29 अक्टूबर 2012

जो भी होता है जीव के कर्म संस्कार अनुसार ही होता

पहला ईमेल - राजीव जी ! मुझे याद है आपने एक लेख में लिखा था कि - गुरूदेव ने ये बताया कि इसका संघर्ष का टाइम 15 साल है या 2 साल है या जितना भी । मैं ये जानना चाहता हूँ कि मेरा कितना टाइम है । इस ज्ञान को प्रक्टीकल के तौर पर जानने में या इस जन्म में मैं ये नहीं जान पाऊँगा ?
कृपा करके फोन पर बताईये, मिस काल कर दीजियेगा । बाबा फ़कीर चन्द जी
आपका सोहन
(Saturday 27 October 2012 7:17 PM)
(ये ईमेल (ऊपर) पहले मुझसे inbox फ़ोल्डर से गलती से डिलीट हो गयी फ़िर ध्यान आने पर मैंने इसे TRASH फ़ोल्डर से प्राप्त किया)
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दूसरा ईमेल - राजीव जी ! मेरे पहले गुरूजी जिन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और मुझे अपनी शरण में लिया । वो हैं - श्री कृष्ण गिरी जी महाराज और उन्होंने जो कहा था उससे मैं एक कदम भी आगे नहीं चल पाया हूँ । संत वचन सिद्ध होते हैं जो बोल दिया, हो गया ।
और राजीव जी ! आपने जो गुरूजी के आश्रम के बारे में ब्लाग पर बताया ।
ऐसे हमारे गुरूजी के 7 आश्रम हैं और एक से एक भव्य और हमारे गुरूजी के पास 5 गाङियाँ हैं, भक्तों की दान की हुई । राजीव जी ! जो भी होता है, जीव के कर्म संस्कार अनुसार ही होता है । किसी की ताकत नहीं कि किसी भी जीव को कोई भी उसके कर्म संस्कार से हट के हासिल करवा सके ?
शायद यही सत्य है ।
आपका सोहन गोदारा
(Sunday 28 October 2012 6:35 PM)
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अगर सनातन ज्ञान परम्परा का (भी) ऐतहासिक अध्ययन किया जाये तो सिद्ध और स्थापित नामी गुरुओं के भी गिने चुने शिष्यों के नाम देखने को मिलते हैं । कबीर साहब के धर्मदास, बंकेज, चतुर्भुज । एक शिष्य का नाम अभी ध्यान नहीं आ रहा शायद सहदेव है ।
इनमें धर्मदास का ही नाम खास सुनाई देता है । रैदास - मीरा जी, रामकृष्ण - विवेकानन्द, समर्थ गुरु रामदास - छत्रपति शिवाजी, अद्वैतानन्द - स्वरूपानन्द, गुरुनानक - बाला, मरदाना, प्राचीनकाल में दुर्वासा - श्रीकृष्ण, वशिष्ठ - राम, अष्ट्रावक्र - जनक, राजा जनक - शुकदेव आदि आदि ।
अब एक प्रश्न उठता है, क्या इन गुरुओं ने गिने चुने 100-50 शिष्य ही बनाये थे या फ़िर कुछ हजार तो होंगे ही फ़िर वे सब कहाँ गये ? कि उनका नाम तक नहीं लिया जाता और 1-2 शिष्य का ही नाम शेष रह जाता है ।
कितने लोग सन्तों की (वाणी) किताबें पढ़ते हैं, कितने श्रद्धा से मत्था टेकते हैं, कितने आश्रम में जाते हैं, कितने भजन सतसंग आदि कराते हैं, कितने दान दक्षिणा चढाते हैं और ज्ञान मिलता है सिर्फ़ 1-2 को, नाम मिलता है सिर्फ़ 1-2 को ।
स्वयं मेरे द्वारा अनेकों जीवों की सर्वोच्च अद्वैत आत्मज्ञान की ‘निर्वाणी सतनाम’ हँसदीक्षा कराई गयी है । जिनमें से अब बहुतों की मुझे याद भी नहीं है । बहुत से कहाँ हैं मुझे पता नहीं ।
लेकिन दीक्षा प्राप्त कुछ शिष्य ऐसे होते हैं जो न सिर्फ़ याद रहते हैं । बल्कि हम उन्हें याद करने पर विवश हो जाते हैं । क्योंकि वे शिष्यता मानदण्डों का % सभी अंगों में तेजी से पूरा कर रहे होते हैं । अतः इसी बहाने मैं आपको किसी भी गुरु के तरीके और गुरु शिष्य सम्बन्ध और ज्ञान यात्रा के आंतरिक रहस्यों से परिचित कराता हूँ । 
10 साल के अद्वैत ज्ञान समय में मैं लगभग शुरू के एक महीने से ही शिक्षक, मार्गदर्शक के रूप में नियुक्त हो गया और यथासंभव तेजी से कार्य करने लगा । कुछ हजार दीक्षायें हुयी और 100 से भी कम शिष्य मेरे व्यक्तिगत सम्पर्की हुये ।
(यहाँ तक 29 October 2012 को लिखा गया)
अब आगे - मैंने उनको उनकी यथासंभव पात्रता अनुसार प्रशिक्षित किया और स्थिरता के संतोषजनक मुकाम तक पहुँचाया । लेकिन जैसा कि व्यवहारिक है । इस जीवन यात्रा में कारवां बनता है, बिछुङता है । अलग अलग परिस्थितियों वश कुछ चलने के बाद वे (सीखने के बाद) स्वयं संघर्ष हेतु यात्रा पर निकल गये और नये लोग (शिष्य) आ गये ।
किसी भी स्कूल जैसा नया सत्र, नये विद्यार्थी ।
ऊपर के ईमेल लेखक सोहन गोदारा (हमसे जुङे हुये लगभग 18 महीने) जैसे विद्यार्थियों की मुझे ज्यादा चिंता नहीं रहती क्योंकि उनके (सिर्फ़ इसी) ईमेल से ही समझ सकते हैं कि उन्हें काफ़ी ज्ञान है और मुझे लगता है वे मजबूत स्थिति में हैं । 
अतः योग्य छात्रों पर मेहनत करना ज्यादा उचित नहीं होता ।
मैंने कई बार कहा है कि यदि सम्भव हुआ तो मुझे 1000 अच्छे साधक तैयार करने (की भावना) है और किसी भी आत्मज्ञान के मुक्तमंडल में यह संख्या बहुत उच्च मानी जाती  है ।
यदि कबीर, रामकृष्ण, गुरुनानक जी जैसी सिद्ध और निर्विवाद गुरु परम्परा को देखा जाये तो इनके यहाँ 50 भी मध्य स्तर के साधक नहीं थे ।
खैर..इस समय सिर्फ़ 4 शिष्य मेरे विशेष प्रशिक्षण में हैं ।
अशोक, संजय, किरन और मीनू । एक अन्य शिष्य राकेश जी सिर्फ़ 4 महीने पहले (जुलाई में) जुङे । और उनकी पढ़ाई समाप्त भी हो गयी । किरन और संजय सिर्फ़ 8 महीने पहले (मार्च में) जुङे और आज दूसरों को सिखाने की स्थिति में है ।
अशोक सिर्फ़ 5 महीने पहले (जून में) जुङा और पूरा पागल हो गया । मतलब पंजाबी में गल पा ली । मीनू अभी सिर्फ़ 2 महीने पहले (सितम्बर शुरूआत में) जुङीं और मुझसे अभी कोई एक महीने से जुङी । 
मीनू को छोङकर बाकी 3 शिष्य स्थायित्व की स्थिति में हैं । ये चारों शिष्य अपनी अपनी पात्रता अनुसार अलग अलग प्रकार के हैं और तेजी से सीखते हैं । लेकिन यदि प्राप्ति के अनुसार आंकलन किया जाये तो इनमें सबसे शीर्ष पर संजय है क्योंकि इसने कई अन्य जीवों को चेताया भी है ।
ध्यान की प्रगति के आधार पर किरन शीर्ष पर है । ये सतनाम से पवित्रता को प्राप्त हो चुकी है । शिष्य का समर्पण क्या होता है, इस आधार पर अशोक शीर्ष पर है ।
इच्छाओं से रहित होना (जो कि आत्मज्ञान प्राप्ति हेतु सबसे बङी आवश्यकता है) इसमें बिलकुल नयी और बहुत कम समय की मीनू शीर्ष पर है ।
लेकिन इन चारो से अलग हमारे मुक्तमंडल में राकेश जी नम्बर 1 हैं क्योंकि ज्ञान, ध्यान, समर्पण, सेवा आदि शिष्यता के सभी महत्वपूर्ण अंगों में वह 100% स्वस्थ है । 
अब आप सहज ही अन्दाजा लगा सकते हैं, मैं एक ही हूँ, श्री महाराज जी भी वही हैं । ज्ञान और दीक्षा भी वही है, आश्रम भी वही है ।
जो लोग मुझसे या श्री महाराज जी से व्यक्तिगत मिल चुके हैं । वे जानते हैं कि हम किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करते । अतः जो भी अन्तर होता है वह शिष्य की पात्रता में होता है और वह उसी अनुसार पाता है ।
इस लेख में मैंने सब कुछ स्पष्ट करने के बजाय चिंतन के लिये कुछ बिंदु अस्पष्ट छोङ दिये हैं ।
फ़िर आप सोचिये । कबीर के सदगुरु होने में क्या आपको कोई शंका है फ़िर उनके शिष्यों में सिर्फ़ धर्मदास का ही नाम क्यों लिया जाता है ? और इसी तरह रामकृष्ण के विवेकानन्द, रैदास की मीरा जी आदि आदि ।

27 अक्टूबर 2012

मेरे लिये तो बहुत अदभुत है चिंताहरण - अशोक


परम आदरणीय श्री महाराज जी
जिनके सुमरन मात्र से आती है पूर्ण निर्भयता
निश्चिंतता और आनन्द ही आनन्द
और जिनके दर्शन मात्र से हो जाते हैं सभी प्रश्न खत्म
उन्हीं सदगुरुदेव का है ये परम धाम
नई INDICA V2 का आश्रम गेट से ( अन्दर आश्रम में ) प्रथम प्रवेश
क्या है असली सनातन धर्म - स्थानीय ग्रामीणों के लिये आश्चर्य
गाय की सेवा में लगा 1 साधु । अभी 3 देशी गाय हैं आश्रम में 
आक्सीटाक्सिन इंजेक्शन और रासायनिक दवाओं रासायनिक खादों से पूर्णतया रहित लौकी तोरई सीताफ़ल भिंडी पालक आदि आदि भोजन के काम आते हैं आश्रम में । सारी सब्जियाँ दूध घी छाछ मक्खन पूर्ण शुद्ध और अपना बनाया  हुआ 
हमारी शिष्या मीनू ।
शुद्ध हवा पानी पर्यावरण से युक्त । फ़िरोजाबाद ( के प्राइवेट बस स्टेंड - थार पूंठा ) से सिर्फ़ 23 किमी दूर नगला भादों से आन रोड ही है हमारा चिंताहरण आश्रम । बस आश्रम से सिर्फ़ 100 मीटर दूर से निकलती है ।
आज के समय में किसी को भी बहुत बङा आश्चर्य हो सकता है । सिर्फ़ 10 फ़ुट नीचाई पर है आश्रम में जल स्तर WATER LEVEL जबकि 23 किमी दूर फ़िरोजाबाद में कई गुना नीचे
आश्रम में जाने वाले बताते हैं - ऐसा लगता है । जन्म जन्म का बोझ उतर गया ।
क्या है इस चिंताहरण में ? जो सबकी चिंतायें मिट जाती हैं ।
असली सतनाम दीक्षा । महामंत्र । सुरति शब्द साधना । और सनातन धर्म पुनर्स्थापना का सर्वोच्च केन्द्र - चिंताहरण आश्रम
आश्रम में फ़ूलों की सौन्दर्य
आश्रम संस्थापक की पत्नी । गोद में दिल्ली से गया बच्चा
छत पर हाल में बैठी बच्ची । सहज योग की दीक्षित
मेरे घर आयी हुयी शिष्या । आसमानी रंग के सूट में 
( आश्रम से जुङे शिष्य ) ये जबरदस्ती के मेहमान पीछा नहीं छोङते मेरा । रोज कोई न कोई आ ही जाता है । जबकि मैं स्वभाव से बहुत बहुत रूखा हूँ ।
हमारे शिष्य इतने छोटे भी 
अभी बहुत Busy है अशोक । समय मिलते ही बतायेगा । सिर्फ़ ( दीक्षा के बाद  ) 5 महीने के अन्दर सुखदायी परिवर्तनों का इतिहास सा लिख गया उसके अन्दर 
सभी चित्र हमारे शिष्य अशोक द्वारा 22-23 OCT 2012 को लिये गये ।

चिंताहरण से लौट कर अशोक


श्री महाराज जी
श्री महाराज जी
श्री महाराज जी
श्री महाराज जी
श्री महाराज जी
श्री महाराज जी
महाराज जी 1 साधु और शिष्य के साथ चाय के दौरान
श्री महाराज जी को दिल्ली के 1 शिष्य द्वारा भेंट की गयी कार INDICA V2
अभी भी चल रहा है निर्माण कार्य । चित्र 23 OCT 2012
इच्छा यूँ ही आशीर्वाद की
आश्रम के साधु हवन करते हुये
अभी भी चल रहा है निर्माण कार्य । चित्र 23 OCT 2012
अभी भी चल रहा है निर्माण कार्य । चित्र 23 OCT 2012
ये भी हैं हमारे शिष्य
ये भी हैं हमारे शिष्य
ये भी हैं हमारे शिष्य
आश्रम का 1 साधु
ये भी हैं हमारे शिष्य
22 OCT 2012 को आश्रम गये अशोक ने 100 से अधिक फ़ोटो खींचे । जो मुझे प्राप्त होते ही शीघ्र प्रकाशित होंगे ।

22 अक्टूबर 2012

मुझसे वे निर्मल बाबाओं जैसे चमत्कार की उम्मीद नहीं करते


इंटरनेट का मतलब मेरे लिये सिर्फ़ अपने ब्लाग पर पोस्ट करना है । और चाय वगैरह पीते हुये कभी फ़ेस बुक खोल लेना । और कभी कोई सूचना या तथ्य को GOOGLE में सर्च करना । या फ़िर कुछ ई मेल भेजना । इसके अतिरिक्त 1 आम user की तरह दूसरे BLOG या बेव पेज मैं चाह कर भी नहीं देख पाता । क्योंकि मेरे पास समय का बेहद अभाव है । लेकिन कभी कभी हठात ऐसा संयोग बन जाता है । और ऐसा ही आज हुआ । श्री ( रूप चन्द ) शास्त्री जी द्वारा संचालित ब्लाग " चर्चा मंच " में सोमवारीय चर्चाकार श्री चन्द्र भूषण मिश्रा " गाफ़िल " जी द्वारा शामिल की गयी मेरी प्रविष्टि पर आभार के लिये जब मैं इस ब्लाग पर गया । तो अन्य प्रविष्टियों के साथ इस शीर्षक - चारो खाने चित - टीम केजरीवाल । महेन्द्र श्रीवास्तव । आधा सच ब्लाग से.. ने मेरा ध्यान आकर्षित किया । मैं महेन्द्र जी के ब्लाग पर गया । इसको पढा । और अभी कुछ सोच पाता । इससे पहले popular post विजेट द्वारा प्रदर्शित हो रही इस पोस्ट - निर्मल बाबा का दरबार बोले तो लाफ्टर शो । महेन्द्र श्रीवास्तव । आधा सच ब्लाग से... ने मेरा ध्यान आकर्षित किया । और मैंने इस पोस्ट और इस पोस्ट पर आयी टिप्पणियों को उत्सुकता वश पढा । महेन्द्र जी और टिप्पणी कर्ताओं ने ( दोनों लेखों में ) यथासंभव ? उचित सवाल उठाये । उचित कटाक्ष आदि भी किये । मैंने यथासंभव ? का प्रयोग करते हुये ? चिह्न लगाया है । और ये यथासंभव ? मैं नेट पर और संसार में हर जगह ही देखता हूँ । आगे बढने से पहले ही मैं स्पष्ट कर दूँ कि ये सब ( आगे ) महेन्द्र जी या किसी अन्य पर 

कैसा भी व्यंग्य नहीं है । बल्कि 1 चिंतन मनन मात्र है । मैं राजनीति से स्वाभाविक ही घूणा करता हूँ । अतः केजरीवाल मुद्दे पर न तो मुझे कोई सटीक ( या सामान्य तक ) जानकारी है । और न ही मैं अधिकारिक रूप से तथ्यों और माहौल के अभाव में कुछ कहने की स्थिति में हूँ । लेकिन निर्मल बाबा ( जैसे सभी मुद्दों ) पर निश्चय ही मैं 1 विशेषज्ञ की तरह बात कर सकता हूँ । क्योंकि ये मेरा क्षेत्र है । मेरे स्थायी पाठक जानते हैं । मैंने कभी किसी ऊँचे से ऊँचे ? बाबा का समर्थन नहीं किया । और इस तरह की प्रचलित पोंगापंथी की हमेशा खिंचाई ही की है । मैं पूजा भक्ति के साथ अंधानुसरण अंधविश्वास और परम्परा या मान्यता जैसे शब्दों को जोङे जाने के ही सदा खिलाफ़ रहा । इसलिये मैं आरती ( आर्त या दुख भाव का बयान करना ) स्तुति ( चापलूसी ) आदि जैसे भक्ति ( के आवश्यक मगर आज विकृत हो चुके )  महत्वपूर्ण अंगों का भी घोर विरोधी हूँ । क्योंकि

अज्ञान के कीटाणुओं से आज भक्ति के अधिकांश अंग संकृमित हो गये हैं । इसलिये मैं " भक्ति बिज्ञान " जैसे शीर्षक ही पसन्द करता हूँ । और इसके अंतर्गत शोध research शब्द का इस्तेमाल मुझे बहुत प्रिय है । हमारी संस्था का नाम ही " परमानन्द शोध संस्थान " है ।  इसलिये आपने देखा होगा । मैं " सनातन भक्ति बिज्ञान " विषय के माध्यम से बात करता हूँ । और ये विषय होते ही पोंगा पंथी की तमाम धारणायें आक्षेप खुद हवा हो जाते हैं ।
( यहाँ तक 22 oct 2012 को लिखा गया )
पर इस तरह के लेखन और मुद्दे उठाने वालों से मुझे हमेशा निराशा ही हाथ लगी । क्योंकि आप समाज की बुराईयों विकृतियों पर ( लेखक ) सटीक व्यंग्य तो करते हैं । और टिप्पणी कर्ता उस पर समर्थन भी करते हैं । पर इससे क्या फ़ायदा होता है ? सवाल ये है कि - इन समस्याओं का मूल क्या है ? ये बीमारी क्यों और कैसे फ़ैलती है ?

इस बीमारी का इलाज क्या है ? इसकी जङें कैसे कटें ? हम जमीनी स्तर पर इसका क्या हल करें ?
आज के सामाजिक परिदृश्य में हम - धार्मिक । राजनीतिक । आर्थिक । शिक्षा । स्वास्थय । अंधविश्वास । अज्ञानता आदि आदि कई स्तर पर लाइलाज बीमारियाँ फ़ैलते देख रहें हैं । और चटकारे ले लेकर इस पर अलग अलग माध्यम से चर्चा भी करते हैं । चौराहे पर खङे खङे । नाई की  दुकान पर । आफ़िस में । घर में । TV पर । नेट पर । अखबारों में । ये हमारे लिये चाय के साथ नमकीन लेने जैसा भर है बस । कभी कभी मुझे लगता है । ऐसी बातों में हमें मजा आने लगा है । हमारे मनोरंजन का साधन हो गयी हैं । ऐसी घटनायें । और ऐसी चर्चायें । जैसे सुबह का अखबार । घोटाला । आगजनी ।  दुर्घटना । हत्या और बलात्कार । चाय और नमकीन । अगर 1 दिन भी ऐसा न छपे । तो मजा नहीं आता । 6 बच्चों की माँ प्रेमी के साथ भागी । हाय ! कैसे कैसे नसीब वाले हैं । मेरे 2 ही बच्चे हैं । मेरा 1 । मैं कुंवारी हूँ । भागना छोङो । इश्क लङाने का चांस नहीं बनता । कर्मा मारी ।
इसीलिये निर्मल बाबा जैसे लोग अवतरित ? हो जाते हैं । इसलिये मेरे शब्दों पर खास ध्यान दें - सनातन भक्ति बिज्ञान ? रोग और इलाज । आप घबरायें नहीं । आपको कोई दुसाध्य कठिन शोध नहीं करने । कोई खोज भी नहीं करनी । भक्ति का पूरा " सिद्ध बिज्ञान " अनेकानेक जरूरतों के अनुसार सिद्धांत ( सूत्र आदि ) के रूप में मौजूद है । और प्रमाणित भी । बस आपको अपनी स्थिति और साधन सुविधा अनुसार इसे प्रयोग करना भर है ।
आप इतनी मेहनत करते हैं । ये गलत है । वो गलत है । ठीक है । पर इसके साथ आप ये भी बतायें कि - सही क्या है ? विकल्प क्या है ? स्थायी सुख शांति कहाँ और कैसे मिलेगी । शायद आप मुझसे भी यही प्रश्न कर

सकते हैं । और शायद नहीं भी कर सकते हैं । क्योंकि मैं कागजों से ज्यादा जमीनी स्तर पर कार्य कर रहा हूँ । लगभग अकेला कर रहा हूँ । और शारीरिक परेशानियों के बाबजूद कर रहा हूँ । कई व्यक्ति । परिवार सुखी हुये । सुखी हो रहे हैं । सबसे अच्छा । वे मजबूत हो रहे हैं । स्वस्थ निरोगी हो रहे हैं । और आप यकीन करें । वे दूसरों को भी करने लगे । इसलिये फ़िर से मेरे शब्दों पर ध्यान दें - सनातन भक्ति बिज्ञान ? और इसीलिये मुझसे वे कोई निर्मल बाबाओं जैसे चमत्कार की उम्मीद नहीं करते । वे कहते हैं - हमें सत्य बताईये । समाधान बताईये । रोग क्यों हुआ ? ये बताईये । दवा क्या है ? ये बताईये । परहेज क्या है ? ये बताईये । अज्ञानता क्या है ? ये बताईये । और मैं बताता हूँ । और आप यकीन करें । कटु सत्य को सुनकर जानकर वे इन 

निर्मल बाबाओं जैसी पोटाऊ फ़ुसलाऊ बातों से कहीं अधिक खुश होते हैं । सन्तुष्टि महसूस करते हैं । क्योंकि वे फ़िर मुझ निर्भर नहीं रह जाते । स्व निर्भर होने लगते हैं । हो जाते हैं । फ़िर उन्हें किसी बाबा की आवश्यकता नहीं रहती । क्योंकि मैं उन्हें ही पङ बाबा बना देता हूँ । 
- जैसा कि हमेशा ही होता । लिखते लिखते व्यवधान ।  और प्रवाह टूट जाता है । अतः लगभग अधूरे लेख के साथ फ़िर कभी ।
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
चारो खाने चित - टीम केजरीवाल । महेन्द्र श्रीवास्तव । आधा सच ब्लाग से
http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/10/blog-post_19.html
निर्मल बाबा का दरबार बोले तो लाफ्टर शो । महेन्द्र श्रीवास्तव । आधा सच ब्लाग से
http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
इसी निर्मल बाबा लेख पर आये 2 कमेंट -
गुजराती में 1 कहावत है - लोभिया होय त्यां धुतारा ( ठग ) भूखे ना मरे ।  हिन्दी में - जब तक चूतिया जिन्दा हैं । चतुर भूखा नहीं मर सकता ।
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
10 जनपथ से दिग्विजय सिंह की नज़दीकियों को देखते हुए उनसे 10 सवाल ।
1 क्या ये सच है कि जहां भी dogs are not allowed का बोर्ड लगा होता है । वहाँ आपको घुसने नहीं दिया जाता ?
2 क्या ये सच है कि ओसामा बिन लादेन के लिए आपके मुंह से गलती से " जी "  निकल गया था । आप तो उन्हें जीजा कहना चाहते थे ?
3 क्या ये सच है कि आप अपने मुल्क* का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते हैं ( *पाकिस्तान )
4 क्या ये सच है कि आप रोज़ राहुल गांधी को थम्स अप की बोतल थमाकर कहते हैं - बेटा ! आज कुछ नादानी करते हैं ।
5 बचपन में गलती करने पर आपके पिताजी आपको जिस " हाथ " से थप्पड़ मारते थे । क्या आपको शक है कि वो भी RSS का था ?
6 आपकी बुद्धि कितनी भृष्ट है । 2G घोटाले जितनी । या कोयला घोटाले के बराबर ?
7 क्या ये सच है कि जब तक आप कोई विवादास्पद बयान नहीं देते । आपका पेट साफ नहीं होता ? इसलिए आप " पापी पेट " के लिए ऐसे बयान देते हैं ।
8 क्या ये सच है कि कभी कभार आपको इंसानियत के दौरे भी पड़ते हैं ?
9 बेइज्ज़ती । आलोचना । किरकिरी । फजीहत । गाली । बद दुआ । क्या आप इन सब छोटी मोटी चीज़ों से ऊपर उठ चुके हैं ?
10 आखिर सवाल का जवाब हां / नहीं में दें - क्या आप इंसान नहीं है ?
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ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
♥You can Love me or hate me, i swear it won’t make me or break ME!.
When you find Love, you will find yourself.
पंख ही काफ़ी नहीं हैं आसमानों के लिये । हौसला भी चाहिए ऊंची उड़ानों के लिये ।
Every object, every being, is a jar full of delight. Listen with ears of tolerance.
See through the eyes of compassion. Speak with the language of love!
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
Secular India द्वारा की गयी पोस्ट ।
1 पत्थर बस 1 बार मंदिर जाता है । और भगवान बन जाता है । " हिन्दू " तो बार बार मंदिर जाते हैं । पर भगवान तो क्या " इंसान " भी नहीं बन पाते । स्वामी विवेकानन्द ।
Proud To Be A Hindu ..Is Dis Proud Or Shame ?..Decision Is Ur..
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=297835953664022&set=a.129700907144195.25389.129565433824409&type=1&theater
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
Secular India द्वारा की गयी पोस्ट ।
These hindu people call themselves " aghori sadhus " and as u can see in the picture ये लोग इंसान की बलि देकर उसका मांस खाते हैं । याक्क्क्क्क्क... कुत्ते कहीं के ।
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=297834250330859&set=a.129700907144195.25389.129565433824409&type=1&theater
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
Patience is not learned in safety . It is not learned when everything is harmonious and going well . When everything is smooth sailing, who needs patience ? If you stay in your room with the door locked and the curtains drawn, everything may seem harmonious, but the minute anything doesn’t go your way, you blow up . There is no cultivation of patience when your pattern is to just try to seek harmony and smooth everything out . Patience implies willingness to be alive rather than trying to seek harmony ~ Pema

http://www.alltverladies.com/ 

20 अक्टूबर 2012

आपके गुरुजी से दीक्षा कैसे मिलती है ?


राजीव जी ! नमस्कार । कृपया बतायें । आपके गुरुजी से दीक्षा ( नाम ) कैसे मिलता है ? मुझे क्या करना होगा ? क्या नियम है ?  पोस्ट " ये बात कुछ हजम नहीं हुई " पर 1 अनाम टिप्पणी ।
- क्योंकि भक्ति के प्रति खुद मेरा रुझान लगभग बाल्यकाल ( 9-10 आयु में घर में उपलब्ध धार्मिक पुस्तकें पढना ) ) से ही होने लगा था । और 15-16 आयु तक तो खास तंत्र मंत्र की पुस्तकों और जिज्ञासाओं के प्रति आकर्षण बहुत बढ चुका था । कुछेक ऊटपटांग प्रयोग भी करने की कोशिश करता । फ़िर 32 आयु तक द्वैत के कुंडलिनी योग । और तंत्र मंत्र में कुछ  सफ़लतायें । और आज 42 आयु तक अद्वैत और आत्मज्ञान के सर्वोच्च ज्ञान " सुरति शब्द योग " या सहज योग से निरंतर जुङा हूँ । और गुरु कृपा से अन्य अनेक को इस सर्वोच्च ज्ञान से सफ़लता से जोङने में सफ़ल रहा । पर जैसा कि मैं कई बार जिक्र कर चुका हूँ । 1 आम इंसान और मुझमें बस थोङा फ़र्क था । अपनी पूर्व ( जन्म ) यात्रा के चलते मेरी 3rd eye 

जन्म से ही सक्रिय थी । और ( उस वक्त ) मन निर्मल होने के कारण । बेहद बाल्यकाल से ही मुझे अशरीरी आत्मायें या सूक्ष्म शरीर बिना किसी प्रयास के खुली आँखों से दिखते थे । लेकिन मैं इस रहस्य को समझ नहीं पाता था । और स्वाभाविक ही लगता था कि - मेरी तरह सभी को दिखते होंगे । पर क्योंकि ये सृष्टि के गूढ रहस्यों में आता है । अतः ऐसे पात्र की स्वतः मनःस्थिति या बाह्य स्थिति ऐसी बन जाती है कि ये सब भेद गुप्त ही रहता है । कारण चाहे जो बने । फ़िर ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ ।
लेकिन आज से कोई 8 साल पहले जब मैं इस सबको लेकर गम्भीर हुआ । और मुझे पता चला कि - मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य ( जीवन रहते ) खुद का मोक्ष या दूसरे शब्दों में who am i ? को जानना सर्वोपरि है । तब मैंने फ़िर से अपने बारे में सोचा । और यहीं 

मुझे ( इस बिंदु पर ध्यान जाते ही ) भारी हैरानी हुयी । 1 सामान्य मध्य वर्गीय परिवार । और ( जीवन में ) उसी तरह के ( बहुत से ) उतार चढाव के बाबजूद । मैं सफ़लता से सर्वोच्च साधना के मार्ग पर निरंतर अग्रसर ( हुआ ) हूँ । वह साधना ? जिसके बारे में तमाम प्रतिष्ठित उच्च पदस्थ धार्मिक लोग सिर्फ़ गाल बजाते हैं । और आज मैं 100% कह सकता हूँ - सही अर्थों में अधिंकाश उसकी A B C D भी नहीं जानते । हजारों ऋषि मुनि साधु हिमालय जैसे क्षेत्रों में गल जाते हैं । और उसका ? कोई ओर छोर नहीं पाते ।
और जब मैंने अपने  बारे में सोचा । तभी मैंने सदियों से प्रचलित पूजा भक्ति ज्ञान ध्यान आदि परम्परा के बारे में सोचा । जिसकी जर्जर इमारत ( मगर सिर्फ़ आज )  बीमार सोच । रूढिवादिता । पाखण्ड । अंधविश्वास । और भारी अज्ञानता के बोझ से बेतरह कांप रही है ।

क्योंकि ये बहुत समय से आधारहीन जङरहित और लगभग अनास्था ( गलतफ़हमी है कि आस्था ) के बेहद कमजोर संबल पर टिके रहने की नाकाम सी कोशिश कर रही है । कोई भी समझ सकता है । आधारहीन या बेहद कमजोर नींव पर 1 सुदृढ भवन की कल्पना भी हास्यास्पद है । इसीलिये सनातन ( निरंतर ) ऊर्जा का अक्षय स्रोत ये सनातन भक्ति बिज्ञान - मात्र पोंगापंथी और धार्मिक ढकोसले जैसे शब्दों विशेषणों के साथ ही जुङ कर रह गया । जैसे खरब पति कंगाल हो गया हो ?
और मैंने फ़िर सोचा । क्या - अनपढ । बूढे । बीमार । अपंग । असहाय । निर्धन । दुखी । या कहना चाहिये । हर तरह से बेकार । निष्प्रयोज्य । कूङा करकट छाप लोग ही ( वो भी बेबसी में ) भक्ति करते हैं ? और फ़िर वे करुण स्वर में हाय हाय  चिल्लाने के अलावा कर भी क्या पाते हैं ? सिवाय - भगवान अब तेरा ही सहारा है । की अनर्गल फ़ालतू बकबास करने के । क्योंकि ( अब ऐसों  को ) 

भगवान भी कोई सहारा नहीं देता । कोई सहानुभूति नहीं - मर जा । रोता रह । सुख में सुमरन ना किया । दुख में करता याद । कह कबीर उस दास की । कौन सुने फ़रियाद ? कौन सुने ? अब पछताये होत का । जब चिङियां चुग गयी खेत । तब मैंने जब " सनातन भक्ति बिज्ञान " कुण्डलिनी द्वैत योग । और अद्वैत भक्ति के सर्वोच्च ज्ञान " सुरति शब्द योग " का विश्व स्तर पर प्रचार प्रसार करने का लक्ष्य लिया । उस  समय मेरा लक्ष्य ये जर्जर - अनपढ । बूढे । बीमार । निष्क्रिय । अपंग । असहाय । निर्धन । दुखी । हर तरह से बेकार । निष्प्रयोज्य । कूङा करकट छाप लोग नहीं थे । बल्कि सक्रिय ऊर्जावान युवा और शिक्षित लोग ही थे ।
और आज मुझे खुशी है कि हमारे अधिकांश साधक । शिष्य 20-40 आयु के उच्च शिक्षित । उच्च पदस्थ । और

IT आदि जैसे क्षेत्रों में विभिन्न स्तरों पर कार्यरत विवाहित अविवाहित स्त्री पुरुष और लङके लङकियाँ हैं । 3 वर्ष तक के बच्चे हमारे यहाँ से दीक्षा प्राप्त हैं । और गुरु महिमा के महत्व से ( अपनी बुद्धि अनुसार ही सही ) बखूवी परिचित हैं । और सौभाग्य से अखिल सृष्टि की supreme power गुरुदेव को नित्य प्रणाम चरण वंदन करते हैं । और ये कोई मामूली बात नहीं । तुलनात्मक उन वृद्धों के । जो भक्ति बिज्ञान की A B C D नहीं जानते । पर भक्ति विषय वार्ता पर गाल ऐसे बजाते हैं । जैसे इनका रजिस्ट्रेशन 100%  स्वर्ग के लिये हो चुका हो । और जन्नत में 72 हूरें छलकते जाम लिये सिर्फ़ इन्हीं का इंतजार कर रही हों ।
दीक्षा ( नाम ) कैसे मिलता है ? क्या करना होगा ? क्या नियम हैं - विश्व के किसी भी देश जाति धर्म के व्यक्ति के शरीर में स्वांस में स्वत गूँजते इस निर्वाणी ( जो मुँह वाणी से न जपा जाये ) आदि ( सृष्टि के शुरूआत से ही ) नाम को ही " सतनाम " कहते हैं । सतनाम का सामान्य अर्थ सत्य नाम है । क्योंकि इसको बदला नहीं जा सकता । और ये हिन्दू । मुस्लिम । सिख । ईसाई । भारतीय । अमेरिकन । रसियन । अफ़गानी । पाकिस्तानी । ताई । चाची । बुआ । नानी । बूढा । बच्चा । पक्का । कच्चा सभी के समान रूप से 1 ही हो रहा है । परीक्षण करके देखो । 4 सेकेंड में 1 नाम सुमरन । 2 सेकेंड में आना । 2 सेकेंड में जाना । 1 मिनट में 15 बार । 1 घण्टे में 900 बार । 24

घण्टे में 21600 बार । प्रभु के अखण्ड सनातन सतनाम का सरल सहज सुमरन ।
इस नाम को हमारे यहाँ से लेने के लिये फ़ोन पर अपनी अर्जी लगानी होगी । पूर्ण विधि विधान से सही नाम लेने का न्यूनतम खर्च 10 000 आता है । इसमें गुरु को तन मन धन अर्पित किया जाता है । न्यूनतम गुरु दक्षिणा में 5100 रुपये । गुरुदेव के लिये 5 वस्त्र - कुर्ता । धोती । गमछा । बनियान । अंतर्वस्त्र और चरण पादुका दिये जाते हैं । इसके अतिरिक्त बाँटने के लिये सफ़ेद बर्फ़ी का प्रसाद । 5 तत्वों के प्रतीक । 5 तरह ( रंग ) के पुष्प । धूप सामग्री ( अगरबत्ती धूपबत्ती आदि ) चाहिये होते हैं । इसके अलावा आश्रम में उपस्थित 5 से लेकर जितनी सामर्थ्य हो । साधुओं को भोजन  कराया जाता है । ये पूर्ण विधि विधान युक्त दीक्षा तुरन्त प्रभावी होती है । और दीक्षा के समय ही कई दिव्य अनुभव होते हैं । दीक्षा सिर्फ़ सुबह 7 से 9 के बीच होती है । इसके लिये कम से कम 1 रात पहले आना होता है । मेरा अनुभव है । यदि दीक्षा के बाद आप कुछ दिन आश्रम में रुक पाते हैं । तो ध्यान पक्का हो जाता है । इसके बाद भी 2-3 महीने में 1 बार आकर ध्यान अभ्यास को और भी पक्का करने उठाने हेतु आने से काफ़ी लाभ होता है ।
इस तरह जब ये सतनाम आपको मिल जाता है । जो वास्तव में साथ ही साथ उसी समय 3rd eye को खोल देता है । और जङ चेतन की गाँठ को काट देता है । और

आत्मा रूपी हँस जीव मुक्त भाव से परम की ओर उङता है । फ़िर आप कहीं भी चलते फ़िरते सोते जागते खाते पीते भी इसका सुमरन कर सकते हैं । वैसे खास मेरा सुझाव रहता है कि - सुबह कम से कम 15 मिनट बैठ कर । और शाम को भी कम से कम 15 मिनट । ये ध्यान करना बेहद लाभदायक होता है । फ़िर दोपहर या रात को लेटते समय लेट कर ही आप स्वांसों पर ध्यान दें । तो ये सोने पर सुहागा होता है । और आप बिलकुल मुफ़्त में लोक लोकांतरों की रोमांचक यात्रा कर सकते हैं । दुर्लभ गूढ ज्ञान बिज्ञान को जान सकते हैं आदि आदि । बाकी - बृह्मचर्य । त्याग ।  वैराग । ये छोङो । वो पकङो । जैसे फ़ालतू ढकोसले हमारे यहाँ बिलकुल भी नहीं है । बस सिर्फ़ आपके इसी हालिया जीवन में यह दुर्लभ अनमोल भक्ति ज्ञान आपसे जुङ जाता है । जिसके बारे में मीरा जी ने कहा है - पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो ।

- और किसी बिंदु पर संशय हो । तो आप ब्लाग के सबसे ऊपर फ़ोटो पर लिखे नम्बर पर  बात कर सकते हैं । साहेब ।
ƸӜƷƸӜƷƸӜƷ
टूटे हुये तारों से फूटे वासंती स्वर । पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर ।
झरे सब पीले पात । कोयल की कुहुक रात । प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ ।
गीत नया गाता हूँ ।
टूटे हुये सपने की सुने कौन सिसकी ? अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी ।
हार नहीं मानूँगा । रार नयी ठानूँगा । काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ ।
गीत नया गाता हूँ । अटल बिहारी वाजपेयी ।
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आज वो मनहूस दिन है । जिस दिन भारत चीन के साथ यद्ध में नेहरू की गलतियों की वजह से हारा था । और हमारे हजारों जवान शहीद हो गये थे । क्योंकि ? नेहरु ने कभी हिंदुस्तानियों या हिंदुस्तान की भलाई के बारे में न कभी सोचा था । न औलादें आज सोच रही हैं । इनकी नजर हमेशा से हिंदुस्तान की तिजोरी पर ही रही । इसलिये हिंदुस्तान की जनता को महंगाई की मार से । दाल रोटी में । और माइनारिटी मेजोरिटी की उलझन में उलझा कर यह लोग अपनी सियासी खिचड़ी ही पकाते गये । और सरकारी खर्चे पर अपनी अय्याशियां करते गये । 
वल्‍लभ भाई पटेल ने चेताया था - दरअसल चीन ने नेहरू जी से कह दिया था कि वो मैकमोहन रेखा का सम्‍मान 

करते हैं । और चीन के इस बयान पर वो भरोसा कर बैठे । लेकिन जब चीन ने तिब्‍बत पर हमला किया । तो देश में सवाल उठे । तो नेहरू को लगा कि अब चीन के साथ सीमा विवाद पर समझौता हो जाना चाहिये । दूसरी ओर चीन ने पणिक्‍कर के बार बार कहने पर भी इस मुद़दे पर बात नहीं की । वह सही समय के इंतजार में था । और तैयारी में जुटा था । पणिक्‍कर ने जब नेहरू को बताया कि चीन सीमा विवाद पर बात टाल गया है । तो नेहरू जी ने कहा - तुम ज्‍यादा जोर मत देना । क्‍योंकि समझौते के लिए हमारी तरुफ से दबाव डालना ठीक नहीं है । उन्‍हें लगेगा कि हम क्‍यों इस पर जोर दे रहे हैं । यह 1950 के बाद का दौर था । उधर चीन ने अरुणाचल लद्दाख समेत भारत से लगी सीमा हड़पना की शुरुआत कर दी थी । देश में इन खबरों पर गंभीर चिंतायें उठने लगी थीं । 

सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने भी नेहरू जी को चेताया था ।
उन्‍होंने कहा - भारत चीन को दोस्‍त समझता है । लेकिन चीन हमें दोस्‍त नहीं मानता । यहाँ तक कि तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति ने भी नेहरू जी को आगाह किया था । लेकिन नेहरू जी क्‍या किया ? देखिये । इतनी चेतावनियों के बाद भी नेहरू जी ने वित्त मंत्रालय को लिखा कि चीन की सीमा से सटे इलाकों में सड़कें बनाने का काम शुरू कर दो । लेकिन बहुत तेज गति से कार्य करने की जरूरत नहीं है ? धीरे धीरे इस काम को शुरू देना चाहिये । इसका मतलब आप खुद समझ सकते हैं । अब सोच लो हिन्दुस्तानियों । तिब्बत की तरह कश्मीर और असम भी गवाना है । या बनाना है । अखंड  और बुलंद - भारत ?
हटाओ इन पाखण्डियो को । और कहो 1 सुर में - 1 ही विकल्प मोदी ।  वन्दे मातरम । विक्रम बारोट ।
http://hindi.in.com/latest-news/international/50-Years-After-War-India-Chafes-Over-Defeat-To-China-1518792.html?utm_source=RHS

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सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326