28 जुलाई 2012

काल पुरुष ने आत्मा को 84 लाख योनियों मे कैसे डाला ?


स्वपनिल तिवारी के कुछ अन्य प्रश्न - सत्य पुरुष ने रचना का प्रारम्भ किया । तो क्या इसका भी अंत होगा ? क्योंकि शास्त्रों में ऐसा कहा जाता है कि - जिसका भी प्रारंभ है । उसका अंत भी होता है । या ये नियम मात्र काल पुरुष के लोक जहाँ काल ( समय ) का राज है । वहीं तक सीमित है ?
जब काल पुरुष ने इस सृष्टि की रचना की । तब उसने आत्मा को 84 लाख योनियों मे कैसे डाला ? क्या उसने सभी को मनुष्य बनाया ? क्योंकि तब तो किसी ने कोई कर्म किया ही नही था । या काल पुरुष ने उस समय भी भृम से उनके अंदर संस्कार डाल दिए थे ? अगर ऐसा है । तब तो वो अन्यायी/अधर्मी है । तब भी उसका नाम धर्मराय है ? ये कर्म फल का नियम कब से है ? और क्या ये सतलोक में भी लागू होता है ( पिछले प्रश्नों के उत्तर में ये स्पष्ट नहीं हो पाया था । पर आपके लेख से यही भान हुआ कि - यह हमेशा से है । क्योंकि अगर यह सतलोक में न होता । तो सतलोक में जाने के बाद हंस के उत्थान पर विराम लग जाता ) ?
84 लाख योनियों में जाने वाली आत्मा को क्या सभी योनियों से होकर जाना पड़ता है । मनुष्य जन्म प्राप्त करने के लिए ? या कर्म अनुसार जिनसे संस्कार जुड़े हों । उन्हीं से बस निकल कर मनुष्य देह पुनः प्राप्त हो जाती है ? अथवा बहुत नीच कर्म होने पर लगातार 84 में ही चक्कर काटते रहने की भी स्थिति

हो सकती है । जिसकी अवधि साढ़े 12 लाख वर्ष से भी अधिक हो ? ऐसी कौन सी स्थिति अथवा मनुष्य को छोड़ कर योनि होती है । जिसमें प्राण दशम द्वार से निकलते हैं । और पुनः मनुष्य जन्म प्राप्त होता है ? क्या मनुष्य जैसी ही दैहिक संरचना अन्य किसी योनि में भी है । जिसमें दशम द्वार हो ? अथवा मनुष्य जन्म मात्र पिंडज खंड की योनि से ही प्राप्त हो सकता है । क्योंकि उनमें भी 9 द्वार होते हैं । तो दसवे की भी सम्भावना है ?
अद्वैत में जड़ और चेतन की क्या परिभाषा है ? 
प्राण तत्व क्या है ? 
बाल हाथ नाखून आदि देह के अंग होते हैं । और देह में जब तक प्राण रहते हैं । इन अंगों में भी प्राण का संचार होता रहता है (बाल और नाखूनों में नहीं ?) पर जब ये अंग किन्ही कारणों से देह से अलग हो जाते हैं । तब इनसे प्राण चले जाते हैं । अगर ऐसा होने से आत्मा के देह में प्रवेश करने का प्रयोजन आगे पूर्ण नहीं हो सकता है । तब क्या देह से भी प्राण निकल जाते है ?
पर चेतनता वस्तुओ में यथा रूप बनी रहती है । चाहे उनकी स्थिति जहाँ भी हो । और चाहे । उनमें प्राण हों । या न हों ?
क्या किसी भी स्थूल/सूक्ष्म वस्तु/तत्व के अस्तित्व के लिए चेतनता ही आधार है । या जो चीज मान ली जाती है । वो अस्तित्व में आती जाती है ? 


क्या प्राण तत्व वायु तत्व से सम्बंधित है ? क्या किसी भी स्थूल वस्तु (अथवा सूक्ष्म भी ?) की गति के लिए प्राण तत्व ही कारण है ?
स्थावर खानी की श्रेणी में पेड़ पौधे वृक्ष पर्वत आदि आते हैं । पेड़ पौधों में तो जीवन समझ में आता है । क्योंकि वो स्वांस लेते हैं । और प्रजनन करते हैं । परन्तु पर्वत पत्थर आदि में जीवन कैसे जाना जा सकता है ?
उपरोक्त प्रश्न द्वैत/अद्वैत प्राण/चेतना सम्बंधित संशयों को समझने के लिए है ।
आपके द्वारा किसी लेख में 32 तत्व बताये गए थे । ये तत्व क्या क्या हैं ? क्या इनमे 25 तत्व सांख्य के ही हैं ?
महाराज एक और संशय है । वर्तमान में राष्ट्र में विभिन्न क्षेत्रों में उपदृव हिंसा आदि हो रहे हैं । इन्हें देख कर अगर आध्यात्मिक चिंतन किया जाये । तब यह लगता है कि - जो हो रहा है । ये उनके कर्मो का फल ही है । उपद्रव हिंसा आदि करने वाले अपने संस्कार और स्वभाव के कारण ऐसा कर रहे हैं ।

और ये घटनायें और वो लोग व्यापक राष्ट्रीय परवर्तन के निमित्त मात्र हैं । परन्तु ऐसा सोचने पर एक अकर्मण्यता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । फिर एक ओर ये भी लगता है कि - अगर ये हमारे साथ हो रहा होता तब ? तब ये आध्यात्म कहा जाता ? पर फिर लगता है । ऐसा सोचना तो मूर्खतापूर्ण है । क्योंकि ये सत्य तो शाश्वत है कि - जो किया । वो तो भुगतना ही पड़ेगा । ऐसे नहीं । तो वैसे सही । पर ऐसा चिंतन करने पर न जाने कितने संस्कार बनते बिगड़ते होंगे ? ऐसे में क्या करना चाहिये है ?  
मैं अभी भी अनुराग सागर के माध्यम से ही अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढ रहा हूँ । इसी कारण से बहुत समय से कोई प्रश्न नहीं पूछे आपसे । ॥ जय जय श्री गुरुदेव ॥
--ooo--
आपने काफ़ी दिन हो गये । स्वपनिल तिवारी के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया । कृपया जल्दी उत्तर दें । अनाम टिप्पणी । लेख - परम सन्तुष्टि और परमात्मा की प्राप्ति कैसे सम्भव है ? इस लेख के लिये नीचे लिंक पर क्लिक करें ।
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2012/05/blog-post_13.html?showComment=1342961640112#comment-c2363593485247542744
इस लेख पर टिप्पणी आने के बाद दूसरे दिन स्वयं श्री स्वपनिल तिवारी द्वारा भेजे गये लिंक -
॥ जय जय श्री गुरुदेव ॥ प्रणाम महाराज । टिप्पणीकर्ता द्वारा मांगे गए उत्तरों के लिंक -
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2012/05/blog-post_7046.html
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2012/05/blog-post_15.html
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2012/05/blog-post_8437.html
http://searchoftruth-rajeev.blogspot.in/2012/05/blog-post_17.html
[ अनेकों रहस्य साथ में होने के कारण उत्तर अस्पष्ट प्रतीत होते हैं । अधिक जानकारी के लिए कृपया अनुराग सागर पढ़ें ] स्वपनिल तिवारी ।
--ooo--
1 हजार हिन्दुओं का कत्ल करो । फ़िर न्यूज दिखाऊँगा - राजदीप सरदेसाई । IBN7 चीफ़ । विस्त्रत जानकारी देखें । डा. दिव्या ( ZEAL ) के इस ब्लाग लिंक पर ।
http://zealzen.blogspot.in/2012/07/blog-post_28.html
--ooo--

सत्यकीखोज के पाठकों की जिज्ञासा और चिंतन मनन देखकर सदैव ही अच्छे अच्छे विद्वान भी दंग रह गये । लेकिन इस वाक्य पर कोई भी टीका टिप्पणी करने से पहले ये ध्यान रखना कि - ऐसी जिज्ञासायें युवा अपरिपक्व और सामान्य श्रेणी में आने वाले पाठकों की हैं । न कि गहन अध्ययन किये विद्वानों की । अतः इस दृष्टिकोण से इन जिज्ञासाओं का स्तर बहुत ऊँचा हो जाता है । मैं 100% गारंटी से कह सकता हूँ । ऐसे प्रश्न उत्तर या जिज्ञासायें आपको बङे बङे प्रसिद्ध कथावाचकों साधुओं महा मंडलेश्वरों के प्रवचनों सतसंग आदि में देखने सुनने में नहीं आयी होंगी । यदि किसी इक्का दुक्का अपवाद ने कोई सूक्ष्म स्तर का प्रश्न पूछा भी होगा । तो उसका उत्तर टाल मटोल किस्म का मिला होगा । पर सत्यकीखोज मंच पर ऐसा नहीं है । यहाँ आपके प्रश्न जिज्ञासा का उत्तर प्रश्न से भी अधिक बारीक बिन्दुओं पर देने की कोशिश की जाती हैं । कोशिश शब्द का प्रयोग 


मैंने इसलिये किया । क्योंकि आध्यात्म के एक सामान्य प्रश्न को भी पूर्णतया बारीकी से समझाने हेतु कम से कम ( ऐसे ) दस लेखों की आवश्यकता होती है । जो कि सम्भव नहीं होता । अतः विभिन्न बिन्दुओं अनुसार अलग अलग स्थानों पर अंश रूप उनकों टुकङों में ही समझाने की कोशिश की जाती है । मेरे एक स्थायी पाठक के अनुसार - मैंने विभिन्न बङे स्तरों के भी कई धार्मिक ब्लाग साइटस देखें हैं । पर सभी पर मक्खियाँ ही भिनभिनाती रहती हैं । इस ब्लाग जैसा भीङभाङ और आध्यात्म का आस्था पूर्ण चिंतन कहीं देखने में नहीं आया ।
खैर..आज रविवार है । सुबह को छुट्टी कर लेता हूँ कभी कभी । शाम को या समय मिलते ही इन सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दियें जायेंगे ।

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
सत्यसाहिब जी सहजसमाधि, राजयोग की प्रतिष्ठित संस्था सहज समाधि आश्रम बसेरा कालोनी, छटीकरा, वृन्दावन (उ. प्र) वाटस एप्प 82185 31326