22 अक्तूबर 2013

हमारी आत्मा का कमल - अहं कमल

बृह्माण्डीय द्रोह - पौराणिक काल से ही ऋषियों ने अपने शिष्यों को यह उपदेश दिया कि वे स्वयं को जानें । और पूछें - मैं कौन हूँ ? मनुष्य के लिए आत्मावलोकन करना संभव है । क्योंकि वह आत्म जागरुक है । हम यह जानते हैं कि हमारा अस्तित्व है । और हम अपने जीवन में परिवर्तन कर सकते हैं । यह चेतना ही हमें जानवरों से अलग करती है । जानवर स्वप्न ( अन्तःप्रेरणा से संचालित ) जैसी अवस्था में रहते हैं । कुछ जानवरों की प्रजाति जो कि मनुष्यों के समीप में रहती है । उनमें भी मन का निर्माण हो जाता है । पर पदार्थ, पेड़ और अधिकतर जानवरों में मन जागृत नहीं रहता है । मन के जागृत होने से ही मनुष्य ( की चेतना ) 1 वृति ( अन्तःप्रेरणा ) से विकसित होकर व्यक्ति ( अपने आपको व्यक्त कर सकने वाला ) बनता है । वह फिर और विकसित होकर 1 व्यक्ति से व्यक्तित्व ( गुण दोष आदि ) में बदलता है । और वहाँ से आत्मीय चेतना ( सत्व गुण तथा गुणातीत ) में विकसित होता है । मनुष्य के अस्तित्व का मूल ( रहस्य ) खुलता है । किसी श्रेष्ठ चेतना की उपस्थिति में । 

जिसने मनुष्य को मन रुपी अग्नि दी । युगों से मनुष्य की चेतना को खोलने के लिए यह श्रेष्ट चेतना अपना प्रकाश भेज रही है । इस चेतन प्रकाश रुपी फूल को " अहं कमल " भी कहते हैं । हमारी आत्मा का कमल ।
बहुत सी किंवदंतियाँ, पौराणिक कथाएं और रूपक सम्बन्धी वर्णन हैं । जो कि मन की जाग्रति को समझाते है (  बाइबल में ) स्वर्ग से निष्कासित देवदूत की कहानी का गूढ़ अर्थ वह कुंजी है । जिससे मनुष्य की चेतना को समझा जा सकता है । पूर्वी सभ्यताओं में कुमारों और अग्निश्वत्ताओं का वर्णन किया है । सौर्य देवदूत के रूप में यह भी इसी जाग्रति से सबंधित वर्णन करते हैं । यह हमारी सूक्ष्म समझ पर निर्भर करता है कि हम कहाँ तक इन शिक्षाओं को समझ सकते हैं । यूनानी पुराणों में प्रोमिथियास की कथा, जो कि रचनाकार भगवान से अग्नि चुराकर

मनुष्यों को दे आया था । बहुत कुछ कुमारों के द्वारा चेतना को जागृत करने की कथा से मिलती है ।
बृह्मा के द्वारा सृष्टि की रचना के समय 4 मानस पुत्रों, कुमारों को उत्पन्न किया गया था । इनमें 1 पाचवें कुमार, नारद, भी जुड़ गए । जो कि लोगों के शिक्षक थे । ये कुमार पूर्व कृत सृष्टि के दोष रहित प्राणी थे । ये सृष्टि के आदि में दूसरों की, विशेष रूप से मनुष्यों की, सहायता करने के लिए आये । न कि कुछ नया सीखने । इनका मन शुद्ध था । इसलिए इन्हें 5 वर्ष के शिशुओं अथवा 16 वर्ष के चिरयुवा कुमारों के रूप में दर्शाया जाता है । पुराणों में विवरण है कि बृह्मा ने कुमारों को अपने साथ सृष्टि की रचना करने में सहयोग करने को कहा । लेकिन कुमार जानते थे कि उनका कोई अन्य प्रयोजन है ? इसलिए उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया । इससे बृह्मा क्रोधित हो गए । और उन्होंने कुमारों को श्राप दे दिया कि उनका पतन हो जाये । और वे धरती पर 

गिर जाएँ । कुमारों की अवज्ञा करने के कारण इन्हें बृह्मांडीय विद्रोही भी कहा जाता है । उनके अवज्ञा करने का 1 प्रयोजन था । जो कि बृह्मा भी नहीं जानते थे । कुमारों ने कहा - जिस रूप में हमें भेजा जा रहा है । वह अभी हमारे अनुकूल नहीं है । उन्होंने अपनी ( प्राण रुपी ) अग्नि को नीचे गति करने के तथा उत्पत्ति के लिए प्राणियों को प्रोत्साहित करने से मना कर दिया । इसीलिए उन्हें अग्निश्वत्ता, जिन्होंने अपनी उत्पत्ति करने की अग्नि को बुझा दिया, भी कहा जाता है । उनकी लौ हमेशा ऊपर की और ही निर्देशित रहती है । अपने उदगम की और । इसीलिए इनका विवरण निर्दोष युवाओं के जैसे किया जाता है । क्योंकि इच्छाएं इनके अक्षत मन को मलीन नहीं कर पातीं । यद्यपि ये विशिष्ट लोक के दोष रहित प्राणी थे । तथापि इन्होंने स्थूल सृष्टि में गिरने का विरोध नहीं किया । क्योंकि ये यही चाहते थे ।
मन की जाग्रति - इसलिए 1.8 करोड़ वर्ष पूर्व, ये दिव्य प्राणी मनुष्य के तीसरे वंश के दो तिहाई समय निकल जाने पर धरत पर उतरे । ये मनुष्य जाति को आत्म जागरूक होने में सहयोग करना चाहते थे । जिससे मनुष्य के मन का विकास हो । और वह धीरे धीरे उत्थान करे । तब तक मनुष्य अर्ध चेतन अवस्था में था । तब तक मनुष्य की आत्मा बुद्धि और स्थूल सृष्टि में कोई सम्बन्ध नहीं था । पशु रुपी मनुष्य में तब आत्म जागरूकता नहीं थी । क्योंकि तब उनमे मन जागृत नहीं था । सृष्टि की रचना करने वाली सत्ता 1 वर्ग इसके पक्ष में नहीं था कि मनुष्य को मानस क्षमता प्रदान की जाये । 

क्योंकि यह बच्चे के हाथ में धारदार वस्तु देने के जैसे था । लेकिन विद्रोही ( कुमार ) चाहते थे कि पशु रुपी मनुष्य अनुभव से धीरे धीरे आत्म जागरूक होना सीखे । कुमारों ने अपने प्रकाश से अविकसित मनुष्य के अन्दर " मैं हूँ " के प्रकाश को जागृत कर दिया । ज्योति के सम्राट कुमारों की इस प्रेरणा के अभाव में पशु रुपी मनुष्य कभी जागृत न हो पाता । इसलिए हम जो हैं । वह कुमारों के कारण बने हैं । याने आत्म जागरूक चिंतनशील मनुष्य ।
मन के जागृत होने से ही हमें स्वतंत्र इच्छा करने की शक्ति मिली । जिसे हम अच्छे और बुरे के लिए प्रयोग कर सकते हैं । कुमार हमें 1 सम्भावना देना चाहते थे कि हम मननशील होकर धीरे धीरे प्रकाश की और बढ़ें । लेकिन मात्र कुछ ही लोग प्रकाश के पथ पर बढे । अधिकतर लोगों ने मन की शक्ति का प्रयोग सांसारिक अभिलाषाओं की पूर्ति करने के लिए किया । ऐसे में कुमारों की मनुष्य को दी गयी इस प्रेरणा को बुरा समझा जा सकता है । लेकिन वास्तविक दुर्भावना मात्र बहुत ही छोटे समूह के लोगों में हुयी । बहुत से लोग जिन्हें हम बुरा समझते हैं । वे वास्तव में अज्ञानी हैं ।
बाइबिल जेनेसिस में कहा गया है कि मनुष्य को सर्प ने प्रलोभित किया । यह सर्प भी ज्योति के सम्राट का 1 प्रतीक है । मनुष्य ने ज्ञान का फल खा लिया । अच्छे और बुरे में अंतर करने का फल । और उन्होंने देखा कि वो वस्त्रहीन हैं । उनमे शर्म प्रकट हो गयी । क्योंकि वो अपनी जाग्रति की स्थिति से नीचे आ चुके थे । और अब 

स्थूल रूप में थे । रक्त, मांस और चर्म के शरीर में । आध्यात्मिक लोकों से उनका संपर्क अंधकारमय हो गया । और मनुष्य अपने अज्ञान में किये गए कर्मो का फल बनाने लगा । जिससे संघर्ष और कष्ट हुआ । और मनुष्य स्थूल सृष्टि में ही फँस गया । इन अनुभवों से मनुष्य सीखने लगा । और बहुत तीव्र गति से उन्नति करने लगा ।
उपस्थिति का प्रकाश - कुमार इस गृह पर हमारी सहायता करने के लिए हैं । यद्यपि वो जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करते । और न ही हमें ये बताते हैं कि हमें क्या करना चाहिए । और क्या नहीं करना चाहिए । यहाँ पर 1 सृष्टि का नियम कार्य करता है । जिसके अनुसार विकास बाहरी सहायता से तब तक संभव नहीं है । जब तक अंदरूनी लालसा न हो । कुमार लगातार ही हमें अपनी उपस्थिति का प्रकाश देते रहते हैं । जो कि हमें आत्मा के प्रकाश के रूप में अनुभव होता है । यह प्रकाश स्वयं हस्तक्षेप नहीं करता । लेकिन यह हमारी सहायता करता है । विषय वस्तु को स्पष्ट रूप से समझने में । उनकी उपस्थिति में चुम्बकीय प्रेरणा है । जिससे वस्तुयें उच्च व्यवस्था को प्राप्त होती हैं । इस प्रकार से

कुमार हमारे विचारो को व्यवस्थित करते हैं । जिससे हम अपने जीवन को और अच्छे से व्यवस्थित कर सकें । और अपने आपको प्रकाश से संरेखित कर सकें । जिससे हमें और अधिक प्रेरणा प्राप्त हो ।
कुमारों का प्रकाश विशेष रूप से प्रातःकाल में उपलब्ध रहता है । जब अन्धकार प्रकाश के रूप में परिवर्तित हो रहा होता है । महीने में 1 बार वो हमें अधिक मात्र में दर्शन देते हैं । दूज के चंद्रमा के 24 घंटे तक । वे हमें वार्षिक भी मिलते हैं - मकर महीने में । जिसे कुंवार का महीना भी कहा जाता है । अगर हम उदय के समय का प्रयोग अपनी आत्मा, हमारे अन्दर के सौर्य देवदूत, को संरेखित करने के लिए करते हैं । तब हम कुवारों से प्राप्त प्रकाश को अधिक मात्र में अवशोषित कर सकते हैं ।
5 कुंवार - कुंवार सृष्टि के हर तल पर और उसके पार के अध्यात्मिक पदक्रम के अग्रिणी हैं । इसलिए ये पदक्रम में सर्वोच्च और सबसे पुराने हैं । उनके लिए जो नाम दिए गए हैं । वह हैं - सनक, सनंदन, सनत कुमार, सनत सुजात ।
प्रथम कुंवार - सनक, पारलौकिक को लौकिक से जोड़ने का मार्ग बनाते हैं । अपने इस उत्कृष्ट पहलू के लिए उन्हें सनातन भी कहा गया है । सनातन प्रकाश का शुद्धतम अस्तित्व । हमारे भीतर इनका निवास सहस्त्रार चक्र में है । ये हमारी जागरूकता के अभाव की उस स्थिति के समान हैं । जब हम सोते हैं ।
द्वित्तीय कुमार हैं - सनंदन । जो सूर्य तल और शुद्ध चेतना, आत्मा, से सम्बन्ध रखते हैं । हमारे अन्दर इनकी स्थिति आज्ञा चक्र में हैं ।
जिस कुमार को हम सबसे अच्छे से जानते हैं । वह है - सनत कुमार । ये हमारे ग्रह की चेतन सत्ता है । और इसीलिए यहाँ के सम्राट हैं । ये चिंतन के बौद्धिक तल का और प्रेम से भरे हुए हृदय चक्र में मन का प्रतिनिधित्व करते हैं । इन्हें शिक्षकों का शिक्षक और सम्राटों के सम्राट माना जाता है ।
चौथे कुमार हैं - सनत सुजात । ये उच्च मन, चित्त, का प्रतिनिधित्व करते हैं । ये सनत कुमार के निचले प्रतिरूप हैं । हमारे भीतर इनका निवास नाभि चक्र के ऊपर और शरीर के निचले भाग में है ।
साधारणतः चारों कुमार पूर्णतः शांत रहते हैं । मात्र तीसरे और चौथे कुमार ने ही लोगों को विशेष समय में शिक्षा दी है । सनत कुमार ने सम्राट पृथु को शिष्यत्व के मार्ग की शिक्षा दी थी । 5000 वर्ष पूर्व सनत सुजात ने कृष्ण के आने की तैयारी में सहयोग किया था । तथा दृष्टिहीन राजा धृतराष्ट्र को मृत्यु और अमृत्व के रहस्य बताये थे । उन्होंने कहा - मृत्यु चेतना के बीच का अंतराल है । उस समय सनत कुमार कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्मे थे ।
1 अन्य प्रणाली के अनुसार - सनत कुमार तीसरे कुमार हैं । और वो कर्म के तल पर राज करते हैं । जबकि तीसरे कुमार मन पर राज करते हैं । पांचवे कुमार, नारद, सर्वश्रेष्ठ शिक्षक और संदेशवाहक हैं । जो कि सुगमता से सृष्टि के सातों तलों में विचरण करते रहते हैं । ये वह प्रज्ञा शक्ति है । जो हमें वस्तुओं की तुलना करने की क्षमता प्रदान करती है । इसीलिए इन्हें झगडा कराने वाला भी कहा जाता है । इनके आशीर्वाद से ही हममें जानने की लालसा उत्पन्न होती है । कुमारों की सुरक्षा और प्रकाश से हम सुरक्षित रूप से ऊर्ध्वगति करते हैं ।
सिद्ध - पौराणिक ज्ञान हमें बताता है कि पहले के समय में हमारी धरती मात्र आधी ही थी । जिसका 1 ही ध्रुव हुआ करता था । उस समय धरती एक स्थूल न होकर सूक्ष्म रूप में थी । जिसका उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर उन्मुख था । दक्षिणी ध्रुव अभी बना नहीं था । और न ही पृथ्वी का कोई स्थूल भौतिक रूप था । बाद में पृथ्वी सघन हुई । वह थाल रूप से बदल कर गोलाकार हुई । दक्षिणी ध्रुव बना । और पहले से ही अस्तित्व मे रहा उत्तरी ध्रुव अपनी स्थिति से 90 अंश खिसक गया । धरती का वह क्षेत्र जो उस समय का उत्तरी ध्रुव था । और सूर्य की ओर उन्मुख था । वह अब हिमालय है । वर्तमान उत्तरी ध्रुव अब ध्रुव तारे की ओर इंगित करता है । मानव जाति के प्रारम्भिक 2 वंश तब भी स्वर्ग में ही रहे । और उनका रूप सूक्ष्म ( आकाशीय तत्व प्रधान ) था । उनमें तब मन नहीं था । पर तब भी वे सूक्ष्म आकाश में स्वप्नावस्था जैसी स्थिति में अस्तित्व में थे । उस समय मात्र 10 राशियाँ थीं । कन्या और वृश्चिक मिलकर 1 चिन्ह बनाते थे । तुला, जो कि 1 प्रतीक है । सघन भौतिक अभिव्यक्ति का । तब अस्तित्व में नहीं था । मानव जाति का तीसरा वंश भौतिक शरीर के साथ अवतरित होने लगा । और तुला राशि का प्राकट्य हुआ । तीसरे वंश के मध्य समय में लिंग ( स्त्री पुरुष ) विलग हुये ।
उस समय 1 विशिष्ट इच्छा और तेज का समूह, सिद्ध, शुक्र गृह से धरती पर आया । धरती और उसके वासियों के क्रमिक विकास मे सहायता करने के लिए । यह समूह सनत कुमार के नेतृत्व में था । जो कि शुक्र गृह से नीचे आए थे । शुक्र को धरती की बड़ी बहन कहा जाता है । वह हमारे गृह की श्रेष्ठ आकाशीय ( तेज वाहक तत्व ) प्रतिरूप है । बाद में इस समूह के कुछ लोग वापस शुक्र गृह चले गए । लेकिन कुछ यहीं रह गए । उनमें से 1 सनत कुमार भी थे । वर्तमान समय में हमारे गृह पर मात्र 24 सिद्ध ही हैं । सिद्ध का अर्थ ऐसे लोगों से है । जो पारंगत हैं । जिनका शरीर उत्तम, तेज रूपी है ।
अवश्य ही समय समय पर शुक्र से बुद्धिजीवी हमारे ग्रह पर हमें आवश्यक प्रेरणा देने आते रहते हैं । गुरु एक्कीरला कृष्णमाचार्य कभी कभी लोगों को मध्य रात्रि मे उठा दिया करते थे । और उन्हें अपने साथ ध्यान में बैठने के लिए कहते थे । ध्यान 2-3 घंटे का हुआ करता था । पूर्ण शांति में । 1 सुबह जब उनसे पूछा गया । तब उन्होंने अपने साथियों को बताया - कुछ महान जीव हमारे ग्रह पर उतर रहे हैं । चंद्रमा की किरणों के माध्यम से । वे शुक्र गृह के वासी हैं । वे मानव जाति के उत्थान में साथ देने तथा हमारी दिव्य योजना में हमारी सहायता करने के लिए आ रहे हैं । अनुयाई उनका पूरे सम्मान के साथ स्वागत कर रहे हैं । मैं तुम्हें चुनता हूँ । जागृत करने के लिए । क्योंकि मैं नहीं चाहता कि ऐसे विशिष्ट समय में तुम सब सोते रहो ।
ग्रहीय सत्ता - सनत कुमार को इस धरती का सर्वश्रेष्ठ जीव ( अस्तित्व ) और सबसे प्राचीन माना जाता है । इसीलिए उन्हें धरती का सम्राट भी कहा जाता है । उन्हें " मूक प्रेक्षक " तथा " विश्व का राजा " भी कहा जाता है । सनत कुमार आद्यरूप हैं । धरती पर स्वर्गीय मनुष्य की छवि की भांति । बाइबल मे उन्हें " दिनों का प्राचीन " कहा गया है । " प्राचीनों में से एक " सीधा प्रतिबिंब है - पृथ्वी की जीवन्त सत्ता का । यह (  प्राचीनों में से 1 ) सनत कुमार को ठीक उसी प्रकार से प्रयोग में लेता है । जिस प्रकार से आत्मा 1 व्यक्तित्व को प्रयोग में लेती है । वह ( प्राचीनों में से 1 ) सनत कूमार के रूप में अवतरित होता है । इसलिए सनत कुमार वह सम्बद्ध शक्ति है । जो इस ग्रह पर सभी क्रमिक विकास के बीच में रहती है । स्वांस लेती है । और कार्य करती है । यह सत्ता अपनी आभा में और अपने प्रेरक चुम्बकत्व के आवरण में सभी को साथ रखती है । जिससे सभी 1 सम्बद्ध शक्ति से साथ काम करें । इस सत्ता में हम रहते हैं । चलते हैं । और इसी में हमारा अस्तित्व है । और कोई भी । कोई भी इसकी आभा के पार नहीं जा सकता ।
सनत कुमार ने सर्वश्रेष्ठ पद की प्रतिष्ठा को ठुकरा दिया । मानव जाति का विकास करने के लिए । यह 1 ऐसा कृत्य है । जो कि उस मानव पर कृपा समान है । जिसे नहीं पता कि कैसे जीवन जीना है । कैसे आत्म साक्षात्कार करना है ? और दिव्य के पड़ावों पर कैसे चढ़ना हैं । सनत कुमार और उनका सहयोगी दल मनुष्यों को मार्ग दिखाता है । उन्हें सर्वोच्च शिक्षक माना जाता है । जो कि ऊंचे लोकों के द्वार हमेशा खोले रखते हैं । ये उन द्वारों पर खड़े रहते हैं । पर स्वयं उन द्वारों से जाने से मना करते हैं । जिससे कि ये अन्यों की सहायता कर सकें । उस स्तर तक पहुँचने के लिए । इसलिए वे एक मात्र दीक्षक हैं । हमारे संस्कारों के आचार्य ।
शम्भाला और चिंतामणि - सनत कुमार का धरती पर उतरना 1 महान बलिदान समझा जाता है । जिसे उन्होंने अपने परमात्मा से प्रेम के कारण बिना किसी स्वार्थ के किया । वो इतने शुद्ध और विशिष्ट हैं कि वो स्थूल भौतिक तल पर नहीं उतर सकते । लेकिन वो उससे ऊपर के सूक्ष्म स्तर पर आकर रुके । जो कि पृथ्वी को घेरे हुए है । वो 1 ऐसे स्थान पर रहते हैं । जो मंगोलिया में गोबी रेगिस्तान के पास सूक्ष्म आकाशीय तल पर है । जिसका नाम है - शम्भाला । यह स्थान साधारण व्यक्तियों के लिए अदृश्य है । पर यह उन्हें दिखता है । जिन्हें सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त है । वहाँ से ये गुरुओं के श्वेत स्थान की अध्यक्षता करते हैं । और अपने हाथ में अंदरूनी सत्ता का शासन थामे रहते हैं । वे इस ग्रह पर मनुष्यों और देवताओं के विकास को देखते हैं ।
सनत कुमार चिंतामणि ( जो कि आकाशीय उत्पत्ति का पारस पत्थर है ) की रक्षा करने वाली आत्मा हैं । हम सनत कुमार और शम्भाला में विद्यमान शक्ति का विचार कर सकते हैं । अपनी आँखे बंद करके । आज्ञा चक्र से जुड़कर । गोबी रेगिस्तान के विषय में सोचें । और उसमें छुपे अदृश्य आश्रम के विषय में । आश्रम में ही सनत कुमार हैं । और सनत कुमार के ही मस्तक पर चिंतामणि रत्न शोभित है । कभी इसे अनुक्रम को दे दिया जाता है । पर सामान्यतः यह शम्भाला में ही रहता है । यह शीश के केंद्र में स्थिति सहस्त्र कमल दल के रत्न के समान है - ओम मणि पद्मे हूँ । सामान्य रूप से फिर भी यह रत्न मनुष्य में निष्क्रिय रहता है । ऐसा कहा जाता है कि - गंगा, सूक्ष्म आकाशीय शक्तियों का बहाव, चिंतामणि के ग्रह में स्थित रहती है । और वही से यह बृह्मांडीय अवस्था से धरती पर उतरती है । चिंतामणि पृथ्वी पर अस्तित्व की शुद्धतम अवस्था है । चेतना का प्रकाशमान रत्न । हमारे मस्तक से परे । वहाँ से ये हीरे रुपी चेतना हमारे मस्तक में प्रवेश करती है । और अगर हमें इसका अनुभव हो जाता है । तब हम " योजना " को समझ जाते हैं ।  यह चेतना जैसे जैसे नीचे उतरती है । वैसे वैसे ही यह और स्थूल सांसारिक होती चली जाती है । और शुद्ध चेतना लुप्त हो जाती है \
शम्भाला इस गृह पर संश्लेषण का केंद्र है । एकता का केंद्र । जिसे अनुक्रम कहा जाता है । महान गुरुओं और प्रवीणों के साथ । मानव जाति अनेकता का प्रतिनिधित्व करती है । धीरे धीरे यह एकता की और बढ़ना सीख रही है - आत्मा की ओर । हमारे अन्दर जो सहस्त्र कमल दल है । वही संश्लेषण का आधार है । उसका संस्कृत नाम संश्लेषण का मंत्र है - सहस्रार ।
हम पुस्तकों से नाम तो जान सकते हैं । पर आवश्यक यह है कि हम उस जानकारी का प्रयोगात्मक अनुभव करें । जिससे वह हमारे लिए वास्तविकता बने । अन्यथा हम बड़ी सरलता से इस भ्रम में आ जायेंगे कि हमने सनत कुमार या अन्य किसी महान चेनता के साथ के साथ संपर्क किया । अगर हमने संपर्क किया है । तब हम कुछ कहेंगे नहीं । हम सनत कुमार से मात्र तभी संपर्क कर सकते हैं । जब हम सहस्रार में रह रहे हों । ऐसा कहा जाता है कि जब हम सातवें तल के प्रथम उपतल पर हों । तब हम स्वामी के चरण छू सकते हैं । अन्यथा हम मात्र उनकी पूजा और आवाहन ही करते रहेंगे ।

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