10 मार्च 2010

क्या म्रत्यु अनिवार्य है ?


मंसूर के गुरु जुनैद 1 दिन पहाड़ी पर बैठे डूबते हुये सूर्य को देख रहे थे । कुछ कुछ अँधेरा सा होने लगा था कि तभी उनको 1 काली छाया उधर से जाती हुयी दिखाई दी । जुनैद ने काली छाया से पूछा - मौत । तू इस समय कहाँ जा रही है ?
मौत बोली - जुनैद । मैं कुछ आदमियों को लेने सामने वाले गांव में जा रही हूँ ।
कुछ दिन गुजर गए । एक दिन  मौत पुनः उसी रास्ते से वापस आ रही थी ।
जुनैद ने पूछा - तू तो कुछ लोगों की बात कर रही थी  । लेकिन वहाँ तो काफी लोग मरे हैं ।  बात क्या है ? क्या तुम मुझसे झूठ बोली थी ?
मौत बोली - मैंने तो कुछ ही लोगों को मारा । बाकी सब डर के कारण स्वतः मर गए ।  मैं क्या कर सकती थी ?
मृत्यु 1 परम सत्य है । मृत्यु से बच नहीं सकते ? एक दिन सबकी मृत्यु  होनी ही है ।
लेकिन क्या मृत्यु वाकई अंतिम सत्य है ?? फ़िर अमर शब्द का अस्तित्व कैसे है ? तब इसकी परिभाषा क्या होगी ? जिन लोगों को  होने वाले  कल्कि अवतार के बारे में जानकारी है । उन्हें मालूम होगा कि इस कल्कि अवतार को शस्त्र शिक्षा स्वयं त्रेतायुग के परशुराम देंगे । 


ध्यान दें । परशुराम फ़िर से जन्म नहीं लेंगे बल्कि वे त्रेतायुग वाले ही होंगे ?? त्रेतायुग के ही जाम्बवान । द्वापर युग में श्रीकृष्ण से मिले थे । और उनकी लडकी जाम्बन्ती का विवाह भी श्रीकृष्ण से हुआ था । 
त्रेतायुग के ही हनुमान हिमालय से पूजा हेतु दिव्य कमल लेने गये अर्जुन को एक बूढे विशाल बन्दर के रूप  में रास्ते पर  मिले थे । त्रेता के हनुमान ही श्रीकृष्ण के राम रूप का दर्शन करने द्वापर में द्वारिकापुरी गये थे । 
यहां कुछ लोग सोच सकते हैं । ये भगवान और उनसे जुडे लोगों का मामला है ।..और बात क्योंकि अलौकिक है । अतः सामान्य लोगों के मतलब की नहीं है । 
पर ये सोच एकदम गलत ही है । ये आपके लिये ही है । हम कोई  उनसे अलग नहीं हैं ? सभी जानते हैं कि आत्मा अमर है । लेकिन न तो हमने आत्मा को देखा है । और न ही हम शरीर का मरना रोक पाते हैं । ऐसी  दशा में आत्मा के अमर होने की बात मुंह जबानी स्वीकारना । बस खुद को झूठी तसल्ली देने के ही समान है ।
इसलिये इसका सही उत्तर जानने के लिए हमें विभीषण । हनुमान । अश्वत्थामा । जाम्बवान । वशिष्ठ । परशुराम  आदि के बारे में जानना होगा । जो हिंदू शास्त्रों के अनुसार युगों युगों तक जीने के लिए चिरंजीवी हैं । ये सब योग विध्या के अच्छे जानकार और उच्च स्तरीय तपस्वी कहे जा सकते हैं ।  ( लेकिन इनके लिए कहीं अमर शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है ।  ) 
यहां.. अगर एक दृष्टि से देखा जाए । तो सभी अमर ही हैं । क्योंकि आत्मा तो कभी मरती नहीं है । केवल अलग अलग 84 लाख योनियों में जाने वाला भोग शरीर ही बदलता है । लेकिन वो हमारे हाथ में नहीं होता । हमारी इच्छा से नहीं होता । योगमाया का परदा प्रत्येक नये जन्म पर डाल दिया जाता है । मृत्यु पर डाल दिया जाता है । इसलिये बार बार जन्म भी होता है । बार बार मृत्यु भी होती है । इसीलिये इंसान की हमेशा यही तलाश रही कि काश ऐसा होता कि मृत्यु होती ही नहीं ? और हम हमेशा ही जीवित रहते । 
मगर क्या ऐसा होना संभव है ??
 इसका एकदम सरल उत्तर हैं । हां । ऐसा संभव है । मोक्ष और चिरंजीवी होने के लक्ष्य को बताते हुये ही हिंदू शास्त्र भरे पडे हैं । हम मोक्ष भी पा सकते हैं । और चिरंजीवी भी हो सकते हैं ? आपको आश्चर्य होगा । शास्त्रों में भले ही कुछ चिरंजीवियों का जिक्र हो । पर हकीकत में चिरंजीवी हजारों की संख्य़ा में होते हैं । लेकिन वे अपने रहस्यों  को गुप्त रखते हैं ?? 
दरअसल दिव्यसाधना द्वारा योगी उन रहस्यों को जानते हैं । जिनसे मृत्यु होती है । हमारा शरीर प्रथ्वी । जल । वायु । अग्नि । और आकाश इन पांच तत्वों का बना है  । जवानी तक ये तत्व सबल रहते है । बुढ़ापा आने पर ये तत्व निर्बल होने लगते है । और शरीर में कमजोरी दिखने लगती है । जब इन तत्वों का शरीर की जरूरत की सीमा से परे क्षरण हो जाता है । तो जीव की मृत्यु हो जाती है । 
वास्तव में योगी इन्ही तत्वों को सबल बनाते रहते है । जिससे वे सदा जवानी की अवस्था में रहते है । ( वैसे योग के गूढ रहस्यों को थोड़े शब्दों में बताना बेहद कठिन बात है । )  फिर तत्वों को सबल करने के बाद योगी देवत्व की और उठने लगता है ।..वास्तव में सही रास्ता । सही तरीका मिल जाने पर । ये कोई ज्यादा कठिन बात नहीं है । क्योंकि 84 लाख योनियों के बाद । ये मनुष्य शरीर हमें इसलिए मिला है कि हम अपनी स्थिति को ऊंचा कर सके । इसमें हम अमरता को भी प्राप्त हो सकते हैं । हम देवत्व को भी प्राप्त हो सकते हैं । अपने दुष्कर्मों से हम नरक को भी प्राप्त हो सकते हैं । और पशुवत जीवन जीने से हम 84 लाख पशु योनियों में जा सकते है । 
खाना । पीना । सोना । मैथुन में लिप्त रहना ( यानी स्वार्थपूर्ण जीवन ) ये पशुवत जीवन कहा गया है । भक्ति । परमार्थ । और इसी जीवन में खुद को जान लेना । मोक्ष लक्ष्य को प्राप्त कर लेना । सार्थक जीवन कहा गया है ।..स्वांस स्वांस पर हरि भजो । वृथा स्वांस न खोय । ना जाने । इस स्वांस को । आवन होय न होय ??? 
सावधान । सावधान । काल कब झपट्टा मार दे । पता नहीं ? इसलिये समय रहते । जीवन रहते । बचने का उपाय कर लो ??

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326