28 अक्तूबर 2013

मनोरंजन नहीं मनोमंजन करो

Sat sat naman rajeev ji. I was eagerly waiting for ur next blog. You wrote after five days. I was little disappointed but when i came to knw the reason u have written i salute you for this. Magar kya karu apki blog padhane ka nasha kuchh aisa hai ki itna intezar to mai apni aane wali saanso ( breath ) ka bhi nahi karta. Thnx for the blog. Pls write smthng daily at least two lines like " thought of the day ". Jai gurudev ji . Vivek kumar
- शायद दो बातें हैं । जो मुझे अक्सर लेखन उदासीनता की ओर ले जाती हैं । कबीर ने बङे चिन्तित भाव में लगभग खीजकर कहा - स्वांसा खाली जात है तीन लोक का मोल । और.. झूठे सुख से सुखी है मानत है मन मोद । जगत चबैना काल का कछु मुख में कछु गोद ।
अतः क्या लिखूँ ? जो लिखा । उसको आप कितना समझ पाये ? और मैं सिर्फ़ सैद्धांतिक समझाने के प्रति भी नहीं कह रहा । मैं आपको आपकी करोङों जन्मों से खोयी पहचान तुरत दिलाने को तत्पर हूँ । मैं आपको ( जन्म मरण से ) मुक्त देश का वासी बनाने को तत्पर हूँ । क्योंकि अब सिर्फ़ यही मेरा कार्य है । क्या यह छोटी बात है ? क्या संसार के किसी कार्य किसी उपलब्धि से इसकी समानता हो सकती है ? और इसके लिये मैं नियुक्त हूँ । अधिकारी हूँ ।
पर क्योंकि यह 50-50 के प्रभु सत्ता नियमानुसार ही किया जाता है । यानी 50% जिज्ञासा लगन इच्छा आदि 

घटकों की पहल उप-स्थित के लिये जीव की होनी चाहिये । तब 50% मार्गदर्शक उसकी और चलता है । यह चुम्बक और लोहे के सिद्धांत जैसा ही है । क्या अति दुर्लभ आत्मज्ञान सिर्फ़ बौद्धिक भूख या मनो-रंजन की वस्तु है ? नहीं । मनोरंजन की बजाय मनो-मंजन आवश्यक है । और ये पूर्ण क्रियात्मक है । तब मैं ऐसे पात्रों का विशेष चयन करता हूँ । जो मनो-मंजन की दिशा में प्रयत्नशील हैं । और तब इधर मेरी उदासीनता युक्त निष्क्रियता सी हो जाती है । क्योंकि तुलनात्मक क्रिया के ( सिर्फ़ ) विचारोत्तेजना टाइम वेस्ट मनी वेस्ट जैसा ही है । फ़िर यह तो अक्षय धन है । जो ( मृत्यु के बाद भी ) हमेशा काम आता है । तब क्या सार्थक है ?
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अगर आध्यात्म या अलौकिक विज्ञान के अनुसार बात की जाये । तो ये 9 द्वार हमारे शरीर के आँखों से नीचे पिंड

भाग में स्थित हैं । क्योंकि मायावश हम अज्ञान से इसी शरीर से मोहित हुये इसी शरीर को सत्य मानते हैं । अतः - जहाँ आशा वहाँ वासा । जैसी मति वैसी गति । अन्त मता सो गता.. सिद्धांत अनुसार हमारी गति पशुवत ही होती है । क्योंकि शरीर ही सत्य नहीं है । यह सिद्ध है । पर हम जीवन अन्त तक शरीर से पशु की भांति मोहित रहते हैं । इसलिये अन्तिम गति भी पशुवत ही होगी ।
तब मृत्यु समय दोनों कानों ( में किसी एक ) से जीवात्मा निकलने पर विभिन्न प्रकार की प्रेत योनि होगी । क्योंकि प्रेतत्व शब्द ध्वनि आधारित है । दोनों आँखों ( में किसी एक ) से जीवात्मा निकलने पर प्रकाश प्रेमी विभिन्न कीट पतंगे होगें । क्योंकि कीट पतंगे प्रकाश आकर्षण वाले हैं । दोनों नासिका छिद्रों में किसी एक से प्राण तजने पर वायुचर जीव पक्षी आदि । क्योंकि नासिका छिद्र से वायु ही बाहर होती है । मुँह से विभिन्न प्रकार के पशु । क्योंकि यह सिर्फ़ उदर पूर्ति और 

स्वाद का माध्यम अधिक है । लिंग या योनि छिद्र से तदनुसार ही विभिन्न जल जीव । और गुदा मार्ग से तदनुसार ही विभिन्न नरकगामी होगा । अतः सिर्फ़ दसवां द्वार ही आगे मनुष्य शरीर या मोक्ष मार्ग देता है । राजीव कुलश्रेष्ठ
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When energy moves through the body - it is sex, when energy moves through the soul - it is kundalini
Kundalini and Multi-Dimensional Consciousness
- ऐसा व्यर्थ प्रलाप सिर्फ़ पाश्चात्य व्यक्ति या पाश्चात्य सोच वाले ही कर सकते हैं । क्योंकि मूल रूप से शरीर या आत्मा से उठी उर्जा या चेतना का स्रोत सिर्फ़ आत्मा की चेतना ही है । क्योंकि ये लोग संभवतः सत रज तम तीन गुणों के बारे में नहीं जानते । इसलिये ऐसा कहते हैं । कोई भी उर्जा सिर्फ़ सत गुण से ही प्रवाहित होती है । फ़िर उस उर्जा को हम अपनी इच्छा या कामना अनुसार - कामवासना, भक्ति, उद्धार, मोक्ष आदि आदि अनगिनत कामना बहावों से जोङ सकते हैं । राजीव कुलश्रेष्ठ 
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An 81-year-old woman believes that a ghost healed her of an illness and she even has a photo to prove it. Woman claims a ghost healed her and she even has proof .by John Albrecht, Jr.
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