आज संसार में कई तरह के योग प्रचलित हैं । जिनमें रामदेव बाबा की तर्ज पर पतंजलि योग साधना बहुत बड़े पैमाने पर नजर आ रही है । वास्तव में ये योग साधना शरीर के लिए अत्ति उत्तम है ।
अनुलोम विलोम से शरीर की नस नाङियाँ स्वस्थ रहती है । और मन विकार रहित होने लगता है । तथा प्राणायाम से साधक एक नयी ऊर्जा महसूस करता है । पर इसको सबसे बड़ा योग मान लेना और इसको ही भारत की प्राचीन परम्परा मान लेना एकदम गलत है ।
वास्तव में यह ऋषियों महर्षियों का शरीर तक सीमित ज्ञान है । और इसका आत्मज्ञान से अधिक वास्ता नहीं है । ये ॐ मंत्र को साथ लेकर चलता है । और ॐ से हमारे शरीर की रचना हुई है ।
शास्त्रों का अच्छा ज्ञान रखने वाले जानते हैं कि ॐ महामंत्र नहीं है । ये केवल शरीर का ज्ञान कराता है । इसलिए पतंजलि योग शरीर के लिए तो लाभदायक है । पर इसका मतलब आत्मज्ञान हरगिज नहीं है । हाँ ये जरूर कहा जा सकता है कि ये आत्मज्ञान की पहली सीङी तो है ।
इसके बजाय कुण्डलिनी जागरण कई सौ गुना बेहतर है ।
पर मेरा अनुभव ये कहता है । कुण्डलिनी जागरण करने बाले न के बराबर है । कुण्डलिनी जागरण जिस तरह आजकल सरल बताया जा रहा है । वैसा हरगिज नहीं है । वास्तव में ये एक बङी शक्ति है । जो संसार के लिए कार्य कर रही है । इसको जगाने में पूरा जन्म लगाना पङता है ।
वो भी तब जब इसका कोई ज्ञाता गुरु मिल जाय । और वो तुम्हें इस ज्ञान को देने का अधिकारी समझे । किताबों में पढकर या मनमाने तरीके से या हठयोग द्वारा जबरदस्ती कोशिश करने पर साधक की मौत तक हो सकती है । या वो पागल हो सकता है । ऐसे कई लोगों को मैं जानता हूँ । जो गलत तरीके से मनमानी मंत्र तंत्र साधना करने पर मर गये ।
सहज योग तो विना सतगुरु या पूर्णगुरु के हो ही नहीं सकता । वास्तव में सहज योग या सुरती शब्द योग सब योगों का राजा है । जिसे राजयोग कहा जाता है । पर एक मजे की बात ये है कि जिसे आजकल राजयोग बताया जा रहा है । वो राजयोग हरगिज नहीं है ।
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