09 अक्तूबर 2013

अगले चार महीनों में क्या होने वाला है

कोई पिछले तीन चार महीनों से ऐसा है कि जब भी मैं कुछ लिखने बताने की सोचता था । मुझे ऐसा लगता था कि अब इस सबका कोई लाभ नहीं । लेकिन अपने शिष्यों आदि से इस सम्बन्ध में अक्सर बातचीत होती रही । दरअसल मुझे एक अजीब से तूफ़ान आने से पूर्व जैसी स्थिति का आभास होने लगा था । आज जो ये उल्का पिंड चर्चित हुआ । इसका मुझे सवा महीने पूर्व आभास हुआ था । आप देख सकते हैं । मेरे पुराने लेखों में इसका जिक्र है । मैं यह तथ्य यहाँ कभी प्रकाशित नहीं करना चाहता था । पर जाने किस भावना से मुझे एक आंतरिक बैचेनी सी होने लगी । और फ़िर मैंने इन्हें स्मृति आधार पर प्रकाशित किया । किसी प्रेरणावश ही ये तथ्य मैंने अपने एक शिष्य को फ़ोन से लगभग पाँच घण्टे की बातचीत में कृमशः कुछ दिनों पूर्व बताये । जिसे उसने अपने कम्प्यूटर, गूगल आदि तीन अलग अलग स्थानों पर सुरक्षित भी किया है । कहा जा सकता है । आगामी चार महीनों का समय अप्रत्याशित घटनाओं का है । जिसमें से कुछ समय गुजर भी चुका है । कृपया आगे पढते समय इसे आंतरिक और अमानवीय घटनाओं के नजरिये से अधिक देखें । भले ही इन सबमें बहुत मनुष्य भी माध्यम होंगे । पर वे यन्त्रवत और अमानवियों द्वारा संचालित होंगे ।
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प्राचीन रोम में एक यूनानी देवता हुआ था । जिसका नाम निकोलस था । ये पूरे विश्व पर एकछत्र राज्य करना चाहता था । लेकिन किसी छल से इसका सिर काट दिया गया था । यही निकोलस पिछली तीन पुश्तों से अमेरिका का राजा

है । और भारत की सर्वाधिक चर्चित महिला इसी की राजमाता है । ( एक अज्ञात टापू पर स्थिति एक किले की तीसरी मंजिल पर इनका मुख्य केन्द्र है । जहाँ से ये सभी गतिविधियां संचालित की जाती हैं । या गुप्त योजनाओं आदि के बारे में मीटिंग्स होती हैं । ) इसका भारत पर सात पुश्तों से राज कायम है । यह आज जो आसुरी प्रवृतियों का बोलबाला है । यह इन दोनों के प्रतिशोधात्मक भावना का नतीजा है । कृपया इसे सिर्फ़ वर्तमान सम्बन्धित स्थूल मानवों के नजरिये से न देखें । ऐसी शक्तियां जीव अंश को माध्यम बनाकर अप्रत्यक्ष रूप से सूक्ष्म स्थिति में कार्य करती है । सीधी सी बात है । अप्रत्यक्ष रूप से भारत और अमेरिका में अभी एक ही राज है ।
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संभवतः युद्ध रणनीति जैसी परिस्थितियों के लिये प्रथ्वी को चार भागों में विभाजित किया गया है । उत्तरी 

भूभाग । पश्चिमी भूभाग । दक्षिणी भूभाग और अमेरिका । इसका अर्थ है । पूर्वी भूभाग इससे अलग ही रहेगा । वो कौन सा है । मैं नहीं जानता ।
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कल से प्रथ्वी के आंतरिक केन्द्र में घूर्णन थमने लगेगा । और अंततः ठहर जायेगा । प्रथ्वी के केन्द में होते घूर्णन के स्थिर होने से अधिक वैज्ञानिक प्रभाव तो मुझे पता नहीं । पर कहते हैं । इससे प्रथ्वी के वातावरण में एक चुम्बकीय शक्ति का निर्माण होता है । जो सूर्य किरणों के विकरण से होने वाले दुष्प्रभावों से बचाती है । जो भी हो । मैं इतना जानता हूँ । ये घूर्णन स्थिर होगा ।
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कुछ बातें नियम के तहत मैं यहाँ स्पष्ट नहीं कर पाऊँगा । पर ऐसे ही कारणों से सागर में अनन्त उर्जा उत्पन्न होगी । जिससे जल प्रपात का दृश्य उत्पन्न होगा । इसके परिणाम क्या हो सकते हैं । कोई भी समझ सकता है । 

केन्या । अरमेनियां अजरबेजान तिरुवत नामीबिया जैसे स्थान विशेष प्रभावित क्या ? छोङिये । 
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प्रथ्वी पर फ़ैलने वाली महामारियों के रूप में चार प्रमुख होगी - विसूचिका ( दस्त ) हेपटाइटिस बी । रक्त कीटाणुओं से सम्बन्धित बीमारियां । अग्निमांध ज्वर ।
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जैसा कि मैंने अभी लगभग महीने भर पहले की पोस्ट में कहा था । प्रथ्वी पर होने वाले आपात समय हेतु शनि और मंगल ग्रह मुख्य भूमिका में मैदान में हैं । ये युद्ध अशांति बीमारी और महामारियों या बुद्धि विनाश को भरपूर पोषण देंगे । आपने देखा होगा । ये धूमकेतु मंगल के चक्कर लगाकर आया है । और सूर्य के भी चक्कर लगायेगा । अगर मैं अपनी भाषा में कहूँ । तो ये सब प्रशासनिक है । अगर आप धूमकेतु को सिर्फ़ एक जलते पिंड के ही रूप में नहीं जानते तो ।
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मानवीय वैज्ञानिक स्तर पर मुझे कुछ ज्ञात नहीं । पर अभी के चर्चित धूमकेतु की पूंछ अलग हो चुकी है । हमारे ज्ञान के अनुसार ये दरअसल एक महादैत्य है । जो प्रथ्वी पर भेजा गया है । ये अपने अपिंडीय रूप में कल प्रथ्वी पर उतर गया ।
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प्रथ्वी पर इस समय " महा राहु " भी आ चुका है । ये प्रथ्वी को दो भागों में विभक्त ( अलग नहीं होगी ) कर आधे भाग को अपने अधिकार में ले लेगा । या कहो । ले लिया ।
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अभी की आपातकालीन ( प्रलय सम ) स्थिति को देखते हुये प्रथ्वी को ठीक मध्य से दो भागों में बांटा गया है । उत्तरी गोलार्ध । दक्षिणी गोलार्ध । इसमें दक्षिणी गोलार्ध में आने वाले सभी सीमावर्ती देश प्रभावित होंगे । यह प्रभाव म्यांमार तक होगा ।
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अंडमान ( अन्दामान ) निकोबार दीप पर हो रही जल सन्धि खुल जायेगी । मैं इसका अर्थ ये लगाता हूँ । वहाँ

किन्हीं दो बङी जलधाराओं का जो कभी मिलन हुआ था । और अभी है । वह अलग अलग हो जायेगा ।
खाङी ( स्थान अज्ञात ) पर जल सन्धि होगी । इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं । ये आपको सोचना है ।
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जिस एक तथ्य ने मुझे सर्वाधिक आकर्षित किया । वो ये है कि - नयी सभ्यता हेतु बदलाव को प्राकृतिक तौर पर न लेकर अलौकिक तौर पर नियन्त्रित किया जायेगा । इसको इस तरह समझें कि जो भी तबाही होगी । उसके बाद नये सृजन हेतु अलौकिक स्थितियों का सहारा लिया जायेगा । क्योंकि ये समय आपातकालीन स्थिति की भांति ही है । अतः जब ये तबाही समाप्त होकर नवजीवन आरम्भ होगा । तो बचा हुआ जन समुदाय एक रहस्यमय तरीके से यह सब भूल जायेगा । उसे प्रतीत ही नहीं होगा कि कुछ ही समय पूर्व प्रथ्वी पर क्या हुआ । और वह किस स्थिति में थी ? ऐसा कैसे होगा । मैं भलीभांति समझा सकता हूँ । पर वह थोङा विस्त्रत है । दरअसल ये सभी ( खास ) मनुष्य चेतनायें आपस में एक अदृश्य आंतरिक परिपथ से लगभग उसी तरह जुङी होती हैं । जिस तरह अभी सभी कम्प्यूटर जुङे होते हैं । इसका नियंत्रण कृमशः एक मुख्य नियन्त्रक के पास होता है । और आप सिर्फ़ स्मृति के आधार पर ही प्रथ्वी की आयु । सभ्यता विज्ञान आदि आदि चीजों को जानते हैं । तब उस पुराने एप्लीकेशन को खत्म कर नया एप्लीकेशन और नया क्रमादेश ( प्रोग्राम्ड ) ये सब कुछ पुराने को खत्म कर देगा । आप सोचिये । इसमें क्या दिक्कत होगी । क्योंकि प्रथ्वी पर जीवन की शुरूआत का यही तरीका है । यहीं आपको एक और रहस्य भी बता दूँ कि जिन वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक खोजों से आप विस्मित हो जाते हैं । वास्तव में वह कोई खोजे न होकर इसी तरीके से प्रत्यक्ष होती हैं । इसीलिये आध्यात्म में मनुष्य को सिर्फ़ कठपुतली की संज्ञा दी गयी है । उमा दारु जोषित की नाई । सबै नचावत राम गुसाईं । दारु जोषित कठपुतली से कहते हैं ।
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प्रथ्वी की ( अभी की ) कई जैसे धुरी आदि मूल स्थितियों में परिवर्तन हुआ है । वास्तव में प्रथ्वी को जल में तैरा दिया गया है । ये बात भौतिक विज्ञान के स्तर पर कभी नहीं समझी जा सकती । ये सिर्फ़ आध्यात्म की विषय वस्तु ही है । आप जिन कारणों को भौतिक विज्ञान के नियम अनुसार देखते हैं । वे कारण आध्यात्म में ला एण्ड आर्डर सिद्धांत पर कार्य करते हैं । सरलता से समझने हेतु जैसे प्राकृतिक तौर पर जो घटना कारण समय और निर्धारित गणित के अनुसार घटती है । अप्राकृतिक ( अलौकिक ) तौर पर वे चीजें ( जम्प्ड ) तरीके से एक भूमिका से दूसरी भूमिका में चली जाती है । और यकायक बदल गये  समीकरण फ़िर इन्हीं प्राकृतिक नियमों के अनुसार हो जाते हैं । जबकि स्थूल दुनियां में इसका आभास तक नहीं हो पाता । यानी बीच में जो रहस्यमय सा घटा । वह मानवीय अध्ययन की पकङ में कभी नहीं आता । हाँ यदि आप स्थूल और सूक्ष्म के सिद्धांतों में अन्तर समझते हों । तब फ़िर सब कुछ नियम अनुसार ही होता है । मगर सूक्ष्म के ।
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इस नये समय में किसी भी प्रकार की अपंगता से युक्त जीवों का कोई स्थान नहीं होगा । चाहे वो मनुष्य या पशु पक्षी किसी भी शरीर में हों । इसका अर्थ है । इन सभी का खात्मा हो जायेगा ।
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कल से ही भारत में नयी सभ्यता और धर्म का बीजारोपण ( या कहें पौधारोपण ) हो चुका है । अतः नवनिर्माण में सिर्फ़ एक ही वैश्विक सभ्यता रहेगी । जो सनातन धर्म की होगी । अगर हिन्दू अभी के प्रचलित धर्म को ही सनातन धर्म मानते हैं । तो ये पूर्णतः गलत है ।
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सिर्फ़ भारत के तौर पर कहा जाये । तो भारत भी आग की लपटों से घिरा होगा । पर इसके और बिन्दु एकदम स्पष्ट नहीं हुये ।
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मणिपुर में विस्फ़ोट । इम्फ़ाल में आगजनी ।
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मध्य प्रदेश में रीवा मुख्य होगा । मध्य प्रदेश में भी काफ़ी हानि होगी । सतपुङा केहर आदि विशेष प्रभावित होंगे ।
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गुजरात के पश्चिमोत्तर प्रांत में सूखा । अन्य भाग में अग्निदाह । और अन्य हिस्सों में भयंकर प्लेग । इस प्लेग की महामारी का प्रभाव उत्तर प्रदेश तक पङेगा ।
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- पृथ्वी के केंद्र की घूर्णन गति स्थिर । - परमाणु रियेक्टर में धुआं ।
- 9 अक्टूबर 2013 से नयी सभ्यता का उदय । 
- महा राकेट करेगा विनाश ।  - प्रकृति तकनीक का नाश ।
- एटलांटा में भारी बर्फ़बारी ।  - म्यांमार में तबाही ।
- रीवा ( मध्य प्रदेश ) में भारी हानि । बादल । सूखा और अग्नि का प्रकोप | - सतपुरा और केहर में आग के गोले ।  - कर्नाटक डूबेगा ।
- Uruguay में जल प्रपात ।  - अंडमान में जल संधि खुलेगी । 
- ऊपर जो मैंने अमेरिका और भारत पर 3-7 पुश्तों का राज बताया । ये दोनों ही स्थानों पर अन्तिम होगा ।
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- ऊपर जिस निकोलस का जिक्र है । वह इतिहास में " निकोलस द वंडर " के नाम से प्रसिद्ध हुआ । लेकिन ये सहस्त्राब्दियों पूर्व का है ।
- अंडमान का नाम " अंदामन " कैसे आया । मैं नहीं जानता । पर मैंने ज्यों का त्यों ही लिखा ।
- निकरागुआ में जल प्रपात । - अभी निश्चित नहीं । पर वर्तमान दृष्य का पूर्ण नाश नहीं होगा । यानी ऐसी प्रलय का अर्थ आदिम युग में पहुँच जाना हर्गिज नहीं । यह सब कुछ बीज रूप सुरक्षित रहेगा ।
- निश्चित नहीं । पर विनाश के प्रारम्भ में दस दिन निकोलस की सेना युद्ध करेगी । इसके बाद स्वयं निकोलस । संभावना है । यह सब कुछ प्रारम्भ से तेईस दिन में हो जायेगा ।
- यह तय है कि प्रथ्वी की बाह्य संरचना में काफ़ी परिवर्तन होगा । मतलब जलीय थलीय स्थलों के स्थान परिवर्तन से ही है ।
- केन्या के पश्चिम प्रांत तिरुवत शहर में एटमी विस्फोट । ( यह शहर वर्तमान नामकरण के आधार पर अभी तो मुझे ज्ञात नहीं )
- 13 अगस्त को एक महाविस्फ़ोट की पूर्ण संभावना ।
- ISON धूमकेतु एक महादैत्य है । उसकी पूँछ टूट चुकी है । और वह धरती पर उतर चुका है । इस विवरण में आया महाराहु संभवत इसका महाविनाश में सहयोग करेगा ।
- पुर्तगाल मे जल से तबाही । 
- महासागर मे उठेंगी भयानक लपटें । इसका सही कारण अभी पता नहीं । पर संभावना सागर से गुजरते तेलवाहक पोतों आदि से भी बनती है । या फ़िर सागर में कोई तेल स्रोत उभर सकता है ।
- उल्का फैलाएगा भयानक तबाही ।
- दक्षिण गोलार्ध से चलेंगी विपरीत हवायें । सबसे महत्वपूर्ण तथ्य मेरी नजर में यही है । यदि आप इसका वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं । तो वह हाहाकारी विवरण बतायेगा ।
- सिंहल द्वीप ( श्रीलंका ) होगा नेस्तनाबूद । - भारत के पास बचेगा सिर्फ एक टापू ।
- भारत भी लपटों में घिरेगा । आधी आबादी नष्ट ( अभी की बात । अंत तक की नहीं ) - दक्षिण गोलार्ध मे विशाल जल प्रपात ।
- महा राहू धरती के दो टुकड़े करेगा ( छाया से ) - नामीबिया में भीषण तूफान
- पृथ्वी के आंतरिक केंद्र में ( जहाँ लावा खौलता है ) एक मटकी रखी जाएगी । उसमें तत्व रूप में कुछ बूंदें होंगी । वह मटकी अपना कार्य करने के पश्चात महासागर में चली जाएगी । जहाँ वह अनंत ऊर्जा उत्पन्न करेगी । और उसके बाद वह रसातल में चली जाएगी ।
- मध्य प्रदेश में बादल सूखा अग्नि का प्रकोप ।

नोट - अभी कुछ और भी महत्वपूर्ण तथ्य है । जो इसी पेज में ही जोङ दिये जायेंगे । मेरा ऐसा कोई आग्रह नहीं कि आप इन तथ्यों को सत्य मानें ही मानें । दरअसल हम सभी अपना अपना कार्य कर्तव्य भावना से करते हैं । और कुछ नहीं तो ये सब आपको चिन्तन आदि के बिन्दु तो देता ही है ।

इसी विषय पर तीनों लिंक्स -
अगले चार महीनों में क्या होने वाला है
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2013/10/blog-post_9.html
लिख गयी है महाविनाश की रूपरेखा
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2013/10/blog-post_11.html
महाविनाश की उलटी गिनती शुरू 
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2013/11/blog-post_22.html
ऐसा ही एक और संदर्भ -
एडगर केसी ने अपने जीवन में बहुत सी बातें कहीं । वो तंद्रा की अवस्था में यह सब बताते थे । इसलिए उन्हें sleeping prophet कहा जाता है । उन्होंने लगभग हर विषय पर बोला । उदाहरण के लिए बीमारी के इलाज बताए । लेकिन समस्या यह है कि उनके बताए उपायों में प्रयोग होने वाली वस्तुएं या तो धरती पर से समाप्त हो गईं । या आने वाले समय में खोजी जाएंगी । इस कारण कई मरीजों की इलाज पता लगने के बावजूद मृत्यु हो जाती थी । केसी द्वारा बोली गई बातें श्रृंखलाबद्ध रूप में संकलित हैं । और इन पर अध्ययन के लिए यह सोसाइटी कार्य कर रही है ।
http://www.edgarcayce.org/edgar-cayce1.html

एडगर केसी " अनेक महल " 8

http://panchjanya.com/arch/2005/6/12/File16.htm

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