23 मई 2010

पारस पत्थर का रहस्य

mistry of paras stone - इस अदभुत सृष्टि में एक ही चीज चार रूपों में मौजूद है मिसाल के तौर पर प्रथ्वी को लें । एक प्रथ्वी जिस पर हम रहते हैं । एक प्रथ्वी देवी रूप में नारी आकृति है । एक जिसका हम इस्तेमाल करते हैं और न देवी मानते हैं न अन्य कुछ । एक प्रथ्वी हमारे अन्दर है । 
इसी तरह हम एक तिनका से लेकर बङी से बङी चीज को ले लें । वह इसी तरह चार अस्तित्व (पर वास्तव में है एक ही) के साथ मौजूद है । जो लोग अलौकिक साधनाओं के रहस्य से परिचित नहीं हैं । उन्हें ये बात समझने में कठिनाई हो सकती है ।
इसको समझने के लिये उदाहरण के तौर पर हम दूसरे तत्व अग्नि fire को लेते है । यदि कोई अग्नि तत्व को सिद्ध कर ले तो उसके देवता को जान जायेगा । उस समय वो देवता भी होगा । अदृश्य में व्याप्त अग्नि भी होगी । सांसारिक अग्नि तो प्रत्यक्ष होती ही है और हमारे अन्दर भी अग्नि होगी । इसी तरह पवन, आकाश आदि जितना और जो कुछ भी है । वह कुछ इसी तरह से है ।
हैरत की बात ये है कि जिस घर में हम रहते है वो घर, हम स्वयं हमारे माँ बाप और अन्य सभी भी हमारे अन्दर मौजूद है और इनको बङे आराम से उसी तरह देखा जा सकता है । जैसे हम टीवी पर कोई दृश्य देखते हैं ।
लेकिन अभी पारस पत्थर की बात है । ये वो पत्थर है जिसको किसी भी अन्य धातु से स्पर्श करा दिया जाय तो वो धातु सोने में परिवर्तित हो जाती है पर क्या ये पत्थर सिर्फ़ एक मिथक ही है । हरगिज नहीं । आप हमेशा के लिये ये बात गाँठ बांध लें कि इस संसार में कोई भी चीज मिथक नहीं है और जितनी भी चीजें हम देखते या व्यवहार करते हैं । उससे करोङों अरबों गुना अन्य दूसरी चीजें हैं जो हमारी पहुँच से बाहर है ।
उदाहरण के तौर पर भूत प्रेत को अन्धविश्वास कह दिया जाता है पर वास्तव में भूत प्रेत होते हैं और उनके हजारों प्रकार होते हैं । इसलिये जिस चीज का कभी कोई अस्तित्व नहीं होता । उस चीज की कहानी भी अधिक दिनों तक जिन्दा नहीं रहती है ।
यदि आप सच को ठीक से समझना चाहें तो सबसे पहले तो यही मानना होगा कि हम जिस जगह रहते हैं । वह सर्वत्र रहस्यमय आवरण से आच्छादित है ?
रैदास और गोरखनाथ महज आज से पाँच सौ साल पहले ही तो हुये है । जब एक महात्मा (सिद्ध पुरुष) उनके पास (रैदास) कुछ दिनों के लिये पारस पत्थर रख गया था ।
गोरखनाथ के गुरु मछन्दरनाथ जब महा जादूगरनियों के जाल में फ़ँसकर आसक्त होकर वहीं रहने लगे थे और गोरखनाथ उन्हें छुङाकर लाये थे तो वो अपने थैले में एक सोने की ईंट छुपा लाये थे । ये देखकर गोरखनाथ को गुरु के इस लोभ पर बेहद गुस्सा आया और उन्होने अपनी सिद्धि का चमत्कार दिखाते हुये एक बेहद भारी पत्थर की शिला (पर) को स्वयं मूत्र त्याग द्वारा (वास्तव में सिद्धि के द्वारा) सोने की बना दिया । ये बात अलग है कि गुरु मछन्दर ने उससे भी बङा चमत्कार दिखाकर गोरख का गरूर तोङ दिया ।
ये दोनों घटनायें विस्तार से आपको जल्दी ही मेरे ब्लाग पर पङने को मिलेगी ।
ये दोनों घटनायें सिर्फ़ पाँच सौ साल पहले पारस पत्थर या अन्य विधियों से सोना बनाने का प्रमाण देती हैं । मूलतः पारस पत्थर का हासिल होना एक प्रकार की अलौकिक सिद्धि ही है । क्योंकि आप इसको अध्ययन करके और अन्य शोध करके हासिल करने की चेष्टा करें तो ये प्राप्त नहीं होगा । परन्तु दूसरी कुछ अन्य चीजें हैं जो आपको पारस पत्थर का भ्रम दे सकती हैं । इनमें सबसे ऊपर नाम आता है सर्वभेदी पारद या सर्वग्राही पारद का । पारद पारा को कहते हैं और धर्मशास्त्र कहते हैं कि ये एक समय प्रथ्वी पर गिरा भगवान शंकर का वीर्य है ।
इसमें पारद के चार कुँए जम्बू दीप में बने । जिनमें सर्वश्रेष्ठ कुंआ देवताओं ने छुपा दिया और जो आज भी हिमालयी पर्वत श्रंखलाओं में मौजूद है । पर अज्ञात है । दूसरा कुंआ भी मानव से इतर जातियों ने छुपा दिया या कहे कि अपने कब्जे में ले लिया ।
एक सबसे निम्न स्तर के कुंए का पारद ही मनुष्य को प्राप्त हो पाता है और अन्य दूसरे कुंये का पारद भी अलौकिक ज्ञान के शोधकर्ता प्राप्त कर लेते है । इसी पारद को विभिन्न क्रियाओं से गुजार कर लगभग छह माह तक खल्ल में कूटा जाता है तब ये कुपित होकर मुँह फ़ाङ देता है और सर्वभेदी या सर्वग्राही बन जाता है । ऐसा हो जाने पर ये धातुओं को परवर्तित करने की क्षमता वाला हो जाता है और कुछ अन्य तरीको का इस्तेमाल करने पर ये किसी भी धातु को सोना भी बना देता है ।
यद्यपि ये कार्य कठिन है पर असंभव नहीं ।
प्राचीन समय में अनेक लोग इन विद्याओं का उपयोग करते थे । इस सम्बन्ध में मैंने एक प्रयोग किया था जो बीस प्रतिशत सफ़ल रहा था । इसमें मैंने एक पेङ का गोंद लेकर नौसादर के साथ काफ़ी तेज ताप पर गर्म किया और गर्म करने के बाद जो शोधित पदार्थ ऊपर उठकर आया उसको कनेर आदि वांछित पीले पुष्पों के रस के साथ पुनः तपाया और फ़िर से प्राप्त नये पदार्थ को रांगा शीशा और चाँदी (तीनों का महीन चूर्ण) के साथ घोंटा । 
अब मेरा अगला कदम इसको लुहार की भट्टी के समान दहकती आग में पिघलाना भर था । मैं इसके ही प्रयास में लगा ही था कि कुछ महात्मा आदि द्वारा मेरी सोच की दिशा बदल गयी ।
उनका मानना था कि यह व्यर्थ की मेहनत है । इससे अच्छा पारस ज्ञान ही है और इस तरह वो प्रयोग बीच में ही छूट गया और मैं अन्य बेहतर उपलब्धियों की तलाश में जुट गया । ये क्रम कुछ सालों चला ।
तब मेरा प्रभुकृपा से आत्मज्ञानी संतों से मिलना हुआ । उन्होंने कहा कि कितना भी कुछ भी हासिल कर लो अंत में तुम्हारे काम आने वाला कुछ भी नहीं है । इसलिये वो धन क्यों नहीं कमाते जो हमेशा काम आता है और अक्षय धन है ।
पारस और सन्त में, यही अन्तरो जान ।
ये लोहा कंचन करें, वो करि लैं आपु समान । 
यहाँ मैं एक बात कहना चाहूँगा कि आत्मज्ञानी संत मिलना दुर्लभ है । एक बार पारस पत्थर आपको सहज ही प्राप्त हो सकता है पर सच्चे संत मिलना बेहद मुश्किल है । लेकिन किसी कपावश मुझे ऐसे संत मिले और उनके शीतल वचनों के स्पर्श मात्र से ही मेरा सारा अज्ञान धुल गया और इस तरह पारस पत्थर और मेरे अन्य शोध एक बार फ़िर बीच में ही रह गये । यहाँ एक बात ये स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि मेरा वो समय यूँ ही निरर्थक नहीं गया बल्कि मैंने बहुत कुछ प्राप्त किया । पर वो आत्मज्ञान और परमात्म रस को जान लेने से फ़ीका ही लगता है ।
इसी तरह लांगलिका (कलियारी) नामक पेङ की जङ से भी सोना बनाया जा सकता है । कृतिम सोना जो असली सोने की तरह काला नहीं पङता को तो संभवतः अभी भी लोग बनाते हैं । 
इसी तरह एक प्रकार का बङा कमल पुष्प होता है जिसकी पहचान ये होती है कि उसमें गाङे रंग का तेल जैसा तरल पदार्थ निकलकर पानी पर फ़ैलता रहता है । ये तेल भी सोना बनाने के काम आता है ।
प्रकृति के अनेकों रहस्यों में से एक सोना भी, जब प्रथ्वी के गर्भ में सभी वांछित पदार्थ संयोगवश मिल जाते हैं तो अन्दर मौजूद प्राकृतिक ताप उसको सोने में बदलने की प्रक्रिया आरम्भ कर देता है । लेकिन क्योंकि ऐसा परिवर्तन हजारों सालों का सफ़र तय करके, तब प्राकृतिक रूप से बनी नयी चीज का निर्माण करता है । अतः मानवीय स्तर का कोई भी प्रयास न तो इसका मुकाबला कर सकता और न ही उस स्तर का निर्माण करने में सक्षम है ।
परन्तु ध्यान रखें कि ये बात में मानवीय स्तर पर कह रहा हूँ । साधु महात्मा और अलौकिक ज्ञान के ज्ञाताओं के लिये ये ज्ञान और ये बातें बङे तुच्छ स्तर की होती हैं । यानी वे चाहे तो ये चीजें चुटकियों में हासिल कर लेते हैं और प्रायः श्रेणी के अनुसार ये चीजें अक्सर महात्माओं पर देखने को मिल ही जाती हैं । 

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ये आत्म ज्ञान क्या है जो आपको पसंद आया वो आपने लिख दिया जो कबीर दास जी को सही लगा लिख दिया क्या कोई प्रमाण है आपके पास के इस जगत में भगवान खुदा या कोई देवी हैं अगर हैं तो इतनी चोरी क्यों इतनी रिश्वत क्यों इस दुनिया का हर इंसान 99% करप्ट क्यों कोई भी नहीं जानता आत्मज्ञान है क्या अगर है कोई ऐसा आत्मज्ञानी तो मुझसे एक बार मिलाओ जरूर मैं अपना नाम अपना पता गुप्त रखता हूँ अगर है कोई आत्मज्ञानी तो मुझसे मिलाओ तो कृपया कर के

Unknown ने कहा…

is tesst karane ka proof to he hi nahi
atamgan to man le par jab tak eyes se nahi see to bilive kese kar le

Unknown ने कहा…

एक बार मिलाओ जरूर मैं अपना नाम अपना पता गुप्त रखता हूँ अगर है कोई आत्मज्ञानी तो मुझसे मिलाओ तो कृपया कर
rAJVEER
UDAIPUR

बेनामी ने कहा…

आप या आपके परिवार में कोई पूजा पाठ या किसी प्रकार से भी ईःवर की आराधना करते है? यदि हां तो ये क्यों करने देते हो। बंद करा दीजिये। आप या आपके परिवार का और कोई सदस्य ऊपर वाले का नाम नहीं ले ऐसा संभव ही नहीं है। जिस दिन आप इस बात को समझ जायेंगे आत्मा और परमात्मा को समझ जायेंगे उस दिन खुद बखुद आपसे आत्मज्ञानी की मुलाकात हो जायेगी

Rks ने कहा…

My father spent his whole life in this experiment. But was unsuccessful or can say partially successful.

Rks ने कहा…

My father spent his whole life for this experiment and was unsuccessful or partially successful.

बेनामी ने कहा…

Muje sona banana hh

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