इसमें कोई संदेह नहीं है ।
पर ज्यादातार आदमी ( वो भी रामदेव बाबा की बदौलत ) प्राणायाम के अनुलोम विलोम आदि को ही मुश्किल से सीख पाया है । इससे आगे के तीन । धारणा । ध्यान । समाधि । तो मेरे ख्याल से न कोई बताता है । न बताने वाला है ??
यहां एक बडा सवाल उठता है ? पतंजलि योग के इस दूसरे भाग को । जो बेहद महात्वपूर्ण है । और सही लाभ देने वाला है । आप किस तरह से क्रियान्वित करेंगे ।
इसमें पहले जो धारणा करनी होती है । वो आप कैसे करेंगे । और किसकी करेंगे ? क्योंकि यहां इष्ट कौन सा है ? आपको कौन बतायेगा ?
मान लीजिये आपने खुद या किसी साधु ने आपको भगवान शंकर को बता दिया । अब आगे कनेक्शन कैसे जोडेंगे ? चलो ये भी मान लिया । साधु थोडा जानकार था । या आपने ही किसी किताब आदि से पढ लिया । कि शंकर को इष्ट रूप में धारणा करने पर आपको ह्रदय कमल पर ध्यान करना होगा ।
तब आप ध्यान के लिये मन्त्र ( जो देने वाले द्वारा सिद्ध होना चाहिये । तभी काम करता है । ) कैसे पायेंगे ? मान लीजिये कोई उल्टा सीधा मन्त्र भी प्राप्त हो गया । तो मन्त्र एक्टिव किस तरह होगा ।
और आगे उसकी ध्यान विधि क्या है ? ये भी आपको नहीं पता ?? यानी मामला धारणा पर ही टांय टांय फ़िस्स हो गया । अब जब धारणा ही नहीं है । तो फ़िर ध्यान किसका ? और कैसे करोगे ? और समाधि तो आपके लिये सपनों की चीज हो गयी ? आकाश कुसुम हो गयी ?
जैसा कि मैंने पहले ही कहा । पतंजलि योग या कुण्डलिनी ग्यान परमात्मा का मार्ग है ही नहीं । लेकिन यहां इसका उल्लेख इसलिये जरूरी लगा कि आजकल ध्यान जो मेडीटेशन के नाम से फ़ेमस है । बहुत लोग करते हैं । और ज्यादातर भ्रूमध्य ( भोंहो के बीच ) ध्यान टिकाकर इसको ध्यान होना मान लेते हैं ।
हांलाकि इसका भी लाभ है । पर वो लाभ आपके ( उस तरह से ) ध्यान पर बैठने का नहीं है । बल्कि हाय हाय फ़ांय फ़ांय की जिदगी से दूर आप थोडी देर शान्त होकर बैठे । उस बात का है ।
लेकिन मन की आंधी ने आपको वहां भी चैन से बैठने नहीं दिया ?? इससे अच्छा तो आप सोफ़े पर आराम से फ़्री स्टायल होकर बैठते । तो ज्यादा लाभ महसूस करते ।
..दरअसल मेरे कहने का अर्थ है । आज संसार के तमाम लोग जो मेडीटेशन कर रहे हैं । उस वक्त ( ध्यान के समय ) मन को डिसेबल करना सीख जांय । तो इतने ही समय और मेहनत में ध्यान का लाभ सौ गुना बढ जायेगा ???
खैर..ऊपर मैंने तीन शरीरों के बारे में बताया । स्थूल ( ऊपरी या बाह्य शरीर ) सूक्ष्म ( आंतरिक शरीर । मृत्यु के बाद यही जाता है । ) कारण शरीर ( इसी में वह तमाम कारण मौजूद हैं । जिससे आपका ये जन्म हुआ । और आगे लाखों होने वाले हैं ।..कारण में जाय के नाना संस्कार देखे ।( योग की एक स्थिति ) ) सूक्ष्म शरीर तक प्रायः छोटे मोटे योगी भी पहुंच जाते हैं । पर कारण शरीर तक ही पहुंचना बहुत दुर्लभ है ।
याद करें भीष्म पितामह की बात कि वह मात्र सौ जन्म तक चढ पाते थे ।..अब इसके बाद महाकारण आदि शरीरो की स्थिति है । यहां पर ध्यान रखने की बात ये है । श्रीकृष्ण । जिनको योगेश्वर की पदवी मिली हुयी है । उन्होंने छह शरीर पार करके शून्य सत्ता को जाना था । और जो परमात्मा की सत्ता नहीं है ?? यानी जिसका मतलब परमात्मा को जानना नहीं है । क्योंकि परमात्मा 0 नहीं 1 है । और 1 के बिना 0 की कोई वैल्यू नहीं है ??? इसका मतलब तो ये हुआ । कि परमात्मा किसी को नहीं मिलेगा ??
नहीं ।..ऐसा नहीं है । परमात्मा को जानने का ग्यान । चेतनधारा से जुडना । सुरति का शब्द से योग कराना । और तुम्हारे शरीर की चेतनधारा में उसका ( परमात्मा ) जो वास्तविक नाम स्वतः गुंजायमान है ।
उसको किसी सच्चे संत की कृपा से जानना । और फ़िर उसका अभ्यास करना । इसको सबसे श्रेष्ठ विहंगम मार्ग की उपमा दी गयी है ।
बुद्ध जब साधना करते करते परेशान हो गये । और उन्होंने दुखी होकर ( परमात्मा से ) कहा । क्या मुझे कभी बोध नहीं होगा ? तब आकाशवाणी हुयी ।..ए साधक अपने शरीर के माध्यम पर ध्यान कर ??? ये शरीर का माध्यम क्या था ? आप इसका उत्तर खोजने की कोशिश करें । क्योंकि यही चेतनधारा है । जिसमें अजर । अमर । अविनाशी । परमात्मा का वास्तविक नाम अखंड गूंज रहा है ।
पतंजलि योग और कुण्डलिनी जागरण करवाने वाले गुरु पहले तो वास्तव में दुर्लभ हैं ।
यदि कहीं कोई छुपा हुआ गुरु मिल भी जाए । तो भी इस ज्ञान के जानकारों को पता है कि पतंजलि और कुण्डलिनी जागरण केवल 6 शरीरों का ज्ञान देती है । जिनमें भी कोई बिरला साधक ही 3 शरीरों तक पहुँच पाता है । ये 3 शरीर 1 स्थूल 2 सूक्ष्म 3 कारण हैं ।
परमात्मा को जानने की साधना संतमत की विहंगम मार्ग । नाम साधना ( नाम यानी महामन्त्र ) कहलाती है ।
वास्तव में यह साधना ही हमें परमात्मा का सही ज्ञान कराती है ।
पतंजलि योग के यम । नियम । आसन । प्राणायाम । प्रत्याहार । ये पांच जीवन के लिये व्यवहारिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिये । मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिये बेहद लाभदायक हैं । इसमें कोई संदेह नहीं है ।
पर ज्यादातार आदमी ( वो भी रामदेव बाबा की बदौलत ) प्राणायाम के अनुलोम विलोम आदि को ही मुश्किल से सीख पाया है । इससे आगे के तीन । धारणा । ध्यान । समाधि । तो मेरे ख्याल से न कोई बताता है । न बताने वाला है ??
यहां एक बडा सवाल उठता है ? पतंजलि योग के इस दूसरे भाग को । जो बेहद महात्वपूर्ण है । और सही लाभ देने वाला है । आप किस तरह से क्रियान्वित करेंगे ।
इसमें पहले जो धारणा करनी होती है । वो आप कैसे करेंगे । और किसकी करेंगे ? क्योंकि यहां इष्ट कौन सा है ? आपको कौन बतायेगा ?
मान लीजिये आपने खुद या किसी साधु ने आपको भगवान शंकर को बता दिया । अब आगे कनेक्शन कैसे जोडेंगे ? चलो ये भी मान लिया । साधु थोडा जानकार था । या आपने ही किसी किताब आदि से पढ लिया । कि शंकर को इष्ट रूप में धारणा करने पर आपको ह्रदय कमल पर ध्यान करना होगा ।
तब आप ध्यान के लिये मन्त्र ( जो देने वाले द्वारा सिद्ध होना चाहिये । तभी काम करता है । ) कैसे पायेंगे ? मान लीजिये कोई उल्टा सीधा मन्त्र भी प्राप्त हो गया । तो मन्त्र एक्टिव किस तरह होगा ।
और आगे उसकी ध्यान विधि क्या है ? ये भी आपको नहीं पता ?? यानी मामला धारणा पर ही टांय टांय फ़िस्स हो गया । अब जब धारणा ही नहीं है । तो फ़िर ध्यान किसका ? और कैसे करोगे ? और समाधि तो आपके लिये सपनों की चीज हो गयी ? आकाश कुसुम हो गयी ?
जैसा कि मैंने पहले ही कहा । पतंजलि योग या कुण्डलिनी ग्यान परमात्मा का मार्ग है ही नहीं । लेकिन यहां इसका उल्लेख इसलिये जरूरी लगा कि आजकल ध्यान जो मेडीटेशन के नाम से फ़ेमस है । बहुत लोग करते हैं । और ज्यादातर भ्रूमध्य ( भोंहो के बीच ) ध्यान टिकाकर इसको ध्यान होना मान लेते हैं ।
हांलाकि इसका भी लाभ है । पर वो लाभ आपके ( उस तरह से ) ध्यान पर बैठने का नहीं है । बल्कि हाय हाय फ़ांय फ़ांय की जिदगी से दूर आप थोडी देर शान्त होकर बैठे । उस बात का है ।
लेकिन मन की आंधी ने आपको वहां भी चैन से बैठने नहीं दिया ?? इससे अच्छा तो आप सोफ़े पर आराम से फ़्री स्टायल होकर बैठते । तो ज्यादा लाभ महसूस करते ।
..दरअसल मेरे कहने का अर्थ है । आज संसार के तमाम लोग जो मेडीटेशन कर रहे हैं । उस वक्त ( ध्यान के समय ) मन को डिसेबल करना सीख जांय । तो इतने ही समय और मेहनत में ध्यान का लाभ सौ गुना बढ जायेगा ???
खैर..ऊपर मैंने तीन शरीरों के बारे में बताया । स्थूल ( ऊपरी या बाह्य शरीर ) सूक्ष्म ( आंतरिक शरीर । मृत्यु के बाद यही जाता है । ) कारण शरीर ( इसी में वह तमाम कारण मौजूद हैं । जिससे आपका ये जन्म हुआ । और आगे लाखों होने वाले हैं ।..कारण में जाय के नाना संस्कार देखे ।( योग की एक स्थिति ) ) सूक्ष्म शरीर तक प्रायः छोटे मोटे योगी भी पहुंच जाते हैं । पर कारण शरीर तक ही पहुंचना बहुत दुर्लभ है ।
याद करें भीष्म पितामह की बात कि वह मात्र सौ जन्म तक चढ पाते थे ।..अब इसके बाद महाकारण आदि शरीरो की स्थिति है । यहां पर ध्यान रखने की बात ये है । श्रीकृष्ण । जिनको योगेश्वर की पदवी मिली हुयी है । उन्होंने छह शरीर पार करके शून्य सत्ता को जाना था । और जो परमात्मा की सत्ता नहीं है ?? यानी जिसका मतलब परमात्मा को जानना नहीं है । क्योंकि परमात्मा 0 नहीं 1 है । और 1 के बिना 0 की कोई वैल्यू नहीं है ??? इसका मतलब तो ये हुआ । कि परमात्मा किसी को नहीं मिलेगा ??
नहीं ।..ऐसा नहीं है । परमात्मा को जानने का ग्यान । चेतनधारा से जुडना । सुरति का शब्द से योग कराना । और तुम्हारे शरीर की चेतनधारा में उसका ( परमात्मा ) जो वास्तविक नाम स्वतः गुंजायमान है ।
उसको किसी सच्चे संत की कृपा से जानना । और फ़िर उसका अभ्यास करना । इसको सबसे श्रेष्ठ विहंगम मार्ग की उपमा दी गयी है ।
बुद्ध जब साधना करते करते परेशान हो गये । और उन्होंने दुखी होकर ( परमात्मा से ) कहा । क्या मुझे कभी बोध नहीं होगा ? तब आकाशवाणी हुयी ।..ए साधक अपने शरीर के माध्यम पर ध्यान कर ??? ये शरीर का माध्यम क्या था ? आप इसका उत्तर खोजने की कोशिश करें । क्योंकि यही चेतनधारा है । जिसमें अजर । अमर । अविनाशी । परमात्मा का वास्तविक नाम अखंड गूंज रहा है ।
1 टिप्पणी:
bahut hi jaankaari bhara article - rohan
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