कर्मकाण्ड में रिद्धी सिद्धी यन्त्र तन्त्र मन्त्र होते हैं .उपासना काण्ड में स्तुति प्रार्थना आदि जो जैसा उपासक है और
मानता है .योगकाण्ड में अनुलोम विलोम प्राणायाम यम नियम संयम आसन प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि , स्वांस ब्रह्माण्ड में चङाना आदि .
ग्यानकाण्ड में ब्रह्मसिद्धी .विग्यानकाण्ड में आत्मा .भक्तिकाण्ड में सेवापद .अंतकरण की मलीनता विषयासक्ति है , इसी को मल कहते हैं .बुद्धि में होने वाली चंचलता को विक्षेप कहते हैं .माया मोह का परदा चैतन्य पर पङा है इसी को आवरण कहते हैं .झांई-विशेष अग्यान दशा गाफ़िली में कल्पित परमात्मा से मिलने को ब्रह्मग्यानी विग्यान रूपदशा धारण कर लेते हैं इसी को झांई कहते हैं .
काल- कर्म उपासना योग अग्यानी जीवों का बन्धन हैं इसी को काल कहिये .संधि-जो जगत का कर्ता कल्पना से माना उसकी प्राप्ति के लिये ग्यानकाण्ड के परोक्ष व अपरोक्ष के कर्म की मानिन्दी को संधि कहिये .
वेद शास्त्र स्मृत और पुराना , पढ पढ सब पंडित हारा ..बिनु सतगुरु और बिना शबद सुर्त , कोई न उतरे पारा
चार अठारह नौ पढे, षट पढ खोया मूल ..सुरत शब्द चीन्हे बिना, ज्यों पंक्षी चंडूल
तुलसी या संसार में पाँच रतन है सार ..साधु संग सतगुरु सरन , दया दीन उपकार
सोना काई ना लगे , लोहा घुन नहीं खाय ..भला बुरा जो गुरु भगत कबहुँ न नरके जाय
कबीर गुरु की भगति बिनु नारि कूकरी होय ..गली गली भूँसति फ़िरे टूक न डारे कोय
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