नमस्कार राजीव कुमार जी । मैं सुभाष राजपुरा से । मैं आपके ब्लोग का नियमित मुसाफ़िर हूँ । मुझे आज रजत ने बताया कि आपने उसको ई-मेल पर संदेश भेजा । हम सबको बहुत अछा लगा । मैंने ही 1 दिन रजत को आपके ब्लोग के बारे में बताया था । फ़िर रजत ने अपने कुछ और दोस्तों को भी बताया । हम सब B.A के छात्र हैं । हम राजपुरा के पटेल पब्लिक कालेज में पढते है । हम सब रहते भी 1 ही कालोनी में हैं । मेरा नाम सुभाष । मेरा दोस्त रजत । साथ में शालू । और निशु । हम 4 दोस्त हैं । थोडा संकोची होने के कारण मैंने इससे पहले आपको कभी ई-मेल नही किया । कल शायद रजत ने आपको ई-मेल कर दिया । राजीव जी मैं आपसे 1 प्रश्न करने की गुस्ताखी कर रहा हूँ । मेरे 1 रिश्तेदार ओशो भक्त हैं । लेकिन Q ओशो महाराज ॐकार पर बहुत जोर देते हैं । और Q आपके ब्लोग में मैंने पढा है कि ॐ से तो शरीर की रचना हुई है । तो Q क्या ओशो पूरे सतगुरु नहीं थे ( जो अन्त तक की बात बता सकें ) और 1 बात और Q सिखधर्म के गुरुनानक देव जी की वाणी में ॐ कार की भी प्रशंसा है । और अकाल पुरुष का भी वर्णन है ( ये बात मुझे मेरी गर्लफ़्रेन्ड ने बताईं । जो 1 सिख परिवार से है ) ये बात उसने तब बताई । जब मैंने उसको आपके ब्लोग के बारे में बताया । आप कृपया इस Q ओशो के ॐकार और गुरुनानक के ॐकार वाले रहस्य पर से ज़रुर पर्दा उठायें । हम सबको आपके आगामी लेख का बेसब्री से इन्तजार रहेगा - सुभाष । रजत । शालू । निशु और रविन्दर कौर ( मेरी गर्ल फ़्रेन्ड ) राजपुरा से ।
Q ओशो महाराज ॐकार पर बहुत जोर देते हैं ।
ANS - इस मनुष्य शरीर का बहुत महत्व है । देवता भी इसे प्राप्त करने के लिये तरसते हैं । इस शरीर के बिना कुछ भी प्राप्ति नहीं हो सकती । अतः ओशो का ॐकार को महत्व देना ठीक ही था । पर वो महत्व किस तरह और कहाँ उपयोगी है ? ये जानना आवश्यक है ।..वैसे - ओशो महाराज ॐकार पर बहुत जोर देते हैं । ( हैं नहीं थे ) आज के वाले तो न ओ हैं न शो हैं ।
Q आपके ब्लोग में मैंने पढा है कि ॐ से तो शरीर की रचना हुई है ।
ANS - चलिये आज आप देख ही लो । ये बात कैसे है । वैसे ॐ की आंतरिक शरीर संरचना और भेद तो इतनी आसानी से नहीं समझाई जा सकती । पर इंसान के दोनों पैर और लिंग ( स्त्री हो तो स्त्री योनि भी वास्तव में लिंग ही है । सिर्फ़ बनाबट का फ़र्क है । ध्यान दें । स्त्री के लिये कहा जाता है । स्त्री लिंग । फ़िर ये स्त्री वाला लिंग क्या होता है ? ) ये हुये ( उ ) । ( इसी आकार में बनाकर देखें ) इस उ से पीछे निकलने वाली ( ऊ ) आधी लाइन । कमर से गर्दन तक । एक हाथ । इसी लाइन से जुङी लाइन । दूसरा हाथ । अर्ध चन्द्र । ( . ) बिन्दी । सिर । बन गया पूरा ॐ । इसकी आंतरिक संरचना में । अ । उ । म । अर्ध चन्द्र । और ( . ) बिन्दी । ये पांच हैं । इसमें म यानी माया से बना । अ और ( . ) बिन्दी प्रमुख हैं । पर इनका वास्तविक तरीका और घटक बताने के लिये पूरी एक बङी किताब ही लिख जायेगी ।
Q क्या ओशो पूरे सतगुरु नहीं थे ( जो अन्त तक की बात बता सकें )
ANS - ओशो सतगुरु ही थे । और उन्होंने अन्त तक की ही बात कही है । पर कोई भी बात प्रसंग और विषय के अनुसार ही तो कही जायेगी । जहाँ ॐकार की बात थी । वहाँ उन्होंने ॐकार के लिये कहा । जहाँ निरंकार या ररंकार की बात थी । वहाँ उन्होंने वैसा कहा । पर क्योंकि लोग ॐकार को ही ज्यादा सुनते आये हैं । ॐकार अधिक पापुलर है । अतः उसी को पकङ कर बैठ गये ।
ओशो ने कहा - नया निर्माण मत करो । पुराना गिरा दो ।
अर्थ - अब नये कर्मों का निर्माण मत करो । और पुराने कर्म संस्कार योग से जला दो । यही मुक्ति है ।
ओशो ने कहा - वह चींटी की भी पगध्वनि सुनता है ।
अर्थ - किसी भी जीव या मनुष्य की प्रत्येक हरकत को वह जानता है । क्योंकि सबके अन्दर वही विराजमान है ।
ओशो ने कहा - आखिर में उस दरबाजे के बाद नीचे दूर दूर तक घना अंधकार है । जिधर देखो । उधर काला घना अंधकार । यहीं कूद जाना है । इसके आगे ही मंजिल है । पर यहीं इंसान ( साधक ) भयभीत हो जाता है । और लक्ष्य से वंचित रहता है ।
- संक्षेप में यही अन्त की बात थी । लेकिन ये बात सिर्फ़ ओशो रजनीश पर ही लागू होती है । बाद में जो अनेक ओशो हो गये । उनमें किसी पर भी नहीं ।
दूसरी महत्वपूर्ण बात - कोई कितना ही बङा सतगुरु क्यों न हो । उसकी मान्यता शरीर रहने तक ही होती है । शरीर खत्म होने के बाद वह सतगुरु नहीं रहता । सिर्फ़ उसके उपदेशों से हम अपने अध्यात्म ग्यान में वृद्धि तो कर सकते हैं । बाकी आज कोई दिवंगत ओशो को ही गुरु मानकर सतगुरु वाले लाभ प्राप्त करना चाहे । ऐसा कभी नहीं हो सकता । और ये बात सिर्फ़ ओशो पर ही नहीं सभी पर लागू होती है । चाहे वह कबीर । रैदास । रामकृष्ण परमहँस । राम । श्रीकृष्ण कोई क्यों न हो ।
Q सिखधर्म के गुरुनानक देव जी की वाणी में ॐ कार की भी प्रशंसा है । और अकाल पुरुष का भी वर्णन है ।
ANS - जी हाँ गुरु गृन्थ साहब में आत्मग्यान सन्तों की वाणी में ही है । और एकदम सही है । पर ये बात दूसरी है कि समझ उसको 10% लोग भी नहीं पाते ।
Q ओशो के ॐकार और गुरुनानक के ॐकार वाले रहस्य पर से ज़रुर पर्दा उठायें ।
ANS - दोनों एक ही हैं भाई । भले ही हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई पारसी आदि जातियाँ बना दी गयीं । पर नंगा शरीर होने पर आदमी तो एक ही जैसा होता है । खून एक जैसा । हड्डी एक जैसी । बाल आदि सभी चीजें एक जैसी ही तो हैं । अतः दो दो ॐकार कैसे हो सकते हैं ?
Q ओशो महाराज ॐकार पर बहुत जोर देते हैं ।
ANS - इस मनुष्य शरीर का बहुत महत्व है । देवता भी इसे प्राप्त करने के लिये तरसते हैं । इस शरीर के बिना कुछ भी प्राप्ति नहीं हो सकती । अतः ओशो का ॐकार को महत्व देना ठीक ही था । पर वो महत्व किस तरह और कहाँ उपयोगी है ? ये जानना आवश्यक है ।..वैसे - ओशो महाराज ॐकार पर बहुत जोर देते हैं । ( हैं नहीं थे ) आज के वाले तो न ओ हैं न शो हैं ।
Q आपके ब्लोग में मैंने पढा है कि ॐ से तो शरीर की रचना हुई है ।
ANS - चलिये आज आप देख ही लो । ये बात कैसे है । वैसे ॐ की आंतरिक शरीर संरचना और भेद तो इतनी आसानी से नहीं समझाई जा सकती । पर इंसान के दोनों पैर और लिंग ( स्त्री हो तो स्त्री योनि भी वास्तव में लिंग ही है । सिर्फ़ बनाबट का फ़र्क है । ध्यान दें । स्त्री के लिये कहा जाता है । स्त्री लिंग । फ़िर ये स्त्री वाला लिंग क्या होता है ? ) ये हुये ( उ ) । ( इसी आकार में बनाकर देखें ) इस उ से पीछे निकलने वाली ( ऊ ) आधी लाइन । कमर से गर्दन तक । एक हाथ । इसी लाइन से जुङी लाइन । दूसरा हाथ । अर्ध चन्द्र । ( . ) बिन्दी । सिर । बन गया पूरा ॐ । इसकी आंतरिक संरचना में । अ । उ । म । अर्ध चन्द्र । और ( . ) बिन्दी । ये पांच हैं । इसमें म यानी माया से बना । अ और ( . ) बिन्दी प्रमुख हैं । पर इनका वास्तविक तरीका और घटक बताने के लिये पूरी एक बङी किताब ही लिख जायेगी ।
Q क्या ओशो पूरे सतगुरु नहीं थे ( जो अन्त तक की बात बता सकें )
ANS - ओशो सतगुरु ही थे । और उन्होंने अन्त तक की ही बात कही है । पर कोई भी बात प्रसंग और विषय के अनुसार ही तो कही जायेगी । जहाँ ॐकार की बात थी । वहाँ उन्होंने ॐकार के लिये कहा । जहाँ निरंकार या ररंकार की बात थी । वहाँ उन्होंने वैसा कहा । पर क्योंकि लोग ॐकार को ही ज्यादा सुनते आये हैं । ॐकार अधिक पापुलर है । अतः उसी को पकङ कर बैठ गये ।
ओशो ने कहा - नया निर्माण मत करो । पुराना गिरा दो ।
अर्थ - अब नये कर्मों का निर्माण मत करो । और पुराने कर्म संस्कार योग से जला दो । यही मुक्ति है ।
ओशो ने कहा - वह चींटी की भी पगध्वनि सुनता है ।
अर्थ - किसी भी जीव या मनुष्य की प्रत्येक हरकत को वह जानता है । क्योंकि सबके अन्दर वही विराजमान है ।
ओशो ने कहा - आखिर में उस दरबाजे के बाद नीचे दूर दूर तक घना अंधकार है । जिधर देखो । उधर काला घना अंधकार । यहीं कूद जाना है । इसके आगे ही मंजिल है । पर यहीं इंसान ( साधक ) भयभीत हो जाता है । और लक्ष्य से वंचित रहता है ।
- संक्षेप में यही अन्त की बात थी । लेकिन ये बात सिर्फ़ ओशो रजनीश पर ही लागू होती है । बाद में जो अनेक ओशो हो गये । उनमें किसी पर भी नहीं ।
दूसरी महत्वपूर्ण बात - कोई कितना ही बङा सतगुरु क्यों न हो । उसकी मान्यता शरीर रहने तक ही होती है । शरीर खत्म होने के बाद वह सतगुरु नहीं रहता । सिर्फ़ उसके उपदेशों से हम अपने अध्यात्म ग्यान में वृद्धि तो कर सकते हैं । बाकी आज कोई दिवंगत ओशो को ही गुरु मानकर सतगुरु वाले लाभ प्राप्त करना चाहे । ऐसा कभी नहीं हो सकता । और ये बात सिर्फ़ ओशो पर ही नहीं सभी पर लागू होती है । चाहे वह कबीर । रैदास । रामकृष्ण परमहँस । राम । श्रीकृष्ण कोई क्यों न हो ।
Q सिखधर्म के गुरुनानक देव जी की वाणी में ॐ कार की भी प्रशंसा है । और अकाल पुरुष का भी वर्णन है ।
ANS - जी हाँ गुरु गृन्थ साहब में आत्मग्यान सन्तों की वाणी में ही है । और एकदम सही है । पर ये बात दूसरी है कि समझ उसको 10% लोग भी नहीं पाते ।
Q ओशो के ॐकार और गुरुनानक के ॐकार वाले रहस्य पर से ज़रुर पर्दा उठायें ।
ANS - दोनों एक ही हैं भाई । भले ही हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई पारसी आदि जातियाँ बना दी गयीं । पर नंगा शरीर होने पर आदमी तो एक ही जैसा होता है । खून एक जैसा । हड्डी एक जैसी । बाल आदि सभी चीजें एक जैसी ही तो हैं । अतः दो दो ॐकार कैसे हो सकते हैं ?