28 मई 2010

इसका कोई उत्तर नहीं है


मैं कौन हूँ ? इसका कोई उत्तर नहीं है । यह उत्तर के पार है । तुम्हारा मन बहुत सारे उत्तर देगा । तुम्हारा मन कहेगा - तुम जीवन का सार हो । तुम अनंत आत्मा हो । तुम दिव्य हो । और इसी तरह के बहुत सारे उत्तर । इन सभी उत्तरों को अस्वीकृत कर देना है - नेति नेति । तुम्हें कहे जाना है - न तो यह । न ही वह । जब तुम उन सभी संभव उत्तरों को नकार देते हो । जो मन देता है । सोचता है । जब प्रश्न पूरी तरह से अनुत्तरीय बच जाता है । चमत्कार घटता है । अचानक प्रश्न भी गिर जाता है । जब सभी उत्तर अस्वीकृत हो जाते हैं । प्रश्न को कोई सहारा नहीं बचता । खड़े होने के लिए । भीतर कोई सहारा नहीं बचता । यह एकाएक गिर पड़ता है । यह समाप्त हो जाता है । यह विदा हो जाता है । जब प्रश्न भी गिर जाता है । तब तुम जानते हो । लेकिन वह जानना उत्तर नहीं है । यह अस्तित्वगत अनुभव है । 
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सवाल - मुझे भोजन से तृप्ति क्यों नहीं होती ? ओशो - हर रोज भोजन लेने से पहले चुपचाप ध्यान में बैठ जाओ । आंखें बंद कर लो । और महसूस करो कि तुम्हारे शरीर को क्या चाहिए ? जो भी जरूरत हो । तुमने अभी भोजन देखा नहीं । भोजन सामने भी नहीं है । तुम बस अपने प्राणों में महसूस करो कि तुम्हारे शरीर को क्या जरूरत है ? तुम्हें क्या खाने जैसा लग रहा है ?
डाक्टर लियोनार्ड पिअरसन इसे " हमिंग फूड " कहते हैं । वह भोजन जो तुम्हारे भीतर से आवाज देता है । ऐसा भोजन तुम चाहे जितना खाओ । लेकिन वही खाओ । दूसरी तरह के भोजन को वह " बैकनिंग फूड " कहते हैं । वह भोजन, जो तुम्हारे सामने हो । तो तुम उसमें उत्सुक हो जाओ । फिर वह दिमागी बात हो गई । तुम्हारी जरूरत न रही । अगर तुम अपने हमिंग फूड की आवाज को सुनते हो । तो वह तुम चाहे । जितना खाओ । लेकिन तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी । क्योंकि वह तुम्हें तृप्त कर देगा । शरीर उसी चीज की मांग करता है । जिस चीज की उसे जरूरत होती है । और किसी चीज की मांग शरीर नहीं करता । वह भोजन तृप्त करता है । और तृप्ति हो जाए । तो व्यक्ति जरूरत से ज्यादा कभी भी नहीं खाता । मुश्किल तभी होती है । जब तुम वे चीजें खाते हो । जो तुम्हें बाहर से आकर्षित करती हैं । तुम्हें दिखाई दी । और तुमने खा ली । ऐसा भोजन तुम्हें तृप्त नहीं करेगा । क्योंकि शरीर को उसकी जरूरत नहीं है । तुम अतृप्त रह जाते हो । अतृप्त रह जाने के कारण । तुम ज्यादा खा लेते हो । लेकिन ऐसा भोजन तुम भले ही कितना भी खाते चले जाओ । तुम्हें तृप्त नहीं करेगा । क्योंकि उसकी जरूरत ही नहीं है । यह 1 बड़ी समस्या बन गई है । क्योंकि तुम यह भूल ही गए हो कि तुम्हें अपनी भीतरी इच्छा को सुनना है । बल्कि लोगों को सिखाया जाता है कि वे भीतर की आवाज को न सुनें । लोग कहते हैं - यह खाओ । वह मत खाओ । जैसे बंधे हुए नियम हों । शरीर कोई बंधे हुए नियम नहीं जानता । मनस्विद कहते हैं - अगर बच्चों को भोजन के साथ अकेला छोड़ दिया जाए । तो वे वही खाएंगे । जिस चीज की उनके शरीर को जरूरत है । कई अध्ययन किए गए । और बड़े हैरानी के परिणाम आए हैं । अगर कोई बच्चा किसी बीमारी से पीडि़त है । और उस बीमारी के लिए सेब अच्छा है । तो बच्चा सेब को चुन लेगा । खाने की चाहे और कितनी चीजें पड़ी हों । लेकिन बच्चा सेब को ही चुनेगा । जानवर भी ऐसा करते हैं । सिर्फ आदमी यह भाषा भूल गया है । तुम 1 भैंस को लाकर बगीचे में छोड़ दो । पूरा बगीचा पड़ा है । पूरी हरियाली मौजूद है । लेकिन वह कोई परवाह नहीं करेगी । फूल और पेड़ कितना ही लुभाएं । लेकिन वह उनकी ओर देखेगी भी नहीं । वह खाने को वही घास चुनेगी । जिसकी उसे जरूरत है । तुम भैंस को धोखा नहीं दे सकते । सिर्फ आदमी को ही धोखा दिया जा सकता है । तो तुम्हारा शरीर जो कहता है । उसे सुनने की कला सीखनी शुरू करो । जब तुम नाश्ता करने लगो । तो आंखें बंद कर लो । और देखो कि - तुम क्या चाहते हो ? तुम्हारी वास्तविक इच्छा क्या है ? क्या उपलब्ध है ? यह मत सोचो । सिर्फ यह सोचो कि इच्छा किस चीज की उठ रही है । फिर जाकर वह चीज खोजो । और खाओ । कुछ दिन ऐसा करो । धीरे धीरे तुम पाओगे कि अब तुम बेकार के खाने में उत्सुक नहीं होते ।
दूसरी बात - जब तुम खाओ । तो अच्छी तरह से चबाकर खाओ । भोजन को जल्दी जल्दी निगलो मत । मुंह में उसका पूरा स्वाद लो । अच्छी तरह से चबाओ । क्योंकि स्वाद तो सारा गले से ऊपर ही है । गले से नीचे कोई स्वाद नहीं है । इसलिए जल्दी मत करो । भोजन को ज्यादा चबाओ । ताकि ज्यादा स्वाद आए । और इस स्वाद को सघन करने के लिए जो कर सकते हो । करो । जब तुम कुछ खाने लगो । तो पहले उसे सूंघो । उसकी गंध का मजा लो । क्योंकि आधा स्वाद तो गंध में ही है । कई प्रयोग किए गए हैं । अगर तुम्हारी नाक पूरी तरह बंद हो । और तुम्हें कुछ खाने को दिया जाए । तो तुम उसका स्वाद नहीं ले सकते । तब तुम्हें समझ आएगा कि स्वाद से ज्यादा गंध के कारण तुम स्वाद ले सकते हो । अगर तुम्हारी आंखें बंद हों । तो तुम उतना भी स्वाद नहीं ले पाओगे । क्योंकि अब तुम आंखों को आकर्षित करने वाले रंग को महसूस नहीं कर सकते । कई प्रयोग किए गए हैं । जिनमें नाक और आंख पूरी तरह बंद करके कुछ खाने को दिया जाता है । तो तुम यह भी नहीं बता सकते कि तुम क्या खा रहे हो । यही कारण है कि जुकाम में तुम खाने का मजा नहीं ले सकते । क्योंकि तुम उसे सूंघ नहीं पाते । जब लोगों को जुकाम होता है । तो वे तीखे मसालेदार भोजन खाना शुरू कर देते हैं । क्योंकि उससे उन्हें थोड़े से स्वाद का पता चलता है । तो भोजन करते हुए भोजन को अच्छे से देखो । सूंघो । कोई जल्दी नहीं है । पूरा समय लो । इसे 1 ध्यान बना लो । अगर लोगों को लगे कि तुम पागल हो गए हो । तो भी कोई चिंता न लो । भोजन को सब ओर से उलट पुलटकर देखो । आंखें बंद करके उसे छुओ । गालों से छुआओ । हर तरह से महसूस करो । बारबार सूंघो । फिर थोड़ा सा भोजन भी पर्याप्त होगा । और तुम्हें बहुत तृप्ति देगा । ओशो

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326