अहिल्या के शाप देने के बाद अंजनी रिष्यमूक पर्वत श्रंखला में चली गयी । और घनघोर तप करने लगी ।
उधर सती के अपने पिता के घर यग्य में दाह कर लेने के बाद बहुत समय बीत चुका था । और भगवान शंकर में तेज का समावेश हो चुका था ।
देवता विचार कर रहे थे कि शंकर जी को बहुत समय से सती का साथ नहीं है । ऐसे में यदि उनका तेज ( वीर्य ) स्खलित हो गया । तो हाहाकार मच जायेगा । इसके लिये वे एक ऐसी तपस्विनी की तलाश में थे । जो शंकर का तेज सह सके ।
तब देवताओं ने ध्यान से देखा । तो उन्हें अंजनी नजर आई । अंजनी संसार से ध्यान हटाकर घनघोर तपस्या में लीन थी । और राम के अवतरण का समय आ चुका था । रुद्र के ग्यारहवें अंश हनुमान जी के अवतार का भी समय आ रहा था ।
तब कुछ देवता भगवान शंकर के साथ महात्माओं का वेश वनाकर अंजनी की कुटिया के सामने पहुँचे । और पानी पीने की इच्छा जाहिर की । अंजनी ने प्रण कर रखा था कि किसी भी पुरुष की छाया तक अपने ऊपर न पङने देगी । लेकिन महात्माओं को जल पिलाने में उसे कोई बुराई नजर नही आयी । और महात्माओं को जल न पिलाने से उसकी तपस्या में दोष आ सकता था ।
इसलिये वह महात्माओं को जल पिलाने के उद्देश्य से एक पात्र में जल ले आयी । जब वह जल पिलाने लगी । तो महात्माओं ने पूछा कि बेटी तुमने गुरु किया या नहीं ? अंजनी ने कहा कि वह गुरु के विषय में कुछ नहीं जानती । तब महात्माओं ने कहा कि निगुरा ( जिसका कोई गुरु न हो ) का पानी पीने से भी पाप लगता है ।
अतः हम तुम्हारा जल नहीं पी सकते । अंजनी को जब गुरु का इतना महत्व पता चला । तो उसने महात्माओं से गुरु के बारे में और अधिक जाना । फ़िर उसने इच्छा जाहिर की कि वे महात्मा लोग उसे गुरुदीक्षा कराने में मदद करें ।
देवताओं ने कहा कि ये महात्मा ( शंकरजी ) तुम्हें दीक्षा दे सकते हैं । अंजनी ने विधिवत दीक्षा ली । और शंकर ने दीक्षा प्रदान करते समय । उसके कान में मन्त्र फ़ूँकते समय अपना तेज उसके अंदर प्रविष्ट कर दिया । इससे अंजनी को गर्भ ठहर गया ।
उसे लगा कि महात्मा वेशधारी पुरुषों ने उसके साथ छल किया है । उसने अपनी अंजुली में जल लिया । और उसी समय शाप देने को उद्धत हो गयी । तब शंकर आदि अपने असली वेश में आ गये । और कहा कि बेटी तू अपनी तपस्या नष्ट न कर । और ये सब होना था । तेरा ये पुत्र युगों तक पूज्यनीय होगा । और ये सब पहले से निश्चित था ।
अंजनी संतुष्ट हो गयी । उधर केसरी वानर अंजनी पर पहले से ही आसक्त था । बाद में अंजनी का भी रुझान भी केसरी की तरफ़ हो गया । और दोनों ने विवाह कर लिया । इस तरह हनुमान जी के अवतार का कारण बना । और अहिल्या का ये शाप कि तू विना किये का भोगेगी भी सच हो गया । वास्तव में अलौकिक घटनायें रहस्मय होती हैं । और मानवीय बुद्धि से इनका आंकलन नहीं किया जा सकता है । जो सच हमारे सामने आता है । उसके पीछे भी कोई सच होता है ? .
उधर सती के अपने पिता के घर यग्य में दाह कर लेने के बाद बहुत समय बीत चुका था । और भगवान शंकर में तेज का समावेश हो चुका था ।
देवता विचार कर रहे थे कि शंकर जी को बहुत समय से सती का साथ नहीं है । ऐसे में यदि उनका तेज ( वीर्य ) स्खलित हो गया । तो हाहाकार मच जायेगा । इसके लिये वे एक ऐसी तपस्विनी की तलाश में थे । जो शंकर का तेज सह सके ।
तब देवताओं ने ध्यान से देखा । तो उन्हें अंजनी नजर आई । अंजनी संसार से ध्यान हटाकर घनघोर तपस्या में लीन थी । और राम के अवतरण का समय आ चुका था । रुद्र के ग्यारहवें अंश हनुमान जी के अवतार का भी समय आ रहा था ।
तब कुछ देवता भगवान शंकर के साथ महात्माओं का वेश वनाकर अंजनी की कुटिया के सामने पहुँचे । और पानी पीने की इच्छा जाहिर की । अंजनी ने प्रण कर रखा था कि किसी भी पुरुष की छाया तक अपने ऊपर न पङने देगी । लेकिन महात्माओं को जल पिलाने में उसे कोई बुराई नजर नही आयी । और महात्माओं को जल न पिलाने से उसकी तपस्या में दोष आ सकता था ।
इसलिये वह महात्माओं को जल पिलाने के उद्देश्य से एक पात्र में जल ले आयी । जब वह जल पिलाने लगी । तो महात्माओं ने पूछा कि बेटी तुमने गुरु किया या नहीं ? अंजनी ने कहा कि वह गुरु के विषय में कुछ नहीं जानती । तब महात्माओं ने कहा कि निगुरा ( जिसका कोई गुरु न हो ) का पानी पीने से भी पाप लगता है ।
अतः हम तुम्हारा जल नहीं पी सकते । अंजनी को जब गुरु का इतना महत्व पता चला । तो उसने महात्माओं से गुरु के बारे में और अधिक जाना । फ़िर उसने इच्छा जाहिर की कि वे महात्मा लोग उसे गुरुदीक्षा कराने में मदद करें ।
देवताओं ने कहा कि ये महात्मा ( शंकरजी ) तुम्हें दीक्षा दे सकते हैं । अंजनी ने विधिवत दीक्षा ली । और शंकर ने दीक्षा प्रदान करते समय । उसके कान में मन्त्र फ़ूँकते समय अपना तेज उसके अंदर प्रविष्ट कर दिया । इससे अंजनी को गर्भ ठहर गया ।
उसे लगा कि महात्मा वेशधारी पुरुषों ने उसके साथ छल किया है । उसने अपनी अंजुली में जल लिया । और उसी समय शाप देने को उद्धत हो गयी । तब शंकर आदि अपने असली वेश में आ गये । और कहा कि बेटी तू अपनी तपस्या नष्ट न कर । और ये सब होना था । तेरा ये पुत्र युगों तक पूज्यनीय होगा । और ये सब पहले से निश्चित था ।
अंजनी संतुष्ट हो गयी । उधर केसरी वानर अंजनी पर पहले से ही आसक्त था । बाद में अंजनी का भी रुझान भी केसरी की तरफ़ हो गया । और दोनों ने विवाह कर लिया । इस तरह हनुमान जी के अवतार का कारण बना । और अहिल्या का ये शाप कि तू विना किये का भोगेगी भी सच हो गया । वास्तव में अलौकिक घटनायें रहस्मय होती हैं । और मानवीय बुद्धि से इनका आंकलन नहीं किया जा सकता है । जो सच हमारे सामने आता है । उसके पीछे भी कोई सच होता है ? .
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