प्रिय राजीव भाई ! नमस्कार । यदि आप अनुमति दें । तो मैं बाइबल में से भी कुछ आपके साथ बाँटना चाहूँगा । जो शायद इस कारण से भी है कि - मेरा सबसे छोटा भाई समृद्ध होते हुए भी ईसाई धर्म अपना चुका है । और इसी दौरान उसके पास्टर जी ने मेरा सभी धर्मो के प्रति उदारता और खुला मन देखते हुये एक प्रतिलिपि बाइबल ( नया नियम ) की मुझे भेंट की । उनकी पुरजोर कोशिशो के बाद भी मै उस धर्म को अपना नहीं सका । लेकिन बहुत सी अच्छी बातें जरूर बाइबल से ले ली । इसकी मेरे अनुसार वज़ह ये है कि - धर्म केवल बांधते हैं । और जहाँ बंधन है । वहाँ मुक्ति कैसे संभव है ? यदि मुक्ति चाहिये । तो बन्धनों से ऊपर उठना होगा । संकीर्णता छोड़कर उदार होना पड़ेगा । खैर वापिस उसी बात पर आता हूँ । यहाँ मैं एक बात खोलना चाहूँगा कि - 5 वर्ष की आयु से जो संत मत की पुस्तकों और सतसंगो को सुनता और अध्ययन करता आया हो । बाइबल को भी उसी दृष्टिकोण से पढ़ेगा । और आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि बाइबल भी संत मत पर ही आधारित है । ये और बात है कि इसकी वाणी दृष्टान्तों में लिखी है । और धर्म परायण लोगों को शायद ये बात कुछ कठिन गुजरे ( उसके लिए क्षमा चाहूँगा )
बाइबल का आत्मीय आधार है - पिता पुत्र और पवित्र आत्मा । मेरे अनुसार " परमात्मा पिता " " परमात्मा में लीन गुरु पुत्र ", और " जो परमात्मा में लीन हो सकता हो पवित्र आत्मा "
युहन्ना 1:1 आदि में वचन था । और वचन परमेश्वर के साथ था । और वचन परमेश्वर था । 1:2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था । 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ । और जो कुछ उत्पन्न हुआ है । उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई । 1:4 उसमें जीवन था । और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था । 1:5 ज्योति अन्धकार में चमकती है । और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया ।
युहन्ना 3:2 उसने रात को यीशु के पास आकर उससे कहा - हे रब्बी ! हम जानते है कि तू परमेश्वर की और से गुरु होकर आया है । क्योकि कोई इन चिह्नों को । जो तू दिखाता है । यदि परमेश्वर के साथ न हो । तो नहीं दिखा सकता ।
युहन्ना 3:3 यीशु ने उसको उत्तर दिया - मैं तुमसे सच सच कहता हूँ । यदि कोई नये सिरे से न जन्मे । तो परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता ।
युहन्ना 3: 20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है । वह ज्योति से बैर रखता है । और ज्योति के निकट नहीं आता । ऐसा न हो कि उसके कामों पर बैर लगाया जाये । 3:21 परन्तु जो सत्य पर चलता है । वह ज्योति के निकट आता है । ताकि उसके काम प्रगट हो कि वह परमेश्वर की और से किये गये हैं ।
युहन्ना 3:27 नाशवान भोजन के लिए परिश्रम न करो । परन्तु उस भोजन के लिये । जो अनंत जीवन तक ठहरता है । जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हे देगा । क्योंकि पिता अर्थात परमेश्वर ने उसी पर छाप लगाई है ।
युहन्ना 6:29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया - परमेश्वर का कार्य ये है कि तुम उस पर । जिसने उसे भेजा है । विश्वास करो ।
युहन्ना 6: 35 जीवन की रोटी मैं हूँ । जो मेरे पास आता है । वह कभी भूखा न होगा । और जो मुझ पर विश्वास करता है । वह कभी प्यासा न होगा ।
युहन्ना 6: 51 जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी है । मैं हूँ । यदि कोई इस रोटी में से खाय । तो सर्वदा जीवित रहेगा । और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिए दूंगा । वह मेरा मांस है ।
युहन्ना 7:36 यह क्या बात । जो उसने कही कि - तुम मुझे ढूंढोंगे । परन्तु न पाओगे । और जहाँ मैं हूँ । वहाँ तुम नहीं आ सकते ।
युहन्ना 8:12 यीशु ने फिर लोगों से कहा - जगत की ज्योति मैं हूँ । जो मेरे पीछे हो लेगा । वह अन्धकार में न चलेगा । परन्तु जीवन की ज्योति पायेगा ।
युहन्ना 8:23 उसने उनसे कहा - तुम नीचे के हो । मैं ऊपर का हूँ । तुम संसार के हो । मैं संसार का नहीं हूँ ।
युहन्ना 8:32 तुम सत्य को जानोगे । और सत्य तुम्हे स्वतन्त्र करेगा ।
युहन्ना 9:39 तब यीशु ने कहा - मैं इस जगत में न्याय के लिए आया हूँ । ताकि जो नहीं देखते । वे देखें । और जो देखते हैं । वे अंधे हो जायें ।
युहन्ना 10:16 मेरी और भी भेड़ें हैं । जो इस भेड़शाला की नहीं । मुझे उनको भी लाना अवश्य हैं । वो मेरा शब्द सुनेंगी । तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा ।
युहन्ना 10:27 मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं । मैं उन्हें जानता हूँ । और वो मेरे पीछे पीछे चलती हैं । 10:28 और मैं उन्हें अनंत जीवन देता हूँ । वे कभी नाश न होंगी । और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा । 10:29 मेरा पिता जिसने मुझको दिया है । सबसे बड़ा है । और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता । 10: 30 मैं और पिता एक हैं ।
युहन्ना 12:25 जो अपने प्राण को प्रिय जानता है । वह इसे खो देता है । और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है । वह अनंत जीवन के लिए उसकी रक्षा करेगा ।
युहन्ना 12:35 यीशु ने कहा - ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है । जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है । तब तक चले चलो । ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे । जो अन्धकार में चलता है । वह नहीं जानता कि किधर जाता है । 12: 36 जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है । ज्योति पर विश्वास करो । ताकि तुम ज्योति की संतान बनो ।
युहन्ना 15:7 यदि तुम मुझमें बने रहो । और मेरा वचन तुममें बना रहे । तो जो चाहे मांगो । और वह तुम्हारे लिए हो जायेगा ।
अभी केवल युहन्ना ( JOHN ) अध्याय से ही लिया है । और इसमें मैंने अपनी तरफ से कुछ भी नहीं जोड़ा है । अत: जो ज्ञानी और विवेकी और समझदार हैं । वे इन दृष्टान्तों को भली प्रकार समझ जायेंगे । और जो नहीं समझेंगे । इसमें उनका भी दोष नहीं है ।
क्योंकि कुरिन्थियों 1:7 परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान । भेद की रीति पर बताते हैं । जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिए ठहराया है । 1:8 जिसे इस संसार के हाकिमो में से किसी ने नहीं जाना । क्योंकि यदि वे जानते । तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढाते । 1:9 परन्तु जैसा लिखा है ।
- जो बातें आँख ने नहीं देखी । और कान ने नहीं सुनी । और जो बात मनुष्य के चित में नहीं चढ़ी । वे ही हैं । जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिए तैयार की है । निकृष्ट अनिक्रिष्ट ।
प्रस्तुतकर्ता - अशोक कुमार । दिल्ली से । आपका बहुत बहुत धन्यवाद अशोक जी ।
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मैं बहुत समय से यह बात कहता रहा कि - बाइबल और कुरान में संकेतों में आत्म ज्ञान और सुरति शब्द योग ही बताया गया है । पर समय के अभाव के कारण मैं उन खास वचनों आयतों का चयन कर टायपिंग कर आपके लिये उसकी व्याख्या कर पाने में असफ़ल रहा । प्रभु कृपा से हमारे शिष्य अशोक जी ने बाइबल और इस्लाम धर्म । गुरु ग्रन्थ साहब आदि बहुत धर्म ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन किया है । तब वे उसमें से सार सार निकाल कर आपको बतायेंगे । और आवश्यकता अनुसार मैं उसकी व्याख्या भी करूँगा । उपरोक्त वचन वास्तव में ऐसे ही सार वचन हैं । इनका सही अर्थ कुछ ही समय में यहीं जुङेगा ।
बाइबल का आत्मीय आधार है - पिता पुत्र और पवित्र आत्मा । मेरे अनुसार " परमात्मा पिता " " परमात्मा में लीन गुरु पुत्र ", और " जो परमात्मा में लीन हो सकता हो पवित्र आत्मा "
युहन्ना 1:1 आदि में वचन था । और वचन परमेश्वर के साथ था । और वचन परमेश्वर था । 1:2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था । 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ । और जो कुछ उत्पन्न हुआ है । उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई । 1:4 उसमें जीवन था । और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था । 1:5 ज्योति अन्धकार में चमकती है । और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया ।
युहन्ना 3:2 उसने रात को यीशु के पास आकर उससे कहा - हे रब्बी ! हम जानते है कि तू परमेश्वर की और से गुरु होकर आया है । क्योकि कोई इन चिह्नों को । जो तू दिखाता है । यदि परमेश्वर के साथ न हो । तो नहीं दिखा सकता ।
युहन्ना 3:3 यीशु ने उसको उत्तर दिया - मैं तुमसे सच सच कहता हूँ । यदि कोई नये सिरे से न जन्मे । तो परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता ।
युहन्ना 3: 20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है । वह ज्योति से बैर रखता है । और ज्योति के निकट नहीं आता । ऐसा न हो कि उसके कामों पर बैर लगाया जाये । 3:21 परन्तु जो सत्य पर चलता है । वह ज्योति के निकट आता है । ताकि उसके काम प्रगट हो कि वह परमेश्वर की और से किये गये हैं ।
युहन्ना 3:27 नाशवान भोजन के लिए परिश्रम न करो । परन्तु उस भोजन के लिये । जो अनंत जीवन तक ठहरता है । जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हे देगा । क्योंकि पिता अर्थात परमेश्वर ने उसी पर छाप लगाई है ।
युहन्ना 6:29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया - परमेश्वर का कार्य ये है कि तुम उस पर । जिसने उसे भेजा है । विश्वास करो ।
युहन्ना 6: 35 जीवन की रोटी मैं हूँ । जो मेरे पास आता है । वह कभी भूखा न होगा । और जो मुझ पर विश्वास करता है । वह कभी प्यासा न होगा ।
युहन्ना 6: 51 जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी है । मैं हूँ । यदि कोई इस रोटी में से खाय । तो सर्वदा जीवित रहेगा । और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिए दूंगा । वह मेरा मांस है ।
युहन्ना 7:36 यह क्या बात । जो उसने कही कि - तुम मुझे ढूंढोंगे । परन्तु न पाओगे । और जहाँ मैं हूँ । वहाँ तुम नहीं आ सकते ।
युहन्ना 8:12 यीशु ने फिर लोगों से कहा - जगत की ज्योति मैं हूँ । जो मेरे पीछे हो लेगा । वह अन्धकार में न चलेगा । परन्तु जीवन की ज्योति पायेगा ।
युहन्ना 8:23 उसने उनसे कहा - तुम नीचे के हो । मैं ऊपर का हूँ । तुम संसार के हो । मैं संसार का नहीं हूँ ।
युहन्ना 8:32 तुम सत्य को जानोगे । और सत्य तुम्हे स्वतन्त्र करेगा ।
युहन्ना 9:39 तब यीशु ने कहा - मैं इस जगत में न्याय के लिए आया हूँ । ताकि जो नहीं देखते । वे देखें । और जो देखते हैं । वे अंधे हो जायें ।
युहन्ना 10:16 मेरी और भी भेड़ें हैं । जो इस भेड़शाला की नहीं । मुझे उनको भी लाना अवश्य हैं । वो मेरा शब्द सुनेंगी । तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा ।
युहन्ना 10:27 मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं । मैं उन्हें जानता हूँ । और वो मेरे पीछे पीछे चलती हैं । 10:28 और मैं उन्हें अनंत जीवन देता हूँ । वे कभी नाश न होंगी । और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा । 10:29 मेरा पिता जिसने मुझको दिया है । सबसे बड़ा है । और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता । 10: 30 मैं और पिता एक हैं ।
युहन्ना 12:25 जो अपने प्राण को प्रिय जानता है । वह इसे खो देता है । और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है । वह अनंत जीवन के लिए उसकी रक्षा करेगा ।
युहन्ना 12:35 यीशु ने कहा - ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है । जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है । तब तक चले चलो । ऐसा न हो कि अन्धकार तुम्हें आ घेरे । जो अन्धकार में चलता है । वह नहीं जानता कि किधर जाता है । 12: 36 जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है । ज्योति पर विश्वास करो । ताकि तुम ज्योति की संतान बनो ।
युहन्ना 15:7 यदि तुम मुझमें बने रहो । और मेरा वचन तुममें बना रहे । तो जो चाहे मांगो । और वह तुम्हारे लिए हो जायेगा ।
अभी केवल युहन्ना ( JOHN ) अध्याय से ही लिया है । और इसमें मैंने अपनी तरफ से कुछ भी नहीं जोड़ा है । अत: जो ज्ञानी और विवेकी और समझदार हैं । वे इन दृष्टान्तों को भली प्रकार समझ जायेंगे । और जो नहीं समझेंगे । इसमें उनका भी दोष नहीं है ।
क्योंकि कुरिन्थियों 1:7 परन्तु हम परमेश्वर का वह गुप्त ज्ञान । भेद की रीति पर बताते हैं । जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिए ठहराया है । 1:8 जिसे इस संसार के हाकिमो में से किसी ने नहीं जाना । क्योंकि यदि वे जानते । तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढाते । 1:9 परन्तु जैसा लिखा है ।
- जो बातें आँख ने नहीं देखी । और कान ने नहीं सुनी । और जो बात मनुष्य के चित में नहीं चढ़ी । वे ही हैं । जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिए तैयार की है । निकृष्ट अनिक्रिष्ट ।
प्रस्तुतकर्ता - अशोक कुमार । दिल्ली से । आपका बहुत बहुत धन्यवाद अशोक जी ।
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मैं बहुत समय से यह बात कहता रहा कि - बाइबल और कुरान में संकेतों में आत्म ज्ञान और सुरति शब्द योग ही बताया गया है । पर समय के अभाव के कारण मैं उन खास वचनों आयतों का चयन कर टायपिंग कर आपके लिये उसकी व्याख्या कर पाने में असफ़ल रहा । प्रभु कृपा से हमारे शिष्य अशोक जी ने बाइबल और इस्लाम धर्म । गुरु ग्रन्थ साहब आदि बहुत धर्म ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन किया है । तब वे उसमें से सार सार निकाल कर आपको बतायेंगे । और आवश्यकता अनुसार मैं उसकी व्याख्या भी करूँगा । उपरोक्त वचन वास्तव में ऐसे ही सार वचन हैं । इनका सही अर्थ कुछ ही समय में यहीं जुङेगा ।