फ़ादर इस्मान को लोग धार्मिक आध्यात्मिक बातों के लिये पथ प्रदर्शक मानते थे । क्योंकि वे धर्म अध्यात्म के प्रकांड पंडित थे । कौन अपराध क्षम्य और कौन दण्डनीय, इसकी उन्हें पूर्ण जानकारी थी । स्वर्ग, नर्क और पाप-मोचन जैसे रहस्यों से वह पूर्ण परिचित थे ।
उत्तरी लेबनान में फ़ादर इस्मान का कार्य गांव गांव घूमकर जन-साधारण को उपदेश देते हुये आध्यात्मिक रोगों से मुक्त कराना और शैतान के भयानक जाल से बचाना था । इस्मान का शैतान से अनवरत युद्ध जारी रहता ।
लोगों की इस चर्च पुजारी में श्रद्धा थी और वे इनका बङा आदर करते थे । वे फ़ादर के उपदेशों को सोने-चाँदी से खरीदते और अपने खेतों की फ़सल के सुन्दरतम फ़ल भेंट करते ।
शरद ऋतु की एक संध्या को फ़ादर इस्मान सुदूर एकान्त गांव की ओर घाटियां पहाङी पार करते चले जा रहे थे कि उन्होंने एक दर्दनाक चीत्कार सुनी, जो सङक के किनारे खाई से आ रही थी ।
इस्मान रुक गये और आवाज की दिशा में देखने लगे ।
वहाँ एक नग्न आदमी प्रथ्वी पर पङा था । उसके सिर और छाती के गहरे घाव से रक्त बह रहा था । वह करुण स्वर में सहायता की गुहार कर रहा था - मुझे बचाओ, मेरी सहायता करो, दया करो, मैं मर रहा हूँ ।
फ़ादर उसे व्यग्रता से ताकने लगे और स्वयं से बोले - यह अवश्य कोई चोर है । इसने राहगीरों को लूटने का प्रयास किया किन्तु असफ़ल रहा, और किसी ने इसे घायल कर दिया । यदि यह मर गया तो इसे मारने का अपराध मुझ पर थोप दिया जायेगा ।
ऐसा सोचकर वह आगे बढ़ चले ।
किन्तु मरणासन्न की आर्त पुकार ने उन्हें फ़िर रोक दिया - कृपया मुझे छोङकर न जाओ, मैं मर रहा हूँ ।
फ़ादर को लगा कि वे दुखी की सहायता से इंकार कर रहे हैं ।
यह सोचकर उनका मुख पीला पङ गया । उनके होठ फ़ङकने लगे ।
किन्तु वे मन ही मन बोले - अवश्य यह उन पागलों में से है, जो वन में निरुद्देश्य घूमते हैं । इसके घाव देखकर मन कांप जाता है । क्या करना चाहिये; परन्तु एक आध्यात्मिक चिकित्सक शारीरिक चिकित्सिक तो नही हो सकता ।
यह सोच कर वह कुछ कदम आगे बढ़े तो उस अधमरे व्यक्ति ने ऐसी कष्टदायक आह भरी, जिससे पत्थर भी पिघल जाता ।
वह लगभग हांफ़ता सा कराह कर बोला - मेरे पास आओ ! बहुत अरसे तक हम दोनों गहरे मित्र रहे । तुम फ़ादर इस्मान हो । अच्छे चरवाहे, मैं न तो चोर हूँ और न पागल, अतः मुझे इस एकान्त में न मरने दो और पास आओ तब बताऊँगा, मैं कौन हूँ ।
तब फ़ादर इस व्यक्ति के थोङे पास आ गये और झुककर उसे देखा ।
किन्तु उन्हें एक अजीब चेहरा दिखाई दिया, जिसकी आकृति नितान्त भिन्न थी । उन्हें उसमें बुद्धिमता के साथ कपट, सुन्दरता के साथ कुरूपता और नम्रता के साथ दुष्टता साफ़ दिखाई दी ।
वे तुरन्त उल्टे पांव हुये और पूछा - तुम कौन हो ?
मरने वाला बहुत क्षीण स्वर में बोला - फ़ादर, मुझसे डरो मत । बहुत समय हम दोनों मित्र थे । खङा होने में मेरी सहायता करो और पास के झरने पर ले जाकर मेरे घाव अपने कपङे से धो दो ।
फ़ादर ने कहा - पहले बताओ, तुम कौन हो ? मैं तुम्हें नहीं पहचानता और याद नहीं कि तुम्हें कहीं देखा भी हो ।
वह आदमी पीङित स्वर में बोला - तुम पहचानते हो । तुमने मुझे हजार बार देखा है और तुम मेरे ही बारे में नित्य बात करते हो । मैं तुम्हें अपने जीवन से भी अधिक प्रिय हूँ ।
फ़ादर ने उसे लगभग झिङक कर कहा - झूठे, पाखंडी ! मरने वाले को सत्य बोलना चाहिये । तुम्हारा पापी चेहरा मैंने सारे जीवन नही देखा । बताओ तुम कौन हो, वरना तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोङ जाऊँगा ।
घायल आदमी जरा सा हिला और उसने फ़ादर की आँखों में झांका । उसके होठों पर एक दुष्ट मुस्कान फ़ैल गयी ।
फ़िर वह शान्त, गूढ़, नम्रता भरे सर्द स्वर में बोला - मैं शैतान हूँ ।
इस भयानक शब्द को सुनते ही फ़ादर इस्मान ने उत्कट चीत्कार किया । जो सुदूर घाटियों के अन्त तक गूंज गया । तब उन्होंने देखा और अनुभव किया कि मरणासन्न व्यक्ति का शरीर अपनी विचित्र वक्रता के साथ उस शैतान से मिलता है । जिसकी छवि गांव के गिर्जाघर की दीवार पर टंगे एक धार्मिक चित्र में अंकित है ।
वह भयभीत होकर चिल्ला उठे - ईश्वर ने मुझे तेरी नारकीय छवि दिखाई, परन्तु तुझे घृणा करने के निमित्त ही, तेरा सदैव को अन्त हो । चरवाहे को उचित है कि वह मुर्दा भेङ को अलग कर दे, जिससे दूसरी भेङें रोगी न हों ।
शैतान बोला - फ़ादर ! जल्दी न करो । तेजी से भागते समय को व्यर्थ न जाने दो । इससे पहले कि जीवन मेरे शरीर को त्यागे, मेरे घावों को भर दो ।
फ़ादर सख्त स्वर में बोले - जो हाथ नित्य ईश्वर अर्चना करते हों, उन्हें नर्क के रहस्यों से गढ़े शरीर को नहीं छूना चाहिये । तुझे युग-युग की जिह्वाओं और मानवता के होठों ने अपराधी घोषित किया है । तुझे अवश्य मरना चाहिये क्योंकि तू मानवता का शत्रु है और सदाचार का अन्त करना तेरा स्पष्ट उद्देश्य है ।
शैतान बङे कष्ट के साथ थोङा हिला और कुहनी के सहारे उचक कर बोला - तुम नही जानते तुम क्या कर रहे हो और न तुम वह पाप समझते हो, जो स्वयं अपने ऊपर कर रहे हो । लेकिन अब छोङो इसे; क्योंकि अब मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाऊँगा ।
इस निर्जन घाटी में मैं आज अकेला घूम रहा था । जब मैं इस स्थान पर पहुँचा तो देवताओं के एक गिरोह ने ऊपर से उतरकर मुझ पर आक्रमण किया और मुझे बङी बेरहमी से मारा । यदि उनमें वह एक देवता न होता, जिसके हाथ में चमचमाती तलवार थी तो मैं उन्हें खदेङ देता, किन्तु उस चमचमाती तलवार के विरोध की शक्ति मुझमें नही थी ।
कुछ देर के लिये शैतान चुप हो गया और अपने कांपते हाथ से पहलू के घाव को दबाने लगा ।
फ़िर वह बोला - हथियारों से लैस देवता, जो शायद (अरब का एक देवता) मीचेल था । एक चतुर तलवार चलाने वाला था । यदि मैं प्रथ्वी पर न गिर गया होता और मरने का बहाना न किया होता तो अवश्य ही उसने मुझे मौत के घाट उतार दिया होता ।
फ़ादर ने आकाश की ओर देखते हुये हर्षित स्वर में कहा - मीचेल का भला हो, जिसने मानवता को उसके सबसे बङे शत्रु से मुक्त किया ।
तभी शैतान ने बीच में ही विरोध किया - जितनी घृणा तुम अपने आपसे करते हो । उससे कम मैं मनुष्यता का तिरस्कार करता हूँ । तुम मीचेल की पूजा कर रहे हो, जो तुम्हारे उद्धार के लिये नही आया । मेरी हार के समय तुम मेरी निन्दा कर रहे हो । यद्यपि मैं सदैव से और अभी भी तुम्हारी शान्ति और सुख का स्रोत हूँ ।
तुम मुझे अपनी शुभकामनायें नहीं देना चाहते और न मुझ पर दया ही करना चाहते हो; किन्तु तुम मेरे ही साये में जीवित रहते और फ़लते फ़ूलते हो । तुमने मेरे अस्तित्व को एक बहाना बनाया है और अपनी जीवन वृत्ति के लिये एक अस्त्र, और अपने कर्मों को न्यायोचित बताने के लिये तुम लोगों से मेरा नाम लेते फ़िरते हो ।
क्या मेरे भूतकाल ने मेरी भविष्यकालीन महत्ता को प्रमाणित नहीं कर दिया । क्या तुम समस्त आवश्यक धन संचय कर अपने लक्ष्य तक पहुँच सके । क्या तुम्हें ज्ञात हो गया कि मेरी सत्ता का भय दिखाकर तुम अपने अनुयायियों से और अधिक सोना चाँदी प्राप्त नही कर सकते ?
क्या तुम्हें यह पता नही कि यदि आज मेरा अन्त हो गया तो तुम भी भूखे मर जाओगे । यदि आज तुम मुझे मर जाने दोगे फ़िर कल को तुम क्या करोगे । अगर मेरा नाम ही दुनियां से उठ गया तो तुम्हारी जीविका का क्या होगा ?
देखो वर्षों से तुम गांव गांव घूमकर लोगों को चेतावनी देते फ़िरे कि वे मेरे जाल में न फ़ँस जायें । वे तुम्हारे उपदेशों को अपनी गरीबी के पैसों और खेतों की फ़सल से मोल लेते रहे । फ़िर कल जब वे जान जायेंगे कि उनके दुष्ट शत्रु का अब कोई अस्तित्व ही नही है तो वे तुमसे क्या मोल लेंगे ? तुम्हारी जीविका का मेरे साथ ही अन्त हो जायेगा । क्योंकि लोग पाप करने से ही छुटकारा पा जायेंगे ।
एक पुजारी होकर क्या तुम यह नही सोच पाते कि केवल शैतान के अस्तित्व ने ही उसके शत्रु मन्दिर का निर्माण किया है । वह पुरातन विरोध ही एक ऐसा रहस्यमय हाथ है, जो कि निष्कपट लोगों की जेबों से सोना-चाँदी निकाल कर उपदेशकों और महन्तों की तिजोरियों में संचित करता है ।
तुम किस प्रकार मुझे यहाँ मरता हुआ छोङ सकते हो, जबकि तुम जानते हो कि निश्चय ही ऐसी दशा में तुम अपनी प्रतिष्ठा, अपना मन्दिर, अपना घर, अपनी जीविका खो दोगे ?
शैतान कुछ देर के लिये चुप हो गया । उसकी आद्रता अब पूर्ण स्वतन्त्रता में परिणित हो गयी ।
फ़िर वह बोला - तुम गर्व में चूर हो, किन्तु नासमझ भी हो । मैं तुम्हें ‘विश्वास’ का इतिहास सुनाऊँगा और उसमें तुम उस ‘सत्य’ को पाओगे जो हम दोनों के ‘अस्तित्व को संयुक्त’ करता है और मेरे अस्तित्व को तुम्हारे अंतःकरण से बांध देता है ।
समय के पहले पहर के आरम्भ में आदमी सूर्य के चेहरे के सामने खङा हो गया ।
उसने अपनी बाँहें फ़ैला दी और पहली बार चिल्लाया - आकाश के पीछे एक महान, स्नेहमय और उदार ईश्वर वास करता है ।
जब आदमी ने उस बङे वृत की ओर पीठ फ़ेर ली तो उसे अपनी ‘परछाई’ प्रथ्वी पर दिखाई दी और वह चिल्ला उठा - प्रथ्वी की गहराईयों में एक शैतान रहता है जो दुष्टता को प्यार करता है ।
और वह आदमी अपने आपसे कानाफ़ूसी करता हुआ अपनी गुफ़ा की ओर चल दिया - मैं दो बलशाली शक्तियों के बीच हूँ । एक वह, जिसकी मुझे शरण लेनी चाहिये । दूसरा वह, जिसके विरुद्ध मुझे युद्ध करना होगा ।
और सदियां जुलूस बनाकर निकल गयीं, लेकिन मनुष्य दो शक्तियों के बीच डटा रहा । एक वह, जिसकी वह अर्चना करता था, क्योंकि इसी में उसकी उन्नति थी । और दूसरी वह, जिसकी वह निन्दा करता था, क्योंकि वह उसे भयभीत करती थी ।
किन्तु उसे कभी यह नहीं मालूम हुआ कि अर्चना अथवा निन्दा का अर्थ क्या है ? वह तो बस दोनों के मध्य में स्थित है । एक ऐसे वृक्ष के समान, जो ग्रीष्म के, जबकि वह खिलता है और शीत के, जबकि वह मुर्झा जाता है, बीच खङा है ।
जब मनुष्य ने सभ्यता का उदय होते देखा, जैसा कि मनुष्य समझते हैं परिवार एक इकाई के रूप में अस्तित्व में आया, फ़िर वर्ग बने, फ़िर मजदूरी योग्यता और प्रवृत्ति के अनुसार बांट दी गयी । एक जाति खेती करने लगी, दूसरी मकान बनाने लगी, कुछ कपङे बुनने या अन्न की पैदावार करने लगे ।
इसके बाद भविष्यवक्ता ने अपना रूप दिखाया और यह सर्वप्रथम जीविका थी, जो ऐसे लोगों ने अंगीकार की, जिनको दुनियां की किसी भी जरूरी चीज की आवश्यकता नहीं थी ।
फ़िर कुछ देर के लिये शैतान खामोश हो गया । तब वह एकबारगी हँस पङा और उसके प्रमोद की गूँज निर्जन घाटी में दूर तक फ़ैल गयी, किन्तु उसकी हँसी ने उसे उसके जख्मों की याद दिलाई और दर्द के कारण एक हाथ उसने अपने जख्मों पर रख लिया ।
फ़िर वह खुद को स्थिर करता हुआ बोला - तो ज्योतिष की उत्पत्ति हुयी और प्रथ्वी पर इसकी उन्नति अनोखे ढ़ंग से होने लगी ।
प्रथम जाति में एक ला-विस नाम का मनुष्य था । मैं नहीं जानता कि उसके नाम की उत्पत्ति कहाँ से हुयी । वह बुद्धिमान था, किन्तु बहुत ही निरुद्योगी । खेत पर काम करने, झोपङे बनाने, गाय-बैल पालने या ऐसे किसी कार्य से वह घृणा करता था, जिसमें कि शारीरिक श्रम की आवश्यकता पङे ।
और चूँकि इन दिनों रोटी पाने के लिये सिवा कङी मेहनत के कोई दूसरा उपाय न था । ला-विस को अनेक रातें खाली पेट काटनी पङती थीं ।
गर्मियों की एक रात को, जबकि जाति के सब लोग गिरोह के सरदार की झोपङी को चारो ओर से घेरे खङे थे और दिन की कार्यवाही पर चर्चा कर रहे थे और सोने के समय की बाट जोह रहे थे ।
एक आदमी हठात उठ खङा हुआ और चन्द्रमा की ओर इशारा करता हुआ चिल्लाया - रात्रिदेव की ओर देखो । उसके चेहरे पर अंधकार छा गया है । उसकी सुन्दरता समाप्त हो गयी है । वह एक ऐसे काले पत्थर के रूप में बदल गया है, जो आकाश की छत से लटका हुआ है ।
सभी लोगों ने चन्द्रमा की ओर देखा । वे चिल्ला उठे और मारे डर के बेदम से हो गये । मानों अन्धकार के हाथों ने उनके ह्रदय को दबोच लिया हो, क्योंकि उन्होंने देखा कि रात्रिदेव काली गेंद के रूप में बदल गया है । जिसके कारण प्रथ्वी की चमक मिट गयी है और पहाङियां तथा घाटियां उनके सामने ही काले आवरण के पीछे अन्तर्धान हो गयी हैं ।
इसी समय ला-विस जिसने इससे पहले चन्द्रग्रहण देखा था और उसके मामूली से कारण को समझा था, अवसर से पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिये आगे बढ़ा । वह गिरोह के बीच खङा हो गया और अपने हाथों को आकाश की ओर उठाकर भरी हुयी आवाज में बोला - नीचे झुक जाओ और प्रार्थना करो, क्योंकि अन्धकार के दुष्टदेव और उज्ज्वल रजनीदेव में युद्ध ठन गया है । यदि दुष्टदेव जीत गया तो हम सब लोग भी समाप्त हो जायेंगे, किन्तु यदि रजनीदेव की विजय हुयी तो हम सभी लोग जीवित रहेंगे ।
अब प्रार्थना करो । अपने चेहरों को मिट्टी से ढंक लो । अपनी आँखें बन्द कर लो और अपने सिरों को आकाश की ओर न उठाओ । क्योंकि जो भी दोनों देवताओं के युद्ध को देखेगा, वह ज्योतिहीन और बुद्धिहीन हो जाएगा और जीवनपर्यन्त अन्धा तथा पागल बना रहेगा । अपने मस्तक नीचे झुकाओ और अपने ह्रदय की पूर्ण भक्ति से अपने उस शत्रु के विरोध में, जो कि हम सबका प्राणघातक शत्रु है, रात्रिदेव को सबल बनाओ ।
~खलील जिब्रान
------------------
मैं शैतान हूँ ! (2)
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.com/2017/03/2_7.html
उत्तरी लेबनान में फ़ादर इस्मान का कार्य गांव गांव घूमकर जन-साधारण को उपदेश देते हुये आध्यात्मिक रोगों से मुक्त कराना और शैतान के भयानक जाल से बचाना था । इस्मान का शैतान से अनवरत युद्ध जारी रहता ।
लोगों की इस चर्च पुजारी में श्रद्धा थी और वे इनका बङा आदर करते थे । वे फ़ादर के उपदेशों को सोने-चाँदी से खरीदते और अपने खेतों की फ़सल के सुन्दरतम फ़ल भेंट करते ।
शरद ऋतु की एक संध्या को फ़ादर इस्मान सुदूर एकान्त गांव की ओर घाटियां पहाङी पार करते चले जा रहे थे कि उन्होंने एक दर्दनाक चीत्कार सुनी, जो सङक के किनारे खाई से आ रही थी ।
इस्मान रुक गये और आवाज की दिशा में देखने लगे ।
वहाँ एक नग्न आदमी प्रथ्वी पर पङा था । उसके सिर और छाती के गहरे घाव से रक्त बह रहा था । वह करुण स्वर में सहायता की गुहार कर रहा था - मुझे बचाओ, मेरी सहायता करो, दया करो, मैं मर रहा हूँ ।
फ़ादर उसे व्यग्रता से ताकने लगे और स्वयं से बोले - यह अवश्य कोई चोर है । इसने राहगीरों को लूटने का प्रयास किया किन्तु असफ़ल रहा, और किसी ने इसे घायल कर दिया । यदि यह मर गया तो इसे मारने का अपराध मुझ पर थोप दिया जायेगा ।
ऐसा सोचकर वह आगे बढ़ चले ।
किन्तु मरणासन्न की आर्त पुकार ने उन्हें फ़िर रोक दिया - कृपया मुझे छोङकर न जाओ, मैं मर रहा हूँ ।
फ़ादर को लगा कि वे दुखी की सहायता से इंकार कर रहे हैं ।
यह सोचकर उनका मुख पीला पङ गया । उनके होठ फ़ङकने लगे ।
किन्तु वे मन ही मन बोले - अवश्य यह उन पागलों में से है, जो वन में निरुद्देश्य घूमते हैं । इसके घाव देखकर मन कांप जाता है । क्या करना चाहिये; परन्तु एक आध्यात्मिक चिकित्सक शारीरिक चिकित्सिक तो नही हो सकता ।
यह सोच कर वह कुछ कदम आगे बढ़े तो उस अधमरे व्यक्ति ने ऐसी कष्टदायक आह भरी, जिससे पत्थर भी पिघल जाता ।
वह लगभग हांफ़ता सा कराह कर बोला - मेरे पास आओ ! बहुत अरसे तक हम दोनों गहरे मित्र रहे । तुम फ़ादर इस्मान हो । अच्छे चरवाहे, मैं न तो चोर हूँ और न पागल, अतः मुझे इस एकान्त में न मरने दो और पास आओ तब बताऊँगा, मैं कौन हूँ ।
तब फ़ादर इस व्यक्ति के थोङे पास आ गये और झुककर उसे देखा ।
किन्तु उन्हें एक अजीब चेहरा दिखाई दिया, जिसकी आकृति नितान्त भिन्न थी । उन्हें उसमें बुद्धिमता के साथ कपट, सुन्दरता के साथ कुरूपता और नम्रता के साथ दुष्टता साफ़ दिखाई दी ।
वे तुरन्त उल्टे पांव हुये और पूछा - तुम कौन हो ?
मरने वाला बहुत क्षीण स्वर में बोला - फ़ादर, मुझसे डरो मत । बहुत समय हम दोनों मित्र थे । खङा होने में मेरी सहायता करो और पास के झरने पर ले जाकर मेरे घाव अपने कपङे से धो दो ।
फ़ादर ने कहा - पहले बताओ, तुम कौन हो ? मैं तुम्हें नहीं पहचानता और याद नहीं कि तुम्हें कहीं देखा भी हो ।
वह आदमी पीङित स्वर में बोला - तुम पहचानते हो । तुमने मुझे हजार बार देखा है और तुम मेरे ही बारे में नित्य बात करते हो । मैं तुम्हें अपने जीवन से भी अधिक प्रिय हूँ ।
फ़ादर ने उसे लगभग झिङक कर कहा - झूठे, पाखंडी ! मरने वाले को सत्य बोलना चाहिये । तुम्हारा पापी चेहरा मैंने सारे जीवन नही देखा । बताओ तुम कौन हो, वरना तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोङ जाऊँगा ।
घायल आदमी जरा सा हिला और उसने फ़ादर की आँखों में झांका । उसके होठों पर एक दुष्ट मुस्कान फ़ैल गयी ।
फ़िर वह शान्त, गूढ़, नम्रता भरे सर्द स्वर में बोला - मैं शैतान हूँ ।
इस भयानक शब्द को सुनते ही फ़ादर इस्मान ने उत्कट चीत्कार किया । जो सुदूर घाटियों के अन्त तक गूंज गया । तब उन्होंने देखा और अनुभव किया कि मरणासन्न व्यक्ति का शरीर अपनी विचित्र वक्रता के साथ उस शैतान से मिलता है । जिसकी छवि गांव के गिर्जाघर की दीवार पर टंगे एक धार्मिक चित्र में अंकित है ।
वह भयभीत होकर चिल्ला उठे - ईश्वर ने मुझे तेरी नारकीय छवि दिखाई, परन्तु तुझे घृणा करने के निमित्त ही, तेरा सदैव को अन्त हो । चरवाहे को उचित है कि वह मुर्दा भेङ को अलग कर दे, जिससे दूसरी भेङें रोगी न हों ।
शैतान बोला - फ़ादर ! जल्दी न करो । तेजी से भागते समय को व्यर्थ न जाने दो । इससे पहले कि जीवन मेरे शरीर को त्यागे, मेरे घावों को भर दो ।
फ़ादर सख्त स्वर में बोले - जो हाथ नित्य ईश्वर अर्चना करते हों, उन्हें नर्क के रहस्यों से गढ़े शरीर को नहीं छूना चाहिये । तुझे युग-युग की जिह्वाओं और मानवता के होठों ने अपराधी घोषित किया है । तुझे अवश्य मरना चाहिये क्योंकि तू मानवता का शत्रु है और सदाचार का अन्त करना तेरा स्पष्ट उद्देश्य है ।
शैतान बङे कष्ट के साथ थोङा हिला और कुहनी के सहारे उचक कर बोला - तुम नही जानते तुम क्या कर रहे हो और न तुम वह पाप समझते हो, जो स्वयं अपने ऊपर कर रहे हो । लेकिन अब छोङो इसे; क्योंकि अब मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाऊँगा ।
इस निर्जन घाटी में मैं आज अकेला घूम रहा था । जब मैं इस स्थान पर पहुँचा तो देवताओं के एक गिरोह ने ऊपर से उतरकर मुझ पर आक्रमण किया और मुझे बङी बेरहमी से मारा । यदि उनमें वह एक देवता न होता, जिसके हाथ में चमचमाती तलवार थी तो मैं उन्हें खदेङ देता, किन्तु उस चमचमाती तलवार के विरोध की शक्ति मुझमें नही थी ।
कुछ देर के लिये शैतान चुप हो गया और अपने कांपते हाथ से पहलू के घाव को दबाने लगा ।
फ़िर वह बोला - हथियारों से लैस देवता, जो शायद (अरब का एक देवता) मीचेल था । एक चतुर तलवार चलाने वाला था । यदि मैं प्रथ्वी पर न गिर गया होता और मरने का बहाना न किया होता तो अवश्य ही उसने मुझे मौत के घाट उतार दिया होता ।
फ़ादर ने आकाश की ओर देखते हुये हर्षित स्वर में कहा - मीचेल का भला हो, जिसने मानवता को उसके सबसे बङे शत्रु से मुक्त किया ।
तभी शैतान ने बीच में ही विरोध किया - जितनी घृणा तुम अपने आपसे करते हो । उससे कम मैं मनुष्यता का तिरस्कार करता हूँ । तुम मीचेल की पूजा कर रहे हो, जो तुम्हारे उद्धार के लिये नही आया । मेरी हार के समय तुम मेरी निन्दा कर रहे हो । यद्यपि मैं सदैव से और अभी भी तुम्हारी शान्ति और सुख का स्रोत हूँ ।
तुम मुझे अपनी शुभकामनायें नहीं देना चाहते और न मुझ पर दया ही करना चाहते हो; किन्तु तुम मेरे ही साये में जीवित रहते और फ़लते फ़ूलते हो । तुमने मेरे अस्तित्व को एक बहाना बनाया है और अपनी जीवन वृत्ति के लिये एक अस्त्र, और अपने कर्मों को न्यायोचित बताने के लिये तुम लोगों से मेरा नाम लेते फ़िरते हो ।
क्या मेरे भूतकाल ने मेरी भविष्यकालीन महत्ता को प्रमाणित नहीं कर दिया । क्या तुम समस्त आवश्यक धन संचय कर अपने लक्ष्य तक पहुँच सके । क्या तुम्हें ज्ञात हो गया कि मेरी सत्ता का भय दिखाकर तुम अपने अनुयायियों से और अधिक सोना चाँदी प्राप्त नही कर सकते ?
क्या तुम्हें यह पता नही कि यदि आज मेरा अन्त हो गया तो तुम भी भूखे मर जाओगे । यदि आज तुम मुझे मर जाने दोगे फ़िर कल को तुम क्या करोगे । अगर मेरा नाम ही दुनियां से उठ गया तो तुम्हारी जीविका का क्या होगा ?
देखो वर्षों से तुम गांव गांव घूमकर लोगों को चेतावनी देते फ़िरे कि वे मेरे जाल में न फ़ँस जायें । वे तुम्हारे उपदेशों को अपनी गरीबी के पैसों और खेतों की फ़सल से मोल लेते रहे । फ़िर कल जब वे जान जायेंगे कि उनके दुष्ट शत्रु का अब कोई अस्तित्व ही नही है तो वे तुमसे क्या मोल लेंगे ? तुम्हारी जीविका का मेरे साथ ही अन्त हो जायेगा । क्योंकि लोग पाप करने से ही छुटकारा पा जायेंगे ।
एक पुजारी होकर क्या तुम यह नही सोच पाते कि केवल शैतान के अस्तित्व ने ही उसके शत्रु मन्दिर का निर्माण किया है । वह पुरातन विरोध ही एक ऐसा रहस्यमय हाथ है, जो कि निष्कपट लोगों की जेबों से सोना-चाँदी निकाल कर उपदेशकों और महन्तों की तिजोरियों में संचित करता है ।
तुम किस प्रकार मुझे यहाँ मरता हुआ छोङ सकते हो, जबकि तुम जानते हो कि निश्चय ही ऐसी दशा में तुम अपनी प्रतिष्ठा, अपना मन्दिर, अपना घर, अपनी जीविका खो दोगे ?
शैतान कुछ देर के लिये चुप हो गया । उसकी आद्रता अब पूर्ण स्वतन्त्रता में परिणित हो गयी ।
फ़िर वह बोला - तुम गर्व में चूर हो, किन्तु नासमझ भी हो । मैं तुम्हें ‘विश्वास’ का इतिहास सुनाऊँगा और उसमें तुम उस ‘सत्य’ को पाओगे जो हम दोनों के ‘अस्तित्व को संयुक्त’ करता है और मेरे अस्तित्व को तुम्हारे अंतःकरण से बांध देता है ।
समय के पहले पहर के आरम्भ में आदमी सूर्य के चेहरे के सामने खङा हो गया ।
उसने अपनी बाँहें फ़ैला दी और पहली बार चिल्लाया - आकाश के पीछे एक महान, स्नेहमय और उदार ईश्वर वास करता है ।
जब आदमी ने उस बङे वृत की ओर पीठ फ़ेर ली तो उसे अपनी ‘परछाई’ प्रथ्वी पर दिखाई दी और वह चिल्ला उठा - प्रथ्वी की गहराईयों में एक शैतान रहता है जो दुष्टता को प्यार करता है ।
और वह आदमी अपने आपसे कानाफ़ूसी करता हुआ अपनी गुफ़ा की ओर चल दिया - मैं दो बलशाली शक्तियों के बीच हूँ । एक वह, जिसकी मुझे शरण लेनी चाहिये । दूसरा वह, जिसके विरुद्ध मुझे युद्ध करना होगा ।
और सदियां जुलूस बनाकर निकल गयीं, लेकिन मनुष्य दो शक्तियों के बीच डटा रहा । एक वह, जिसकी वह अर्चना करता था, क्योंकि इसी में उसकी उन्नति थी । और दूसरी वह, जिसकी वह निन्दा करता था, क्योंकि वह उसे भयभीत करती थी ।
किन्तु उसे कभी यह नहीं मालूम हुआ कि अर्चना अथवा निन्दा का अर्थ क्या है ? वह तो बस दोनों के मध्य में स्थित है । एक ऐसे वृक्ष के समान, जो ग्रीष्म के, जबकि वह खिलता है और शीत के, जबकि वह मुर्झा जाता है, बीच खङा है ।
जब मनुष्य ने सभ्यता का उदय होते देखा, जैसा कि मनुष्य समझते हैं परिवार एक इकाई के रूप में अस्तित्व में आया, फ़िर वर्ग बने, फ़िर मजदूरी योग्यता और प्रवृत्ति के अनुसार बांट दी गयी । एक जाति खेती करने लगी, दूसरी मकान बनाने लगी, कुछ कपङे बुनने या अन्न की पैदावार करने लगे ।
इसके बाद भविष्यवक्ता ने अपना रूप दिखाया और यह सर्वप्रथम जीविका थी, जो ऐसे लोगों ने अंगीकार की, जिनको दुनियां की किसी भी जरूरी चीज की आवश्यकता नहीं थी ।
फ़िर कुछ देर के लिये शैतान खामोश हो गया । तब वह एकबारगी हँस पङा और उसके प्रमोद की गूँज निर्जन घाटी में दूर तक फ़ैल गयी, किन्तु उसकी हँसी ने उसे उसके जख्मों की याद दिलाई और दर्द के कारण एक हाथ उसने अपने जख्मों पर रख लिया ।
फ़िर वह खुद को स्थिर करता हुआ बोला - तो ज्योतिष की उत्पत्ति हुयी और प्रथ्वी पर इसकी उन्नति अनोखे ढ़ंग से होने लगी ।
प्रथम जाति में एक ला-विस नाम का मनुष्य था । मैं नहीं जानता कि उसके नाम की उत्पत्ति कहाँ से हुयी । वह बुद्धिमान था, किन्तु बहुत ही निरुद्योगी । खेत पर काम करने, झोपङे बनाने, गाय-बैल पालने या ऐसे किसी कार्य से वह घृणा करता था, जिसमें कि शारीरिक श्रम की आवश्यकता पङे ।
और चूँकि इन दिनों रोटी पाने के लिये सिवा कङी मेहनत के कोई दूसरा उपाय न था । ला-विस को अनेक रातें खाली पेट काटनी पङती थीं ।
गर्मियों की एक रात को, जबकि जाति के सब लोग गिरोह के सरदार की झोपङी को चारो ओर से घेरे खङे थे और दिन की कार्यवाही पर चर्चा कर रहे थे और सोने के समय की बाट जोह रहे थे ।
एक आदमी हठात उठ खङा हुआ और चन्द्रमा की ओर इशारा करता हुआ चिल्लाया - रात्रिदेव की ओर देखो । उसके चेहरे पर अंधकार छा गया है । उसकी सुन्दरता समाप्त हो गयी है । वह एक ऐसे काले पत्थर के रूप में बदल गया है, जो आकाश की छत से लटका हुआ है ।
सभी लोगों ने चन्द्रमा की ओर देखा । वे चिल्ला उठे और मारे डर के बेदम से हो गये । मानों अन्धकार के हाथों ने उनके ह्रदय को दबोच लिया हो, क्योंकि उन्होंने देखा कि रात्रिदेव काली गेंद के रूप में बदल गया है । जिसके कारण प्रथ्वी की चमक मिट गयी है और पहाङियां तथा घाटियां उनके सामने ही काले आवरण के पीछे अन्तर्धान हो गयी हैं ।
इसी समय ला-विस जिसने इससे पहले चन्द्रग्रहण देखा था और उसके मामूली से कारण को समझा था, अवसर से पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिये आगे बढ़ा । वह गिरोह के बीच खङा हो गया और अपने हाथों को आकाश की ओर उठाकर भरी हुयी आवाज में बोला - नीचे झुक जाओ और प्रार्थना करो, क्योंकि अन्धकार के दुष्टदेव और उज्ज्वल रजनीदेव में युद्ध ठन गया है । यदि दुष्टदेव जीत गया तो हम सब लोग भी समाप्त हो जायेंगे, किन्तु यदि रजनीदेव की विजय हुयी तो हम सभी लोग जीवित रहेंगे ।
अब प्रार्थना करो । अपने चेहरों को मिट्टी से ढंक लो । अपनी आँखें बन्द कर लो और अपने सिरों को आकाश की ओर न उठाओ । क्योंकि जो भी दोनों देवताओं के युद्ध को देखेगा, वह ज्योतिहीन और बुद्धिहीन हो जाएगा और जीवनपर्यन्त अन्धा तथा पागल बना रहेगा । अपने मस्तक नीचे झुकाओ और अपने ह्रदय की पूर्ण भक्ति से अपने उस शत्रु के विरोध में, जो कि हम सबका प्राणघातक शत्रु है, रात्रिदेव को सबल बनाओ ।
~खलील जिब्रान
------------------
मैं शैतान हूँ ! (2)
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.com/2017/03/2_7.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें