09 अक्टूबर 2013

ओह ! मिल गये ना कण कण में भगवान

वेद अपौरुषेय हैं । यह बात शायद आपने लिखी देखी या सुनी हो । तब ये वाक्य बेहद विचारणीय है । बङा ही अदभुत है । अपौरुषेय का क्या अर्थ ? जिसे किसी पुरुष ने नहीं रचा । चलो मैं मान लेता हूँ कि आम पुरुष के अर्थ में न आने के कारण ये अलंकारिक भी हो सकता है । पर तब भी इसका रचयिता कोई पुरुष अनोखा ही होगा । हमारी शास्त्र जानकारी कहती है । वेद को व्यास ने लिपि वद्ध किया । या फ़िर उस समय के आम जन मानस हेतु इसको चार भागों में विभाजित कर सरल किया । इसीलिये उन्हें वेदव्यास भी कहा गया । एक और चीज । वेद है क्या ? और वेद में क्या है ? जहाँ तक वेद को लेकर मेरी जानकारी है । यह प्रथम सृष्टि पुरुष काल निरंजन की स्वांस से उत्पन्न हुआ । जो कि इस त्रिलोकी राज्य का स्वामी भी है । और वेद में दरअसल इस त्रिलोकी सृष्टि का संविधान लिखा हुआ है । लेकिन यहाँ संविधान का अर्थ वह नहीं है । बल्कि यहाँ संविधान का अर्थ उस आज्ञा से है । जिसमें सृष्टि के विभिन्न पदार्थ पशु पक्षी जीव पेङ पौधे आदि आदि किस विज्ञान नियम सिद्धांत से कार्य करेंगे । वही जो कुछ इस सृष्टि में विभिन्न संयोगों से नये निर्माण या अन्य परिवर्तन होंगे । वही गूढ रूप से वेद 

मन्त्रों में बताया है । आप अध्ययन करें । तो इसका अर्थ या व्याख्या भी सामान्य लोग कभी नहीं कर पाये । बल्कि अधिकतर बृह्मा पुत्रों या उन्हीं के अन्य वंशियों ने ही इसकी आदेश होने पर ही व्याख्या की । एक भाव में काल निरंजन ने वेद को उत्पन्न कर ( भव ( यानी होना ) सागर में छुपा दिया था । जिसे बाद में उसके तीन पुत्रों बृह्मा विष्णु शंकर ( तीन गुण - सत रज तम ) ने समुद्र मंथन से प्राप्त किया । दरअसल ये प्रतीकात्मक भी है । यदि कोई मनुष्य इस त्रिलोकी सृष्टि के विभिन्न भौतिक आध्यात्मिक मगर वैज्ञानिक रहस्य जानना चाहता है । तो उसे इसी भवसागर का अपनी त्रिगुण शक्ति का उपयोग कर मंथन द्वारा ही जानना होगा । यही वेद का उद्देश्य और रहस्य है । इस पर आपके विचार क्या कहते हैं ?
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क्यों नहीं अंग्रेजी वैज्ञानिक प्रकृति के अत्यन्त सरल मगर मूल रहस्यों को समझ पाते हैं ? कारण वही है - भाषा । अंग्रेजी या अन्य भाषा इन शब्दों का - मूल, अर्थ, प्रकृति, गुण, धर्म, या भाव बारीक या आंतरिक गहन रूप से बताने में असमर्थ है । अब जैसे भौतिक और आध्यात्म विज्ञान दोनों में ही महत्वपूर्ण शब्द " अणु " को लें । अंग्रेजी में इसे ATOM  कहते हैं । ATOM शब्द का अन्य सभी भाषाओं में क्या अर्थ निकलता है । मुझे नहीं पता । पर संस्कृत में इसका अर्थ एकदम सटीक और मूल ज्ञान तक ले जाता है । अणु शब्द - अणु ( अण + उन ) इन दो शब्दों से मिलकर बना है । इसमें अण शब्द के अर्थ इस तरह से हैं - अण - शब्द करना । सांस लेना । जीना । यानी सरलता से कहें । तो ऐसा कुछ । जिसमें जीवन के या जीवन समान लक्षण हों । अब इसका ( उन - उ + न ) शब्द बचता है । उन में भी उन दो अक्षरों से मिलकर बना है - ( उन - उ + न ) इसमें उ का मतलब है । उ - पूरक के रूप में काम आने वाला अव्यय । अब एक अक्षर न बचता है । और न शब्द का मैं बहुत गूढ अर्थ कई बार बता चुका हूँ । .

बिन्दी या गतिज बिन्दु के रूप में ये कंपन ( से उत्पन्न बिन्दुओं ) का द्योतक है । अत न का मतलब हुआ । न - बृह्माण्डी शब्द से होता... कंपन । इस तरह अणु शब्द की मूल सरंचना से हम संस्कृत से आसानी से वाकिफ़ हो जाते हैं । जैसा कि बहुत लोग अज्ञानतावश जीवाणु । कीटाणु । विषाणु आदि को जीव या जीवात्मा भाव में ले जाते हैं । यह एकदम गलत है । कोई भी जीव या जीवात्मा बिना अंतःकरण से संयुक्त हुये हो ही नहीं सकता । तब जीवाणु शब्द से आशय ऐसे चेतन अणु से है । जिसमें जीव के समान क्रियायें ( गति ) आदि नजर आती हों । यानी ऐसा अणु, जिस पर प्रकृति के किसी भी पदार्थ का कोई आवरण संयुक्त हो जाये । और वह सूक्ष्म, अदृश्य से स्थूल और दृश्य हो जाये । तब जीवाणु ( जीव + अणु ) कहलाता है । कीटाणु में भी वही कीट यानी कीङे के समान क्रियायें नजर आयें । तो वह कीटाणु कहलायेगा । बस इन दोनों में प्रकृति पदार्थों के आवरण की भिन्नता होगी । विषाणु में विषैले पदार्थ आवरण रूप होकर अणु से संयुक्त हो जाते हैं । शुक्र का अर्थ चमकीला या प्रकाश से भी है । अतः जब ये अणु प्रकाश आवरण से संयुक्त होता है । तब शुक्राणु कहलाता है । इसी आधार पर डिम्बाणु परमाणु को भी समझा जा सकता है । 
अणु ( अण + उन ) ( उन - उ + न )
अण - शब्द करना । सांस लेना । जीना । उ - पूरक के रूप में काम आने वाला अव्यय । न - शब्द कंपन ।
जीवाणु । कीटाणु । विषाणु । शुक्राणु । डिम्बाणु । परमाणु ।
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साहिल हमारे काबिल वैज्ञानिक शिष्य हैं । ये अणु का सिद्धांत उन्हीं की जिज्ञासा है । अतः मैंने अणु के मूल को

जब स्पष्ट कर दिया । तो उसके सूक्ष्म विवेचन की बात उठी । विज्ञान का सामान्य ज्ञान रखने वाले भी जानते हैं कि वैज्ञानिकों के अनुसार - अणु की संरचना में 3 मूलभूत कण होते हैं - प्रोटान P । न्यूट्रान N । इलेक्ट्रान E । प्रोटान और न्यूट्रान मिलकर अणु के नाभिक का निर्माण करते हैं । जिसके चक्कर इलेक्ट्रान लगाते हैं । प्रोटोन पर 1 ( इकाई ) धनात्मक ++ विद्युत आवेश होता है । न्यूट्रान 1 उप-परमाणविक कण है । जिस पर कोई विद्युत आवेश नहीं होता है । अणु को स्थिर रखने में न्यूट्रान का बहुत बड़ा योगदान होता है । इसी की सहायता से प्रोट्रान अणु के नाभिक में आपस में जुड़े रहते हैं । इलेक्ट्रान भी 1 उप-परमाणविक कण है । जिस पर 1 ( इकाई ) ऋणात्मक -- विद्युत आवेश होता है । आणविक संरचना में इलेक्ट्रान अणु के नाभिक के चक्कर लगाता रहता है ।  
- अब इसको सरलता से समझें । तो एक अणु की प्राथमिक सूक्ष्मता में जाने पर हमें 3 कण मिले । जिनको पाश्चात्य वैज्ञानिक इलेक्ट्रान प्रोटान न्यूट्रान कहते हैं । जिनमें एक धनात्मक आवेश । एक तटस्थ । और एक ऋणात्मक आवेश युक्त है ।
विशेष - अब जैसा कि मैं हमेशा कहता हूँ कि हिन्दी संस्कृत भाषा के शब्दों अक्षरों ( के मूल ) ज्ञान के बिना सृष्टि के किसी भी भौतिक अभौतिक वस्तु पदार्थ आदि को कभी सही रूप में नहीं जाना जा सकता । तब मैंने साहिल से कहा - इन तीन कणों ( इलेक्ट्रान न्यूट्रान प्रोटान ) से हिन्दी में क्या कहते हैं ? साहिल ने इसको बताया । पोटान - प्राणु ( धनात्मक आवेश ) । न्यूट्रान - अणु का वृद्धि रहित कण ( निष्क्रिय भाग ) । इलेक्ट्रान - विधुद अणु ।
फ़िर मैंने कहा - और कण को भी क्या कहते हैं ? मतलब कण शब्द के लक्षण गुण धर्म स्थिति अस्तित्व आदि वैज्ञानिकों के अनुसार क्या हैं ? शायद इस सवाल का जबाब ही नहीं था ।
तब मैंने ही स्पष्ट किया - प्रोटान को " प्रकण " । न्यूट्रान को " कण " ( या रकण ) और इलेक्ट्रान को " निःकण " कहते हैं ।
प्रकण यानी किसी कण पर धनात्मक ++ आवेश । उदाहरण के लिये प्रवृति या प्रकृति शब्द उस विषय की निरन्तरता या धनात्मकता को दर्शाते हैं । कण या रकण उसका चेतन विचार से निर्मित ( ज्ञान दृष्टि में काल्पनिक ) जङ अस्तित्व । कण का और विवरण आगे । निःकण यानी किसी कण पर ऋणात्मक आवेश । उदाहरण के लिये निवृति आदि नि जुङे शब्द ।

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अब सबसे पहले ये जानिये कि कण को कण क्यों कहते हैं ? क्योंकि हमारे अभी के प्राथमिक शोध के मूल में यही सबसे सूक्ष्म है । तब फ़िर वही बात । आप कण को विभक्त करें । कण = क-ण । अब क अक्षर का मूल क्या है ? क - बृह्मा । विष्णु । सूर्य । अग्नि । वायु । कामदेव । यम । समय । धन । शब्द । प्रकाश । ( न ) सुख । जल ।
और ण शब्द का मूल क्या है ? ण - ज्ञान । निश्चय । गहना । गुणहीन ।  शिव । दान । निषेध । धर्म । आत्मा । 
घबराईये मत । ये महज इसके स्थूल " भाव पदार्थ " भर हैं । अभी सूक्ष्मता की तो शुरूआत भी नहीं है । तो स्थूल भाव में कण शब्द में इतने मुख्य पदार्थ आते हैं । अब मौटे तौर पर ही मैं क शब्द का एक प्रमुख सूक्ष्म गुण बताता हूँ । क का अर्थ क्रिया है । जैसे कपट शब्द में यदि क और पट ( क-पट ) को विभक्त करें । तो परदे की क्रिया । जैसे कर्म ( क - क्रिया । र - चेतना । म - माया ( के विभिन्न प्रकार ) अर्थात इन तीनों के बिना कर्म असंभव है । इस तरह वैज्ञानिक शोध हेतु हम यहाँ क का क्रिया गुण ही लेकर चले । और इसी तरह ण का - धर्म ( धारण करना ) या आत्मा ( होना या अस्तित्व ) तव हम कण शब्द को इतना जान पाते हैं कि - किसी भी वस्तु अस्तित्व आदि के बीज या मूल में क्रिया ।
- अब हमारे सामने फ़िर एक प्रश्न खङा हो गया कि कण का वह अज्ञात क्रियाशील अस्तित्व भी कैसे बना ? आईये आपको एक मजेदार बात बताते हैं । आपने बुलबुला देखा होगा । बुलबुला गोल ही क्यों होता है ? सोचिये एक गोल बुलबुले का अस्तित्व आधार क्या है ? आप आसानी से कहेंगे । वायु । देखिये मैं यहाँ एक बात कहूँगा । ये कह देना बहुत आसान है कि वायु के आधार पर पानी से संयुक्त होकर बुलबुला बना । पर इसका सही विज्ञान ? सिद्ध करना वैज्ञानिकों के बस की भी बात नहीं है । क्या आपने सोचा है । तेल या कुछ अन्य गन्दे जटिल पदार्थ आवरण के बुलबुले देर तक कैसे बने रहते हैं ?
अब फ़िर एक प्रश्न खङा हो गया - वायु क्या है ? और कहाँ से है ? मुझे नहीं पता वैज्ञानिकों के पास इसका उत्तर है या नहीं । पर मेरे पास है । वायु उत्पन्न हुयी स्पंदन से । स्पंदन कहाँ से उत्पन्न हुआ - विचार से । विचार कहाँ से उत्पन्न हुआ - चेतना से । चेतना कहाँ से उत्पन्न हुयी - अहम से । अहम कहाँ से उत्पन्न हुआ - चेतन से । चेतन कहाँ से उत्पन्न हुआ - शाश्वत आत्मा से ।

नोट - अभी इस लेख को और भी अधिक स्पष्ट किया जायेगा । तब तक सोचिये । मैंने नीचे ये क्या और क्यों लिखा है ?
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अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लृ् ए ऐ ओ औ अं अः
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ककण खकण गकण घकण ङकण । चकण छकण जकण झकण ञकण । टकण ठकण डकण ढकण णकण । तकण थकण दकण धकण नकण । पकण फकण बकण भकण मकण । यकण रकण लकण वकण । शकण षकण सकण हकण क्षकण त्रकण ज्ञकण
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कण खण गण घण ङण । चण छण जण झण ञण । टण ठण डण ढण णण । तण थण दण धण नण । पण फण बण भण मण । यण रण लण वण । शण षण सण हण क्षण त्रण ज्ञण
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कण ( किसी सूक्ष्म वस्तु का द्योतक । उदा - रजकण ) गण ( समूह । उदा - देवगण । गणवेश ) घण ( घना या भारी ) पण ( अवस्था या स्थिति । उदा - समर्पण । अर्पण । तर्पण ) फ़ण ( फ़न ) यण ( अस्तित्व या होना । उदा - परायण ) रण ( युद्ध ) । क्षण ( लघु ) त्रण ( तिनका ) ।
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कवर्ग या कगण । चवर्ग या चगण । टवर्ग या टगण । तवर्ग या तगण । पवर्ग या पगण । यवर्ग या यगण ।
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ध्यान रहे । आत्मज्ञान और कुण्डलिनी ज्ञान में " अणुदीक्षा " का भी विधान है ।
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पूर्णात्पूर्णमुदचति पूर्णं पूर्णेन सिच्यते ।
- पूर्ण से पूर्ण का उदय होता है । पूर्ण ही पूर्ण के द्वारा सींचा जाता है ।
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।
- वह पूर्ण है । यह भी पूर्ण है । पूर्ण में से पूर्ण ही उत्पन्न होता है । और यदि पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लें । तो भी पूर्ण ही शेष बचता है ।

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