29 अक्टूबर 2013

मैं पाप बेचती हूँ पाप

1 प्रबोध कथा है । 1 युवक ने किसी साधु से पूछा था - मोक्ष की विधि क्या है ? उस साधु ने कहा - तुम्हें बांधा किसने है ? वह युवक 1 क्षण रुका । फिर बोला - बांधा किसी ने भी नहीं है । तब उस साधु ने पूछा - फिर मुक्ति क्यों खोजते हो ?
- मुक्ति क्यों खोजते हो ? यही कल मैंने भी 1 व्यक्ति से पूछा है । यही प्रत्येक को अपने से पूछना है । बंधन है कहाँ ? जो है । उसके प्रति जागो । जो है । उसको बदलने की फिक्र छोड़ो । आदर्श के पीछे मत दौड़ो । जो भविष्य में है । वह नहीं । जो वर्तमान है । वही तुम हो । और वर्तमान में कोई बंधन नहीं है । वर्तमान के प्रति जागते ही बंधन नहीं पाये जाते हैं ।
आकांक्षा - कुछ होने और कुछ पाने की आकांक्षा ही बंधन है । वही तनाव है । वही दौड़ है । वही संसार है । यही आकांक्षा मोक्ष का निर्माण करती है । मोक्ष पाने के मूल में वही है । और बंधन मूल में हो । तो परिणाम में मोक्ष कैसे हो सकता है ? मोक्ष की शुरुआत 

मुक्त होने से करनी होती है । वह अंत नहीं । वही प्रारंभ है । मोक्ष पाना नहीं है । वरन दर्शन करना है कि मैं मोक्ष में ही खड़ा हूँ । मैं मुक्त हूँ । यह बोध शांत जाग्रत चेतना में सहज ही उपलब्ध हो जाता है । प्रत्येक मुक्त है । केवल इस सत्य के प्रति जागना मात्र है । मैं जैसे ही दौड़ छोड़ता हूँ । कुछ होने की दौड़ जैसे ही जाती है कि मैं हो आता हूँ । और " हो आना " पूरे अर्थो में हो आना ही मुक्ति है । तथाकथित धार्मिक इस " हो आने " को नहीं पाता है । क्योंकि वह दौड़ में है - मोक्ष पाने की । आत्मा को पाने की । ईश्वर को पाने की । और जो दौड़ में है । चाहे उस दौड़ का रूप कुछ भी क्यों न हो । वह अपने में नहीं है । धार्मिक होना आस्था की बात नहीं । किसी प्रयास की बात नहीं । किसी क्रिया की बात नहीं । धार्मिक होना तो । अपने में होने की बात है । और यह मुक्ति 1 क्षण मात्र में आ सकती है । यह सत्य के प्रति सजग होते ही । जागते ही कि बंधन दौड़ में है । आकांक्षा में है ।

आदर्श में है । अंधेरा गिर जाता है । और जो दिखता है । उसमें बंधन पाये ही नहीं जाते हैं । सत्य 1 क्षण में क्रांति कर देता है ।
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ये एक जिज्ञासु शिष्य से मेरी बातचीत है । आप लिंक पर सुन सकते हैं । पिछली बार ये फ़ाइल्स अपलोड साइट ने हटा दिये थे । अबकी बार इन्हें यू टयूब पर डाला गया है । राजीव कुलश्रेष्ठ  
http://www.youtube.com/playlist?list=PLd8a1JnbafW-i29DaBK_wrZnpDzEzGFIH


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ईश्वर है ? हमें ज्ञात नहीं । आत्मा है ? हमें ज्ञात नहीं । मृत्यु के बाद जीवन है ? हमें ज्ञात नहीं । जीवन में कोई अर्थ है ? हमें ज्ञात नहीं ।
- हमें ज्ञात नहीं । यह आज का पूरा जीवन दर्शन है । इन तीनों शब्दों में हमारा पूरा ज्ञान समा जाता है । पर के

संबंध में । पदार्थ के संबंध में । जानने की हमारी दौड़ का अंत नहीं है । पर " स्व " के चैतन्य के संबंध में हम प्रतिदिन अंधेरे में डूबते जाते हैं ।
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कल्कि अवतार के बारे में बङे ही हास्यास्पद तरीके से अभी के तमाम धर्म गुरु और यहाँ तक मुसलमान मुहम्मद को और शायद कहीं कहीं ईसाई भी ईसामसीह को कल्कि अवतार घुमा फ़िराकर घोषित करते हैं । जो सब एकदम मिथ्या है । शास्त्र के अनुसार कल्कि अवतार शंभल ग्राम में विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर पुत्र रूप में होगा । मेरी जानकारी के अनुसार अभी इसमें दस हजार वर्ष से अधिक का समय है । राजीव कुलश्रेष्ठ 
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nothing is everything and everything is nothing, 
in between of these to there is something
What is that ? Can anyone explain this ?
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जो ( ये ) कुछ नहीं है । वही सब कुछ है । ( ये ) जो सब कुछ है । वो कुछ नहीं है । और जो कुछ आपको अनुभव में आता है । वो इसी " कुछ नहीं और सब कुछ " के मध्य ही है । राजीव कुलश्रेष्ठ
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इसी को फ़क्कङ सन्तों ने इस तरह कहा है -
चाह मिटी चिन्ता मिटी मनुआ बेपरवाह ।
जा को कछू न चाहिये सो ही शहंशाह ।
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तू अजर अनामी वीर भय किसकी खाता ।
तेरे ऊपर कोई न दाता ।
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हद टपे सो मानवा बेहद टपे सो पीर ।
हद बेहद दोनों टपे उसका नाम फ़कीर ।
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सबहि सयाने एक मत पहुँचे का मत एक ।
बीच में जो रहे तिन के मते अनेक ।
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The process of refinement of a soul is very long , its traits are not developed in just a single lifetime.The traits are acquired and accumulated from previous lifetimes which results in the overall personality of a person. our present personality is only a continuation of the previous one but the process of refinement is always going on. This means that a person who is soft spoken and a team working till the end of his/her present life time will not drastically transform to an arrogant, dominant person. He will carry the same traits from his/her previous lifetime.The process of refinement follows the following path:
soul - consciousness
consciousness - mind
mind - Three Gunas (satva, rajas and tamas)
gunas - sanskara
http://en.wikipedia.org/wiki/Sanskara
sanskara - karma (deeds)
karm - sanskara
also sanskara results in determining the nature of  person. and the nature determines the new acts (deeds) of that person.
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आप में भी राम है । और हम में भी राम है । आप भी राम हैं । में भी राम हूँ । राम किसी को भी बड़ा छोटा नहीं 

बनाता है । एक समानता का संदेश है । अर्थात जो आप हैं । वही हम सब हैं ।
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We are not humans having a spiritual experience, but rather spiritual beings having a human experience.
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we think were made of stuff but in fact we're really a form of energy ? ( E=mc2 ) ?
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कोहम > सोहम > ओहम 
Who am i ? > Mind > Body
अब क्या बचा ? राजीव कुलश्रेष्ठ 
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http://revolutionarynewphilosophy.com/2013/09/11/atheistic-pride-and-prejudice
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भारतीय जड़ी बूटी, औषधियों का सम्पूर्ण विवरण चित्रों के साथ इलेक्ट्रोनिक बुक ( ई-बुक ) रूप में
http://prakriti-farms.org/downloads/MedicinalAndAromaticPlants.chm
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1 बार घूमते घूमते कालीदास बाजार गये । वहाँ 1 महिला बैठी मिली । उसके पास 1 मटका था । और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी । कालीदास ने उस महिला से पूछा - क्या बेच रही हो ? महिला ने जवाब दिया -महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ । कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा - पाप और मटके में ? महिला बोली - हाँ ! महाराज ! मटके में पाप है । कालिदास - कौन सा पाप है ? महिला - 8 पाप इस मटके में हैं । मैं चिल्लाकर कहती हूँ कि मैं पाप बेचती हूँ पाप । और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है ।  अब महाकवि कालीदास को और आश्चर्य हुआ - पैसे देकर लोग पाप ले जाते है ? महिला - हाँ ! महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है । कालिदास - इस मटके में 8 पाप कौन कौन से है ? 
महिला - क्रोध, बुद्धिनाश, यश का नाश, स्त्री एवं बच्चों के साथ
अत्याचार और अन्याय, चोरी, असत्य आदि दुराचार, पुण्य का नाश, और स्वास्थ्य का नाश । ऐसे 8 प्रकार के पाप इस घड़े में है । कालीदास को कौतुहल हुआ कि यह तो बड़ी विचित्र बात है । किसी भी शास्त्र में नहीं आया है कि मटके में 8 प्रकार के पाप होते हैं । वे बोले -  आखिरकार इसमें क्या है ? महिला - महाराज ! इसमें शराब है शराब ।
कालीदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले - तुझे धन्यवाद है । शराब में 8 प्रकार के पाप हैं । यह तू जानती है । और - मैं पाप बेचती हूँ । ऐसा कहकर बेचती है । फिर भी लोग ले जाते हैं ।  धिक्कार है ऐसे लोगों को । Indresh Tiwari 

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