अब मेरी रांम कहैगी बलईया । जामंण मरंण दोउ डर गईया ?
ज्यौं उधरी कूं दे सरवांनां । राम भगति मेरा मन मांनां ।
मै बपवा राम पूत हमारा । मैं बहनेउ रांम मोरा सारा ।
कहै कबीर सकल जग मूठा । राम कहै सोई जन झूठा ?
रांम मोहि तारि कहां लै जैहौ ?
सो बैकुंठ कहौ है कैसा ? करि पसाव मोहि देहौ ।
जे मेरे जिय दोइ जांणत हौ ? तौ मोहि मुंक्ति बतावो ।
एकमेक रमि रह्या सबनि मैं । तौ काहे भरमावो ।
तारंण तिरंण जबै लग कहिये । तब लग तत न जांणां ?
ऐक रांम देष्या सबहिन मैं । कहि कबीर मन मांना ।
अब में पाइबो रे पाइबो ब्रंह्म गियान ।
सहज समाधें सुष में रहिबो । कोटि कलप बिश्रांम ।
गुरु क्रंपाल क्रपा जब कींनी । हिरदे कवल बिगासा । (बिगासा = विकसित)
भागा तिमर दसों दिसि सूझया । परम जोति परकासा ।
म्रितक उठ्या धनक कर लीये ? काल अहेरी भागा । (अहेरी = शिकारी)
उदया सूर निसि किया पयानां । सोवत ते जब जागा ।
अबिगति अकल अनूपम देष्या । कहतां कह्या न जाइ ।
सेंन करे मनहीं मन हसै । गुंगे जांनि मिठाइ ।
पहुप बिनां येक तरवर फलिया । बिन कर तूर बजाया ।
नारी बिनां नीर घट भरिया ? सहज रुप सों पाया ।
देषत काच भया तन कंचन । बिन बांनी मन माना ?
उड्या बिहंगम षोज न पाया ? ज्यूं जल जलहि समानां ।
पूज्या देव बहुरि नहि पूजो । न्हाये उदिक न न्हावुं ।
भागा भरम येक ही कहतां । आये बहुरि न आवुं ।
आपा में जब आपा निरष्या । आपन पें आपा सूझया ।
आपे कहत सुनत पुनि आपन । आपन पें आपा बुझया ।
अपने परचे लागी तारी । आपन पें आप समानां ।
कहै कबीर आप बिचारे । मिटि गया आवन जानां ।
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